लोगों का बेघर होना एक ऐसी त्रासदी है जो दुनियाभर में पसरी पड़ी है. करोड़ों लोग बेघर हैं जबकि दुनिया में उससे ज्यादा घर खाली पड़े हैं. कैसे सुलझ सकती है यह समस्या?
विज्ञापन
होमलेस वर्ल्ड कप फाउंडेशन के मुताबिक भारत में बेघरों की संख्या लगभग 18 लाख है. 2019 के इन आंकड़ों के हिसाब से 73 प्रतिशत बेघर शहरी इलाकों में हैं. हालांकि अपनी रिपोर्ट में फाउंडेशन ने जोड़ा है कि देश में लगभग साढ़े सात करोड़ परिवार ऐसे भी हैं जिनके पास कहने को घर तो है लेकिन वह इंसानों के रहने लायक सम्मानजनक स्थान नहीं है.
लोगों का बेघर हो जाना, सड़कों पर रहना विकासशील देशों के लिए भी एक बड़ी समस्या है. अमेरिका में साढ़े पांच लाख से ज्यादा लोग यानी आबादी का 0.2 प्रतिशत हिस्सा बेघर है. क्राइसिस ऐंड हेरियट वॉट यूनिवर्सिटी के अध्ययन के मुताबिक पिछले साल ब्रिटेन में दो लाख 30 हजार से ज्यादा लोग बेघर थे. इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में 2016 में हुई जनगणना के मुताबिक करीब सवा लाख से ज्यादा लोगों के पास छत ना होने की बात सामने आई थी.
ऑस्ट्रेलिया के कुछ विशेषज्ञों ने बेघर लोगों को घर देने के लिए नॉर्डिक देशों के पद्चिन्हों पर चलने की सलाह दी है. नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड और डेनमार्क ने हाउसिंग कोऑपरेटिव के जरिए बेघर लोगों को छत उपलब्ध कराई है. इस संबंध में नॉर्डिक पॉलिसी सेंटर ने एक शोध प्रकाशित किया है, जिसमें बताया गया है कि कैसे नॉर्डिक देशों ने अपने यहां इस समस्या को हल किया और उसका इस्तेमाल बाकी देश कैसे कर सकते हैं.
फिनलैंड की मिसाल
फिनलैंड को इस मामले में अगुआ देश माना जाता है. 1980 के दशक में वहां 16,000 से ज्यादा लोग बेघर थे जो 2020 में घटकर 4,500 रह गए. 55 लाख की आबादी वाले देश में अब प्रति एक लाख लोगों पर बेघरों की संख्या एक से भी कम हो गई है जबकि ऑस्ट्रेलिया में हर एक लाख पर लगभग पांच बेघर हैं.
अमीर देशों का कचरा गरीब क्यों लेते हैं
08:10
शोध कहता है कि 2007 में फिनलैंड की सरकार ने ‘हाउसिंग फर्स्ट' यानी ‘पहले घर' नाम की एक नीति अपनाई. इस नीति में कहा गया है कि लोगों को रहने के लिए एक सम्मानजनक जगह का अधिकार है. यूं तो कई अन्य देशों में भी ऐसी ही नीतियां हैं लेकिन ऑस्ट्रेलिया की डीकिन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एंड्रयू स्कॉट, न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी की हेदर होल्स्ट, और न्यू कासल यूनिवर्सिटी के सीनियर लेक्चरर सिडसेल ग्रिमश्टाट ने द कनर्वसेशन पत्रिका में लिखा है कि फिनलैंड की नीति अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा आक्रामक और उग्र रूप से समावेशी थी.
इस लेख के मुताबिक अन्य देशों में कोऑपरेटिव हाउसिंग को नीति का केंद्रीय हिस्सा नहीं माना जाता है लेकिन नॉर्डिक देशों ने इसे अपनी नीति के केंद्र में रखा और किरायेदारों व मकानमालिकों दोनों के लिए विकल्प उपलब्ध करवाए.
गरीब कैश रखते हैं, अमीर धन
2022 की वैश्विक असमानता रिपोर्ट पूरी दुनिया में धन के बंटवारे को समझने की विस्तृत कोशिश है. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिय के अमीर कैसे हैं. जानिए...
तस्वीर: STRF/STAR MAX/IPx/picture alliance
अमीरों के पास कितना धन
दुनिया के सिर्फ 10 प्रतिशत लोगों के पास 76 प्रतिशत धन है. इन दस प्रतिशत लोगों की कुल संपत्ति की कीमत है 2850 खरब यूरो. एक यूरो करीब 85 रुपये का है.
दुनिया के सबसे ज्यादा 34 प्रतिशत अमीर पूर्वी एशिया में रहते हैं. यूरोप में 21 फीसदी और उत्तर अमेरिका में 18 प्रतिशत धनी रहते हैं. सबसे कम अमीर सब-सहारन अफ्रीका में रहते हैं, सिर्फ एक प्रतिशत.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Z. Peng Wz
औसत आय में फर्क
दुनिया में प्रति व्यक्ति औसत आय 72,913 यूरो यानी लगभग 62 लाख रुपये है. और सबसे अमीर एक फीसदी लोगों की औसत आय है कि करीब 24 करोड़ रुपये.
तस्वीर: Lucas Vallecillos/VWPics/imago images
आम लोगों से 6,000 गुना
दुनिया के कुल धन का 6 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ 0.1% लोगों के पास है. इनकी संख्या करीब 55,200 है यानी आम लोगों से 6,000 गुना ज्यादा.
तस्वीर: ANN/Dawn/picture alliance
गरीबों की संपत्ति
गरीब लोगों के पास संपत्ति के रूप में या कैश होता है या फिर बैंक में कुछ डिपॉजिट. अगर किसी के पास घर हो भी तो उसकी कीमत बहुत कम होती है. मध्य वर्ग के पैस बैंक डिपॉजिट के अलावा घर भी होता है और साथ में थोड़ा बहुत शेयर आदि.
तस्वीर: REUTERS
अमीरों के पास कैश कम
अमीरों के पास संपत्ति सबसे ज्यादा (40-60 प्रतिशत) वित्तीय एसेट्स के रूप में होती है. हाउसिंग एसेट्स (30-40 फीसदी) भी उनकी संपत्ति का बड़ा हिस्सा है जबकि बाकी धन (5-10 प्रतिशत) बिजनस में हिस्सेदारी के रूप में पाया जाता है.
तस्वीर: STRF/STAR MAX/IPx/picture alliance
6 तस्वीरें1 | 6
लेख कहता है, "स्वीडन में कुल घरों का 22 प्रतिशत कोऑपरेटिव हाउसिंग में है. नॉर्वे में 15 प्रतिशत घर कोऑपरेटिव हाउसिंग के तहत हैं, और राजधानी ओस्लो में तो इनकी संख्या 40 प्रतिशत है. डेनमार्क में 20 फीसदी आबादी कोऑपरेटिव घरों में रहती है.”
विज्ञापन
क्या होता है कोऑपरेटिव हाउसिंग?
ऑस्ट्रेलियाई विशेषज्ञ समझाते हैं कि यूं तो कोऑपरेटिव हाउसिंग कई तरह से काम करता है लेकिन मोटा-मोटी कहा जा सकता है इसमें कुछ लोग एक समूह बनाकर घर खरीदते या किराये पर लेते हैं ताकि अपने लिए छत पा सकें. यहां साथ आने का मतलब संपत्ति जमा करना नहीं बल्कि रहने के लिए जगह हासिल करना होता है.
कोरोना से ज्यादा भुखमरी से मर रहे लोग
गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम का कहना है कि दुनिया भर में हर एक मिनट में 11 लोगों की मौत भूख के कारण हो जाती है. विश्व में अकाल जैसी परिस्थितियों का सामना करने वालों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में छह गुना वृद्धि हुई.
तस्वीर: Florian Lang/Welthungerhilfe
कोरोना पर भी भारी भुखमरी
ऑक्सफैम ने अपनी ताजा रिपोर्ट का शीर्षक "हंगर वायरस मल्टीप्लाइज" दिया है. गैर सरकारी संस्था ऑक्सफैम का कहना है कि भुखमरी के कारण मरने वाले लोगों की संख्या कोविड-19 के कारण मरने वाले लोगों की संख्या से अधिक हो गई है. कोविड-19 से दुनिया में हर एक मिनट में करीब सात लोगों की मौत होती है.
तस्वीर: Laetitia Bezain/AP/picture alliance
एक साल में बढ़ी संख्या
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक साल में अकाल जैसे हालात का सामना करने वाले लोगों की संख्या पूरी दुनिया में छह गुना बढ़ गई है. ऑक्सफैम अमेरिका के अध्यक्ष और सीईओ एबी मैक्समैन के मुताबिक, "आंकड़े चौंका देने वाले हैं, लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि ये आंकड़े अकल्पनीय पीड़ा का सामना करने वाले अलग-अलग लोगों से बने हैं. यहां तक की एक व्यक्ति भी बहुत अधिक है."
तस्वीर: Eshete Bekele/DW
15.5 करोड़ लोगों के सामने खाद्य असुरक्षा का संकट
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया में करीब 15.5 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा के भीषण संकट का सामना कर रहे हैं. यह आंकड़ा पिछले साल के आंकड़ों की तुलना में दो करोड़ ज्यादा है. इनमें से करीब दो तिहाई लोग भुखमरी के शिकार हैं और इसका कारण है उनके देश में चल रहा सैन्य संघर्ष.
तस्वीर: Jack Taylor/Getty Images
कोविड और जलवायु परिवर्तन का भी असर
एबी मैक्समैन का कहना है, "आज कोविड-19 के कारण आर्थिक गिरावट और निरंतर संघर्षों और जलवायु संकट ने दुनिया भर में 5.20 लाख से अधिक लोगों को भुखमरी की कगार पर पहुंचा दिया है." उन्होंने कहा वैश्विक महामारी से निपटने के बजाय युद्धरत गुट एक दूसरे से लड़ाई लड़ रहे हैं. जिसका सीधा असर ऐसे लाखों लोगों पर पड़ता है जो पहले से ही मौसम से जुड़े आपदाओं और आर्थिक झटकों से कराह रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/M. Hamoud
महामारी में भी सैन्य खर्च
ऑक्सफैम का कहना है कि महामारी के बावजूद वैश्विक सैन्य खर्च बढ़कर 51 अरब डॉलर हुआ है. यह राशि भुखमरी को खत्म करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को जितने धन की जरूरत है उसके मुकाबले कम से कम छह गुना ज्यादा है.
तस्वीर: Ismail Hakki/AFP/Getty Images
इन देशों में स्थिति बेहद खराब
रिपोर्ट में उन देशों को शामिल किया गया है जो भुखमरी से "सबसे ज्यादा प्रभावित" हैं. इसमें अफगानिस्तान, इथियोपिया, दक्षिण सूडान, सीरिया और यमन शामिल हैं. इन सभी देशों में संघर्ष जारी है.
ऑक्सफैम का कहना है कि भुखमरी को युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. लोगों को भोजन और पानी से वंचित रखकर, मानवीय सहायता में बाधा पहुंचाकर भुखमरी को युद्ध के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. ऑक्सफैम के मुताबिक जब उनके बाजारों, खेतों और जानवरों पर बमबारी हो रही हो तो वे सुरक्षित रूप से नहीं रह सकते या भोजन नहीं तलाश सकते हैं.
तस्वीर: Nabeel al-Awzari/REUTERS
संघर्ष रोकने की अपील
संस्था ने सरकारों से हिंसक संघर्षों को रोकने का आग्रह किया है. संस्था ने सरकारों से संघर्षों को विनाशकारी भूख पैदा करने से रोकने की अपील की है. उसने कहा है कि सरकारें यह सुनिश्चित करें कि जरूरतमंदों तक राहत एजेंसियां पहुंच सकें और दान देने वाले देशों से कहा है कि वह यूएन के प्रयासों को तुरंत निधि दें.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Buchanan
8 तस्वीरें1 | 8
विशेषज्ञों के मुताबिक, "किरायेदारों के कोऑपरेटिव में वहां रहने वाले किरायेदारों को फैसले लेने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से हिस्सेदार बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. वे प्रबंधन और रख-रखाव का हिस्सा होते हैं. किराये से होने वाली किसी भी तरह की आय को भवन के रख-रखाव में ही खर्च किया जाता है.”
डेनमार्क में समाज के कई तबकों को कोऑपरेटिव हाउसिंग के जरिए घर उपलब्ध करवाए गए हैं. इनमें विकलांग, बुजुर्ग और अन्य कमजोर तबकों के लोग शामिल हैं. विशेषज्ञ कहते हैं कि इस पूरी कोशिश का मकसद मुनाफा कमाना नहीं बल्कि घरों के निर्माण का खर्च कम करना और किराये कम करना होता है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग घर में रहना वहन कर सकें.