रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार के कोई सबूत नहीं: रिपोर्ट
४ जनवरी २०१७
म्यांमार के रखाइन प्रांत में हुई हिंसा की जांच करने वाले एक आयोग ने इस बात से इनकार किया है कि वहां सुरक्षा बलों ने रोहिंग्या मुसलमानों का नरसंहार किया है.
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पुलिस चौकियों पर हमलों के बाद पिछले साल अक्टूबर में म्यांमार के सुरक्षा बलों ने रखाइन प्रांत में अभियान छेड़ा था. इसके बाद दसियों हजार रोहिंग्या लोग वहां से भाग गए. बताया जाता है कि सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान दर्जनों रोहिंग्या लोग मारे गए. इस दौरान सुरक्षा बलों पर महिलाओं के साथ बलात्कार, उत्पीड़न और आगजनी करने के आरोप भी लगे.
नोबेल शांति विजेता आंग सान सू ची के नेतृत्व वाली म्यांमार की सरकार ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया और अल्पसंख्यक रोहिंग्या लोगों की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव को मानने से इनकार कर दिया. म्यांमार अपने यहां रहने वाले लगभग दस लाख रोहिंग्या लोगों को अपना नागरिक नहीं मानता. वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी समझता है. असल में इन लोगों के पास किसी देश की नागरिकता नहीं है.
जानिए कौन हैं रोहिंग्या लोग
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
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इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
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सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
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आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
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बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
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जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
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सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
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इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
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बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
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आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
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दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
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सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
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मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
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कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
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आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.
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बौद्ध बहुल देश म्यांमार में इन लोगों को "बंगाली" कहा जाता है. भेदभाव और प्रताड़ना का शिकार होकर बहुत से रोहिंग्या लोग अपनी जान जोखिम में डालकर वहां से भाग रहे हैं. उनके दयनीय हालात को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया के सबसे प्रताड़ित लोग कहता है.
म्यांमार की सरकार ने रखाइन में हुई हिंसा की जांच के लिए एक आयोग बनाया जिसने बुधवार को अपनी रिपोर्ट दी. रिपोर्ट में इन दावों को गलत बताया गया है कि म्यांमार के सुरक्षा बल रोहिंग्या लोगों को म्यांमार से भगाने के लिए अभियान चला रहे हैं. इससे पहले, रोहिंग्या लोगों की पिटाई का एक वीडियो सामने आने के बाद कई पुलिस अफसरों को हिरासत में लिया गया था. यह वीडियो एक पुलिस अधिकारी ने ही बनाया था. इसके बाद सरकार के इन दावों पर सवाल उठे कि सुरक्षा बल मानवाधिकारों का हनन नहीं कर रहे हैं.
सरकारी मीडिया में आयोग की रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है, "अशांत इलाके में बंगाली लोगों की इतनी बड़ी संख्या, उनकी मस्जिदें और धार्मिक इमारतें इस बात का सबूत है कि नरसंहार या फिर धार्मिक तौर पर प्रताड़ित किए जाने जैसा कोई मामला नहीं है." आयोग का कहना है कि उसे महिलाओं के बलात्कार के भी सबूत नहीं मिले हैं, लेकिन आगजनी, गैरकानूनी गिरफ्तारी और उत्पीड़न के आरोपों की जांच हो रही है.
देखिए ये हैं दुनिया के सबसे दानी देश
दुनिया के सबसे बड़े दानी देश
चैरिटीस एड फाउंडेशन ने दुनिया में सबसे ज्यादा दान करने वाले देशों की सूची जारी की है. 145 देशों की सूची में भारत 106वें स्थान पर है. देखिए कौन से देश हैं सबसे उदार.
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1. म्यांमार
लिस्ट में म्यांमार सबसे ऊपर है. म्यांमार की 92 फीसदी आबादी गरीबों के मदद करने में आगे है और 55 फीसदी लोग सामाजिक कार्यों के लिए खुशी से समय निकालते हैं. जबकि विश्व बैंक के अनुसार म्यांमार एक निम्न मध्यमवर्गीय आमदनी वाला देश है.
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2. अमेरिका
पिछले साल अमेरिका इस लिस्ट में सबसे आगे था. अमेरिका को जो बात दाताओं की सूची में उसे ऊपर लाती है वह है अजनबियों की मदद का रवैया जो कि यहां के 76 फीसदी लोगों में पाया गया.
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3. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में धन दान करने की प्रवृत्ति 73 फीसदी और अजनबियों की मदद करने की करीब 65 फीसदी लोगों में है. वहीं स्वेच्छा से सामाजिक कार्यों में शामिल होने का चलन 45 फीसदी लोगों में है.
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4. कनाडा
औद्योगिक देशों में कनाडा भी टॉप 10 दानियों में शामिल है. यहां के 69 फीसदी लोग अजनबियों की मदद करने, 44 फीसदी धन दान करने और 44 फीसदी सामाजिक कार्य करने को तत्पर रहते हैं.
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5. ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया के सख्त आप्रवासी कानूनों के चलते इस देश को अक्सर उन अमीर देशों की तरह देखा जाता है जो अपनी समृद्धि औरों के साथ बांटना नहीं चाहते. लेकिन सीएएफ की रैंकिंग दिखाती है कि अजनबियों की मदद करने में 66 फीसदी, सामाजिक कार्यों के लिए दान करने में 72 फीसदी और मुफ्त सेवा देने के लिए 40 फीसदी लोग तैयार हैं.
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6. ब्रेटिन
जी-20 के पांच देश दानकर्ताओं की टॉप 20 सूची में शामिल हैं. उनमें से एक ब्रिटेन में दान करने के इच्छुक 75 फीसदी, अजनबियों की मदद करने वाले 63 फीसदी और समाज कल्याण की प्रवृत्ति वाले 32 फीसदी लोग पाए गए.
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7. नीदरलैंड्स
ब्रिटेन की ही तरह डच आबादी भी दान करने का 73 फीसदी और अजनबियों की मदद का 59 फीसदी रुझान रखती है. लेकिन बात जब इच्छा से सामाजिक काम करने की आती है तो ये जरा पीछे हैं, करीब 36 फीसदी.
तस्वीर: picture-alliance/Ton Koene
8. श्रीलंका
हालांकि श्रीलंका गरीब देशों में शुमार है लेकिन दान के मामले में यह दुनिया के प्रमुख 10 देशों में शामिल है. अजनबियों की मदद करने में 60 फीसदी, दान करने में 59 फीसदी और समाजसेवा में 48 फीसदी है इस देश का रुझान.
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9. आयरलैंड
आयरलैंड सूची में नौवें स्थान पर रहा. यहां 67 फीसदी आबादी बहुत लगन से धन दान करती है और 59 फीसदी अजनबियों की मदद के लिए आगे आते हैं. समय निकाल कर समाजसेवा करने के मामले में यहां 41 फीसदी लोग ही रुचि लेते हैं.
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10. मलेशिया
मलेशिया की दानी प्रवृत्ति में इस साल सबसे ज्यादा सकारात्मक बदलाव दिखा है. यहां के 62 फीसदी लोग अजनबियों की मदद करने आगे आते हैं, 58 फीसदी धन दान करने और 37 फीसदी समाजिक कार्यों के लिए स्वेच्छा से काम करने से नहीं झिझकते.
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इसके विपरीत मानवाधिकार कार्यकर्ता क्रिस लेवा कहती हैं कि आयोग सही से जांच करने में नाकाम रहा है. वह कहती हैं, "जांच का जो तरीका आपनाया गया है, वो विश्वसनीय नहीं है, पेशेवर नहीं है. गांवों में जाकर लोगों से कोई पूछताछ नहीं की गई है. उनका काम आरोपों को जांचना था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया है."
इससे पहले, मलेशिया के प्रधानमंत्री नजीब रजाक म्यांमार की नेता सू ची पर खामोशी से लोगों का नरसंहार देखने का आरोप लगा चुके हैं. इसके अलावा, एक दर्जन से ज्यादा नोबेल विजेताओं ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को खत लिख कर उत्तरी रखाइन में "इंसानी त्रासदी को नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराधों में तब्दील होने से" रोकने को कहा है.