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प्रकृति और पर्यावरणसंयुक्त राज्य अमेरिका

क्या नई जगह बसाकर बचाए जा सकेंगे विलुप्त हो रहे पेड़-पौधे

१८ जनवरी २०२३

क्या संकटग्रस्त जीवों को बचाने के लिए उन्हें किसी सुरक्षित जगह पर ले जाना सही होगा? ऐसी नई जगह, जहां वो कुदरती तौर पर न पाए जाते हों? हालांकि यूरोप में कई जगहों पर पुरानी स्थानीय प्रजातियां वापस लाई जा रही हैं.

क्लाइमेट चेंज के कारण दुनियाभर में कई प्रजातियों के प्राकृतिक आवास खत्म हो रहे हैं. कहीं सिमटते जंगलों के कारण, कहीं समुद्र के बढ़ते जलस्तर, तो कहीं बढ़ते तापमान की वजह से कई प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. हर साल बड़ी संख्या में जैव विविधता खत्म हो रही है. तस्वीर में नजर आ रहे हैं दो लेसर वाइट फ्रंटेड गूस.
क्लाइमेट चेंज के कारण दुनियाभर में कई प्रजातियों के प्राकृतिक आवास खत्म हो रहे हैं. कहीं सिमटते जंगलों के कारण, कहीं समुद्र के बढ़ते जलस्तर, तो कहीं बढ़ते तापमान की वजह से कई प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. हर साल बड़ी संख्या में जैव विविधता खत्म हो रही है. तस्वीर में नजर आ रहे हैं दो लेसर वाइट फ्रंटेड गूस. तस्वीर: C. van Rijswij/blickwinkel/AGAMI/picture alliance

संकटग्रस्त प्रजातियों को बचाने के इस तरीके पर लंबे समय से विचार हो रहा है. पहले यह कभी काफी विवादित और वर्जित माना जाता था. लेकिन जलवायु परिवर्तन के तेजी से बढ़ते असर के बीच कई प्रजातियों के कुदरती आवासों पर खतरा मंडरा रहा है. ऐसे में जीवों को बचाने के लिए उन्हें किसी और जगह पर ले जाने का समाधान तेजी पकड़ रहा है.

ऐसी एक कोशिश हवाई में हो रही है. यहां समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण सीबर्ड प्रजातियों का वजूद खतरे में है. इन्हें बचाने के लिए वैज्ञानिक इन प्रजातियों को सैकड़ों मील दूर एक नए द्वीप पर ले जा रहे हैं. फिलहाल यह प्रयोग उत्तर-पूर्वी हवाई के टेर्न द्वीप पर ट्रीस्ट्रम्स स्टॉर्म पेट्रल को बचाने पर केंद्रित है. यह सीबर्ड की एक प्रजाति है. यह द्वीप समुद्रस्तर से बस छह फुट ही ऊपर है.

खतरे में पड़े जीवों को बचाने की कोशिश

करीब 40 चूजों को 805 किलोमीटर दूर हवाई के ही ओवाहो में शिफ्ट किया गया है. इनके लिए वहां कृत्रिम गड्ढे खोदे गए हैं. कई अन्य पक्षियों, छिपकलियों, तितलियों और यहां तक कि फूलों को बचाने के लिए भी इसी तरह के रीलोकेशन अभियानों का सुझाव दिया जा रहा है. ऐसे में ट्रीस्ट्रम्स स्टॉर्म पेट्रल से जुड़े अभियान की कामयाबी से भविष्य में ऐसी कोशिशों के लिए नई राह खुल सकती है.

एरिक वेंडरवैर्फ, गैर-सरकारी संगठन "पैसिफिक रिम कंजर्वेशन" में बायोलॉजिस्ट हैं. इस अभियान पर बात करते हुए वह बताते हैं, "टेर्न द्वीप बह रहा है. जलवायु परिवर्तन के कारण किसी प्रजाति को उसके पारंपरिक क्षेत्रीय दायरे से बाहर ले जाने जैसे तरीकों की जरूरत बढ़ रही है."

इस तरह से तापमान में बदलाव आने की प्रक्रिया पहले भी हुई है, लेकिन तब ऐसा परिवर्तन सदियों के दौरान धीरे-धीरे आता था. मौजूदा समय में कुछ ही दशकों के भीतर हम बड़े बदलाव देख रहे हैं. तस्वीर में: घाना में गल्फ ऑफ गिनी में गायब हो रहे समुद्रतट. क्लाइमेट चेंज के कारण कई जगहों पर समुद्र के बढ़ते जलस्तर से इलाकों का अस्तित्व भी संकट में है. तस्वीर: DW

जैवविविधता क्या है और क्यों इतनी अहम है?

कानून में बदलाव से आसान हो सकती है प्रक्रिया

बाइडेन प्रशासन द्वारा अमेरिका के एंडेंजर्ड स्पीशीज एक्ट में बदलाव किए जाने का प्रस्ताव है. इन बदलावों के लागू होने पर सबसे ज्यादा खतरे का सामना कर रही कुछ प्रजातियों को रीलोकेट कर पाना आसान हो जाएगा. हालांकि इससे जुड़ी एक बड़ी आशंका भी है. कई जानकार मानते हैं कि जिस तरह घुसपैठिये पौधे और जानवरों से स्थानीय ईको सिस्टम के लिए खतरा पैदा होता है, वैसा ही नुकसान इस अभियान से भी देखने को मिल सकता है.

अमेरिका के वाइल्डलाइफ अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि इस अभियान के तहत, जलवायु परिवर्तन के कारण अस्तित्व का संकट झेल रही प्रजातियों के एक छोटे हिस्से को ही रीलोकेट किया जाए. हालांकि पश्चिमी प्रांतों में रिपब्ल्किन पार्टी इस प्रस्ताव का विरोध कर रही है. उनकी दलील है कि "घुसपैठिया प्रजातियों" को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर ले जाना पारिस्थितिकीय संकट पैदा कर सकता है. एंडेंजर्ड स्पीशीज एक्ट में बदलाव का प्रस्ताव जून 2023 में पूरा हो जाने का अनुमान है.

लुप्त होने का गंभीर खतरा झेल रहे जीवों में 700 नये जीव शामिल

जलवायु परिवर्तन के कारण अप्रत्याशित बदलाव

जैसन मक्लाक्लेन, यूनिवर्सिटी ऑफ नॉट्रे डैम में बायोलॉजिस्ट हैं. वह कहते हैं, "यह प्रस्ताव प्रजातियों की सुरक्षा और संरक्षण के बारे में हमारे सोचने के तरीके में आ रहे बड़े बदलाव को दिखाता है." हालांकि यह मामला केवल संरक्षित प्रजातियों तक सीमित नहीं है. मक्लाक्लेन बताते हैं कि इससे यह सवाल भी उठता है कि किसे "स्थानीय प्रजाति" कहा जाना चाहिए. क्योंकि बढ़ते तापमान के कारण कुछ प्रजातियां ऊंचाई वाले इलाकों या ध्रुव के नजदीकी हिस्सों में जाने के लिए मजबूर हो रही हैं.

इस तरह से तापमान में बदलाव आने की प्रक्रिया पहले भी हुई है, लेकिन तब ऐसा परिवर्तन सदियों के दौरान धीरे-धीरे आता था. मौजूदा समय में कुछ ही दशकों के भीतर हम बड़े बदलाव देख रहे हैं. इनसे ईको सिस्टम बेहद तेजी से प्रभावित हो रहा है. मक्लाक्लेन कहते हैं, "समय के साथ हमें इस बारे में ऐसे सोचना होगा, जिससे मुझ समेत बाकी लोग असहज हो सकते हैं. यह कहना कि ये प्रजाति ठीक है और ये प्रजातियां ठीक नहीं हैं, यह सही नहीं होगा."

पहले कभी इतनी तेजी से जीव खत्म नहीं हुए

खतरे में पड़े जीवों को बचाने का दबाव

स्टॉर्म पेट्रल के संरक्षण की कोशिशों पर बात करते हुए एरिक वेंडरवैर्फ बताते हैं, "इससे पहले कि उनकी आबादी बेहद कम हो जाए, वैज्ञानिकों को कदम उठाने होंगे. अगर हमने कुछ नहीं किया, तो 30 साल के भीतर ये पक्षी निश्चित तौर पर बेहद दुर्लभ हो जाएंगे."

पारंपरिक आवास के बाहर जीवों को रीलोकेट करना अब भी सामान्य प्रक्रिया नहीं है.

अमेरिकी वन्यजीव अधिकारियों ने कई प्रजातियों के जीवों और पौधों की पहचान की है, जिन्हें जलवायु परिवर्तन से खतरा है. मगर फिलहाल इन्हें कहीं और बसाने का प्रस्ताव नहीं है. फिश एंड वाइल्डलाइफ सर्विस के प्रवक्ता कैरन आर्मस्ट्रॉन्ग बताते हैं, "जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में कुछ प्रजातियों के आवास का दायरा बदल सकता है. या हो सकता है कि उनके मौजूदा कुदरती ठिकाने घुसपैठिया प्रजातियों के विस्तार के कारण रहने के अनुकूल ना रहें. हमारा मानना है कि प्रयोग के तौर पर प्रजातियों को उनके पारंपरिक दायरे से बाहर बसाना संरक्षण का एक संभावित तरीका बन सकता है."

किंगफिशरों पर अहम प्रयोग

फिलहाल चल रही कोशिशों के अंतर्गत अमेरिकी वन्यजीव अधिकारी ऐसे ही एक और प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं. उनकी योजना गुआम में प्राकृतिक तौर पर पाए जाने वाले पक्षियों से जुड़ी है. 1950 में सेना के एक मालवाहक जहाज के रास्ते सांपों की एक घुसपैठिया प्रजाति गुआम पहुंची. ब्राउन ट्री स्नेक नाम की इस प्रजाति के सांप ऑस्ट्रेलिया के तटीय इलाकों, इंडोनेशिया और पापुआ न्यू गिनी जैसे इलाकों में पाए जाते हैं. मगर गुआम में इनका अस्तित्व नहीं था. बाद के सालों में इन सांपों के फैलने के कारण किंगफिशर पक्षियों की तादाद काफी घट गई.

उन्हें बचाने के लिए 1980 के दशक में गुआम के स्थानीय किंगफिशर पक्षियों में आखिरी 29 को पकड़ा गया. इसके बाद उन्हें सुरक्षित स्थान पर पालकर प्रजनन करवाया गया. एक प्रस्ताव के तहत अब 9 किंगफिशरों को करीब 6,000 किलोमीटर दूर पैलमायरा द्वीप पर छोड़ने की योजना है. अगर ये रीलोकेशन कामयाब रहा, तो ये किंगफिशर "वन्यजीवन में विलुप्त" हो चुकी श्रेणी से वापस "क्रिटिकली एंडेंजर्ड" में आने वाले बेहद चुनिंदा प्रजातियों में से एक होंगे.

एसएम/एमजे (एपी)

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