1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या लागू होने वाला है 'एक देश, एक चुनाव'?

४ सितम्बर २०२३

केंद्र सरकार की 'एक देश, एक चुनाव' पहल को लेकर कई सवाल खड़े हो गए हैं. समिति से अपना नाम वापस लेते हुए कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा है कि समिति के विमर्श के नतीजे पहले से ही तय कर दिए हैं.

पश्चिम बंगाल में अपनी उंगली पर लगी स्याही दिखाती एक मतदाता
चुनावतस्वीर: Satyajit Shaw/DW

अधीर रंजन चौधरी के अपना नाम वापस ले लेने के साथ केंद्र सरकार की इस कवायद से विपक्ष की भागीदारी खत्म हो गई है. समिति में विपक्ष की तरफ से चौधरी इकलौते प्रतिनिधि थे.

उनके अलावा समिति मेंकेंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद, पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे, वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव सुभाष कश्यप और पूर्व सीवीसी संजय कोठारी शामिल हैं. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस समिति के अध्यक्ष हैं.

आसान नहीं "एक चुनाव"

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक चौधरी ने अपना नाम वापस लेते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिख कर समिति बनाने की इस प्रक्रिया को एक "ढकोसला" बताया. उन्होंने लिखा कि समिति के विमर्श का नतीजा पहले ही तय कर दिया गया है और इसके दिशानिर्देशों को उस निष्कर्ष की तरफ बढ़ने के लिए ही बनाया गया है.

जानकारों का कहना है कि पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना संविधान में बदलाव लाये बिना संभव नहीं हैतस्वीर: STRINGER/REUTERS

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जिस तरह अचानक इस "संदिग्ध" विचार को देश पर "थोपा" जा रहा है, उससे "सरकार के अप्रत्यक्ष इरादों" को लेकर चिंताएं उत्पन्न होती हैं. लेकिन दूसरी तरफ समिति ने काम करना शुरू भी कर दिया है.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक रविवार तीन सितंबर को केंद्रीय विधि मंत्रालय के अधिकारियों ने कोविंद को विषय से संबंधित जानकारी दी.

पूरे देश में लोकसभा चुनाव और सभी विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव करानाएक बेहद पेचीदा विषय है. इस समय सिर्फ कुछ ही विधानसभाओं का कार्यकाल मौजूदा लोकसभा के कार्यकाल के आस पास खत्म होगा.

क्या संविधान में बदलाव होगा?

इसका मतलब जब भी यह प्रस्तावित 'एक देश, एक चुनाव' कराने होंगे, उस समय किसी ना किसी राज्य की विधानसभा के कार्यकाल को कम करना होगा. कई जानकारों का कहना है कि भारत के संघीय ढांचे में ऐसा करना राज्यों के अधिकारों का हनन करना है.

लंबे इंतजार के बाद मिला वोट का अधिकार

02:55

This browser does not support the video element.

राजनीतिक समीक्षक सुहास पल्शिकर के मुताबिक ऐसा करने के लिए संविधान को ही बदलने की ही जरूरत पड़ेगी. वह अपने आप में एक जटिल प्रक्रिया है. कई जानकारों ने यह सवाल भी उठाया है कि मान लीजिए एक बार पूरे देश में एक साथ चुनाव हो भी गए, उसके बाद अगर केंद्र सरकार या कोई भी राज्य सरकार किसी कारण से गिर गई तो क्या होगा?

क्या फिर से लोकसभा और सभी विधानसभाओं को भंग कर दिया जाएगा और फिर से चुनाव कराए जाएंगे? हाल के सालों में कई बार राज्य सरकारें गिरी हैं. जैसे जून, 2022 में महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना सरकार गिरी थी और जून 2020 में कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिरी थी.

बहरहाल, अटकलें लग रही हैं कि 18 से 22 सितंबर तक केंद्र सरकार ने संसद का जो विशेष सत्र बुलाया है उसी में 'एक देश, एक चुनाव' की घोषणा की जा सकती है. लेकिन सरकार ने अभी तक ऐसा कोई बयान नहीं दिया है.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें