दुनिया भर में एक ऐसी अमेरिकी स्वास्थ्यकर्मी की चर्चा हो रही है जो आगे रहकर कोरोना वायरस पीड़ितों की देखभाल कर रही थी. उसने अस्पताल के इमरजेंसी रूम में घंटों मरीज की देखभाल की और फिर एक दिन वह खुद मरीज बन गई.
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"जल्द घर आऊंगी, लव यू"- माधवी अया ने अस्पताल के बिस्तर से अपनी बेटी को यह आखिरी मेसेज भेजा था. माधवी का यह मेसेज उनकी 18 वर्षीय इकलौती बेटी मिन्नोली के लिए था. तीन दिन बाद माधवी अया की कोविड-19 के कारण मौत हो गई. 61 साल की माधवी चिकित्सक सहायक थी. वह कोरोना वायरस पीड़ितों का इलाज कर रही थी, लेकिन इलाज करते करते वह खुद मरीज बन गई. 18 मार्च को उन्हें संक्रमित होने के बाद लॉन्ग आइलैंड ज्यूइश मेडिकल सेंटर में भर्ती कराया गया और 11 दिनों बाद उनकी मौत हो गई. उनके परिवार को लगता है कि माधवी को काम के दौरान ही बीमारी हो गई.
माधवी न्यू यॉर्क के ब्रुकलिन के वुडहल अस्पताल के इमरजेंसी कक्ष में काम करती थी. उन्होंने अपने पति और बेटी को बताया था कि उन्हें संक्रमित मरीजों का इलाज सिर्फ सर्जिकल मास्क पहनकर करना पड़ा था. सर्जिकल मास्क हवा के जरिए फैलने वाले संक्रमण से बहुत कम सुरक्षा प्रदान करता है. वुडहल अस्पताल ने माधवी के मामले में और अस्पताल कर्मचारियों को दिए जाने वाले सुरक्षा उपकरणों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है. पूरे अमेरिका में सुरक्षात्मक किट की कमी देखी जा रही है. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने पूरे अमेरिका में ऐसे 51 स्वास्थ्य कर्मियों की पहचान की है जिनकी मौत कोरोना वायरस संक्रमण के कारण हुई या फिर उनमें वायरस के लक्षण पाए गए थे.
कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज के दौरान अमेरिका में कई डॉक्टर, नर्स और टेकनीशियनों की मौत हो चुकी है. इलाज के दौरान वे खुद संक्रमित हो गए. अमेरिका में स्वास्थ्य कर्मचारियों की मौतों का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है और जो आंकड़ा समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने गिना है, असली आंकड़ा उस से कहीं अधिक हो सकता है. मिन्नोली बफेलो स्थित न्यू यॉर्क स्टेट यूनिवर्सिटी की छात्रा है और हृदय रोग विशेषज्ञ बनने की उम्मीद रखती है. मां की मौत के बाद वह कई दिनों तक उसे मैसेज करती रही.
मिन्नोली कहती है, "मैं मैसेज करती रही यह खुद को यह दिलासा देने के लिए कि यह सच नहीं है. उन्हें और जीना था, मुझे ग्रैजुएट होते देखना था, मैं डॉक्टर बनती और मेरी शादी होती और बच्चे होते." माधवी चाहती थी कि वह अपनी बेटी को एक बेहतर जिंदगी दे पाए और इसलिए वह सहायक चिकित्सक बनी. वह ब्रुकलिन अस्पताल में ऐसी नौकरी करती जहां 12 घंटे इमरजेंसी रूम में बिताने पड़ते. 1 मार्च के बाद जब न्यू यॉर्क में कोरोना वायरस के पहले मामले की पुष्टि हुई तब से अब तक ब्रुकलिन में 28,183 लोगों पॉजिटिव पाए गए हैं और 1,869 लोगों की मौत हो चुकी है.
कोरोना से जंग में ये महिलाएं हैं असली हीरो
दुनिया भर के देश कोरोना से लड़ने की कोशिशों में लगे हैं. इस जंग में कई नेताओं को आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ रहा है. लेकिन महिला नेताओं की जम कर तारीफ हो रही है. एक नजर इस जंग की असली हीरो पर.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS/W. Berrazeg
अंगेला मैर्केल
कोरोना संक्रमण के चलते जर्मनी की कम मृत्यु दर दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी हुई है. इस संकट से निपटने के लिए चांसलर मैर्केल की रणनीति की चारों तरफ तारीफ हो रही है. मैर्केल ने शुरुआती दौर में ही चेतावनी दे दी थी कि देश की 60 फीसदी आबादी कोरोना से संक्रमित हो सकती है. औपचारिक रूप से उन्होंने "लॉकडाउन" शब्द का इस्तेमाल भी नहीं किया और लोगों से कहा कि वे समझती हैं कि आजादी कितनी जरूरी है.
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मेरिलिन एडो
कोरोना वायरस से दुनिया का पीछा तब तक पूरी तरह नहीं छूटेगा जब तक इसका टीका नहीं बन जाता. जर्मन सेंटर फॉर इन्फेक्शन रिसर्च की प्रोफेसर मेरिलिन एडो अपनी टीम के साथ मिल कर कोरोना वायरस से बचाने का टीका विकसित करने में लगी हैं. इससे पहले वे इबोला और मर्स के टीके भी विकसित कर चुकी हैं.
तस्वीर: Privat
जेसिंडा आर्डर्न
14 मार्च को न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने घोषणा की कि देश में प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को दो हफ्तों के लिए सेल्फ आइसोलेट करना होगा. उस वक्त देश में कोरोना के महज छह मामले सामने आए थे. आंकड़ा सौ के पार जाते ही उन्होंने देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी. बच्चों को उन्होंने संदेश दिया कि वे जानती हैं कि ईस्टर का खरगोश जरूरी है लेकिन इस साल उसे अपने घर में ही रहना होगा.
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जुंग इउन केओंग
दक्षिण कोरिया के सेंटर फॉर डिजीज एंड प्रिवेंशन की अध्यक्ष जुंग इउन केओंग को नेशनल हीरो घोषित किया गया है. स्थानीय मीडिया के अनुसार कोरोना संकट की शुरुआत से केओंग दिन रात काम कर रही हैं, ना सो रही हैं और ना ही दफ्तर से बाहर निकल रही हैं. उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि देश भर टेस्टिंग मुमकिन हो पाई और संक्रमण का फैलाव रुक सका.
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मेट फ्रेडेरिक्सन
डेनमार्क की प्रधानमंत्री ने मार्च की शुरुआत से ही कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए थे. 14 मार्च तक देश की सीमाओं को सील भी कर दिया गया था. डेनमार्क में अब तक कोरोना संक्रमण के 5,800 मामले ही सामने आए हैं.
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त्साई इंग वेन
चीन के बेहद करीब होते हुए भी ताइवान ने खुद को कोरोना से बचा लिया. वहां कोरोना संक्रमण के चार सौ से भी कम मामले सामने आए हैं, जबकि जानकारों का मानना था कि ताइवान सबसे बुरी तरह प्रभावित देशों में से एक हो सकता था. वेन की सरकार ने वक्त रहते चीन, हांगकांग और मकाउ से आने वाले लोगों पर ट्रैवल बैन लगा दिया था.
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बढ़ते मामले
जॉन्स हॉप्किंस यूनिवर्सिटी के मुताबिक अमेरिका में कोरोना वायरस के कारण अब तक 30,844 लोगों की मौत हो चुकी है और 6,39,055 लोग संक्रमित हुए हैं. अमेरिका में शहर के शहर कोरोना के सामने लाचार होते दिख रहे हैं. इनमें सबसे बुरा हाल न्यू यॉर्क का है, जहां 10,899 लोगों की सिर्फ इस महामारी के कारण जान जा चुकी है.अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है कि कोरोना के मामले में देश ने शिखर को पार कर लिया है. उन्होंने उम्मीद जताई की कि देश के कुछ राज्य जल्द ही खुल जाएंगे. व्हाइट हाउस में दैनिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप ने कहा कि राज्यों के खुलने को लेकर नए दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे. उन्होंने साथ ही बताया कि जो राज्य कम प्रभावित हैं वहां प्रतिबंधों में 1 मई से ढील दी जाएगी. ट्रंप और जी 7 के नेता गुरुवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कोरोना वायरस महामारी को लेकर अंतरराष्ट्रीय समन्वय पर चर्चा करने वाले हैं.
अमेरिका में कोरोना वायरस का पहला मामला जनवरी के आखिरी दिनों में सामने आया. लेकिन अब वहां इस वायरस से संक्रमण के केसों की तादाद छह लाख की तरफ बढ़ रही है. आखिर ऐसा हुआ कैसे?
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गंभीर स्थिति
अमेरिका में कोरोना विस्फोट की कई वजहें हैं, हालांकि कई जानकार आशंका जता रहे हैं कि सबसे बदतर स्थिति अभी आनी बाकी है. इस वक्त अमेरिका में इस वायरस के सबसे ज्यादा मामले हैं.
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ट्रंप की चूक
जब अमेरिका में वायरस फैलना शुरू हुआ तो राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पर इसे गंभीरता से ना लेने के आरोप लगे. उन्होंने कहा कि जरूरी नहीं कि ये वायरस ज्यादा लोगों में फैले.
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सुस्त टेस्टिंग
अमेरिका में सबसे पहले कोविड19 बीमारी पश्चिमी तट पर स्थित वॉशिंगटन और कैलीफोर्निया जैसे राज्यों में शुरू हुई. टेस्टिंग की रफ्तार धीमी होने की वजह से सभी संक्रमित लोगों का पता लगाने में देरी हुई.
तस्वीर: Imago-Images/ZUMA Wire/C. Comton
सुस्त टेस्टिंग
अमेरिका में सबसे पहले कोविड19 बीमारी पश्चिमी तट पर स्थित वॉशिंगटन और कैलीफोर्निया जैसे राज्यों में शुरू हुई. टेस्टिंग की रफ्तार धीमी होने की वजह से सभी संक्रमित लोगों का पता लगाने में देरी हुई.
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कानूनी अड़चनें
सरकार ने शुरू में नियामक अड़चनों में ढील देने से इनकार कर दिया. इसके चलते अमेरिकी राज्य और स्थानीय स्वास्थ्य विभाग विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के मुताबिक अपनी खुद की टेस्टिंग किट तैयार नहीं कर पाए.
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खराब किटें
सभी शुरुआत सैंपलों को टेस्ट के लिए अटलांटा के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) में भेजा गया. बाद में सीडीसी की तरफ से राज्यों को जो टेस्ट किट भेजी गईं, वे भी खराब थी. इससे टेस्टिंग में और विलंब हुआ.
तस्वीर: Imago Images/Zuma/D. Santiago
ढीला रवैया
अमेरिका में पहला मामले सामने आने के एक महीने बाद 29 फरवरी को वहां इस वायरस से पहली मौत हुई. तब कहीं जाकर अमेरिकी सरकार ने प्रतिबंध हटाया और प्राइवेट सेक्टर इस मामले में सक्रिय हो सका.
तस्वीर: picture-alliance/AP/Senate Television
देरी ने की गड़बड़
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में इमरजेंसी मेडिसिन के डायरेक्टर डॉ गेबोर केलेन कहते हैं, "अगर हम जल्दी ज्यादा से ज्यादा मामलों का पता लगा लेते तो वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित जगहों को बंद कर सकते थे."
तस्वीर: AFP
बचाव
अमेरिकी अधिकारी अपने रुख का बचाव करते हैं. वह बार बार कह रहे हैं कि दक्षिण कोरिया में टेस्ट के जिस तरीके को शुरू में सबसे प्रभावी बताया गया, उससे कभी कभी गलत नतीजे भी सामने आए. रिपोर्ट: एके/एनआर (एएएफपी)