सर्वे: ज्यादातर जर्मनों के लिए धर्म की कोई भूमिका नहीं
४ नवम्बर २०२१
एक सर्वे के मुताबिक जर्मनी में ज्यादातर लोग कहते हैं कि उनके जीवन में धर्म की कोई भूमिका नहीं है. आठ में से केवल एक ही व्यक्ति कहता है कि धर्म इस दुनिया को निष्पक्ष बना सकता है.
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जर्मनी में हाल में हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक देश में अधिकांश लोगों का मानना है कि दैनिक जीवन में धर्म की कोई भूमिका नहीं है. सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से केवल 33 प्रतिशत ने कहा कि उनके लिए धार्मिक शिक्षा महत्वपूर्ण है. धर्म के महत्व के पक्ष में बोलने वाले युवाओं की संख्या अहम रही. सर्वेक्षण के मुताबिक 12 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि धर्म दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकता है जबकि एक तिहाई धर्म के राजनीतिक महत्व पर सहमत हुए. पूरे जर्मनी से 2,000 से अधिक लोगों ने सर्वेक्षण में हिस्सा लिया.
जर्मनी को यूरोप में एक प्रमुख ईसाई देश माना जाता है, लेकिन धर्म से अलग होने वालों की संख्या हर साल बढ़ रही है. जर्मनी में कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट ईसाई परंपराएं समाज में अंतर्निहित हैं और रोजमर्रा की जिंदगी में परिलक्षित हैं.
पूर्वी जर्मन कम धार्मिक
सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से 30 प्रतिशत ने कहा कि वे "धार्मिक" या बहुत "धार्मिक" हैं, जबकि 35 प्रतिशत ने कहा कि वे "बिल्कुल भी धार्मिक नहीं हैं. पूर्वी जर्मनी में बड़ी संख्या में ऐसे लोग रहते हैं जो कहते हैं कि वे बिल्कुल भी धार्मिक नहीं हैं. सर्वेक्षण के अनुसार दक्षिणी जर्मन राज्यों बवेरिया, बाडेन वुर्टेमबर्ग और पश्चिमी राज्यों के जर्मन खुद को अधिक "धार्मिक" मानते हैं. पूर्वी राज्यों में केवल 21 प्रतिशत प्रतिभागियों ने खुद को धार्मिक बताया. इसके विपरीत कुछ 61 प्रतिशत जर्मनों ने कहा कि धर्म या तो "महत्वपूर्ण नहीं" या "बिल्कुल महत्वपूर्ण नहीं है."
सर्वेक्षण में शामिल युवाओं ने दैनिक जीवन में धर्म की भूमिका पर टिप्पणी करने से परहेज किया. 18 से 29 वर्ष के बीच के 15 प्रतिशत लोगों ने या तो जवाब नहीं दिया या कहा कि वे इससे अनजान हैं. जर्मनी में युवा जीवन में धार्मिक शिक्षाओं के बारे में ज्ञान हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं. 16 प्रतिशत युवाओं ने कहा कि "इस दुनिया को निष्पक्ष बनाने में धर्म एक भूमिका निभाता है."
दुनिया में किस धर्म के कितने लोग हैं?
दुनिया में दस में से आठ लोग किसी ना किसी धार्मिक समुदाय का हिस्सा हैं. एडहेरेंट्स.कॉम वेबसाइट और पियू रिसर्च के 2017 के अनुमानों से झलक मिलती हैं कि दुनिया के सात अरब से ज्यादा लोगों में कितने कौन से धर्म को मानते हैं.
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ईसाई
दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी ईसाइयों की है. विश्व आबादी में उनकी हिस्सेदारी 31.5 प्रतिशत और आबादी लगभग 2.2 अरब है.
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मुसलमान
इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, जिसे मानने वालों की आबादी 1.6 अरब मानी जाती है. विश्व आबादी में उनकी हिस्सेदारी 1.6 अरब है.
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धर्मनिरपेक्ष/नास्तिक
जो लोग किसी धर्म में विश्वास नहीं रखते, उनकी आबादी 15.35 प्रतिशत है. संख्या के हिसाब यह आंकड़ा 1.1 अरब के आसपास है.
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हिंदू
लगभग एक अरब आबादी के साथ हिंदू दुनिया में तीसरा बड़ा धार्मिक समुदाय है. पूरी दुनिया में 13.95 प्रतिशत हिंदू हैं.
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चीनी पारंपरिक धर्म
चीन के पारंपरिक धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या 39.4 करोड़ है और दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी 5.5 प्रतिशत है.
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बौद्ध धर्म
दुनिया भर में 37.6 करोड़ लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. यानी दुनिया में 5.25 प्रतिशत लोग भारत में जन्मे बौद्ध धर्म का अनुकरण कर रहे हैं.
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जातीय धार्मिक समूह/अफ्रीकी पारंपरिक धर्म
इस समूह में अलग अलग जातीय धार्मिक समुदायों को रखा गया है. विश्व आबादी में 5.59 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ इनकी संख्या 40 करोड़ के आसपास है.
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सिख
अपनी रंग बिरंगी संस्कृति के लिए दुनिया भर में मशहूर सिखों की आबादी दुनिया में 2.3 करोड़ के आसपास है
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यहूदी
यहूदियों की संख्या दुनिया भर में 1.4 करोड़ के आसपास है. दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 0.20 प्रतिशत है.
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जैन धर्म
मुख्य रूप से भारत में प्रचलित जैन धर्म के मानने वालों की संख्या 42 लाख के आसपास है.
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शिंटो
यह धर्म जापान में पाया जाता है, हालांकि इसे मानने वालों की संख्या सिर्फ 40 लाख के आसपास है.
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महामारी में धर्म पर विश्वास कितना कायम
सर्वे में शामिल 75 प्रतिशत लोगों ने कहा कि कोरोना महामारी ने उनके विश्वासों को नहीं बदला है. हालांकि 12 प्रतिशत युवा प्रतिभागियों ने कहा कि वैश्विक महामारी से धर्म में उनका विश्वास मजबूत हुआ है. यह दर वृद्ध लोगों की तुलना में दोगुने से भी अधिक है.
सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से केवल 14 फीसदी का मानना है कि धर्म पर्यावरण की रक्षा करने में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है. सर्वेक्षण के नतीजे ऐसे समय में जारी किए गए जब दक्षिणी जर्मन शहर लिंडाऊ में "रिलीजंस फॉर पीस" नामक एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हुआ. सम्मेलन में दुनिया भर के धार्मिक नेता वैश्विक सुरक्षा, शांति, पर्यावरण संरक्षण और मानवीय सहायता परियोजनाओं पर चर्चा में शामिल हुए.
एए/वीके (केएनए, ईपीडी, डीपीए)
यूरोप में ईस्टर मतलब अंडों का दिन
जिस तरह से भारत में बच्चे होली और दिवाली का इंतजार करते हैं, वैसे ही यूरोप में क्रिसमस और ईस्टर का. ईस्टर के दिन ईस्टर बनी यानी खरगोश ढेर सारे तोहफे ले कर आता है.
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परंपरा
ईस्टर वैसे तो यीशू के पुनरुत्थान का पर्व है. लेकिन इसके प्रतीक और परंपराएं उतनी धार्मिक नहीं. ईस्टर के रंग बिरंगे अंडे, खरगोश, मेमने सब ईसाई धर्म की बजाए लोकपरंपरा का हिस्सा बन गए हैं.
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हरा गुरुवार
कैथोलिक चर्च की सभा में याद किया जाता है कि इसी दिन यीशू ने अपने शिष्यों के साथ रोटी खाई थी और एक ही प्याले से पिया था. यह घटना अक्सर चित्रों में दिखती है या चर्च में गीतों में गाई जाती है.
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गुड फ्राइडे
इस दिन यीशू की मृत्यु को याद किया जाता है. इस दिन खास तौर पर मछली खाई जाती है. इसके अलावा "धरती और स्वर्ग" यानी जमीन पर चलने वाले और आसमान में उड़ने वाले जानवरों को नहीं खाया जाता.
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ईस्टर के अंडे
धर्म से जुड़ा हो या नहीं लेकिन बिना रंगीन अंडो के ईस्टर का मजा नहीं. परंपरागत रूप से ये अंडे माता पिता छिपाते हैं और बच्चों को इन्हें ढूंढना होता है. ईसाई धर्म में अंडे पुनरुत्थान का प्रतीक हैं.
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खरगोश
विज्ञान में यह बेतुकी बात है कि एक खरगोश ईस्टर के अंडे लाता है. लेकिन यह वसंत से जुड़ा है. पहले ऐसे उपहार लाने वाले प्राणियों में मुर्गियां या सारस शामिल थे.
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ईस्टर का मेमना
ईसाई धर्म से जुड़ा एक और प्रतीक है भेड़ का. यह बेगुनाह यीशू की यातना दर्शाता है. यह उस घटना की भी याद दिलाता है जब मूसा के नेतृत्व में लोग मिस्र से निकले थे. इस्राएल में लोगों ने मेमने का खून अपने दरवाजों पर लगाया ताकि मौत का फरिश्ता उनकी रक्षा करे.
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ईस्टर की मोमबत्ती
ईस्टर की मोमबत्ती से निकलने वाला प्रकाश यीशू के पुनरुत्थान के कारण उनके भक्तों के ज्ञानोदय को दिखाता है. यह यीशू की मौत पर जीत का प्रतीक है.
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अलाव
जर्मेनिक जाति के लोगों में भी ईस्टर के अलाव की परंपरा प्रचलित है. आग की लपटें अपनी गर्मी से सर्दियों को भगा देती हैं और बुरी आत्माओं को भी. यह आग सौभाग्य लाने वाली मानी जाती है.
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घंटियां
ईस्टर के रविवार को पुनरुत्थान की घोषणा के लिए चर्च की बेल्स बजाई जाती हैं. इस दिन खास प्रार्थनाएं भी आयोजित की जाती हैं.
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ईस्टर का पानी
यह परंपरा अब लुप्त सी हो गई है. पुराने जमाने में किसी नदी से युवतियां इस्टर संडे की रात में पानी भर कर लाती थीं. पानी लाते समय चुप रहने से सुंदरता कायम रहती और उर्वरता बढ़ती, ऐसा माना जाता था.
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सैर
जिसे लोग सैर के तौर पर लेते हैं, ईस्टर के दिन पैदल चलने की यह परंपरा लंबी सर्दियों के बाद वसंत के आगमन के साथ जुड़ी होती थी. कई चर्च ईस्टर वॉक का आयोजन करते हैं.