क्या चांद को धनी लोगों की अस्थियां फैलाने, वहां घूमने फिरने और स्पोर्ट्स ड्रिंक्स की बोतलें फेंकने की जगह बनाना है? वैज्ञानिकों के बीच यह बहस भी तेज होती जा रही है.
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निजी कंपनियों या अरबपति लोगों द्वारा अपने धन से चांद पर जाना, मानव-राख को वहां छोड़ना, स्पोर्ट्स ड्रिंक्स की खाली बोतलें फेंकना. इस तरह की योजनाएं निजी कंपनियों के मून-प्रोजेक्ट्स का हिस्सा हैं. हाल के सालों में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की चांद पर पहुंचने और वहां बस्तियां बनाने की कोशिशों में आई तेजी के बाद इन मुद्दों पर भी बहस बढ़ी है.
अमेरिकी लापरवाही और कानूनी सवालों के बीच इस बहस में और तेजी आई है कि चांद का असल में क्या इस्तेमाल होना चाहिए.
अगले कुछ सालों में यह संभव हो सकता है कि निजी कंपनियों के झंडे भी चांद पर अमेरिकी, जापानी या भारतीय झंडों के साथ गड़े दिखाई देने लगें. एक तरफ तो कहा जा रहा है कि चांद को अंतरिक्ष के अनुसंधान के लिए एक बेस के तौर पर इस्तेमाल करना है. लेकिन निजी कंपनियों की योजनाओं में चांद के धरातल को स्पोर्ट्स ड्रिंक्स के विज्ञान से लेकर मानव अस्थियों के विसर्जन और चर्च बनाने तक की बातें शामिल है.
अस्थियों से लेकर ड्रिंक्स तक
इंटरनेशनल स्पेस लॉ की जानकार लेजली टेनेन कहती हैं, "चांद के अनुसंधान की ओर अभी हम शुरुआती कदम ही बढ़ा रहे हैं और हमें यह सावधानी बरतनी होगी कि हम उसे प्रदूषित ना करें. सिर्फ जैविक और रासायनिक कचरा नहीं बल्कि इंसानी कचरे के प्रति भी.”
हमें चांद चाहिए: कहानी, इंसान और चांद की
इंसानी विकास का क्रम, चांद को देखने-समझने की क्रमवार यात्रा भी है. इसके पड़ावों में कौतुक भी है, भक्ति भी. वो कभी प्रेम-कामना का रूपक है, कभी भाग्य बांचने की कक्षा. देखिए इस यात्रा की कुछ झलकियां.
हजारों साल पहले जब हमारे पुरखे रात के आसमां को तकते होंगे, तो दूर ऊंचाई में दिखता होगा एक रोशन गोला. कभी उजली रोशनी में डूबा, कभी मलाई की परत सा पीला, तो कभी बुझा-बुझा, निस्तेज. घटता-बढ़ता. दिन में दिखने वाले उस भभकते गोल से बिल्कुल अलग, जिसकी रोशनी में आंखें चौंधिया जाती हैं. तब चांद विस्मय और कौतुक का विषय रहा होगा.
तस्वीर: darkfoxeluxir/Imago Images
पहला कैलेंडर
सुबह होती है. सूरज उगता है. दिन ढलता है. चांद उगता है. हमारे लिए इस क्रम में कुछ नया नहीं, कोई कौतुहल नहीं. लेकिन प्राचीन मानवों के लिए यह तयशुदा चक्र समय मापने का एक भरोसेमंद जरिया था. इंसानों का सबसे शुरुआती कैलेंडर. कैंब्रिज आर्कियोलॉजिकल जर्नल में छपे एक पेपर में शीत युग के कुछ गुफा चित्रों को चांद पर आधारित कैलेंडरों का सबसे शुरुआती साक्ष्य माना गया.
तस्वीर: BORJA SUAREZ/REUTERS
जब इंसान शिकारी था...
शीत युगीन कई गुफा चित्रों में खास तरह के डॉट और डैश मिलते हैं, जो जानवरों के चित्र के नजदीक बने हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि ये चिह्न अलग-अलग मौसमों में जानवरों के बर्ताव को दिखाते हैं. चूंकि तब मानव शिकार पर निर्भर थे, ऐसे में प्रजनन चक्र जैसी जानकारियां उनके लिए बेहद अहम थीं. अनुमान है कि इन जानकारियों के लिए लूनर कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता था.
तस्वीर: RAMI AL SAYED/AFP
चंद्र देवता
आगे चलकर जब मानव सभ्यताएं विकसित हुईं, तो कई जगहों पर चांद धार्मिक-आध्यात्मिक मान्यताओं का हिस्सा बना. मसलन प्राचीन मिस्र में खोंसू, चंद्रमा के देवता माने जाते थे. विश्वास था कि इंसान के मरने के बाद की यात्रा में खोंसू उन्हें बुरी शक्तियों से बचाते हैं. सुमेरियन सभ्यता में नाना/सेन को चंद्रमा का देवता माना जाता था. वो सबसे लोकप्रिय देवताओं में थे.
तस्वीर: MAURO PIMENTEL/AFP
आज भी होती है चंद्रमा की पूजा
कई संस्कृतियों में चांद को पूजे जाने का भी चलन रहा है. प्राचीन रोम में देवी लूना, चंद्रमा का ही दिव्य रूप थीं. रूस ने चंद्रमा पर जो मिशन भेजा, उसका नाम भी लूना ही था. भारत के कई हिस्सों में आज भी चंद्रमा की पूजा होती है. यहूदी परंपरा में "रोश होदेश" चांद का महीना माना जाता है. इसकी शुरुआत शुक्लपक्ष के चांद की पहली झलक से शुरू होती है. इस्लाम में भी रमजान और ईद का चांद के देखे जाने से नाता है.
तस्वीर: MARTIN BERNETTI/AFP
गीत, साहित्य, कविताएं...
लोक परंपरा और साहित्य में चांद के दर्जनों रूप हैं. बच्चों की लोरी में वो चंदा मामा है. बाल कृष्ण की कहानी में यशोदा चांद दिखाकर उन्हें बहलाती हैं. पुराने समय से लेकर आज तक, साहित्य और गीत-संगीत में चांद कई तरह के रूपकों में इस्तेमाल होता आ रहा है. हिंदी फिल्मी गानों को ही लीजिए, तो चांद की उपमा वाले दर्जनों गाने आपको मुंहजुबानी याद होंगे.
1960 के दशक में जब चांद पर जाने की होड़ शुरू हुई, तो यह वाकई मानव सभ्यता के लिए बड़ी छलांग थी. सोवियत संघ और अमेरिका, दोनों दौड़ जीतना चाहते थे. सितंबर 1959 में सोवियत संघ का लूना2 चांद पर लैंड होने वाला पहला अंतरिक्षयान बना. इसके बाद कई "फर्स्ट" वाले पल आए. जैसे, पहली सॉफ्ट लैंडिंग. चांद की सतह की पहली तस्वीर. चांद के पास से पहली बार गुजरना.
तस्वीर: NASA/CNP/AdMedia/picture alliance
वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन...
फिर आई चांद के इतिहास की सबसे यादगार तारीख: 16 जुलाई, 1969. इसी दिन नासा के अपोलो 11 मिशन ने पहली बार इंसान को चांद की सतह पर उतारा. नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज आल्ड्रिन ने चांद की जमीन पर पैर धरा. बाद में अपना अनुभव बताते हुए नील ने ऐतिहासिक पंक्ति कही: वन स्मॉल स्टेप फॉर अ मैन, वन जाइंट लीप फॉर मैनकाइंड. तस्वीर में: चांद की जमीन पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग के जूते का निशान.
तस्वीर: NASA/Heritage Images/picture alliance
इतना अविश्वसनीय कि बहुतों को अब भी संदेह
यह इतनी अद्भुत उपलब्धि थी, इतनी हैरतअंगेज कि कई लोग आज तक इसपर यकीन नहीं कर पाए हैं. कन्सपिरेसी थिअरीज के कई मुरीद आज भी कहते हैं कि वो लैंडिंग एक झूठ थी. उनके तर्कों की एक मिसाल: जब चांद पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है, तो झंडा फहराया कैसे? 2019 का एक चर्चित वायरल वीडियो है, जिसमें बज आल्ड्रिन ऐसे ही एक "लैंडिंग डिनायर" से नाराज होकर उसे घूंसा मारते हैं.
तस्वीर: NASA/Zuma/picture alliance
फिर से दौड़ लगी है...
अगस्त 2007 में एक रूसी झंडे की खूब चर्चा हुई. यह झंडा आर्कटिक की तलछटी में लगाया गया था. वहां के संसाधनों में हिस्सेदारी के लिए यह रूस की सांकेतिक दावेदारी मानी गई. तब पश्चिमी देशों ने रूस को याद दिलाया कि ये 15वीं सदी नहीं है कि झंडा गाड़ो और कहो, आज से ये जमीन हमारी! हाल के दशकों में चंद्रमा के लिए फिर से एक दौड़ शुरू हुई है. तो क्या चंदा किसी दिन रूप और शीतलता के रूपकों से हटकर संसाधन बन जाएगा?
तस्वीर: ingimage/IMAGO
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हाल ही में एक अमेरिकी कंपनी एस्ट्रोबायोटिक ने एक चांद पर रॉकेट भेजने की कोशिश की. हालांकि यह चंद्रमा पर नहीं उतर पाया लेकिन इसमें जो सामान भेजा गया था, उसमें कई कैप्स्युल मानव अस्थियों से भरे थे. इसके अलावा जापानी स्पोर्ट्स ड्रिंक कंपनी पोकारी स्वीट की कैन भी थी. ये कैन वहां क्यों भेजी गई थी, यह स्पष्ट नहीं किया गया.
अमेरिकी कानून के तहत यह सामान चांद पर भेजा जा सकता है. बल्कि कुछ भी सामान चांद पर भेजा जा सकता है, बस इतना सुनिश्चित करना होता है कि पृथ्वी से जो सामान रॉकेट में भरा जाए वह जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए खतरनाक ना हो, अमेरिका की सुरक्षा के लिए कोई खतरा पैदा ना करे और ऐसा कुछ ना हो जो अंतरराष्ट्रीय संधियों के प्रति अमेरिका की बाध्यता का उल्लंघन करे.
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कोई कानून नहीं है
फिलहाल अमेरिकी कानूनों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो तय करता हो कि चंद्रमा के धरातल पर क्या उतारा जा सकता है. नासा का मानना है कि आने वाले समय में चांद को बाह्य अंतरिक्ष में अनुसंधान के लिए बेस के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा. उसने यह भी कहा है कि आने वाले समय में चांद पर जाने को लेकर व्यवसायिक प्रतिद्वन्द्विता बढ़ेगी.
ऐसे में अंतरिक्ष से संबंधित कानूनों के जानकार चिंतित हैं कि अगर कोई नियम-कानून नहीं होगा तो ना सिर्फ अमेरिकी कंपनियां अन्य देशों के साथ उलझ सकती हैं बल्कि अंतरराष्ट्रीय विवाद पैदा हो सकते हैं और चंद्रमा पर कब्जा करने की होड़ शुरू हो सकती है.
ऐसे कुछ उदाहरण परियोजनाओं के माध्यम से दिखने भी लगे हैं. जैसे कि वॉशिंगटन स्थित एक उद्यमी जस्टिन पार्क चांद पर एक ईसाई क्रॉस बनाना चाहते हैं. चांद ही की मिट्टी से बनने वाला यह क्रॉस दोमंजिला इमारत जितना बड़ा हो सकता है. एक अरब डॉलर की इस परियोजना के लिए पार्क अमेरिकी सांसदों और कैथलिक संस्थाओं से चर्चा कर रहे हैं.
अंतरिक्ष में रहने का वर्ल्ड रिकॉर्ड
रूसी अंतरिक्ष यात्री ओलेग कोनोनेंको ने अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है. वह कुल मिलाकर 879 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके हैं.
तस्वीर: Roscosmos Space Corporation/AP/picture alliance
अंतरिक्ष में 879 दिन
अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का रिकॉर्ड अब रूसी अंतरिक्ष यात्री ओलेग कोनोनेंको के नाम दर्ज हो गया है. 59 वर्ष के कोनोनोंको 879 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके हैं.
तस्वीर: Bill Ingalls/NASA/Getty Images
पिछला रिकॉर्ड
अब तक अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय बिताने का रिकॉर्ड रूसी एस्ट्रोनॉट गेनादी पडाल्का के नाम था जिन्होंने 879 दिन, 11 घंटे, 29 मिनट और 48 सेंकड बिताए थे. यह रिकॉर्ड 2015 में बना था.
तस्वीर: AP/NASA/BILL INGALLS
पांच बार अंतरिक्ष यात्रा
ओलेग कोनोनेंको 2008 से अब तक पांच बार अंतरिक्ष यात्रा कर चुके हैं. वह कहते हैं, “इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की हर यात्रा अलग होती है क्योंकि वहां लगातार बदलाव होते रहते हैं और उसी हिसाब से तैयारी करनी पड़ती है. लेकिन अंतरिक्ष की यात्रा मेरा बचपन का सपना था.“
तस्वीर: Bill Ingalls/NASA/Getty Images
1,000 दिन की ओर
कोनोनेंको की मौजूदा यात्रा 15 सितंबर 2023 को शुरू हुई थी. जब तक यह अभियान खत्म होगा वह कुल मिलाकर 1,000 दिन अंतरिक्ष में बिता चुके होंगे.
तस्वीर: Shamil Zhumatov/AFP/Getty Images
रिकॉर्ड के लिए नहीं
पेशे से इंजीनियर कोनोनेंको ने एक इंटरव्यू में कहा, “मैं अंतरिक्ष में रिकॉर्ड बनाने नहीं जाता बल्कि इसलिए जाता हूं कि मुझे अपने काम से प्यार है. जब मैं बच्चा था, तब से अंतरिक्ष में जाने के बारे में सोचा करता था. पृथ्वी की कक्षा में रहने और काम करने का मौका मुझे बार-बार यहां आने को प्रेरित करता है.”
तस्वीर: Mikhail Metzel/AFP/Getty Images
छोटी शुरुआत से बड़ी मंजिल तक
कोनेनेंको रूस तुर्कमेनिस्तान के चारद्जू में जन्मे थे जो तब सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था. उनके पिता ड्राइवर थे और मां तुर्कमेनिस्तान एयरपोर्ट पर टेलीफोन ऑपरेटर. पहली कोशिश में वह इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लेने में नाकाम रहे थे और उन्होंने मकैनिक के तौर पर काम किया. लेकिन दूसरी कोशिश में वह कामयाब रहे.
तस्वीर: Roscosmos Space Corporation/AP/picture alliance
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पार्क कहते हैं, "चांद पर किसी का मालिकाना हक नहीं है. आप किसी की परंपराओं का उल्लंघन नहीं करना चाहते लेकिन आप बाकी दुनिया को रोक भी नहीं सकते. अगर चांद पर गतिविधियों को लेकर बहुत ज्यादा सख्ती बरती गई तो उड़ान भरने से पहले ही यह उद्योग नष्ट हो जाएगा.”
चांद का धार्मिक इस्तेमाल
एस्ट्रोबायोटिक के जरिए जो अस्थियां अंतरिक्ष में भेजी गई थीं वे टेक्सस स्थित एक सेलेस्टिस नाम की कंपनी ने भेजी थीं. इस बात पर बहुत से लोगों ने आपत्ति भी जताई. चांद को एक पवित्र जगह मानने वाली संस्था नावायो नेशन ने कहा कि चांद को स्मारक बनाना पाप है. सेलेस्टिस के सीईओ चार्ल्स शाफर कहते हैं कि जब बड़ी संख्या में लोग चांद पर जाएंगे तो वहां मानव अवशेषों का पहुंचना तो स्वाभाविक हो जाएगा.
शाफर कहते हैं, "हम अंतरिक्ष अभियानों को लेकर फैसला धर्म के आधार पर नहीं करते हैं. मेरे पास ऐसी तस्वीरें हैं जिनमें 20 हजार बौद्ध भिक्षुओं को हमारे लॉन्च पर जश्न मनाते देखा जा सकता है. तो कौन सा धर्म राज करता है?”
इस अभियान के लिए धन और अन्य संसाधनों से मदद करने वाली नासा का कहना है कि कंपनियां अपने रॉकेट में क्या ले जाती हैं, इस पर उसका नियंत्रण नहीं है लेकिन आने वाले समय में किसी तरह के नियम बनाए जा सकते हैं.
नासा के कमर्शल लूनार पेलोड सर्विसेज प्रोग्राम के प्रमुख क्रिस कलबर्ट कहते हैं, "आने वाले समय में यह थोड़ा विकसित होगा. लेकिन मेरे विचार से पहला कदम तो चांद पर सफलता पूर्व उतर जाना है. शुरुआत में हमें इस बात की ज्यादा परवाह है.”