समाचारों में लोगों की दिलचस्पी और ज्यादा घटीः रिपोर्ट
१७ जून २०२४
नया अंतरराष्ट्रीय अध्ययन कहता है कि ऐसे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है जो समाचारों से दूर हो रहे हैं. लोगों ने कहा कि न्यूज उन्हें बोरिंग और उदास करने वाली लगती हैं.
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ब्रिटेन की ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के रॉयटर्स इंस्टिट्यूट की ताजा रिपोर्ट कहती है कि बहुत बड़ी संख्या में लोग जानबूझकर समाचारों से दूर रहते हैं. लगभग 39 फीसदी लोग ऐसे हैं जो अक्सर या कभी-कभी जानबूझकर समाचार नहीं देखते या पढ़ते. 2017 में ऐसे लोगों की संख्या 29 फीसदी थी.
शोधकर्ताओं ने कहा कि यूक्रेन और मध्य पूर्व में जारी युद्धों ने लोगों को खबरों से दूर करने में बड़ी भूमिका निभायी है और अब समाचारों से लोगों की दूरी अपने सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है.
‘डिजिटल न्यूज रिपोर्ट 2024' के लिए 'यूगव' संस्था ने 47 देशों के 94,943 लोगों से बात की है. जनवरी और फरवरी में यह सर्वेक्षण हुआ, जबकि दुनिया के बहुत से देश आम चुनावों की तैयारी कर रहे थे.
इन नौकरियों पर है सबसे ज्यादा खतरा
अमेरिकी सांख्यिकी ब्यूरो के मुताबिक 2032 तक जिन नौकरियों के खत्म होने का सबसे ज्यादा खतरा है, उनमें बहुत से पारंपरिक काम शामिल हैं. हालांकि ये आंकड़े अमेरिका के हैं, लेकिन दुनिया की एक झलक पेश करते हैं. देखिए...
तस्वीर: DreamstimexTea/Panthermedia/IMAGO
नंबर 9: सुपरवाइजर
रीटेल स्टोर में सुपरवाइजर के पदों में 2032 तक एक लाख की कमी आने की संभावना जाहिर की गई है.
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नंबर 8: फास्ट फूड कुक
बर्गर और नूडल बनाने के लिए कुक की जरूरत कम हो रही है. अगले आठ साल में एक लाख एक हजार से ज्यादा नौकरियां कम हो जाएंगी.
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नंबर 7: ऑफिस सेक्रटरी
प्रशासनिक कामों में मदद के लिए एआई और अन्य तकनीकी टूल तेजी से लोगों की जगह ले रहे हैं. 2032 तक अमेरिका में इनकी संख्या एक लाख आठ हजार एक सौ तक घट सकती है.
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नंबर 6: अकाउंटिंग और ऑडिटिंग क्लर्क
एआई टूल अकाउंटिंग का काम इतने अच्छे और तेजी से कर रहे हैं कि आने वाले दिनों में इसके लिए लोगों की जरूरत शायद ना रहे. यही वजह है कि आठ साल में इनकी नौकरियों में एक लाख आठ हजार तीन सौ की कमी की आशंका है.
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नंबर 5: असेंबलर
रोबोट अब कार के पुर्जों से लेकर गत्ते के डिब्बों तक की असेंबली का काम संभाल चुके हैं. ऐसे में फैक्ट्रियों में असेंबलर का काम करने वालों की संख्या में एक लाख 11 हजार आठ सौ की कमी हो सकती है.
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नंबर 4: कस्टमर सर्विस रिप्रेजेंटेटिव
चैटजीपीटी जैसे भाषा आधारित एआई टूल के जरिए लोग ज्यादा आसानी और जल्दी सूचनाएं हासिल कर लेते हैं और उन्हें फोन पर लंबे इंतजार की जरूरत नहीं रहेगी. इसलिए एक लाख 62 हजार तक नौकरियां खत्म हो सकती हैं.
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नंबर 3: ऑफिस क्लर्क
ऑफिस में क्लर्क का काम बहुत आसानी से कंप्यूटर और एआई टूल संभाल रहे हैं. हो सकता है कि 2032 तक अमेरिका में क्लर्कों की नौकरियां एक लाख 75 हजार 400 तक घट जाएं.
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नंबर 2: असिस्टेंट
अधिकारियों के लिए असिस्टेंट का काम करने के लिए लोगों की जरूरत तेजी से घट रही है. इनकी संख्या दो लाख 35 हजार 900 तक घट सकती है. हालांकि इनमें मेडिकल और लीगल असिस्टेंट शामिल नहीं हैं.
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नंबर 1: कैशियर
जिस नौकरी पर सबसे ज्यादा खतरा है, वह है बैंक आदि में कैशियर का. अनुमान है कि 2032 तक अमेरिका में तीन लाख 48 हजार कम कैशियर चाहिए होंगे.
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रिपोर्ट कहती है कि चुनावों के कारण कुछ देशों में समाचारों में लोगों की दिलचस्पी बढ़ी, जिनमें अमेरिका भी शामिल है. लेकिन कुल मिलाकर चलन यह नजर आता है कि लोग बड़ी संख्या में समाचारों से दूर हो रहे हैं.
सर्वे में शामिल हुए लोगों में से 46 फीसदी ने कहा कि वे खबरों में बहुत या बहुत ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं. 2017 में यह संख्या 63 फीसदी थी.
समाचार संस्थानों के लिए यह एक बड़ी समस्या है जबकि वे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और गूगल व ओपनएआई जैसी टेक-कंपनियों केसमाचारों का सार परोसने जैसी तकनीकी चुनौतियों से जूझ रहे हैं. हालांकि सर्वे में यह बात भी सामने आई कि लोग एआई के जरिए समाचारों से जुड़ी सामग्री को अभी संदेह की नजर से देखते हैं, खासकर राजनीति जैसे संवेदनशील मुद्दों पर.
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एआई पर अभी भरोसा नहीं
सर्वे के मुताबिक अमेरिका में 52 फीसदी और ब्रिटेन में 63 फीसदी लोगों ने कहा कि वे एआई से तैयार समाचार सामग्री को लेकर असहज हैं. सर्वे में हर देश के 2,000 लोगों से बात की गई. शोधकर्ताओं का कहना है कि लोग एआई के ऐसे इस्तेमाल को लेकर असहज नहीं हैं जिसमें उसका प्रयोग पत्रकारों के काम को और ज्यादा बेहतर बनाने के लिए किया जाता है.
फैशन से लेकर राजनीति तक: मिलिए जर्मनी के सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों से
जर्मनी में कई युवाओं को अपने ऑनलाइन आइडलों की नकल करना बहुत पसंद है. जानिए ऐसा क्या करते हैं जर्मनी के सबसे मशहूर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर.
बियांका के यूट्यूब चैनल को "बीबीजब्यूटीपैलेस" के नाम से जाना जाता है. उनकी कोशिश सोशल मीडिया पर एक आम लड़की की छवि बनाने की रही है और इस कोशिश में उन्हें काफी सफलता हासिल हुई है. उनकी संपत्ति 36 लाख डॉलर के आस पास होने का अनुमान है, जो उन्होंने अपने यूट्यूब वीडियो, इंस्टाग्राम पर विज्ञापन और अपने सौंदर्य ब्रांड से कमाई है. यूट्यूब पर उनके 60 लाख सब्सक्राइबर हैं और इंस्टाग्राम पर लगभग 80 लाख फॉलोवर.
तस्वीर: Jens Kalaene/dpa/picture alliance
यूनिस जारु
यूनिस जारु जर्मनी के सबसे सफल टिकटॉक सितारा हैं. उनके दो खाते हैं जिन्हें मिला कर उनके कुल तीन करोड़ फॉलोवर हैं. वो काफी रंगीन वीडियो चढ़ाते हैं और साथ में अपने 'डीआईवाई' या 'खुद से करो' वीडियो भी चढ़ाते हैं. मार्च 2020 में उन्होंने एक महीने तक लगातार अपने सही फॉलोवरों का मनोरंजन किया.
तस्वीर: Bernd Kammerer/dpa/picture alliance
पामेला रीफ
फिटनेस इन्फ्लुएंसर पामेला रीफ के खिलाफ 2020 में छिपा कर विज्ञापन करने का मुकदमा लाया गया था जिसे वो हार गयी थीं. अदालत ने कहा था कि इंस्टाग्राम पर विज्ञापन को विज्ञापन बताया जाना चाहिए, भले ही वो निशुल्क लगने वाली अनुशंसा ही क्यों ना हो. हालांकि इससे उनकी लोकप्रियता पर कोई असर नहीं पड़ा और कोविड-19 महामारी के दौरान उनके सभी वीडियो की लोकप्रियता बढ़ गई.
लीजा और लेना मैंटलर ने 13 साल की उम्र से ही लिप-सिंकिंग और डांस के वीडियो म्यूजिकल.एलवाई नाम के मंच पर चढ़ाने शुरू कर दिए थे. बाद में यही मंच टिकटॉक बन गया और यह दोनों उस पर काफी सफल हो गए. मार्च 2019 में दोनों ने सुरक्षा कारणों से खुद को टिकटॉक से हटा लिया, लेकिन मई 2020 में वे वापस आ गए.
तस्वीर: Clemens Bilan/Getty Images
ग्रोंख
ग्रोंख का असली नाम एरिक रेंज है. वो गेमिंग के क्षेत्र के पुराने खिलाड़ी हैं और उसके सबसे सफल इन्फ्लुएंसरों में से भी हैं. यूट्यूब पर 2010 से ही उनका एक चैनल है और दो सालों तक सभी जर्मन चैनलों में उनके सबसे ज्यादा सब्सक्राइबर थे. उन्हें उनके "लेट्स प्ले" वीडियो के लिए जाना जाता है जो उन्होंने खुद पर ही वीडियो गेम खेलते हुए फिल्माए थे. ग्रोंख स्ट्रीमिंग चैनल ट्विच पर भी काफी लोकप्रिय हैं.
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स्टेफनी गीसिंजर
फैशन, सौंदर्य और यात्रा वो सभी विषय हैं जिन्हें इंस्टाग्राम का इस्तेमाल करने वाले पसंद करते हैं और स्टेफनी यह बात अच्छी तरह से जानती हैं. वो इन सभी विषयों पर जर्मनी की चोटी की इन्फ्लुएंसरों में से हैं. 2014 में "जर्मनी के अगले टॉप मॉडल" का खिताब मिला था, लेकिन आज कल तो कैटवॉक पर कम ही देखी जाती हैं. उन्होंने अपने ही सस्टेनेबल फैशन लेबल की शुरुआत भी की है.
रीजो एक यूट्यूबर हैं और वो मनोरंजन के अलावा राजनीतिक वीडियो भी बनाते हैं. 2019 में उनके वीडियो "सीडीयू का विनाश" ने जर्मनी में सनसनी पैदा कर दी थी. उसे 1.8 करोड़ बार देखा गया था और यूट्यूब का कहना था कि वो जर्मनी में उस साल का सबसे ज्यादा देखा गया वीडियो था. यह दिखता है कि रीजो जैसे यूट्यूबर कितने प्रासंगिक हो गए हैं.
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मारी नासेमान
मारी सस्टेनेबिलिटी पर ध्यान केंद्रित करने वाले सबसे लोकप्रिय इन्फ्लुएंसरों में से हैं. वो अपने ब्लॉग "फेयरनॉल" पर सस्टेनेबल फैशन के बारे में लिखती हैं. उन्हें एक "सेंस-इन्फ्लुएंसर" कहा जाता है, यानी एक ऐसी इन्फ्लुएंसर जो अपनी लोकप्रियता का इस्तेमाल उन विषयों पर चर्चा करने के लिए करती है जो उसे अहम और सार्थक लगते हैं. जैसे सस्टेनेबिलिटी, फेमिनिज्म या वेगन न्युट्रिशन. - मारिया जॉन सांचेज
मुख्य शोधकर्ता, रॉयटर्स इंस्टिट्यूट में सीनियर रिसर्च एसोसिएट निक न्यूमन कहते हैं, "(एआई को लेकर) लोगों के संदेह का स्तर हैरतअंगेज था. लोगों में इस बात को लेकर डर था कि सामग्री की विश्वसनीयता और भरोसे का क्या होगा.”
फर्जी समाचारों को लेकर भी लोगों में चिंताएं बढ़ी हैं. इस साल 59 फीसदी लोगों ने कहा कि वे बढ़ती फर्जी खबरों को लेकर चिंतित हैं. यह आंकड़ा पिछले साल से तीन फीसदी ज्यादा है.
दक्षिण अफ्रीका में सबसे ज्यादा 81 फीसदी लोग फर्जी खबरों को लेकर चिंतित थे जबकि अमेरिका में यह संख्या 72 फीसदी थी. भारत में ऐसे लोगों की संख्या पिछले साल के मुकाबले 5 फीसदी बढ़कर 58 पर पहुंच गई है.
समाचार माध्यमों के लिए एक और बड़ी चुनौती लोगों के सब्सक्रिप्शन लेने के प्रति उदासीनता है. हालांकि कोविड महामारी के बाद समाचार माध्यमों का सब्सक्रिप्शन लेने वालों की संख्या में कुछ इजाफा देखा गया है.
महामारी के बाद यानी 2021 में 20 देशों के 17 फीसदी लोगों ने कहा था कि वे ऑनलाइन न्यूज के लिए भुगतान कर रहे हैं. लेकिन ताजा रिपोर्ट कहती है कि इस संख्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
वैकल्पिक माध्यमों की ओर रुझान
रिपोर्ट के मुताबिक अब पारंपरिक समाचार माध्यमों के उलट ‘न्यूज इंफ्लुएंसर' यानी सोशल मीडिया पर समाचारों से जुड़ीं वीडियो बनाने वाले लोगों की ओर दर्शकों का रुझान बढ़ रहा है. टिकटॉक जैसे माध्यमों का प्रसार तेजी से बढ़ा है. हालांकि यूट्यूब और फेसबुक अभी भी सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले माध्यम हैं लेकिन इनका आकार लगातार कम हो रहा है.
जल्द डीपफेक वीडियो से पट जाएगा इंटरनेट?
05:19
टिकटॉक देखने वाले 5,600 लोगों में से 57 फीसदी ने कहा कि वे इस ऐप का इस्तेमाल समाचारों के लिए करते हैं. 57 फीसदी लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय न्यूज इंफ्लुएंसरों को ज्यादा देखते हैं जबकि पत्रकारों या स्थापित समाचार माध्यमों को देखने वाले दर्शकों की संख्या 34 फीसदी थी.
भारत में टिकटॉक पर प्रतिबंध है लेकिन वहां मोज और चिंगारी जैसे अन्य ऐप इस भूमिका को निभा रहे हैं. भारत में 81 फीसदी लोगों ने छोटे-छोटे वीडियो के जरिए न्यूज देखी.
न्यूमन कहते हैं कि समाचार संस्थानों को दर्शकों-पाठकों के साथ सीधा रिश्ता कायम करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "रणनीतिक रूप से (सोशल मीडिया) प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल उन लोगों तक पहुंचने के लिए किया जाना चाहिए जैसे कि युवा दर्शक. हम देख रहे हैं कि इंफ्लुएंसर अब ज्यादा बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.”