आइसलैंड उन चुनिंदा जगहों में था, जहां मच्छर थे ही नहीं. पहली बार वहां तीन मच्छर पाए गए हैं. यहां मच्छर कैसे पहुंचे, ये अभी स्पष्ट तो नहीं है लेकिन जलवायु परिवर्तन एक वजह हो सकती है.
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आइसलैंड, यूरोप के सबसे पश्चिमी हिस्से में एक छोटा सा द्वीपीय देश है. ग्रीनलैंड सागर और उत्तर अटलांटिक महासागर के बीच बसे आइसलैंड को अब तक मच्छरों से मुक्त माना जाता था, लेकिन अब यह कहानी बदल गई है. इस महीने, इतिहास में पहली बार आइसलैंड में मच्छर पाए गए. कुल मिलाकर तीन मच्छर मिले, दो मादा और एक नर.
राजधानी रेक्याविक के पास क्यॉस नाम का एक कस्बा है. स्थानीय अखबार 'मॉर्गुनब्लादिद' के अनुसार, यहां ब्योर्न हाल्टासन नाम के एक कीट-प्रेमी शख्स ने अपने बगीचे में तीन मच्छर देखे. उन्होंने अखबार को बताया, "मैं तुरंत समझ गया कि यह कुछ ऐसा है, जो मैंने पहले कभी नहीं देखा है." इस खोज की पुष्टि देश के वैज्ञानिकों ने भी की है.
मच्छर आखिर आइसलैंड पहुंचे कैसे?
वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अब तक स्पष्ट नहीं कि मच्छर आइसलैंडकैसे पहुंचे. हालांकि, संभावना यही है कि ग्लोबल वॉर्मिंग, यानी पृथ्वी पर बढ़ता तापमान इसके पीछे प्रमुख कारण हो सकता है.
आइसलैंड अब उत्तरी गोलार्ध के बाकी हिस्सों की तुलना में चार गुना ज्यादा तेजी से गर्म हो रहा है. 'बीबीसी' की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 में यहां अब तक का सबसे गर्म मई महीना दर्ज किया गया. इस महीने तापमान 26.6 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था.
आइसलैंड के ज्वालामुखी से निकले लावा में घिरी सैलानियों की सैरगाह
आइसलैंड में गुरुवार को ज्वालामुखी विस्फोट के बाद भारी मात्रा में पिघला लावा निकला है. यह लावा सैलानियों की पसंदीदा जगह ब्लू लगून के जियोथर्मल स्पा तक पहुंच गया.
तस्वीर: Civil Protection of Iceland/REUTERS
सातवीं बार ज्वालामुखी विस्फोट
आइसलैंड के रिक्यानेस प्रायद्वीप पर सुंधनुकागिगार ज्वालामुखी में एक साल में सातवीं बार विस्फोट हुआ. इसके बाद भारी मात्रा में पिघला लावा आसपास के इलाके में फैल गया है.
तस्वीर: Marco di Marco/AP/picture alliance
पार्किंग में भर गया लावा
काले, नारंगी रंग का पिघले लावा ने उस जगह को ढंक दिया है जहां कभी 350 से ज्यादा कारों और बसों के लिए पार्किंग थी. सैलानियों को यहां से निकाल लिया गया है.
तस्वीर: Marco di Marco/AP/picture alliance
सर्विस बिल्डिंग भी चपेट में
सैलानियों के सामान रखने वाली सर्विस बिल्डिंग तक भी लावा पहुंचा है. हालांकि इसकी वजह से पूल को किसी नुकसान की खबर नहीं है. एक रक्षा दीवार ने लावा को वहां तक पहुंचने से रोक लिया है.
तस्वीर: Marco di Marco/AP/dpa/picture alliance
सैलानियों को सुरक्षित निकाला गया
मछली के शिकार के लिए मशहूर ग्रिंडाविक विलेज और ब्लू लगून से सैलानियों को बुधवार को ही निकाल लिया गया था. ब्लू लगून के अधिकारियों का कहना है कि स्पा दोबारा कब खुलेगा यह नहीं कहा जा सकता.
तस्वीर: Marco di Marco/AP/dpa/picture alliance
साल भर से खाली है ग्रिंडाविक
ग्रिंडाविक के 4,000 निवासियों को साल भर पहले, जब पहली बार ज्वालामुखी फटने के तुरंत बाद ही वहां से निकाल लिया गया था. इसके बाद वहां के लगभग सारे घर सरकार को बेच दिए गए. हाल में यहां करीब 50 घरों में लोग रह रहे थे.
तस्वीर: Kristinn Magnusson/AFP/Getty Images
2021 से शुरू हुआ ज्वालामुखी के फटने का सिलसिला
इस प्रायद्वीप पर 800 सालों तक कोई ज्वालामुखी विस्फोट नहीं हुआ था. मार्च 2021 में यहां उच्च भूगर्भीय गतिविधियां शुरू हुईं और तब से ज्वालामुखी विस्फोट का सिलसिला शुरू हो गया है.
तस्वीर: Jeremie Richard/AFP
बना हुआ है खतरा
ज्वालामुखीविज्ञानी चेतावनी देते हैं कि इस इलाके में ज्वालामुखीय घटनाएं एक नए युग में प्रवेश कर चुकी हैं और यह सिलसिला अभी आगे लंबे समय तक जारी रह सकता है.
तस्वीर: Raul Moreno/Zumapress/picture alliance
सबसे ज्यादा ज्वालामुखी वाला देश
आइसलैंड में 33 सक्रिय ज्वालामुखी तंत्र मौजूद हैं जो किसी भी यूरोपीय देश की तुलना में ज्यादा है. यह मध्य अटलांटिक रिज पर है जो यूरेशियाई और उत्तरी टेक्टोनिक प्लेटों को अलग करता है. इन्हीं की वजह से यहां भूकंप और ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं.
तस्वीर: Marco di Marco/AP Photo/picture alliance
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आमतौर पर आइसलैंड में मई का तापमान 20 डिग्री से ऊपर नहीं जाता, और अगर जाता भी है तो महज दो-तीन दिनों के लिए. इस बार लगातार 10 दिनों तक पारा चढ़ा रहा.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह बदलाव केवल मौसम के आंकड़ों में नहीं बल्कि ईकोसिस्टम में भी बड़े परिवर्तन का संकेत है. मच्छर ठंडे खून वाले कीट हैं, जो अपने शरीर का तापमान नियंत्रित नहीं कर सकते. वे ऐसी जगहों पर रह सकते हैं, जो पहले से ही गर्म हों. ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते अब उन्हें नए घर भी मिल रहे हैं. वे ऐसी जगहों में भी जिंदा रह पा रहे हैं, जो कभी उनके लिए प्रतिकूल थे, जैसे कि आइसलैंड.
समाचार एजेंसी 'एएफपी' की एक रिपोर्ट के अनुसार, बढ़ते तापमान और आर्द्रता ने मच्छरों के लिए "जिंदा रहने और प्रजनन करने का आदर्श वातावरण" तैयार कर दिया है.
जलवायु परिवर्तन और मच्छरों का बढ़ता असर
समाचार एजेंसी 'रॉयटर्स' और 'एपी' की अलग-अलग रिपोर्ट में वैज्ञानिकों के हवाले से बताया गया है कि मच्छरों की सक्रियता तापमान पर निर्भर करती है. 10 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच वे सबसे अधिक सक्रिय रहते हैं.
वातावरण में 42 प्रतिशत से अधिक नमी उनके प्रजनन और भोजन की प्रक्रिया को तेज करती है. अमेरिकी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के 2020 के अध्ययन में बताया गया कि बदलती आबोहवा में बढ़ते गर्म और आर्द्र दिन, मच्छरों की बढ़ती आबादी का अहम कारण हो सकते हैं.
आइसलैंड का गोल्डन सर्कल जो घुमक्कड़ों के लिए स्वर्ग सरीखा है
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मच्छर केवल डंक मारकर तंग करने वाले कीट नहीं हैं, उनका डंक अपने साथ कई घातक बीमारियां भी लाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, दुनिया की लगभग आधी आबादी मलेरिया, डेंगू, जीका और चिकनगुनिया जैसी मच्छर जनित बीमारियों का सामना कर रही है.
बढ़ते तापमान से न केवल मच्छरों का जीवनकाल बढ़ता है, बल्कि उनके अंडों के फूटने और लार्वा के परिपक्व होने की गति भी तेज होती है. साल 2009 में 'पीएलओएस' जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि ज्यादा तापमान से अंडों के फूटने की दर बढ़ जाती है, और मच्छरों का विकास काल कम हो जाता है. इससे बीमारियों के फैलने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है.
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ठंडे देशों में नई चुनौती
विशेषज्ञों का कहना है कि जहां बेहद गर्म इलाकों में मच्छर मर सकते हैं, वहीं ठंडे इलाकों में अब वे फल-फूल सकते हैं. यह स्थिति जलवायु असंतुलन की गंभीरता को दर्शाती है. इससे बहुत ज्यादा गर्म जगहों में मच्छरों से होने वाली बीमारियों का खतरा कम हो सकता है, लेकिन ठंडे देशों में यह जोखिम बढ़ सकता है.
आइसलैंड जैसे देश के लिए यह एक खतरे की घंटी है. अब तक माना जाता था कि देश की ठंडी जलवायु और तेज हवाएं मच्छरों के लिए असहनीय हैं. साथ ही, वहां स्थिर जलाशय भी नहीं हैं जो मच्छरों को पनपने में मदद करें. लेकिन अब तापमान लगातार बढ़ रहा है और ग्लेशियर पिघल रहे हैं. प्राकृतिक सुरक्षा ढाल कमजोर पड़ती दिख रही है.
डेंगू से बचने के लिए यूरोप में मच्छरों की नसबंदी
स्पेन की एक प्रयोगशाला टाइगर मच्छरों की नसबंदी करा कर डेंगू बुखार और दूसरी बीमारियों से लड़ रही है. जलवायु परिवर्तन के कारण पूरे यूरोप में मच्छरों की यह प्रजाति तेजी से फैल रही है.
तस्वीर: Eva Manez/REUTERS
टाइगर प्रजाति के मच्छर
इस प्रजाति के मच्छरों की मादाएं इंसानों में डंक मार कर डेंगू, जिका बुखार और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का संक्रमण फैला रही हैं. यूरोप के कई देशों में इन मच्छरों की प्रजाति तेजी से फैल रही है.
तस्वीर: CC/somaskanda
टाइगर प्रजाति के मच्छर
इस प्रजाति के मच्छरों की मादाएं इंसानों में डंक मार कर डेंगू, जिका बुखार और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का संक्रमण फैला रही हैं. यूरोप के कई देशों में इन मच्छरों की प्रजाति तेजी से फैल रही है.
तस्वीर: Eva Manez/REUTERS
मच्छरों की नसबंदी
एक इलेक्ट्रॉन एक्सीलरेटर का इस्तेमाल कर वैलेंसिया की यह प्रयोगशाला हर साल लगभग 45,000 नर मच्छरों की नसबंदी करती है. इसके बाद उन्हें पार्क में छोड़ दिया जाता है ताकि वो मादा मच्छरों के साथ सहवास कर सकें. नसबंदी की वजह से इस सहवास से अंडे नहीं पैदा होते और इन मच्छरों की संख्या घटती है.
तस्वीर: Eva Manez/REUTERS
कैसे होती है नसबंदी
इलाकों से प्रजनन के लिए नमूनों को इकट्ठा किया जाता है. इसके बाद वैज्ञानिक एक मशीन का इस्तेमाल कर मादा प्यूपा को नर से अलग करते हैं. इसके बाद रेडियेशन के जरिए इनकी नसबंदी की जाती है.
तस्वीर: Eva Manez/REUTERS
नसबंदी में सबसे आगे है यह प्रयोगशाला
मच्छरों की नसबंदी दुनिया के कुछ और देशों में भी हो रही है. हालांकि फ्रूटफ्लाई के साथ इस प्रयोग का अनुभवी होने के कारण यूरोप में पहली बार इसी लैब ने मच्छरों के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया है.
तस्वीर: Eva Manez/REUTERS
यूरोप में आए मच्छर
यूरोपीय देशों में जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती गर्मी का असर दिख रहा है. आमतौर पर अब तक मच्छरों से बचे रहे देशों में मच्छर और उनकी वजह से होने वाली बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है.
तस्वीर: Eva Manez/REUTERS
बाहरी और स्थानीय समस्याएं
यूरोपीयन सेंटर फॉर डिजीज प्रीवेंशन एंड कंट्रोल के आंकड़े दिखाते हैं कि जिन देशों में डेंगू की महामारी है वहां से उनके यूरोप तक आने की संख्या बढ़ रही हैं. हालांकि सिर्फ यही कारण नहीं है. इसके साथ ही वेस्ट नील वायरस और डेंगू का यूरोप में स्थानीय स्तर पर भी प्रकोप बढ़ रहा है.
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यूरोप में मच्छरों का घर
काली पट्टियों की संरचना वाले टाइगर मच्छर या एडिस एल्बोपिक्टस की प्रजाति उत्तर, पूर्वी और पश्चिमी यूरोप में फैल रही है. अब इसने स्पेन समेत यूरोप के 13 देशों में अपने लिए आवास का इंतजाम कर लिया है.
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डेंगू का प्रकोप
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले साल कहा कि डेंगू बहुत तेज दर से पूरी दुनिया में फैल रहा है. 2000 की तुलना में 2020 तक इससे संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या आठ गुना बढ़ गई है.
तस्वीर: H. Schmidbauer/blickwinkel/picture alliance
गर्मी से मच्छरों को फायदा
पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है जिससे मच्छरों के प्रजनन के लिए अनुकूल वातावरण तैयार होता है. मच्छर अब उन इलाकों में भी प्रवेश कर रहे हैं जहां पहले कभी इनका नाम भी नहीं सुना गया था.
तस्वीर: Eva Manez/REUTERS
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इंसानों के लिए क्या संदेश है?
आइसलैंड में तीन मच्छरों का मिलना, बस आइसलैंड की समस्या नहीं है. यह वैश्विक पर्यावरणीय बदलावों का एक प्रतीक है. मच्छरों का आइसलैंड पहुंचना दिखाता है कि जलवायु परिवर्तन धीरे-धीरे पृथ्वी के हर हिस्से को प्रभावित कर रहा है, चाहे अफ्रीका के गर्म रेगिस्तान हों या यूरोप के बर्फ से ढके पहाड़.
वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि अगर हमने कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं किया, तो आने वाले दशक में ऐसे "असंभव" दिखने वाले दृश्य सामान्य बन जाएंगे. ये हम इंसानों और हमारे हमग्रह जीवों के लिए कतई अच्छी खबर नहीं होगी.