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पिछड़ों के 'सूरमा' कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव का निधन

१० अक्टूबर २०२२

पूर्व रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का 82 साल की उम्र में निधन हो गया है. यादव पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण और सांप्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष की राजनीति की लंबी विरासत छोड़ गए हैं.

मुलायम सिंह यादव
मुलायम सिंह यादवतस्वीर: imago images/Dinodia Photo

मुलायम सिंह यादव पिछले कई दिनों से गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल की आईसीयू में भर्ती थे. वे पिछले कई सालों से स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से प्रभावित थे, जिनकी वजह से वह सक्रिय राजनीति से भी दूर थे. हालांकि करीब छह दशक तक उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद वो राजनीति पर अपनी गहरी छाप छोड़ गए हैं.

क्या कांग्रेस, क्या बीजेपी, क्या बसपा और क्या लेफ्ट, उनके निधन पर सभी पार्टियां शोक मना रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई ट्वीटों में यादव को श्रद्धांजलि दी है. मोदी ने यादव को आपातकाल के दौरान लोकतंत्र के एक प्रमुख सिपाही के रूप में याद किया.

कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यादव के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि "समाजवादी विचारों की एक मुखर आवाज आज मौन हो गई". सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने यादव को पिछड़ों और अधिकारहीन लोगों के हितों का "सूरमा" बताया और यह भी कहा कि यादव "धार्मिक कट्टरता" के खिलाफ भी दृढ़तापूर्वक लड़ते रहे.

पहलवान से रक्षा मंत्री तक

यादव का जन्म भारत की आजादी से छह साल पहले 22 नवंबर 1939 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में हुआ था. उत्तर प्रदेश को उस समय यूनाइटेड प्रॉविन्सेज के नाम से जाना जाता था.

पेशे से पहलवान और फिर अध्यापक रहे यादव ने राम मनोहर लोहिया और राज नारायण जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के नेतृत्व में राजनीति में अपना शुरुआती सफर तय किया. वे 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए और फिर नौ बार सदन के सदस्य रहे.

1989 में वे जनता दल के नेता के रूप में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. यह पहली बार था जब कांग्रेस प्रदेश में सत्ता से बाहर हुई थी. उत्तर प्रदेश में यह कांग्रेस के लिए सत्ता से वनवास जैसा साबित हुआ. उसके बाद कांग्रेस आज तक उत्तर प्रदेश में सरकार नहीं बना पाई है.

हालांकि यादव यहां से राजनीति में ऊपर की सीढ़ियां ही चढ़ते गए. 1990 में जब चंद्र शेखर ने जनता दल (समाजवादी) पार्टी बनाई तो यादव उसमें शामिल हो कर मुख्यमंत्री बने रहे. 1992 में उन्होंने अपनी ही समाजवादी पार्टी की स्थापना की और 1993 में फिर से मुख्यमंत्री बन गए.

राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान

2003 में वो तीसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उस समय वो लोक सभा के सदस्य थे और मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्होंने जनवरी 2004 में गुनौर विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा. उस समय प्रदेश में उनकी और उनकी पार्टी इतनी लोकप्रिय हो चुकी थी कि उन्होंने उपचुनाव में करीब 94 प्रतिशत मत हासिल किए और रिकॉर्ड जीत दर्ज की.

उत्तर प्रदेश की राजनीति के साथ साथ ही यादव का केंद्र की राजनीति में भी दखल रहा. उन्होंने लोकसभा चुनावों में भी सात बार जीत दर्ज की. 1996 में जब संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी तो उनकी पार्टी भी मोर्चा का हिस्सा थी. उन्हें उस सरकार में रक्षा मंत्री बनाया गया.

आपातकाल के विरोध, पिछड़े वर्गों के राजनीतिक सशक्तिकरण और सांप्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष को मुख्य रूप से उनका राजनीतिक योगदान माना जाता है. उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले उत्तर प्रदेश की राजनीति में तथाकथित ऊंची जातियों का ही वर्चस्व था, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक तोड़ दिया.

उनके कार्यकाल में पिछड़ी जातियों और धार्मिक अल्पसंख्यकों की राजनीति में भागीदारी बढ़ी. लगभग उसी समय बिहार में लालू यादव के युग की शुरुआत हुई थी और दोनों नेताओं को एमवाई यानी मुस्लिम यादव समीकरण का जनक कहा गया.

कई विवादों में घिरे रहे

इन दोनों की नीतियों की बदौलत उस समय केंद्र में सत्ता की कुंजी माने जाने वाले राज्यों बिहार और उत्तर प्रदेश में मुसलमानों और यादवों का एक संयुक्त चुनावी गठबंधन बना. इसी समय राम मंदिर आंदोलन की बदौलत बीजेपी हिंदी पट्टी की राजनीति में एक नई शक्ति बन कर उभर रही थी और दोनों यादव मुख्यमंत्रियों का इस आंदोलन के विरोध में ऐतिहासिक योगदान रहा.

अक्टूबर 1990 में यादव के आदेश पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के तोड़े जाने से पहले उन्मादी कारसेवकों पर 72 घंटों में दो बार गोलियां चला दी थीं. आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक गोलीबारी में कम से कम 50 लोग मारे गए थे. 2017 में यादव ने कहा था कि उस समय "देश की एकता के लिए और भी मारना पड़ता तो सुरक्षा बल मारते."

पुलिस से गोली चलवाने की एक और घटना से उठा विवाद मुलायम का जिंदगी पर पीछा करता रहा. अक्टूबर 1994 में मुजफ्फरनगर में उत्तर प्रदेश पुलिस ने उत्तराखंड आंदोलन के कुछ कार्यकर्ताओं पर गोली चला दी थी, जिसमें कम से कम छह लोग मारे गए थे और कई घायल हो गए थे.

यादव के आखिरी समय तक लोग उनसे इस घटना के लिए माफी मांगने की मांग करते रहे. यादव को अंग्रेजी शिक्षा और कंप्यूटर के इस्तेमाल के विरोध के लिए भी जाना जाता है.

बाद में उनके पुत्र अखिलेश यादव ने जब उनकी विरासत अपने हाथ में ली तो नए जमाने के साथ चलते हुए नजर आने के लिए समाजवादी पार्टी ने कंप्यूटरों और अंग्रेजी शिक्षा की तरफ अपना रवैया नरम किया.

मुलायम सिंह यादव पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर भी असंवेदनशील होने का आरोप लगा. 2014 में उन्होंने बलात्कार के लिए मृत्युदंड की सजा के प्रावधान का विरोध करते हुए कहा था,"लड़के, लड़के हैं...गलती हो जाती है."

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