अदालत ने म्यूजियम को दिया पुरुषों को प्रवेश देने का आदेश
विवेक कुमार
११ अप्रैल २०२४
ऑस्ट्रेलिया के एक संग्रहालय को अदालत ने आदेश दिया है कि पुरुषों को भी उस प्रदर्शनी में प्रवेश दिया जाए जो अब तक ‘सिर्फ महिलाओं के लिए’ खुली थी.
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ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया राज्य के म्यूजियम ऑफ ओल्ड एंड न्यू आर्ट (MONA) को अदालत ने आदेश दिया है कि ‘द लेडीज लाउंज' नाम की प्रदर्शनी में पुरुष दर्शकों को भी प्रवेश दिया जाए. संग्रहालय ने महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और अत्याचार के बारे में जागरूकता का हवाला देते हुए इस प्रदर्शनी में पुरुषों के आने पर प्रतिबंध लगा रखा था.
जब एक पुरुष दर्शक को म्यूजियम की प्रदर्शनी में आने से रोक दिया गया तो उसने लैंगिक भेदभाव का मुकदमा दर्ज कर दिया. मंगलवार को अदालत ने इस व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुनाते हुए संग्रहालय को कहा कि प्रदर्शनी में पुरुषों को भी आने की इजाजत होनी चाहिए.
इस फैसले पर निराशा जाहिर करते हुए संग्रहालय ने कहा, "हमें इस फैसले से गहरी निराशा हुई है.”
लेडीज लाउंज
‘द लेडीज लाउंज' 2020 में शुरू हुई प्रदर्शनी है जिसे परदों से ढक दिया गया है. इस प्रदर्शनी में पिकासो से लेकर सिडनी नोलन जैसे प्रतिष्ठित कलाकारों की कलाकृतियां प्रदर्शित हैं.
प्रदर्शनी को एक पुराने ऑस्ट्रेलियन पब के रूप में डिजाइन किया गया है, जहां 1965 तक महिलाओं का प्रवेश वर्जित था. प्रदर्शनी में आने वाली महिलाओं का शैंपेन से स्वागत होता है और उन्हें फाइव स्टार सेवाएं मिलती हैं.
महिलाओं को इतने कम नोबेल प्राइज
2023 में 11 नोबेल पुरस्कार विजेताओं में 4 महिलाएं हैं. यह महिलाओं की बड़ी संख्या है क्योंकि ऐतिहासिक रूप से महिलाओं को तुलनात्मक रूप से बहुत कम नोबेल प्राइज मिले हैं.
तस्वीर: Anders Wiklund/TT News Agency/REUTERS
एक साथ 4 महिलाओं को नोबेल
10 दिसंबर को 11 लोगों को अपने-अपने क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने के लिए नोबेल पुरस्कार दिए गए. इनमें 4 महिलाएं थीं. पुरस्कार पाने वालों में क्लाउडिया गोल्डिन (इकनॉमिक्स), कैलटिन कारिको (मेडिसिन) और ऐन एल ह्युलियर (फिजिक्स) को ऐसे क्षेत्रों में पुरस्कार मिला जिनमें आमतौर पर पुरुषों का दबदबा रहा है.
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पहली बार अकेले जीता नोबेल
1901 में नोबेल पुरस्कार शुरू होने के बाद से क्लाउडिया गोल्डिन इकनॉमिक्स में नोबेल जीतने वालीं सिर्फ तीसरी महिला हैं. और पहली बार ऐसा हुआ है जब किसी महिला को अकेले यह पुरस्कार मिला हो.
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मैरी क्यूरी की मिसाल
1903 में फ्रांस की मैरी क्यूरी नोबेल पाने वाली पहली महिला बनी थीं. यह किसी महिला का पहला नोबेल था. मैरी क्यूरी अकेली ऐसी महिला हैं जिन्हें दो बार नोबेल पुरस्कार मिला.
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सिर्फ 65 महिला विजेता
ओस्लो स्थित नोबेल समिति के मुताबिक अब तक 970 लोगों को नोबेल से नवाजा गया है जिनमें सिर्फ 65 महिलाएं हैं. केमिस्ट्री, फिजिक्स और इकनॉमिक्स में नोबेल जीतने वाली महिलाओं का अनुपात पांच फीसदी से भी कम का है.
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सबसे ज्यादा शांति पुरस्कार
सबसे ज्यादा महिलाओं को नोबेल पुरस्कार शांति के क्षेत्र में मिले हैं. 2023 में ईरान की जेल में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ता नर्गिस मोहम्मदी को शांति का नोबेल मिला. वह यह पुरस्कार पाने वाली 19वीं महिला हैं.
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विज्ञान में पीछे
साहित्य में कुल 120 नोबेल मिले हैं जिन्हें पाने वालों में 17 महिलाएं हैं और 103 पुरुष. मेडिसिन में 227 विजेताओं में से 13 महिलाएं हैं, जबकि केमिस्ट्री में 194 विजेताओं में 8 महिलाएं हैं. फिजिक्स के 225 विजेताओं में सिर्फ 5 महिलाएं हैं.
तस्वीर: Anders Wiklund/TT News Agency/REUTERS
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इस प्रदर्शनी में पुरुषों को इजाजत ना देने पर विवाद हुआ था. पिछले साल अप्रैल में न्यू साउथ वेल्स राज्य के रहने वाले जेसन लू नामक व्यक्ति ने मोना की यह प्रदर्शनी देखनी चाही लेकिन उन्हें रोक दिया गया. लू ने तस्मानिया के भेदभाव-रोधी आयोग में शिकायत की, जिसने मामला ट्राइब्यूनल को सौंप दिया.
फैसला सुनाते हुए तस्मानिया के सिविल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल (TASCAT) के उपाध्यक्ष रिचर्ड ग्रूबर ने कहा, "लू एक पुरुष हैं और उन्हें लेडीज लाउंज में जाने से इसलिए रोक दिया गया क्योंकि वह खुद को एक महिला के रूप में चिह्नित नहीं करते. उन्होंने प्रवेश के लिए पूरा पैसा दिया था लेकिन मोना के भीतर स्थित लेडीज लाउंज को वह नहीं देख पाए. उन्हें प्रवेश ना करने देना सीधा भेदभाव था."
ट्राइब्यूनल ने मोना चलाने वाली कंपनी मूरिला एस्टेट को 28 दिन के भीतर पुरुषों के प्रवेश को वर्जित करने वाला नियम हटाने का आदेश दिया है. ग्रूबर ने कहा, "यह मामला कला के मकसद से जानबूझकर और स्पष्ट तौर पर भेदभाव करने वाली एक कलाकृति और भेदभाव रोकने के लिए बनाए गए कानून के बीच विरोधाभास का है. कारवाजियो से लेकर जेफ कून्स तक कला और कानून के बीच बहुत बार रिश्तों में तनाव रहा है और यह कोई हैरतअंगेज बात नहीं है.”
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कला बनाम कानून
लेडीज लाउंज डिजाइन करने वालीं कृषा काएषले मोना के मालिक डेविड वॉल्श की पत्नी हैं. उन्होंने सुनवाई के दौरान गवाही भी दी थी. उन्होंने कहा कि लेडीज लाउंज महिलाओं के खिलाफ उस ऐतिहासिक भेदभाव का जवाब है जिसके तहत उन्हें कई जगहों पर प्रवेश नहीं दिया जाता था.
रोसालिंद फ्रैंकलिन और छह दूसरी महिला वैज्ञानिक जिन्हें नजरअंदाज कर दिया गया
सत्तर साल पहले दो पुरुष शोधकर्ताओं ने डीएनए के डबल हेलिक्स आकार की घोषणा की थी, लेकिन इसका पता पहले रोसालिंद फ्रैंकलिन ने लगाया था. वो एकलौती महिला वैज्ञानिक नहीं हैं जिन्हें वो श्रेय नहीं दिया गया जिसकी वो हकदार थीं.
तस्वीर: World History Archive/picture alliance
फ्रैंकलिन की खोज की चोरी
70 साल पहले हमें पता चला कि हमारा डीएनए एक डबल हेलिक्स का आकार ले लेता है. इस खोज को छापने वाले जेम्स वॉटसन और फ्रांसिस क्रिक रातोरात मशहूर हो गए और दोनों ने मौरिस विल्किन्स के साथ 1962 में चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार जीता. लेकिन पहले यह खोज लंदन के किंग्स कॉलेज में विल्किन्स की एक सहकर्मी रोसालिंद फ्रैंकलिन ने की थी.
तस्वीर: Stanislav Rishnyak/Zoonar/picture alliance
छीन ली गई उपलब्धि
1950 के दशक में विज्ञान में पुरुषों का वर्चस्व था और फ्रैंकलिन के सहकर्मी उनकी इज्जत नहीं करते थे. उन्होंने ने ही डीएनए के एक स्ट्रैंड की पहली स्पष्ट तस्वीर ली थी जिसमें डबल हेलिक्स ढांचा स्पष्ट दिख रहा था. लेकिन वॉटसन ने खुफिया तरीके से फ्रैंकलिन का शोध देख लिया. फिर विल्किंस और वॉटसन ने मिल कर "अपनी" शोध प्रकाशित कर दी. फ्रैंकलिन की 37 साल की उम्र में ओवेरियन कैंसर से मौत हो गई.
तस्वीर: World History Archive/picture alliance
कैथरीन जॉनसन: दशकों तक नासा की गुमनाम हीरो
अश्वेत महिला गणितज्ञ कैथरीन जॉनसन ने जब 1958 में नासा में काम करना शुरू किया था तब नासा समेत अमेरिका का अधिकांश हिस्सा श्वेत और अश्वेत लोगों में बंटा हुआ था. गणित में पुरुषों का वर्चस्व भी था. जॉनसन के कैलकुलेशन अपोलो11 मून मिशन की सफलता के लिए बेहद जरूरी थे. उन्होंने नासा में कंप्यूटरों के इस्तेमाल में अग्रणी भूमिका भी निभाई. लेकिन वो जिस सम्मान की पात्र थीं उसे उन्हें दिए जाने में दशकों लग गए.
तस्वीर: ZUMAPRESS.com/picture alliance
यूनिस फूट की खोज, ग्रीनहाउस इफेक्ट
यूनिस फूट ने साबित किया था कि सूरज की किरणें जब कार्बियन डाइऑक्साइड से गुजरती हैं तब वो सबसे ज्यादा गर्म होती हैं. उन्होंने ही कहा था कि सीओटू के स्तर के बढ़ने से वायुमंडल का तापमान बदलेगा और जलवायु प्रभावित होगी. उनकी खोज 1857 में प्रकाशित भी हुई लेकिन नजरअंदाज कर दी गई. तीन साल बाद इससे मिलते जुलते नतीजे प्रकाशित करने के लिए वैज्ञानिक जॉन टिंडाल को 'द ग्रीनहाउस इफेक्ट' की खोज का श्रेय दिया गया.
तस्वीर: K. Fitzmaurice-Brown/blickwinkel/picture alliance
हेदी लमार: वो आविष्कारक जिसे सराहना नहीं मिली
हेदी लमार 1930 और 1940 के दशकों में हॉलीवुड की मशहूर सितारा थीं. लेकिन उन्हें बचपन से आविष्कारों में रुचि थी. उन्होंने टॉरपीडो के लिए एक रेडियो गाइडेंस सिस्टम बनाया जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजियों द्वारा जैमिंग से बचने के लिए फ्रीक्वेंसी हॉपिंग का इस्तेमाल करता था. इसी सिद्धांत पर आधारित तकनीक से वाईफाई और जीपीएस का आविष्कार हुआ. लेकिन लमार को सिर्फ एक खूबसूरत चेहरे के रूप में ही जाना गया.
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कुष्ठरोग का इलाज
चालमोग्रा पेड़ का तेल कुष्ठरोग के लक्षण कम कर सकता था लेकिन इसे खून में इंजेक्ट नहीं किया जा सकता था. 1916 में अफ्रीकी-अमेरिकी रासायनिक ऐलिस बॉल ने पता लगा लिया कि इसे कैसे फैटी एसिड और ईथाइल एस्टर में बदला जाए ताकी इंजेक्ट किया जा सके. लेकिन कुछ ही दिनों बाद उनका निधन हो गया और उनके सुपीरियर आर्थर डीन ने इसे "डींस मेथड" के नाम से प्रकाशित करवा दिया. सालों बाद इसे "बॉल्स मेथड" का नाम दिया गया.
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लीसे माइटनर को छोड़ना पड़ा न्यूक्लियर फिशन पर शोध
न्यूकिल्यर फिशन यानी अणुओं का विभाजन परमाणु ऊर्जा का आधार है. यहूदी भौतिकवैज्ञानिक लीसे माइटनर ने जो सुझाव और आईडिया दिए उनसे उनके सहकर्मी ऑटो हान और फ्रित्ज स्ट्रासमैन ने न्यूक्लियर फिशन की खोज की. वो उनके साथ अपना काम जारी नहीं रख पाईं क्योंकि उन्हें 1938 में नाजी बर्लिन से भागना पड़ा. हान को 1944 में रसायन शास्त्र का नोबेल दिया गया. माइटनर का जिक्र भी नहीं किया गया.
तस्वीर: ASSOCIATED PRESS/picture alliance
पेनकिलर की आविष्कारक, कैंडेस पर्ट
1970 के दशक में कैंडेस पर्ट ने इंसानी दिमाग में उस ओपिएट रिसेप्टर का पता लगाया जो मॉर्फीन और अफीम जैसी दवाओं के प्रति प्रतिक्रियाशील होता है. यह एक अभूतपूर्व खोज थी लेकिन पर्ट ने जब यह खोज की तब वो जॉन्स आप्किन्स विश्वविद्यालय में सिर्फ एक स्नातक की छात्रा थीं. उनके प्रोफेसर सोलोमन स्नाइडर और दो और पुरुष शोधकर्ताओं ने 1978 में इस खोज के लिए बेसिक मेडिकल रिसर्च का 'लस्कर पुरस्कार' जीता.
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द मटिल्डा इफेक्ट
वैज्ञानिक खोजों में महत्वपूर्ण रूप से शामिल होने वाली महिलाओं को उसका श्रेय नहीं दिया जाना इतना आम है कि इसे एक नाम से जाना जाता है: द मटिल्डा इफेक्ट. यह नाम महिला अधिकार एक्टिविस्ट मटिल्डा जे गेज के नाम पर पड़ा जिन्होंने 19वीं सदी के अंत में पहली बार इसकी व्याख्या की.
इस बारे में ग्रूबर ने कहा कि उन्हें (कृषा काएषले) लगता है कि लेडीज लाउंज महिलाओं के लिए एक ऐसी शांतिपूर्ण जगह है जो सिर्फ उनके लिए है लेकिन यहां मामला कानून का है. उन्होंने कहा, "एंटी-डिस्क्रिमिनेशन एक्ट 1998 के तहत लू के साथ भेदभाव हुआ और कानून का कोई हिस्सा इस भेदभाव को जायज नहीं ठहराता.”
मुकदमे की सुनवाई के दौरान काएषले ने ऐसे संकेत दिए थे कि अगर ट्राइब्यूनल उनके खिलाफ फैसला सुनाता है तो वह राज्य की ऊपरी कोर्ट में अपील कर सकती हैं.
उनकी तरफ से दलील दी गई थी कि पुरुषों को प्रवेश ना देना कलात्मक अभिव्यक्ति है. लेकिन ग्रूबर ने इस अपील को खारिज करते हुए कहा, "यह स्पष्ट नहीं है कि मशहूर कलाकृतियों को देखने से पुरुषों को रोकना यह मकसद कैसे पूरा करता है.”