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नागालैंड की घटना से उग्रवाद-विरोधी अभियानों पर सवाल

प्रभाकर मणि तिवारी
६ दिसम्बर २०२१

पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड में सेना की फायरिंग में कम से कम 13 बेकसूर ग्रामीणों की मौत ने इलाके में दशकों से जारी उग्रवाद-विरोधी अभियान को एक बार फिर कठघरे में खड़ा कर दिया है.

तस्वीर: Caisii Mao/NurPhoto/picture alliance

असम राइफल्स पर खासकर नागालैंड और मणिपुर में आम लोगों पर अत्याचार और बेकसूरों की हत्या के आरोप पहले से भी लगते रहे हैं. इस घटना के विरोध में तमाम जनजातीय संगठनों ने सोमवार को राज्य में छह घंटे बंद रखा है. राज्य के सबसे बड़े त्योहार हॉर्नबिल फेस्टिवल पर भी इसका साया नजर आने लगा है. मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो सोमवार को प्रभावित जिले का दौरा कर रहे हैं.

संसद में भी घटना को लेकर हंगामा हुआ. कांग्रेस के गौरव गोगोई और मणिकाम टैगोर व आरजेडी के मनोज कुमार झा समेत कई सांसदों ने स्थगन का नोटिस दिया. कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा में यह मामला उठाया और प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री से बयान देने की मांग की. हंगामे के बाद राज्यसभा को कुछ देर के लिए स्थगित करना पड़ा.

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हाल के वर्षों की इस पहली घटना ने जहां कई अनुत्तरित सवाल खड़े किए हैं, वहीं इलाके में विवादास्पद सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) के खिलाफ एक बार फिर विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं. सवाल पूछा जा रहा है कि क्या सेना ने इतने बड़े ऑपरेशन से पहले उग्रवादियों के बारे में मिली सूचना की पुष्टि नहीं की थी या फिर बीते दिनों मणिपुर में एक कर्नल विप्लव त्रिपाठी के सपिरवार मारे जाने के बाद उसके खिलाफ उग्रवादियों के खिलाफ किसी बड़े ऑपरेशन को अंजाम देने का भारी दबाव था?

ताजा मामला

नागालैंड के मोन जिले में एक के बाद एक गोलीबारी की तीन घटनाओं में सुरक्षाबलों की गोलियों से कम से कम 13 लोगों की मौत हो गई जबकि 11 अन्य घायल हो गए. पुलिस की कहना है कि गोलीबारी की पहली घटना शायद गलत पहचान के कारण हुई. उसके बाद हुई झड़प में एक जवान की भी मौत हो गई. मोन जिला म्यांमार की सीमा के पास स्थित है. उग्रवादी संगठन एनएससीएन (के) का युंग ओंग गुट वहीं से अपनी गतिविधियां चलाता है.

गोलीबारी की पहली घटना शनिवार शाम उस समय हुई जब कुछ कोयला खदान कर्मी एक पिकअप वैन में घर लौट रहे थे. सेना के जवानों को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन-के) के युंग ओंग गुट के उग्रवादियों की गतिविधि की सूचना मिली थी. इसी गलतफहमी में इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वाहन पर कथित रूप से गोलीबारी की जिसमें छह मजदूरों की जान चली गई.

तस्वीर: Caisii Mao/NurPhoto/picture alliance

पुलिस ने बताया कि जब मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो स्थानीय युवक और ग्रामीण उनकी तलाश में निकले. उन्होंने मौके पर सेना के वाहनों को घेर लिया. इस दौरान हुई झड़प में एक जवान मारा गया. ग्रामीणों ने सेना के वाहनों में भी आग लगा दी. इसके बाद सेना के जवानों ने आत्मरक्षा में फायरिंग की जिसमें सात और लोगों की मौत हो गई.

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इस घटना के खिलाफ उग्र विरोध और हिंसा का दौर रविवार को भी जारी रहा. नाराज भीड़ ने असम राइफल्स के कार्यालयों में तोड़फोड़ और आगजनी की. रविवार को सुरक्षा बलों की जवाबी गोलीबारी में कम से कम एक और नागरिक की मौत हो गई जबकि दो अन्य घायल हो गए.

नागालैंड सरकार ने भड़काऊ वीडियो, तस्वीरों या लिखित सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए जिले में मोबाइल इंटरनेट और डेटा सेवाओं के एसएमएस करने पर भी पाबंदी लगा दी है.

जांच के आदेश

सरकार ने पुलिस महानिरीक्षक की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है. रक्षा जनसंपर्क अधिकारी (कोहिमा) लेफ्टिनेंट कर्नल सुमित शर्मा ने कहा, "नागालैंड में मोन जिले के तिरु में उग्रवादियों की संभावित गतिविधियों की विश्वसनीय खुफिया जानकारी के आधार पर इलाके में एक विशेष अभियान चलाए जाने की योजना बनाई गई थी. यह घटना और इसके बाद जो हुआ, वह अत्यंत खेदजनक है.” सेना ने भी इस घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं.

मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने समाज के सभी तबकों से शांति बनाए रखने की अपील की है. सरकार ने इस घटना में मृत लोगों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपए की सहायता देने का भी ऐलान किया है.

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अपने एक ट्वीट में इस घटना हृदय विदारक बताया है. उनका सवाल था, "गृह मंत्रालय आखिर क्या कर रहा है? देश में आम नागरिक और सुरक्षा बल ही सुरक्षित नहीं हैं.” जनजातीय संगठन ईस्टर्न नागालैंड पीपल्स ऑर्गनाइजेशन (ईएनपीओ) ने इस घटना के विरोध में क्षेत्र के छह जनजातीय समुदायों से राज्य के सबसे बड़े हॉर्नबिल महोत्सव से भागीदारी वापस लेने की अपील की है.

आफस्पा वापस लेने की मांग

नागालैंड में सुरक्षाबलों के हाथों 14 नागरिकों की हत्या के कारण सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम 1958 (अफस्पा) को निरस्त करने की मांग नए सिरे से जोर पकड़ने लगी है. अफस्पा असम, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लांगडिंग और तिराप जिलों के साथ असम की सीमा से लगे राज्य के आठ पुलिस थाना क्षेत्रों में लागू है.

नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एनईएसओ) अध्यक्ष सैमुअल बी. जायरा कहते हैं, "अगर केंद्र पूर्वोत्तर के लोगों के हितों के बारे में चिंतित है तो उसे इस कानून को निरस्त करना चाहिए. ऐसा नहीं हुआ तो यह इलाके के लोगों में अलगाव की भावना को और मजबूत करेगा.”

तस्वीर: Yirmiyan Arthur/AP/picture alliance

असम से राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार अजीत कुमार भुइयां कहते हैं, "बेकसूर ग्रामीणों की हत्या सब के लिए आंखें खोलने वाली होनी चाहिए. इस तरह की घटनाओं के कारण ही हम अफस्पा के नवीनीकरण के खिलाफ लगातार विरोध कर रहे हैं.” ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के मुख्य सलाहकार समुज्ज्वल कुमार भट्टाचार्य कहते हैं, "सुरक्षा बलों की ताजा कार्रवाई एक अक्षम्य और जघन्य अपराध है. नागरिकों की सुरक्षा के लिए अफस्पा को फौरन निरस्त किया जाना चाहिए.”

मणिपुर विमिन गन सर्वाइवर्स नेटवर्क और ग्लोबल एलायंस ऑफ इंडिजीनस पीपल्स की संस्थापक बिनालक्ष्मी नेप्राम का आरोप है, "इलाके के नागरिकों को मारने में शामिल किसी भी सुरक्षा बल पर आज तक कभी आरोप नहीं लगाया गया और न ही गलती के लिए उनको सजा दी गई है.”

सामाजिक कार्यकर्ता मोहन कुमार भुइयां कहते हैं, "इस घटना की जांच शीघ्र पूरी कर दोषियों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए. ऐसा नहीं होने की स्थिति में पूर्वोत्तर में शांति प्रक्रिया तो खटाई में पड़ेगी ही, उग्रवाद का नया दौर शुरू होने का भी अंदेशा है.”

 

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