फ्रांस: धुर-दक्षिणपंथ को हराने के लिए विरोधी दलों में एकता
३ जुलाई २०२४फ्रांस में संसदीय चुनाव के लिए दो चरणों में मतदान होता है. दूसरे चरण के लिए 7 जुलाई को मतदान होना है. 30 जून को पहले चरण की वोटिंग में धुर-दक्षिणपंथी पार्टी 'नेशनल रैली अलायंस' (आरएन) को 33 फीसदी वोटों के साथ बढ़त मिली. दूसरे स्थान पर रहे वामपंथी गठबंधन 'न्यू पॉपुलर फ्रंट' (एनएफपी) को 28 प्रतिशत मत मिले.
राष्ट्रपति माक्रों का सत्तारूढ़ गठबंधन 'आनसांबल' (ईएनएस) 20 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहा. अब लेफ्ट और सेंट्रिस्ट धड़ा ना चाहते हुए भी आपसी एकता के सहारे धुर-दक्षिणपंथी धड़े को सत्ता में आने से रोकने की कोशिश कर रहा है.
बहुमत के लिए कितनी सीटें चाहिए?
फ्रांस की नेशनल असेंबली में 577 सीटें हैं. बहुमत के लिए आरएन को संसद में कम-से-कम 289 सीटें चाहिए. पहले चरण के बाद हुए सर्वेक्षणों के मुताबिक, धुर-दक्षिणपंथी आरएन को 250 से 300 तक सीटें मिलने का अनुमान जताया गया.
फ्रांस में वोटिंग, माक्रों पर भारी पड़ेगा उनका जुआ?
नेशनल रैली की नेता मरीन ले पेन ने कहा कि अगर उनके गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिलता है, तभी उनकी पार्टी सरकार का नेतृत्व करेगी. उन्होंने मतदाताओं से अपील की कि वे दूसरे चरण की वोटिंग में उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत दें. ऐसा हुआ, तो नेशनल रैली के युवा नेता जोर्डन बार्डेला प्रधानमंत्री बन सकते हैं.
मजबूत उम्मीदवारों की संभावना बढ़ाने की कोशिश
अब दूसरे चरण के मतदान में धुर-दक्षिणपंथी राजनीति से जुड़े धड़े को रोकने की कोशिश में 200 से ज्यादा उम्मीदवारों ने नाम वापस ले लिया है. फ्रांस के अंतरराष्ट्रीय न्यूज चैनल फ्रांस 24 ने चुनावी दौड़ से बाहर निकलने वाले इन उम्मीदवारों की संख्या 218 बताई है. फ्रेंच अखबार ले मोंद के मुताबिक, इनमें 130 प्रत्याशी लेफ्ट विंग के और 82 माक्रों के नेतृत्व वाले गठबंधन से हैं.
लेफ्ट और सेंट्रिस्ट धड़े को उम्मीद है कि बचे हुए मजबूत उम्मीदवारों को समर्थन देकर वे वोट का बंटवारा रोक पाएंगे और इन उम्मीदवारों के जीतने की संभावना बढ़ेगी. यह रणनीति कितनी कारगर साबित होगी, यह तो 7 जुलाई के मतदान के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा.
धुर-दक्षिणपंथी खेमे को रोकने के लिए मतदाता उन पार्टियों को वोट देंगे जिनका वह समर्थन नहीं करते, इसे लेकर असमंजस की स्थिति है. इस स्थिति में अगर लेफ्ट और सेंट्रिस्ट पार्टियों के कई वोटर मतदान ही ना करें, तब भी नेशनल रैली को फायदा हो सकता है. हालांकि, कई जानकारों का कहना है कि इस नाटकीय घटनाक्रम का मतदान के नतीजों पर काफी असर पड़ सकता है.
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कई सीटों पर था त्रिकोणीय मुकाबला
डिजिटल अखबार पॉलिटिको के मुताबिक, 2022 में हुए चुनाव के दूसरे चरण में कुछ ही निर्वाचन क्षेत्र थे, जहां मतदाताओं के पास तीन या इससे ज्यादा उम्मीदवारों का विकल्प था. ज्यादातर मामलों में पहले चरण की वोटिंग में सबसे ज्यादा वोट पाने वाले दो उम्मीदवारों के बीच ही मुकाबला रहा. लेकिन इस बार 300 से ज्यादा निर्वाचन क्षेत्र हैं, जहां दूसरे चरण के मतदान के लिए कम-से-कम तीन उम्मीदवार क्वालिफाई हुए.
आमतौर पर इन प्रत्याशियों में एक धुर-दक्षिणपंथ, एक वामपंथी गठबंधन और एक राष्ट्रपति माक्रों के सेंट्रिस्ट खेमे का है. यही वजह रही कि उम्मीदवारों और पार्टी के नेताओं में तीसरे स्थान पर रहे प्रत्याशियों के मैदान से हटने के विकल्पों पर काफी बातचीत हुई, ताकि मुकाबला त्रिकोणीय ना रहे. नाम वापस लेने की आखिरी समयसीमा 2 जुलाई को शाम छह बजे तक थी.
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फ्रेंच अखबार ले मोंद के मुताबिक, वामपंथी गठबंधन के 446 उम्मीदवार दूसरे राउंड में पहुंचे थे. इनमें से 130 रेस से हट गए हैं. इसी तरह माक्रों खेमे के 319 उम्मीदवारों में से 81 ने नाम वापस ले लिया. ऐसे में अब 100 से भी कम सीटें हैं, जहां त्रिकोणीय मुकाबला है.
पीएम ने अपने वोटरों से क्या अपील की?
प्रधानमंत्री गैब्रिएल अताल ने कहा कि धुर-दक्षिणपंथ को सत्ता में पहुंचने से रोकने के लिए रेडिकल लेफ्ट को भी वोट देना सही है. रेडियो चैनल फ्रांस इंटर से बातचीत में पीएम ने कहा कि वह वामपंथी गठबंधन से सबसे बड़े घटक दल 'फ्रांस अनबाउड मूवमेंट' की नीतियों से असहमति रखते हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने सेंट्रिस्ट वोटरों को प्रोत्साहित किया कि वे धुर-दक्षिणपंथी नेशनल रैली के उम्मीदवारों को रोकने के लिए लेफ्ट प्रत्याशियों को वोट दें.
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पीएम ने कहा, "बेशक कई फ्रेंच लोगों के लिए यह खुशी की बात नहीं है कि नेशनल रैली को ब्लॉक करने के लिए वे ऐसे किसी को वोट दें, जिसे वो नहीं वोट नहीं डालना चाहते. लेकिन मेरा मानना है कि ऐसा करना हमारी जिम्मेदारी है." वामपंथी गठबंधन के नेता ज्यां लूच मेलांशां ने भी अपने धड़े से ऐसी ही अपील की कि तीसरे स्थान पर रहे उम्मीदवार मैदान से हट जाएं.
क्या है फ्रांस में लेफ्ट और फार-राइट की विचारधारा
राजनीतिक विचारधारा के स्तर पर माक्रों का मध्यमार्गी खेमा, वामपंथी धड़ा और धुर-दक्षिणपंथी समूह, तीनों बेहद अलग हैं. वामपंथी धड़े में ग्रीन्स, सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट और अल्ट्रा-लेफ्ट फ्रांस अनबाउड हैं. इन वामपंथी दलों के बीच भी गहरी असहमतियां हैं, लेकिन बीते महीने इन्होंने अपने मतभेद किनारे कर 'न्यू पॉपुलर फ्रंट' में साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया. घटक दलों ने आपस में सीटें बांटी और फैसला किया कि लेफ्ट विंग का कोई भी उम्मीदवार एक-दूसरे के मुकाबले खड़ा नहीं होगा.
यह फ्रंट गरीबों और मध्यम आयवर्ग वालों लोगों की क्रय क्षमता बेहतर करने, न्यूनतम आय बढ़ाने, स्कूलों में मुफ्त भोजन मुहैया कराने, बुनियादी ढांचे पर सरकारी खर्च में वृद्धि करने, ग्रामीण और दूर-दराज के इलाकों में इन्फ्रास्ट्रक्चर दुरुस्त करने और स्वास्थ्य-शिक्षा पर ज्यादा खर्च करने की बात करता है.
अपने साझा चुनावी घोषणापत्र में गठबंधन ने गैस-तेल जैसी ऊर्जा आपूर्ति और जरूरी चीजों के दाम ना बढ़ने देने का वादा किया. साथ ही, माक्रों सरकार द्वारा पेंशन की उम्र बढ़ाकर 64 साल करने के फैसले को भी बदलने का वादा किया.
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मैनिफेस्टो में आमदनी, संपत्ति, उत्तराधिकार में मिलने वाली दौलत और जायदाद पर भी टैक्स बढ़ाने की बात कही गई है. आलोचकों का कहना है कि इतना खर्च बढ़ाने से फ्रांस दिवालिया हो जाएगा.
धुर-दक्षिणपंथी गठबंधन की नीतियों में इमिग्रेशन बड़ा मुद्दा है. ये सत्ता में आने पर इमिग्रेशन घटाने का वादा करते हैं. यह यूरोपीय संघ का भी आलोचक है और ब्लॉक की नीतियों का पालन करने की जगह ज्यादा-से-ज्यादा राष्ट्रीय स्वायत्तता का समर्थक है.
वहीं, माक्रों सरकार की कई नीतियों के कारण लोगों में नाराजगी रही. रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने के फैसले पर फ्रांस में बड़े स्तर पर प्रदर्शन हुए. इमिग्रेशन कानूनों को सख्त बनाने जैसे उनके फैसलों की भी बड़ी आलोचना हुई. माक्रों पर आरोप लगे कि धुर-दक्षिणपंथ की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए वह भी नीतिगत स्तर पर दक्षिणपंथी नीतियों की ओर बढ़ रहे हैं.