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भारत को प्रदूषण का भारी आर्थिक नुकसान

२५ नवम्बर २०२४

उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में जहरीला धुआं लोगों की सेहत बिगाड़ने के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी भारी असर डाल रहा है. यह प्रदूषण हर साल लाखों लोगों की जान ले रहा है.

दिल्ली में धुआं
दिल्ली को दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक गिना जाता हैतस्वीर: ARUN SANKAR/AFP/Getty Images

दिल्ली को अक्सर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता है. भारत की राजधानी हर सर्दी में धुएं की चादर से ढक जाती है. वाहन और फैक्ट्री के धुएं के साथ आसपास के राज्यों में पराली जलाने से शहर में धुंध का माहौल बन जाता है.

इस धुंध में पीएम 2.5 जैसे खतरनाक सूक्ष्म कण पाए गए हैं जिनका स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा तय सीमा से 50 गुना ज्यादा है. ये कण फेफड़ों के जरिए खून में पहुंचते हैं और कैंसर जैसी बीमारियां पैदा कर सकते हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में बढ़ते प्रदूषण से देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान हो रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रदूषण से हर साल 95 अरब डॉलर यानी देश की जीडीपी के लगभग 3 प्रतिशत का नुकसान हो रहा है.

अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है असर

इंस्टिट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) की विभूति गर्ग कहती हैं, "प्रदूषण की लागत बहुत बड़ी है. इसे पैसों में नहीं तोला जा सकता."

दिल्ली स्थित सस्टेनेबल फ्यूचर्स कोलैबोरेटिव के भार्गव कृष्णा का कहना है कि प्रदूषण का असर हर स्तर पर देखा जा सकता है. उन्होंने कहा, "काम पर ना जा पाना, बीमारियों का इलाज, समय से पहले मौत, और इससे परिवारों पर पड़ने वाला असर, ये सब प्रदूषण की वजह से हो रहा है."

कुछ रिपोर्ट्स ने इस नुकसान को गिनने की कोशिश की है. 2019 में डलबर्ग नाम की ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म ने बताया था कि भारत में प्रदूषण के कारण 95 अरब डॉलर का नुकसान हुआ. इसका कारण काम की उत्पादकता में कमी, छुट्टियां लेना और समय से पहले मौत है.

यह रकम भारत के बजट का लगभग 3 फीसदी और देश के सालाना स्वास्थ्य खर्च का दोगुना है. रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 में भारत में 3.8 अरब कार्य दिवसों का नुकसान हुआ, जिससे 44 अरब डॉलर की चपत लगी.

प्रदूषण से कंज्यूमर इकोनॉमी पर भी असर पड़ा. स्वास्थ्य समस्याओं की वजह से लोग बाजारों और रेस्तराओं में कम जा रहे हैं. इसका सालाना नुकसान 22 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. दिल्ली, जो इस समस्या का केंद्र है, अकेले अपनी जीडीपी का 6 फीसदी हर साल प्रदूषण के कारण खो रही है.

दिल्ली के रेस्तरां व्यवसायी संदीप आनंद गोयल ने प्रदूषण को "सेहत और संपत्ति दोनों के लिए खतरा" बताया. उन्होंने कहा, "सेहत को लेकर सजग लोग बाहर निकलने से बचते हैं, जिससे हमारा व्यापार प्रभावित होता है."

पर्यटन पर भी इसका असर पड़ा है. सर्दियों का मौसम, जब विदेशी पर्यटक आमतौर पर भारत आते हैं, धुंध की वजह से खराब हो रहा है. इंडियन एसोसिएशन ऑफ टूर ऑपरेटर्स के राजीव मेहरा ने कहा "यह भारत की छवि को नुकसान पहुंचा रहा है." दिल्ली में हर साल औसतन 275 दिन खराब हवा दर्ज की जाती है.

सरकारी प्रयास नाकाफी

सरकार ने प्रदूषण को रोकने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन आलोचकों का कहना है कि ये प्रयास आधे-अधूरे हैं. 2023 की एक वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट में बताया गया कि प्रदूषण का माइक्रो-लेवल असर देश की अर्थव्यवस्था को मैक्रो-लेवल पर प्रभावित कर रहा है.

रिपोर्ट के अनुसार, अगर पिछले 25 सालों में भारत ने प्रदूषण को आधा भी कम किया होता, तो 2023 के अंत तक भारत की जीडीपी 4.5 फीसदी ज्यादा होती. लांसेट हेल्थ जर्नल की एक रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 में प्रदूषण से स्वास्थ्य पर पड़े असर ने देश की जीडीपी को 1.36 फीसदी धीमा कर दिया.

पराली को जलाएं नहीं, उसका फायदा उठाएं

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प्रदूषण रोकने के लिए स्कूलों को बंद करना या निर्माण कार्य पर रोक लगाना जैसे आपातकालीन कदम उठाए गए हैं, लेकिन इनके भी आर्थिक नुकसान हैं. बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष संजीव बंसल कहते हैं, "हर सर्दी में काम रुकने से हमारी समय सीमा गड़बड़ा जाती है. इससे बजट पर असर पड़ता है."

विशेषज्ञों का कहना है कि अगर प्रदूषण पर कदम नहीं उठाए गए, तो स्थिति और खराब हो सकती है. 2023 की डलबर्ग रिपोर्ट ने अनुमान लगाया है कि 2030 तक, जब भारत की औसत उम्र 32 साल होगी, वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या और बढ़ सकती है, इसलिए भारत को प्रदूषण कम करने के लिए ठोस और दीर्घकालिक उपायों की जरूरत है.

वीके/सीके (एएफपी)

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