1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मोदी, पुतिन, जिनपिंग को साथ ला रहा है एससीओ शिखर सम्मेलन

१५ सितम्बर २०२२

यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलेंगे. दोनों नेता उज्बेकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन के सम्मलेन में हिस्सा लेंगे, जहां शी जिनपिंग भी मौजूद रहेंगे.

भारत-रूस संबंध
व्लादिमीर पुतिन, नरेंद्र मोदीतस्वीर: Money Sharma/AFP/Getty Images

शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मलेन का आयोजन उज्बेकिस्तान के प्राचीन शहर समरकंद में हो रहा है. इसमें मोदी, पुतिन और जिनपिंग के अलावा पाकिस्तान और ईरान समेत यूरोप और एशिया के कई देशों के नेता हिस्सा लेंगे.

मुख्य सम्मलेन तो शुक्रवार 16 सितंबर को होगा लेकिन सम्मेलन पर ज्यादा ध्यान यूक्रेन युद्ध के बीच वहां पुतिन की मौजूदगी की वजह से बना रहेगा. सामरिक समीक्षकों में विशेष रूप से पुतिन की जिनपिंग और मोदी से मुलाकात को लेकर दिलचस्पी है. साथ ही लोगों में मोदी और जिनपिंग के बीच बातचीत की संभावना को लेकर भी उत्सुकता है.

सितंबर 2021 में वर्चुअल ब्रिक्स सम्मलेन में मोदी, पुतिन और शी की बातचीत हुई थीतस्वीर: BRICS Press Information Bureau/AP/picture alliance

मोदी और पुतिन के बीच आपसी मुलाकात की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन मोदी और जिनपिंग एक दूसरे से सीधा मिलेंगे या नहीं इसकी आधिकारिक घोषणा अभी नहीं हुई है. भारत के लिए ये दोनों बैठकें महत्वपूर्ण होंगी.

(पढ़ें: रूस में एक साथ सैन्याभ्यास करेंगे भारतीय और चीनी सैनिक)

मोदी की मुलाकातों पर नजर

यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से ही भारत रूस के हमले की निंदा नहीं करने और रूस से व्यापारिक रिश्ते और गहरे करने के लिए पश्चिमी देशों की आलोचना का सामना कर रहा है. ऐसे में युद्ध के बाद मोदी और पुतिन की पहली मुलाकात में दोनों नेता क्या बातें करेंगे, यह देखने लायक होगा.

पुतिन के लिए यह सम्मलेन यह दिखाने का मौका है कि रूस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूरी तरह से अलग थलग नहीं किया जा सकता है. रूस द्वारा यूक्रेन पर हमले की वजह से अमेरिका और यूरोप ने रूस पर कई प्रतिबंध लगाए हुए हैं और इस दिशा में उन्हें भारत का भी साथ मिलने की अपेक्षा रही है.

रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से भारत को होने वाले नफा-नुकसान

03:13

This browser does not support the video element.

भारत ने लगातार युद्ध की निंदा तो की है, लेकिन रूस की नहीं. उल्टा पश्चिमी देशों के बहिष्कार के बीच रूस ने भारत को सस्ते दामों पर कच्चा तेल और अन्य उत्पाद बेचने की पेशकश की तो भारत ने इसे स्वीकार कर लिया. बीते छह महीनों में भारत द्वारा आयातित कच्चे तेल के कुल भंडार में रूसी तेल की मात्रा में बहुत बढ़ोतरी हुई है.

(पढ़ें: पूर्वी लद्दाख: भारत-चीनी सेनाएं हटने लगीं पीछे)

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इसे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल और गैस के दाम के आसमान पर होने का असर बताया था. जयशंकर ने कहा था कि इन हालात में "हर देश स्वाभाविक रूप से कोशिश करेगा कि वो अपने नागरिकों को सबसे अच्छा सौदा दिलवा पाए और ऊर्जा के बढ़े हुए दामों के असर को थोड़ा कम कर पाए. भारत भी यही कर रहा है."

त्रिपक्षीय समीकरण

मनोहर परिकर इंस्टिट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में एसोसिएट फेलो स्वस्ति राव कहती हैं कि बीते एक हफ्ते में यूक्रेन ने युद्ध में बढ़त प्राप्त की है और विशेष रूप से इस वजह से पुतिन एक गैर पश्चिमी सम्मलेन के रूप में इस आयोजन का अधिकतम लाभ उठाने की कोशिश करेंगे.

राव ने डीडब्ल्यू से यह भी कहा कि पुतिन इस बात को भी जोर-शोर से दिखाने की कोशिश करेंगे कि कैसे रूस-भारत-चीन त्रिपक्षीय समीकरण अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की नई परिभाषा देगा.

पुतिन के अलावा मोदी अगर जिनपिंग से भी द्विपक्षीय स्तर पर बातचीत करते हैं तो यह कोविड-19 के बाद उनकी पहली मुलाकात होगी. जून 2020 में लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब हो गए थे.

सम्मलेन में भारत और चीन के संबंधों पर भी नजर रहेगीतस्वीर: Ng Han Guan/AP Photo/picture alliance

सीमा पर दोनों देशों की सेनाएं एक दूसरे के आमने सामने तन गई थीं. चीन द्वारा कई इलाकों में भारत की जमीन कब्जाने के आरोपों के बाद दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए बातचीत के कई दौर हुए.

दो दिन पहले ही इस बातचीत से एक बड़ी समस्या का समाधान हुआ और लद्दाख के गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स इलाके में दोनों सेनाएं एक दूसरे के सामने से हट गईं. इस वजह से भी उम्मीद लगाई जा रही है कि यह मोदी और जिनपिंग के बीच सीधी बातचीत के लिए सही समय है. जिनपिंग इस समय उज्बेकिस्तान समेत मध्य एशिया के कई देशों के दौरे पर हैं.

वरिष्ठ पत्रकार और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार संजय कपूर मानते हैं कि एससीओ एक तरह से जी-7 समूह का विकल्प है और इस लिहाज से इस सम्मलेन से बड़ी उम्मीदें की जा सकती हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि बैठक से ठीक पहले गोगरा से अपने सैनिकों को हटा कर चीन ने दिखाया है कि वो भारत को पूरी तरह से अमेरिका के पक्ष में जाने से रोकने और अपने खेमे में करने के लिए एक और कदम आगे बढ़ा सकता है.

(एएफपी, एपी से जानकारी के साथ)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें