पृथ्वी अब इतनी गर्म हो चुकी है, जितनी कभी नहीं रही. सोमवार अब तक का सबसे गर्म दिन आंका गया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी पर तापमान के पुराने सारे रिकॉर्ड टूट चुके हैं.
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सोमवार 3 जुलाई इतिहास का सबसे गर्म दिन रहा है. अमेरिका के मौसम विभाग ने बताया है कि शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक सोमवार का तापमान औसत से 17 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था और ऐसा पहली बार हुआ है.
यूएस नेशनल ओशियानिक एंड एटमॉसफरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NOAA) ने 3 जुलाई को पृथ्वी के धरातल पर वायु का औसत तापमान 17.01 डिग्री सेल्यिस दर्ज किया. इससे पिछला रिकॉर्ड 16.92 डिग्री सेल्सियस का था जो पिछले साल 24 जुलाई को दर्ज किया गया था. एनओएए के नेशनल सेंटर्स फॉर एनवायरमेंटल प्रिडिक्शन द्वारा 1979 से दर्ज तापमान के आंकड़े इस रिकॉर्ड की पुष्टि करते हैं.
टूट रहे रिकॉर्ड
विश्व का औसत वायु तापमान साल के किसी भी दिन 12 डिग्री सेल्सियस से 17 डिग्री सेल्सियस से कुछ कम के बीच रहता है. 1979 से 2000 के बीच इसका औसत 16.2 डिग्री सेल्सियस रहा था.
जून 2023: दुनिया के सबसे गर्म दिन
दुनिया का बड़ा हिस्सा झुलसाने वाली गर्मी से जूझ रहा है. आंकड़े बताते हैं कि जून 2023 के शुरुआती दिन, साल के इन दिनों के पुराने सभी रिकॉर्ड्स से ज्यादा गर्म रहे. आंकड़ों की मानें तो 1950 से अब तक ऐसी गरमी नहीं पड़ी है.
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8 और 9 जून रहे खासतौर पर गर्म
जून 2023 के शुरुआती दिनों में जितनी गर्मी पड़ी, वो इस दौरान दर्ज किए गए बीते सालों के तापमान की तुलना में सबसे ज्यादा थी. 'कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस' (सी3एस) के मुताबिक, 8 और 9 जून की तारीख खासतौर पर गर्म थी. ये दोनों दिन पिछले सालों के मुकाबले 0.4 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म थे.
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दुनिया ने देखा सबसे गर्म जून
सी3एस, ईयू के कोपरनिकस कार्यक्रम के तहत एक सेवा है जो यूरोप और बाकी दुनिया के अतीत और वर्तमान के साथ भविष्य की जलवायु स्थितियों से जुड़े अनुमान भी बताता है. सी3एस की उप निदेशक समांथा बरजेस ने बताया, "विश्व ने अभी तक का सबसे गर्म जून देखा है, हालांकि मई में भी गर्मी कम नहीं थी. सबसे गर्म मई के मुकाबले इस बार तापमान केवल 0.1 डिग्री सेल्सियस ही कम था."
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भविष्य के आसार भी बेहतर नहीं
आने वाले दिनों में भी राहत की उम्मीद नहीं दिखती. इसकी वजह है अल नीनो, जो 2018-2019 के बाद फिर लौटा है. इसके असर से तापमान और ज्यादा बढ़ने की आशंका है. हाल ही में कोपरनिकस ने यह खुलासा किया था कि मई में महासागरों का तापमान भी बीते किसी मई से ज्यादा रहा.
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पेरिस जलवायु समझौता
जून 2023 के शुरुआती दिनों में वैश्विक तापमान, औद्योगिक क्रांति के पहले के स्तरों के मुकाबले डेढ़ डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा. यह बात ध्यान खींचने वाली है क्योंकि 2015 के पेरिस समझौते में इस तापमान को ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए सबसे महत्वाकांक्षी सीमा माना गया था.
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मायने रखती है एक-एक डिग्री
जहां जून में इस सीमा का उल्लंघन पहली बार हुआ है, वहीं हालिया सालों में सर्दी और वसंत के मौसमों में ऐसा कई बार हो चुका है. बरजेस बताती हैं, "अगर हमें जलवायु परिवर्तन के गंभीर नतीजों से बचना है, तो एक-एक डिग्री का एक-एक अंश मायने रखता है."
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अल नीनो का असर
अल नीनो, जलवायु से जुड़ा एक पैटर्न है जो औसतन हर दो से सात साल पर आता है. स्पैनिश भाषा में अल नीनो का मतलब होता है, लिटिल बॉय यानी छोटा लड़का. दुनिया के कुछ सबसे गर्म दर्ज सालों के पीछे इसका असर माना जा सकता है.
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और बढ़ेगा तापमान
वैज्ञानिकों को डर है कि अल नीनो के कारण सिर्फ इस बरस गर्मी में ही नहीं, बल्कि अगले साल भी जमीन और समुद्र में रिकॅार्ड तापमान दिख सकता है.
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हालांकि 17.01 डिग्री सेल्सियस के आंकड़े की अन्य आकलनों से पुष्टि होनी बाकी है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तरी गोलार्ध में गर्मी शुरू होने के साथ ही यह रिकॉर्ड कभी भी टूट सकता है. आमतौर पर वैश्विक औसत वायु तापमान जुलाई के आखिर या अगस्त की शुरुआत तक बढ़ता रहता है.
पिछले महीने भी तापमान का नया रिकॉर्ड दर्ज किया गया था. यूरोपीय संघ के कॉपरनिकस मौसम केंद्र ने जून की शुरुआत में सबसे अधिक तापमान दर्ज किया था. विश्व मौसम संगठन ने कहा है कि अल नीनो प्रभाव प्रशांत महासागर में जारी है. यानी अगले साल तक तापमान नये रिकॉर्ड पर पहुंच सकता है.
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अप्रत्याशित गर्मी
वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान का बढ़ना मानवीय गतिविधियों की वजह से भी जारी रह सकता है क्योंकि जीवाश्म ईंधनों के जलने से सालाना 40 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन हो रहा है. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में गर्मी की मार लगातार जारी है. अमेरिका के दक्षिणी हिस्से अप्रत्याशित गर्मी का प्रकोप झेल रहे हैं. चीन में हीट वेव जारी है और कई जगह तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बना हुआ है. उत्तरी अफ्रीका में तो तापमान 50 डिग्री तक पहुंच चुका है. यहां तक कि अंटार्कटिका सर्दियों का मौसम होने के बावजूद बहुत अधिक तापमान झेल रहा है.
ब्रिटेन के इंपीरियल कॉलेज में ग्रांथम इंस्टिट्यूट फॉर क्लाइमेट चेंज एंड एनवायरमेंट के जलवायु वैज्ञानिक फ्रीडरिके ओटो ने कहा कि यह एक ऐसा मील का पत्थर है, जिसे पार करने पर हमें कोई खुशी नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा, "यह लोगों और ईको सिस्टम के लिए मौत की सजा है.”
बर्कली अर्थ इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिक जेके होफ्सफादर ने एक बयान में कहा, "दुर्भाग्य से यह इस साल स्थापित हुए नये रिकॉर्ड की पूरी सूची में महज एक रिकॉर्ड है क्योंकि उत्सर्जन बढ़ने और ग्रीन हाउस गैसों के साथ-साथ अल नीनो प्रभाव मिलकर तापमान को नयी ऊंचाई की ओर धकेल रहे हैं.”
लौट आया है अल नीनो
मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र के मौसम पर काम करने वाले संगठन डब्ल्यूएमओ ने कहा था कि अल नीनो लौट आया है. पिछले कई हफ्तों से इस बात का पूर्वानुमान जाहिर किया जा रहा था, जिसकी मौसम विभाग ने पुष्टि की है.
जलवायु परिवर्तन से बर्बाद होते श्रीलंका के तट
जलवायु परिवर्तन श्रीलंका के तटों को बर्बाद कर रहा है. इन तटों के पास लाखों लोग रहते हैं और उन सब पर चरम मौसमी घटनाओं का खतरा बढ़ता जा रहा है.
श्रीलंका के इरानाविला में रहने वाले दिलरुक्शान कुमारा अपने मकान के मलबे के बीच बैठे समुद्र की तरफ देख रहे हैं. उनका मकान तटीय कटाव की वजह से ढह गया. श्रीलंका में लंबे समय से कटाव की समस्या रही है.
कई अध्ययनों में सामने आया है कि श्रीलंका के पश्चिमी तट पर शार्ट-टर्म कटाव की दर शून्य से तीन मीटर प्रति वर्ष है. लेकिन 2050 तक इस आंकड़े में काफी बढ़ोतरी हो सकती है और यह चार से 11 मीटर प्रति वर्ष तक भी पहुंच सकता है. ऐसे में कटाव का सालाना औसत सात मीटर तक हो जाएगा. 2100 में तो अनुमान है कि कटाव की दर 10-34 मीटर हो जाएगी और औसत 17-24 मीटर प्रति वर्ष हो जाएगा.
"पिछले महीने की एक रात, मेरा बेटा शौचालय गया और अचानक मैंने उसे चीखते हुए सुना, हमारा घर समुद्र में चला गया!" यह कहना है 58 साल के मछुआरे फर्नांडो का, जो राजधानी कोलंबो से 80 किलोमीटर दूर स्थित इरानाविला में जन्में और पले, बढ़े.
गांववाले कटाव से टूट चुके मकान से काम आ जाने वाले लकड़ी के फट्टे निकाल रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की जलवायु विज्ञान संस्था आईपीसीसी के मुताबिक अगर बड़े कदम नहीं उठाये गए तो इस सदी के अंत तक कम ऊंचाई वाले सभी तटीय इलाकों के लिए समुद्र के स्तर के बढ़ने से संबंधित खतरा काफी बढ़ जाएगा.
फर्नांडो कहते हैं, "मैंने देखा कि मेरे मकान के कुछ हिस्सों को समुद्र पहले ही खा गया था और मेरा बेटा हमारे कमोड को उठाये पानी में से बाहर आ रहा था. हमारे मकान की नींव पूरी तरह से बह गई थी और हमें समुद्र से और दूर रहने जाने के लिए मजबूर होना पड़ा." तट पर स्थित उनके पुराने मकान के अब बस खंडहर ही बचे हैं. बाकी सब समुद्र में समा गया.
लहरें पत्थरों से बनाये एक बैरियर से टकरा रही हैं, जिससे धीमे धीमे कटाव हो रहा है. स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले से ज्यादा बार आने वाली गंभीर मौसमी घटनाओं और इरानाविला के पास ही चल रहे समुद्र से जमीन लेने की एक परियोजना कटाव के बढ़ने के मुख्य कारण हैं. उनके मुताबिक, पिछले तीन सालों में समुद्र तट कुछ सौ मीटर अंदर तक आ चुका है.
रंजीथ सुनिमल फर्नांडो की पत्नी जसिंथा इरानाविला में अपने अस्थायी मकान में बैठी हैं. श्रीलंका की तटरेखा 1,620 किलोमीटर लंबी है, जिसमें पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन हैं जिनसे लाखों लोगों की आजीविका चलती है.
देश में सिर्फ इरानविला ही कटाव से परेशान नहीं है, बल्कि इस इलाके में मछुआरों के कई छोटे छोटे गांव हैं जो इसी स्थिति में हैं. एक मछुआरा कहता है, "मुझे नहीं मालूम कि भविष्य में क्या होगा लेकिन मैंने अपना विश्वास नहीं खोया है."
श्रीलंका के तटीय जिलों में करीब 1.13 करोड़ लोग रहते हैं. पर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों और उनकी वजह से मिले सामाजिक और आर्थिक फायदों की वजह से, बीते दशकों में तटीय इलाकों में काफी विकास और शहरीकरण हुआ है.
कटाव की वजह से जमीन से जो पत्थर समुद्र ले गया, गांववाले समुद्र में उतर कर उन पत्थरों को वापस ला रहे हैं. मौजूदा हालात तो परेशान करने वाले हैं ही, लेकिन इस इलाके का भविष्य इससे भी बुरा हो सकता है.
दिलरुक्शान कुमारा अपने मकान के मलबे में से एक दरवाजा बचा कर निकाल रहे हैं. उनके कस्बे की तबाही कटाव से लड़ने के लिए कदमों को और तेज करने का संदेश है. (योहानेस एल्बर्स)
डब्ल्यूएमओ ने कहा कि बीते कई सालों में पहली बार प्रशांत महासागर में अल नीनो प्रभाव लगातार बना हुआ है. संगठन के मुताबिक इस बात की 90 प्रतिशत संभावना है कि साल के दूसरे हिस्से में यह प्रभाव अपना असर दिखाएगा. हालांकि यह प्रभाव कितना गंभीर होगा, इसका अनुमान लगाना अभी मुश्किल है.
अल नीनो एक मौसम चलन है जो हर कुछ साल में एक बार होता है. ऐसा तब होता है जब पूर्वी प्रशांत महासागर में पानी की ऊपरी परत गर्म हो जाती है. डब्ल्यूएमओ के मुताबिक उस क्षेत्र में फरवरी में औसत तापमान 0.44 डिग्री से बढ़कर जून के मध्य तक 0.9 डिग्री पर आ गया.