म्यांमार में सैन्य तख्तापलट को दो महीने बीत चुके हैं और वहां हिंसा का दौर जारी है. अब तक वहां 500 से ज्यादा लोकतंत्र बहाली समर्थक सेना और सुरक्षाबलों की गोलियों से मारे जा चुके हैं.
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने गुरुवार को सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमार में सैकड़ों नागरिकों की मौत और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा के इस्तेमाल की कड़ी निंदा की. सुरक्षा परिषद ने वहां की "बिगड़ती स्थिति" पर "गंभीर चिंता" व्यक्त की है. हालांकि, चीन ने अपने निंदा प्रस्ताव में कठोर शब्दों का इस्तेमाल करने से परहेज किया है. सुरक्षा परिषद ने अपने बयान में कहा, "हम शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ बल के इस्तेमाल और महिलाओं और बच्चों समेत सैकड़ों लोगों की हत्या की निंदा करते हैं." बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन सेव द चिल्ड्रेन के मुताबिक तख्तापलट के बाद से अब तक 43 बच्चों की मौत हो चुकी है. तख्तापलट के खिलाफ और देश में लोकतंत्र की बहाली को लेकर आम नागरिक, छात्र, शिक्षक और अधिकार कार्यकर्ता लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. आरोप है कि कई बार सेना उन पर सीधी फायरिंग करती है.
तख्तापलट के खिलाफ प्रदर्शन पर क्रूर कार्रवाई
1 फरवरी को लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार और देश की नेता आंग सान सू की के सत्ता से बाहर होने के बाद से म्यांमार की सैन्य टुकड़ी को रोजाना सार्वजनिक रूप से आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने सैन्य अभियान की कड़ी निंदा की है, लेकिन म्यांमार में स्थिरता के महत्व पर जोर देते हुए चीन बहुत सतर्क बना हुआ है. बुधवार को सुरक्षा परिषद के एक बंद दरवाजे की बैठक के दौरान संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत क्रिस्टीन एस बर्गनर ने म्यांमार को चेतावनी दी कि देश में भीषण गृह युद्ध का खतरा मंडरा रहा है. उन्होंने कहा, "अगर हम उनसे बातचीत के लिए सहमत होने की प्रतीक्षा करते हैं, तो न केवल जमीन पर स्थिति बिगड़ जाएगी, बल्कि रक्तपात का खतरा भी है."
2020 के नवंबर में हुए चुनाव को लेकर सेना संतुष्ट नहीं थी और वह चुनाव में धोखाधड़ी का मुद्दा उठा रही थी. हालांकि म्यांमार के राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग ने सेना की ओर से लगाए गए चुनावों में धोखाधड़ी होने के आरोपों से इनकार कर दिया था. सू ची की पार्टी ने चुनाव में बड़ी जीत हासिल की थी.
सेना की कार्रवाई के बाद से यूरोपीय संघ और अमेरिका प्रतिबंध लगा चुका है. पिछले दिनों यूरोपीय संघ ने म्यांमार में हुए तख्तापलट में शामिल 11 लोगों के खिलाफ प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया था तो वहीं अमेरिका ने म्यांमार के साथ एक अहम व्यापार समझौते पर रोक लगाई थी.
एए/सीके (एपी, एएफपी)
21वीं सदी के तख्तापलट
म्यांमार फिर एक बार सैन्य तख्तापलट की वजह से सुर्खियों में है. 20वीं सदी का इतिहास तो सत्ता की खींचतान और तख्तापलट की घटनाओं से भरा हुआ है, लेकिन 21वीं सदी में भी कई देशों ने ताकत के दम पर रातों रात सत्ता बदलते देखी है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/F. Vergara
म्यांमार
म्यांमार की सेना ने आंग सान सू ची को हिरासत में लेकर फिर एक बार देश की सत्ता की बाडगोर संभाली है. 2020 में हुए आम चुनावों में सू ची की एनएलडी पार्टी ने 83 प्रतिशत मतों के साथ भारी जीत हासिल की. लेकिन सेना ने चुनावों में धांधली का आरोप लगाया. देश में लोकतंत्र की उम्मीदें फिर दम तोड़ती दिख रही हैं.
तस्वीर: Sakchai Lalit/AP/picture alliance
माली
पश्चिमी अफ्रीकी देश माली में 18 अगस्त 2020 को सेना के कुछ गुटों ने बगावत कर दी. राष्ट्रपति इब्राहिम बोउबाखर कीटा समेत कई सरकारी अधिकारी हिरासत में ले लिए गए और सरकार को भंग कर दिया गया. 2020 के तख्तापलट के आठ साल पहले 2012 में माली ने एक और तख्तापलट झेला था.
तस्वीर: Reuters/M. Keita
मिस्र
2011 की क्रांति के बाद देश में हुए पहले स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के बाद राष्ट्रपति के तौर पर मोहम्मद मुर्सी ने सत्ता संभाली थी. लेकिन 2013 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों का फायदा उठाकर देश के सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल सिसी ने सरकार का तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली. तब से वही मिस्र के राष्ट्रपति हैं.
तस्वीर: Reuters
मॉरिटानिया
पश्चिमी अफ्रीकी देश मॉरिटानिया में 6 अगस्त 2008 को सेना ने राष्ट्रपति सिदी उल्द चेख अब्दल्लाही (तस्वीर में) को सत्ता से बेदखल कर देश की कमान अपने हाथ में ले ली. इससे ठीक तीन साल पहले भी देश ने एक तख्तापलट देखा था जब लंबे समय से सत्ता में रहे तानाशाह मोओया उल्द सिदअहमद ताया को सेना ने हटा दिया.
तस्वीर: Issouf Sanogo/AFP
गिनी
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी में लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे लांसाना कोंते की 2008 में मौत के बाद सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली. कैप्टन मूसा दादिस कामरा (फोटो में) ने कहा कि वह नए राष्ट्रपति चुनाव होने तक दो साल के लिए सत्ता संभाल रहे हैं. वह अपनी बात कायम भी रहे और 2010 के चुनाव में अल्फा कोंडे के जीतने के बाद सत्ता से हट गए.
तस्वीर: AP
थाईलैंड
थाईलैंड में सेना ने 19 सितंबर 2006 को थकसिन शिनावात्रा की सरकार का तख्तापलट किया. 23 दिसंबर 2007 को देश में आम चुनाव हुए लेकिन शिनावात्रा की पार्टी को चुनावों में हिस्सा नहीं लेने दिया गया. लेकिन जनता में उनके लिए समर्थन था. 2001 में उनकी बहन इंगलक शिनावात्रा थाईलैंड की प्रधानमंत्री बनी. 2014 में फिर थाईलैंड में सेना ने तख्तापलट किया.
तस्वीर: AP
फिजी
दक्षिणी प्रशांत महासागर में बसे छोटे से देश फिजी ने बीते दो दशकों में कई बार तख्तापलट झेला है. आखिरी बार 2006 में ऐसा हुआ था. फिजी में रहने वाले मूल निवासियों और वहां जाकर बसे भारतीय मूल के लोगों के बीच सत्ता की खींचतान रहती है. धर्म भी एक अहम भूमिका अदा करता है.
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हैती
कैरेबियन देश हैती में फरवरी 2004 को हुए तख्तापलट ने देश को ऐसे राजनीतिक संकट में धकेल दिया जो कई हफ्तों तक चला. इसका नतीजा यह निकला कि राष्ट्रपति जाँ बेत्रां एरिस्टीड अपना दूसरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और फिर राष्ट्रपति के तौर पर बोनीफेस अलेक्सांद्रे ने सत्ता संभाली.
तस्वीर: Erika SatelicesAFP/Getty Images
गिनी बिसाऊ
पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी बिसाऊ में 14 सितंबर 2003 को रक्तहीन तख्तापलट हुआ, जब जनरल वासीमो कोरेया सीब्रा ने राष्ट्रपति कुंबा लाले को सत्ता से बेदखल कर दिया. सीब्रा ने कहा कि लाले की सरकार देश के सामने मौजूद आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बकाया वेतन को लेकर सेना में मौजूद असंतोष से नहीं निपट सकती है, इसलिए वे सत्ता संभाल रहे हैं.
तस्वीर: AFP/Getty Images
सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक
मार्च 2003 की बात है. मध्य अफ्रीकी देश सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति एंगे फेलिक्स पाटासे नाइजर के दौरे पर थे. लेकिन जनरल फ्रांसुआ बोजिजे ने संविधान को निलंबित कर सत्ता की बाडगोर अपने हाथ में ले ली. वापस लौटते हुए जब बागियों ने राष्ट्रपति पाटासे के विमान पर गोलियां दागने की कोशिश की तो उन्होंने पड़ोसी देश कैमरून का रुख किया.
तस्वीर: Camille Laffont/AFP/Getty Images
इक्वाडोर
लैटिन अमेरिकी देश इक्वोडोर में 21 जनवरी 2000 को राष्ट्रपति जमील माहौद का तख्लापलट हुआ और उपराष्ट्रपति गुस्तावो नोबोआ ने उनका स्थान लिया. सेना और राजनेताओं के गठजोड़ ने इस कार्रवाई को अंजाम दिया. लेकिन आखिरकर यह गठबंधन नाकाम रहा. वरिष्ठ सैन्य नेताओं ने उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति बनाने का विरोध किया और तख्तापलट करने के वाले कई नेता जेल भेजे गए.