बारिश से जुड़ी बीमारी और कोरोना की मुसीबत
१५ जून २०२०देश की आर्थिक राजधानी मुंबई पहले से ही कोरोना के मरीजों के बढ़ते मामले को लेकर जूझ रही है और अब मानसून को लेकर डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मचारियों के सामने नया संकट पैदा हो सकता है. मुंबई में पहले से ही मेडिकल स्टाफ और क्रिटिकल केयर बेड की कमी है और विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि मुंबई की स्थिति और खराब हो सकती है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि मलेरिया, डेंगू, लेप्टोस्पायरोसिस और इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियां आने वाले महीनों में बढ़ सकती हैं.
मुंबई स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल (केईएम) कॉलेज में सामुदायिक चिकित्सा की प्रोफेसर कमाक्षी भाटे के मुताबिक, "मुंबई को मानसून में एक और संकट से निपटना होगा." जून से लेकर सितंबर के समय में बारिश से जुड़ी बीमारियों के कारण अस्पताल में मरीजों की संख्या बढ़ जाती है. बारिश के पानी से भरी सड़कें हर साल भारत में मानसून के दौरान सामान्य तस्वीर है. घनी आबादी वाले मुंबई में बारिश के कारण जिंदगी थम सी जाती है. जगह-जगह जलभराव के कारण बीमारियां भी बढ़ जाती है. स्थानीय एनजीओ प्रजा फाउंडेशन ने एक रिपोर्ट में कहा कि सिर्फ मुंबई के सरकारी अस्पतालों से इकट्ठा किए आंकड़ों के मुताबिक शहर में 2018 में 32,000 मलेरिया और डेंगू केस दर्ज किए गए थे. लेकिन एनजीओ का कहना है कि उसके घर-घर जाकर किए गए सर्वे बताते हैं कि उसी साल दो लाख से अधिक मामले इन दो बीमारियों के मिले.
इस साल शहर के अस्पताल पहले से ही कोरोना वायरस के मरीजों से जूझ रहे हैं. मुंबई पर सबसे अधिक कोविड-19 की मार पड़ी है. मुंबई महापालिका के अतिरिक्त आयुक्त सुरेश ककाणी कहते हैं कि महापालिका क्लीनिक और डिस्पेंसरी को दोबारा खोलने को कह रही है. लॉकडाउन के दौरान क्लीनिक और डिस्पेंसरी बंद हो गई थी. इसी के साथ ककाणी कहते हैं कि नालियों की सफाई की जा रही है और साथ ही साथ घरों में जमा होने वाला पानी की जांच भी हो रही है जिससे पता चल सके कहीं लार्वा तो नहीं बन रहा है. महापालिका का कहना है कि बड़े अस्पताल कोविड-19 से जुड़े मामले से निपटेंगे तो वहीं छोटे नर्सिंग होम अन्य बीमारियों से निपटने का काम करेंगे.
स्थानीय अस्पतालों में पहले से ही स्टाफ की कमी है स्वास्थ्य विशेषज्ञों को आशंका है कि इन बीमारियों के झुग्गी बस्ती में बढ़ने से हेल्थकेयर नेटवर्क पर और अधिक दबाव पड़ेगा क्योंकि वे पहले से कोविड-19 से जूझ रहे हैं. स्थानीय एनजीओ जन स्वास्थ्य अभियान के कार्यकर्ता ब्राइनेल डिसूजा कहते हैं, "निचले इलाकों में कई झुग्गी बस्तियां हैं. वहां बाढ़ और बीमारियों का खतरा बना रहता है." डिसूजा कहते हैं कि मुंबई की आबादी के मुताबिक कोविड-19 के हल्के लक्षण के लिए आइसोलेशन बेड मरीजों के लिए मौजूद हैं. उनके मुताबिक शहर को ऑक्सीजन और वेटिंलेटर से युक्त और बेड्स की जरूरत है.
एए/सीके (रॉयटर्स)
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