प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 मई को अपने दूसरे कार्यकाल का पहला साल पूरा करेंगे. एक साल के भीतर देश और दुनिया में आमूलचूल परिवर्तन हो चुका है. लॉकडाउन की वजह से पार्टी उस तरह का जश्न नहीं मना पाएगी जैसा आमतौर पर मनता है.
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कोरोना वायरस महामारी के कारण दुनियाभर के देशों में कड़ाई से लॉकडाउन लागू किया गया है और सामाजिक और शारीरिक दूरी के नियमों का पालन कराया जा रहा है. भारत में भी 25 मार्च से लॉकडाउन लागू है, हालांकि लॉकडाउन चार में कई तरह की रियायतें दी गई हैं. वैश्विक महामारी के बीच भारत में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम होने वाला है. 30 मई को नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली सालगिरह मनाई जाएगी.
हालांकि यह जश्न आमतौर पर मनाए जाने वाले जश्नों से अलग होगा. इसमें ना भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता मंचों पर नजर आएंगे और ना ही बड़ी-बड़ी रैलियों का आयोजन होगा. लॉकडाउन की वजह से बीजेपी ने अपने जश्न से जुड़े कार्यक्रमों को वर्चुअल तरीके से मनाने का फैसला किया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत हासिल किया था. बीजेपी ने अपने बल पर लोकसभा की 303 सीटें जीतें थी.
कोरोना वायरस महामारी के इस समय में मोदी सरकार अपनी बड़ी उपलब्धियों को जनता के बीच पहुंचाने का कोई मौका नहीं खोना चाहती है. मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक बीजेपी मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की पहली सालगिरह के मौके पर "वर्चुअल रैली" का आयोजन करने जा रही है. यानि रैली तो होगी लेकिन वह कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से होगी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पार्टी देश में "वर्चुअल रैली" का आयोजन करेगी और एक हजार से अधिक ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस भी होंगी.
राज्य इकाइयों और अन्य बीजेपी कार्यकर्ताओं को भेजी चिट्ठी में पार्टी के महासचिव अरुण सिंह ने लिखा है कि सभी बड़े राज्यों की इकाइयां कम से कम दो और छोटे राज्यों की यूनिट कम से कम एक वर्चुअल रैली करेंगी. हर रैली में कम से कम 750 लोग शामिल होने चाहिए. उन्होंने बताया कि इंटरनेट के माध्यम से एक हजार ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस भी होंगी.
पार्टी सूत्रों ने मीडिया को बताया कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले ही साल में जनता की उम्मीदें पूरी हो गईं और पहला साल कई उपलब्धियों से भरा है. बीजेपी ने अपने पत्र में कहा है कि पिछले एक साल में जनता की सदियों पुरानी इच्छाएं पूरी हुईं हैं-जिनमें तीन तलाक का खत्म होना, अनुच्छेद 370 का निरस्त होना, लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना, अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण का रास्ता साफ होना और पड़ोसी देशों से आए शरणार्थियों को नागरिकता देना शामिल है. 30 मई से शुरू होने वाला वर्चुअल जश्न अगले एक महीने तक चल सकता है
कहां किस उम्र में मिलता है वोट देने का अधिकार?
भारत समेत दुनिया के अधिकतर देश 18 की उम्र में वोट देने का अधिकार देते हैं. लेकिन हर जगह ऐसा नहीं है. कहीं 16 साल में ही लोगों को समझदार मान लिया जाता है, तो कहीं यह हक 25 की उम्र तक नहीं मिल पाता.
तस्वीर: Reuters/C. Pike
16 साल
दुनिया में कुल 11 ऐसे देश हैं जहां 16 साल में ही वोट देने का अधिकार मिल जाता है. ये देश हैं: ब्राजील, इक्वाडोर, ऑस्ट्रिया, क्यूबा, गनजी, आइल ऑफ मैन, जर्सी, माल्टा, निकारागुआ, स्कॉटलैंड और अर्जेंटीना.
तस्वीर: Fotolia/william87
16 साल
अर्जेंटीना में 16 से 18 साल के बीच वोट देना वैकल्पिक है. 19 साल की उम्र पूरी होने के बाद यह अनिवार्य हो जाता है. वहीं ऑस्ट्रिया में ना केवल कम उम्र में वोट देने का हक है बल्कि 31 साल की उम्र में सेबस्टियन कुर्त्स देश के चांसलर बन गए थे.
इस सूची में सात देश शामिल हैं: ग्रीस, सूडान, दक्षिण सूडान, इथियोपिया, उत्तर कोरिया, इंडोनेशिया और पूर्व तिमोर. ग्रीस ने 2016 में वोटिंग की उम्र को 18 से घटा कर 17 साल किया था.
तस्वीर: Cardy/Getty Images
17 साल
इंडोनेशिया में माना जाता है कि अगर कोई शादी करने लायक समझदार है, तो वोट देने के लिए लायक भी है. इसलिए आधिकारिक उम्र भले ही 17 हो लेकिन अगर आप शादीशुदा हैं, या तलाक हो चुका है, तो उम्र कुछ भी हो, आपके पास वोट देने का हक है.
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19 साल
इस उम्र में मताधिकार देने वाला दुनिया का एकमात्र देश था दक्षिण कोरिया. लेकिन अप्रैल 2020 में यह बदल गया. देश में पहली बार 18 साल के युवाओं ने अपना वोट दिया. दक्षिण कोरिया में इस पर लंबे समय से बहस चल रही थी.
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20 साल
फारस की खाड़ी में मौजूद छोटे से देश बहरीन में वोट देने की न्यूनतम उम्र 20 साल है. ऐसा ही दक्षिणी प्रशांत महासागर में स्थित नौरू में भी है. नौरू दुनिया का सबसे छोटा द्वीप राष्ट्र है जिसका क्षेत्रफल केवल 21 वर्ग किलोमीटर है.
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21 साल
इस सूची में कुल दस देश मौजूद हैं: मलेशिया, सिंगापुर, ओमान, कुवैत, लेबनान, कैमरून, सोलोमन द्वीप. इनके अलावा दक्षिणी प्रशांत महासागर में मौजूद छोटे छोटे द्वीप टोकेलाऊ, सामोआ और टोंगा में भी वोट देने की न्यूनतम उम्र 21 साल है.
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21 साल
सिंगापुर में वोटिंग की उम्र को 21 से घटा कर 18 करने पर चर्चा चलती रही है लेकिन सरकार का कहना है कि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है. सिंगापुर में साक्षरता दर 97 फीसदी है और सरकार का मानना है कि उच्च शिक्षा के बाद ही व्यक्ति राजनीतिक फैसले लेने में सक्षम बनता है.
संयुक्त अरब अमीरात दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां वोट देने की न्यूनतम उम्र 25 साल है. हालांकि शादी करने की उम्र लड़के और लड़कियों दोनों के लिए यहां 18 साल है.