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21वीं सदी, भारत और आसियान की सदी है: मोदी

रजत शर्मा रॉयटर्स, एपी, एएफपी
२६ अक्टूबर २०२५

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत-आसियान समिट को कुआलालंपुर जा कर संबोधित करने की बजाय वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित किया. क्या ट्रंप से संभावित मुलाकात मलेशिया ना जाने की एक वजह रही?

सितंबर में मुंबई में एक कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी मलेशिया नहीं गए, बल्कि वीडियो से सम्मेलन को संबोधित कियातस्वीर: DPR PMO/ANI

मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में जारी आसियान शिखर सम्मेलन को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्चुअली संबोधित किया. दक्षिण-पूर्व एशिया के 11 देशों का समूह 'आसियान', भारत के अहम व्यापारिक साझेदारों में से है. इसके अलावा दोनों के बीच सांस्कृतिक और शैक्षिणक आदान-प्रदान होता रहा है. हर साल आयोजित होने वाले आसियान सम्मेलन में समूह की भारत और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ अलग से बैठकें होती हैं.

22वें भारत-आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी ने 2026 को "आसियान-भारत समुद्री सहयोग वर्ष" घोषित किया. अपने संबोधन में मोदी ने कहा, भारत और आसियान मिलकर विश्व की लगभग एक चौथाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते है. हम सिर्फ भूगोल ही साझा नहीं करते, हम गहरे ऐतिहासिक संबंधों और साझे मूल्यों की डोर से भी जुड़े हुए हैं."

भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा, "आसियान, भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी का मुख्य स्तंभ है. भारत सदैव "आसियान सेन्ट्रैलिटी" और हिंद-प्रशांत पर आसियान के दृष्टिकोण का पूर्ण समर्थन करता रहा है." मोदी ने 'आसियान कम्युनिटी विजन 2045' और 'विकसित भारत 2047' का जिक्र करते हुए क्षेत्रीय सहयोग के लिए प्रतिबद्धता दोहराई. उन्होंने कहा, "21वीं सदी हमारी सदी है, भारत और आसियान की सदी है."

मलेशिया ना जाने के पीछे ट्रंप हैं वजह?

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ताएं अभी तक लंबी खिंच रही हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप, आसियान सम्मेलन के लिए कुआलालंपुर आए हैं और चीन, ब्राजील जैसे गैर-आसियान देशों के साथ व्यापार वार्ता में शामिल भी हुए. विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका ट्रेड डील में अभी उस स्तर पर नहीं पहुंचे हैं जहां दोनों देशों का शीर्ष नेतृत्व मिले. इसके अलावा ट्रंप, रूसी तेल खरीदने के लिए भारत पर लगातार निशाना साधते आए हैं.

भारत के सामने क्या करे क्या ना करे की मुश्किल

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ट्रंप कहते हैं कि रूसी तेल खरीदकर भारत, यूक्रेनी जंग के लिए रूस को धन मुहैया करा रहा है. फिलहाल ट्रंप ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया हुआ है. साथ ही भारतीय कंपनियों को रूसी तेल के आयात से जुड़े कुछ अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है. ट्रंप कुछ मौकों पर यह भी कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री मोदी से हुई बातचीत में उनको भरोसा दिलाया गया है कि भारत, रूस से तेल की खरीद धीरे-धीरे बंद कर देगा.

भारत का रुख

भारत अपनी लगभग 85 प्रतिशत कच्चे तेल की जरूरतों के लिए वैश्विक बाजारों पर निर्भर है. सरकार यह कई मौकों पर कहती रही है कि उसकी ऊर्जा नीति पूरी तरह राष्ट्रीय हितों द्वारा तय होती है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर ट्रंप के रूसी तेल की खरीद से जुड़े दावों को नकारा है. विदेश मंत्रालय ने पिछले हफ्ते कहा कि दोनों नेताओं ने दिवाली की शुभकामनाएं दीं और आतंकवाद-रोधी उपायों पर चर्चा की, लेकिन ऊर्जा से संबंधित कोई बात नहीं हुई.

इस बीच भारतीय मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि अमेरिका और यूरोप द्वारा लगाए गए नए प्रतिबंधों के मद्देनजर भारत सरकार के दिशानिर्देशों के तहत सरकारी तेल कंपनियां, रूसी कंपनियों से खरीद की रणनीति को फिर से तय करेंगी.

कभी दोस्ताना संबंधों के लिए मशहूर रहे मोदी और ट्रंप के बीच हाल के महीनों में रिश्ते ठंडे पड़े हैं. मई महीने में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए सैन्य तनाव के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने मध्यस्थता का श्रेय खुद को दिया था. उनके इस दावे को नई दिल्ली ने पूरी तरह तथ्यहीन बताया था, लेकिन ट्रंप इसे कई बार इसे दोहरा चुके हैं.

 

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