लोगों के दिमाग में चिप लगाने को तैयार हैं इलॉन मस्क
२१ सितम्बर २०२३
इलॉन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक मानव मस्तिष्क में चिप लगाने के लिए परीक्षण करने जा रही है. अगर ये परीक्षण कामयाब होते हैं तो कई लाइलाज बीमारियों के इलाज मिल सकते हैं.
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खरबपति उद्योगपति इलॉन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक का कहना है कि उसे पैरालिसिस के मरीजों के दिमाग में चिप लगाने के प्रयोग करने की अनुमति मिल गयी है. एक निष्पक्ष समीक्षा बोर्ड ने यह मंजूरी दी है.
न्यूरालिंक ऐसे लकवाग्रस्त लोगों पर परीक्षण करना चाहती है जिन्हें सर्वाइकल स्पाइनल कॉर्ड या एमिट्रॉफिक लेटरल स्कलेरोसिस के कारण पैरलिसिस हुआ है. न्यूरालिंक ने यह नहीं बताया है कि इस ट्रायल में कितने लोग शामिल होंगे लेकिन इस अध्ययन को पूरा होने में छह साल तक का समय लग सकता है.
अंतरिक्ष में दिमाग पढ़ने वाला हेल्मेट
इस्राएल की एक कंपनी इस खास तरह के हेल्मेट को अंतरिक्ष भेज रही है, जहां अंतरिक्ष यात्रियों के मस्तिष्क का डेटा जमा किया जाएगा. क्यों खास है यह हेल्मेट...
तस्वीर: Nir Elias/REUTERS
खास मिशन पर स्पेस जाएगी हेल्मेट
यह मस्तिष्क की निगरानी करने वाली एक खास तरह की हेल्मेट है जिसे अंतरिक्ष में काम करने के लिए बनाया गया है.
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दस दिन का मिशन
यह हेल्मेट 3 अप्रैल को अंतरिक्ष की यात्रा पर जा रही है, जहां दस दिन तक इसका इस्तेमाल किया जाएगा.
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इस्राएली कंपनी का प्रयोग
इस हेल्मेट को बनाया है इस्राएल की कंपनी ब्रेन डॉट स्पेस ने. इसमें खास तरह की तकनीक इस्तेमाल की गई है जो अंतरिक्ष यात्रियों की मस्तिष्क गतिविधियों का आंकलन करेगी.
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दिमागी गहराइयों में उतरने की कोशिश
ब्रेन डॉट स्पेस के सीईओ और सह संस्थापक याइर लेवी ने रॉयटर्स को बताया, “हमारा मकसद है इंसानी दिमाग की गहराइयों तक पहुंचना. हम मस्तिष्क की भाषा तैयार करना चाहते हैं जिसके जरिए डॉक्टर, शोधकर्ता और यहां तक कि ऐप डिवेलपर्स बेहतर उत्पाद और सेवाएं दे सकें.”
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460 ब्रश
इस हेल्मेट में ईसीजी की सुविधा है और साथ ही खोपड़ी के संपर्क में रहने वाले 460 ब्रश हैं. यही ब्रश मस्तिष्क से डेटा जमा करेंगे.
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इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में होगा प्रयोग
यह प्रयोग स्पेस एक्स की फ्लाइट का हिस्सा है जो 3 अप्रैल को दस दिन के मिशन पर रवाना हो सकती है.
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इस परीक्षण के लिए एक रोबोट का इस्तेमाल किया जाएगा जो सर्जरी कर मरीजों के दिमाग में ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (बीसीआई) इंप्लांट कर देगा. न्यूरालिंक ने कहा कि बीसीआई चिप मस्तिष्क के उस हिस्से में लगाया जाएगा जो शरीर की गति को नियंत्रित करता है. कंपनी का शुरुआती लक्ष्य लोगों को सिर्फ अपनी सोच से कंप्यूटर के कर्सर या कीबोर्ड को कंट्रोल करने लायक बनाना है.
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क्रांतिकारी तकनीक
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कंपनी दस मरीजों में यह चिप लगाना चाहती थी लेकिन अमेरिकी एजेंसी फूड एंड ड्रग कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने लोगों की सुरक्षा को लेकर चिंता जतायी जिसके बाद कंपनी कम संख्या की मंजूरी की कोशिश कर रही थी.
हालांकि मई में कंपनी ने कहा था कि उसे एफडीए से मानव परीक्षणों के लिए इजाजत मिल गयी है. लेकिन तब एफडीए जानवरों पर किये गये परीक्षणों में अनियमितताओं को लेकर कंपनी की जांच कर रहा था.
हमारा दिमाग कैसे काम करता है
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इस प्रोजेक्ट को लेकर इलॉन मस्क ने खासा उत्साह दिखाया है. वह कहते रहे हैं कि उनकी यह तकनीक मोटापा, ऑटिज्म, डिप्रेशन और स्कित्सोफ्रेनिया जैसी बीमारियों का कामयाब इलाजसाबित हो सकती है.
लेकिन बीसीआई अगर इंसानों के लिए सुरक्षित साबित हो भी जाती है, तब भी विशेषज्ञों को लगता है कि इसके व्यवसायिक इस्तेमाल की इजाजत मिलने में एक दशक से ज्यादा समय लग सकता है.
क्या है बीसीआई?
न्यूरालिंक ने अपनी वेबसाइट पर बीसीआई के बारे में जो जानकारी दी है उसके मुताबिक जो लोग लकवे के कारण अपने शरीर के अंगों की गति पर नियंत्रण खो बैठते हैं, उन्हें चिप के जरिये कंप्यूटर और मोबाइल इस्तेमाल करने की क्षमता मिल सकती है. ऐसा वे सिर्फ सोचने से कर पाएंगे. भविष्य में ये क्षमताएं देखने, हाथ-पांव चलाने, बोलने और अनुभव करने तक भी जा सकती हैं.
कंपनी कहती है कि उसका एन1 चिप एक ऐसे पदार्थ से बने खोल में होगा जिसे शरीर के अंदर सुरक्षित रूप से लगाया जा सकता है. कंपनी कहती है कि यह चिप "शरीर के अंदर के हालात से कहीं ज्यादा खराब और विपरीत हालात” को झेल सकता है. एन1 चिप में एक छोटी सी बैट्री लगी होती है जिसे बिना किसी तार के, बाहर से ही चार्ज किया जा सकता है. इसके लिए एक छोटा सा चार्जर प्रयोग होता है जो कहीं से भी काम कर सकता है.
ऐसा है दिमाग पर सोशल मीडिया का असर
क्या आपने भी कई बार सोचा है कि हर वक्त मोबाइल या कंप्यूटर पर फेसबुक, ट्विटर वगैरह नहीं देखा करेंगे, लेकिन ऐसा कर नहीं सके हैं? सोशल मीडिया एक क्रांति है लेकिन ये भी तो जानें कि वो आपके दिमाग के साथ क्या कर रहा है. देखिए.
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खुद पर काबू नहीं?
विश्व की लगभग आधी से ज्यादा आबादी तक इंटरनेट पहुंच चुका है और इनमें से कम से कम दो-तिहाई लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. 5 से 10 फीसदी इंटरनेट यूजर्स ने माना है कि वे चाहकर भी सोशल मीडिया पर बिताया जाने वाला अपना समय कम नहीं कर पाते. इनके दिमाग के स्कैन से मस्तिष्क के उस हिस्से में गड़बड़ दिखती है, जहां ड्रग्स लेने वालों के दिमाग में दिखती है.
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लत लग गई?
हमारी भावनाओं, एकाग्रता और निर्णय को नियंत्रित करने वाले दिमाग के हिस्से पर काफी बुरा असर पड़ता है. सोशल मीडिया इस्तेमाल करते समय लोगों को एक छद्म खुशी का भी एहसास होता है क्योंकि उस समय दिमाग को बिना ज्यादा मेहनत किए "इनाम" जैसे सिग्नल मिल रहे होते हैं. यही कारण है कि दिमाग बार बार और ज्यादा ऐसे सिग्नल चाहता है जिसके चलते आप बार बार सोशल मीडिया पर पहुंचते हैं. यही लत है.
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मल्टी टास्किंग जैसा?
क्या आपको भी ऐसा लगता है कि दफ्तर में काम के साथ साथ जब आप किसी दोस्त से चैटिंग कर लेते हैं या कोई वीडियो देख कर खुश हो लेते हैं, तो आप कोई जबर्दस्त काम करते हैं. शायद आप इसे मल्टीटास्किंग समझते हों लेकिन असल में ऐसा करते रहने से दिमाग "ध्यान भटकाने वाली" चीजों को अलग से पहचानने की क्षमता खोने लगता है और लगातार मिल रही सूचना को दिमाग की स्मृति में ठीक से बैठा नहीं पाता.
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क्या फोन वाइब्रेट हुआ?
मोबाइल फोन बैग में या जेब में रखा हो और आपको बार बार लग रहा हो कि शायद फोन बजा या वाइब्रेट हुआ. अगर आपके साथ भी अक्सर ऐसा होता है तो जान लें कि इसे "फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम" कहते हैं और यह वाकई एक समस्या है. जब दिमाग में एक तरह खुजली होती है तो वह उसे शरीर को महसूस होने वाली वाइब्रेशन समझता है. ऐसा लगता है कि तकनीक हमारे तंत्रिका तंत्र से खेलने लगी है.
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मैं ही हूं सृष्टि का केंद्र?
सोशल मीडिया पर अपनी सबसे शानदार, घूमने की या मशहूर लोगों के साथ ली गई तस्वीरें लगाना. जो मन में आया उसे शेयर कर देना और एक दिन में कई कई बार स्टेटस अपडेट करना इस बात का सबूत है कि आपको अपने जीवन को सार्थक समझने के लिए सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया की दरकार है. इसका मतलब है कि आपके दिमाग में खुशी वाले हॉर्मोन डोपामीन का स्राव दूसरों पर निर्भर है वरना आपको अवसाद हो जाए.
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सारे जहान की खुशी?
दिमाग के वे हिस्से जो प्रेरित होने, प्यार महसूस करने या चरम सुख पाने पर उद्दीपित होते हैं, उनके लिए अकेला सोशल मीडिया ही काफी है. अगर आपको लगे कि आपके पोस्ट को देखने और पढ़ने वाले कई लोग हैं तो यह अनुभूति और बढ़ जाती है. इसका पता दिमाग फेसबुक पोस्ट को मिलने वाली "लाइक्स" और ट्विटर पर "फॉलोअर्स" की बड़ी संख्या से लगाता है.
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डेटिंग में ज्यादा सफल?
इसका एक हैरान करने वाला फायदा भी है. डेटिंग पर की गई कुछ स्टडीज दिखाती है कि पहले सोशल मी़डिया पर मिलने वाले युगल जोड़ों का रोमांस ज्यादा सफल रहता है. वे एक दूसरे को कहीं अधिक खास समझते हैं और ज्यादा पसंद करते हैं. इसका कारण शायद ये हो कि सोशल मीडिया की आभासी दुनिया में अपने पार्टनर के बारे में कल्पना की असीम संभावनाएं होती हैं.
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चिप बहुत कम ऊर्जा पर काम करता है और अपने इलेक्ट्रॉनिक प्रोसेस के दौरान न्यूरो सिग्नल भेजता है, जो एक न्यूरालिंक ऐप तक पहुंचते हैं. ऐप उन सिग्नलों को रिसीव करके डीकोड करती है और उन्हे ऐक्शन में बदल देती है. यानी अगर मरीज सोचता है कि वह कंप्यूटर पर किसी लिंक पर क्लिक करना चाहता है तो चिप उस सोच को सिग्नल में बदलकर ऐप को भेजेगा और ऐप कंप्यूटर को क्लिक करने का निर्देश देगी.