भारत में अल्पसंख्यकों के लिए जगह घटती जा रही है. उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर प्रार्थना करने से लेकर अपना धंधा चलाने आदि तक से रोका जा रहा है. मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि यह सिर्फ जगह की लड़ाई नहीं है.
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शुक्रवार की शामें दिल्ली से सटे गुड़गांव में रहने वाले मुसलमानों के लिए सामुदायिक नमाज का वक्त होती हैं. सबके जमा होने के लिए जगह चाहिए, जो पिछले कई साल से प्रशासन उन्हें उपलब्ध करवाता रहा है. पार्कों या खाली पड़ी जमीनों पर नमाज अदा होती रही है.
लेकिन पिछले कुछ वक्त से सब बदल गया है. अब जैसे ही मुसलमान नमाज के लिए जमा होते हैं, उनका विरोध करने वाले और उन्हें हटाने वाले हिंदू संगठन चले आते हैं. नमाज के वक्त में वहां नारे लगाए जाते हैं और गाली-गलौज की नौबत आ जाती है. इस फसाद के चलते प्रशासन ने सार्वजनिक जगहों पर नमाज के लिए दी इजाजत वापस ले ली है.
देखिए, दुनिया की दस सबसे बड़ी मस्जिदें
देखिए विश्व की 10 सबसे बड़ी मस्जिदें
मॉस्को में यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिदों में से एक जुमा मस्जिद है. इस छह मंजिला मस्जिद में 20,000 वर्गमीटर के क्षेत्र में 10,000 लोगों के लिए नमाज पढ़ने की जगह है. दुनिया की कुछ बड़ी मस्जिदों पर एक नजर.
तस्वीर: imago/T. Müller
जुमा मस्जिद, मॉस्को
मॉस्को की केंद्रीय मस्जिद जुमा मस्जिद या कैथीड्रल मस्जिद के नाम से भी जानी जाती है. 1904 में बनी यह मस्जिद यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिदों में शामिल है और जीर्णोद्धार के बाद यहां 10,000 लोग एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/V. Maximov
अल हरम मस्जिद, मक्का
इस्लाम धर्म की सबसे महत्वपूर्ण और साढ़े तीन लाख वर्गमीटर में फैली दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद है अल हरम. मूल रूप से 16वीं सदी में बनी इस मस्जिद में 9 मीनारें हैं. मस्जिद के अंदर काबा है जो इस्लाम का मुख्य पवित्रस्थल है.
तस्वीर: picture-alliance/dAP Photo/K. Mohammed
पैगंबर मस्जिद, मदीना
मक्का की अल हरम मस्जिद के बाद मदीने की मस्जिद इस्लाम का दूसरी सबसे पवित्र स्थल है. यहां पैगंबर मुहम्मद की कब्र है. यह मस्जिद 622 ईस्वी में बनी थी. इस मस्जिद में 600,000 श्रद्धालु एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/epa
अल अक्सा मस्जिद, येरूशलम
येरूशलम में टेंपल माउंट पर स्थित अल अक्सा मस्जिद 5,000 जगहों के साथ दुनिया की छोटी मस्जिदों में शुमार होती है, लेकिन सोने के गुंबद वाली 717 ईस्वी में बनी यह मस्जिद विश्वविख्यात है और इस्लाम की तीसरी सबसे महत्वपूर्ण मस्जिद है.
तस्वीर: picture alliance/CPA Media
हसन मस्जिद, कासाब्लांका
सीधे अटलांटिक सागर तट पर बनी मस्जिद का नाम मोरक्को के पूर्व शाह हसन द्वितीय के नाम पर है. इसे 1993 में उनके जन्म की 60 वीं सालगिरह पर बनाया गया था. इसकी 210 मीटर ऊंची मीनार मस्जिदों में विश्व रिकॉर्ड बनाती है.
तस्वीर: picture alliance/Arco Images
शेख जायद मस्जिद, अबू धाबी
इस मस्जिद का उद्घाटन 2007 में हुआ. यह दुनिया की 8वीं सबसे बड़ी मस्जिद है. यह 224 मीटर लंबे और 174 मीटर चौड़े इलाके पर बनी है और मीनारों की ऊंचाई 107 मीटर है. मुख्य गुंबद का व्यास 32 मीटर है जो विश्व रिकॉर्ड है.
तस्वीर: imago/T. Müller
जामा मस्जिद, दिल्ली
मुगल सम्राट शाह जहां द्वारा बनवाई गई जामा मस्जिद भारत की प्रसिद्ध मस्जिदों में शामिल है. 1656 में बनकर पूरी हुई पुरानी दिल्ली की यह मस्जिद दुनिया की 9वीं सबसे बड़ी मस्जिद है. यहां 25,000 लोग एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं.
तस्वीर: Reuters/Ahmad Masood
रोम की मस्जिद
कैथोलिक धर्म की राजधानी कहे जाने वाले रोम में भी एक विशाल मस्जिद है. 30,000 वर्गमीटर जगह वाली यह मस्जिद यूरोप की सबसे बड़ी मस्जिद होने का दावा करती है. दस साल में बनी इस मस्जिद का उद्घाटन 1995 में किया गया था.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
अखमत कादिरोव मस्जिद, ग्रोज्नी
यह मस्जिद भूतपूर्व मुफ्ती और चेच्न्या के राष्ट्रपति रहे कादिरोव के नाम पर बनी है. वे 2004 में एक हमले में मारे गए थे. मस्जिद का निर्माण कार्य चेच्न्या युद्ध के कारण कई बार रोकना पड़ा. इसे 2008 में आम लोगों के लिए खोला गया.
इस मस्जिद का नाम रूसी अधिग्रहण से पहले कजान के आखिरी इमाम के नाम की याद दिलाता है. पड़ोस में स्थित कैथीड्रल के साथ इसे तातर जाति के मुसलमानों और ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों के शांतिपूर्ण सहजीवन का सूत माना जाता है.
तस्वीर: Maxim Marmur/AFP/Getty Images
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2014 में हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद से भारत में हिंदू-मुस्लिम खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है. बड़ी संख्या में सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता आरोप लगाते रहे हैं कि प्रशासन और अधिकारी अल्पसंख्य समुदायों के खिलाफ कट्टर हिंदू संगठनों का पक्ष लेते हैं.
नमाज से दिक्कत क्यों?
थिंक टैंक ‘वर्ल्ड रिसॉर्सेज इंस्टिट्यूट इंडिया' की प्रेरणा मेहता कहती हैं, "जगह तो कम है, इसलिए यह सवाल तो हमेशा बना रहता है कि विभिन्न सामुदायिक गतिविधियों के लिए अलग-अलग संगठनों को इसे कैसे उपलब्ध कराया जाए. लेकिन शहरों में सार्वजनिक जगह कैसे किसी को दी जाती हैं इस लेकर हमेशा वर्गीकरण होता है. गरीब और कमजोर वर्ग या अल्पसंख्यक समुदायों के लिए जगह की उपलब्धता औरों से कम है.”
भारत में 14 प्रतिशत मुसलमान हैं जबकि 1.3 अरब आबादी वाले देश में 80 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है. देशभर में आमतौर पर सार्वजनिक स्थान अवैध झुग्गी बस्तियों, रेहड़ी ठेले वालों, बच्चों के खेलने, त्योहार मनाने, शादी-उत्सव या फिर राजनीतिक रैलियों के लिए इस्तेमाल होते रहे हैं.
लेकिन गुड़गांव में नमाज के लिए उपलब्ध जगहों पर हिंदू संगठनों ने यह कहकर अन्य गतिविधियां शुरू कर दी हैं कि सार्वजनिक स्थानों को धार्मिक प्रायोजन से प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. इसके चलते पिछले कुछ समय में नमाज के लिए उपलब्ध स्थानों की जगह 40 से घटकर लगभग आधी रह गई है.
मुस्लिम एकता मंच के शहजाद खान कहते हैं, "त्योहारों की बात छोड़ दें तो जुमे की नमाज में मुश्किल से 30 मिनट लगते हैं. लेकिन मस्जिदें बहुत कम हैं इसलिए हमें बड़ी जगह की जरूरत पड़ती है. सार्वजनिक जगह सबके लिए हैं. और हम दशकों ऐसे ही नमाज पढ़ते आ रहे हैं, बिना किसी को तकलीफ दिए. अगर धार्मिक गतिविधियों की इजाजत नहीं, फिर तो हिंदुओं को भी जगह नहीं मिलनी चाहिए.
तस्वीरों में नया अफगानिस्तान
नये अफगानिस्तान की झलक
तालिबान के राज में कैसा है अफगानिस्तान, इसकी एक झलक इन चंद तस्वीरों में मिल सकती है. देखिए...
तस्वीर: Bernat Armangue/dpa/picture alliance
नया अफगानिस्तान
नया अफगानिस्तान कैसा होगा अभी स्पष्ट नहीं है. फिलहाल जो तस्वीरें आ रही हैं वे ढकी छिपी हैं. पर्दे से क्या निकलेगा, उसकी बस झलक मिल रही है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
मर्दों की दुनिया
अफगानिस्तान से जो तस्वीरें और वीडियो आ रहे हैं उनमें दिख रहा है जन-जीवन सामान्य हो रहा है. हेरात के इस रेस्तरां में ग्राहकों को भोजन का आनंद लेते देखा जा सकता है. लेकिन एक चीज पहले से अलग है. ग्राहकों में कोई महिला नहीं है.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY/REUTERS
पर्दे की दीवार
कॉलेजों से ऐसी तस्वीरें लगातार आ रही हैं जिनमें लड़के और लड़कियों के बीच एक पर्दे की दीवार खींच दी गई है. यह अब आधिकारिक नीति है.
तस्वीर: AAMIR QURESHI AFP via Getty Images
आजादी का सवाल
हेरात में ये महिलाएं मस्जिद जा रही हैं. लेकिन बाकी कहीं जाने के लिए उनके पास आजादी कम ही है. जैसे कि देश के संस्कृति आयोग के उपाध्यक्ष अहमदुल्लाह वासिक ने कहा है कि महिलाओं के लिए खेलों की दुनिया में अब जगह नहीं है.
तस्वीर: WANA NEWS AGENCY/REUTERS
संघर्ष भी जारी
कुछ लोगों ने संघर्ष जारी रखा है. कई शहरों में महिलाएं विरोध प्रदर्शन करती दिख रही हैं.
तस्वीर: REUTERS
दूसरा रुख
कुछ महिलाएं कहती हैं कि वे तालिबान के राज में खुश हैं. पिछले दिनों ऐसी महिलाओं ने भी एक मार्च निकाला. इस मार्च तो तालिबानी बंदूकाधारियों की सुरक्षा मिली थी.
तस्वीर: AAMIR QURESHI/AFP/Getty Images
जगह जगह जांच
तालिबान के बंदूकधारी जगह जगह नाके लगाए खड़े दिखते हैं. पश्चिमी कपड़े और जीवनशैली धीरे-धीरे गायब होती जा रही है.
तस्वीर: Haroon Sabawoon/AA/picture alliance
काम की तलाश
काबुल में ये मजदूर काम का इंतजार कर रहे हैं. देश के आर्थिक हालात बद से बदतर हो रहे हैं. बेरोजगारी बढ़ रही है. 98 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे जा सकते हैं, जो फिलहाल 72 फीसदी पर है.
तस्वीर: Bernat Armangue/dpa/picture alliance
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प्रशासन इस आरोप को नकारता है कि हिंदुओं को जानबूझकर फायदा दिया जा रहा है. गुड़गांव के जिलाधीश यश गर्ग कहते हैं, "अभी भी बहुत जगहों पर नमाज हो रही हैं. दो-तीन जगहों पर ही विरोध हुआ है. समुदाय और प्रशासन इस विवाद का एक शांतिपूर्ण हल खोजने को प्रतिबद्ध है और हम हर संभव विकल्प पर विचार कर रहे हैं.”
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गुजरात मॉडल
ऐसा सिर्फ हरियाणा में नहीं हो रहा है. कई राज्यों में प्रशासन द्वारा ऐसे कदम उठाए गए हैं जो अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को ही कतरते हैं. मसलन गुजरात के अहमदाबाद में रेहड़ी ठेलों पर मांसाहारी खाना बेचने वालों को हटा दिया गया है.
गुजरात में हाल ही में कई जिलों में प्रशासन ने मांसाहारी खाना बेचने वाले छोटे ठेले-रेहड़ी वालों को हटा दिया. बहुत जगह तर्क दिया गया कि वे लोग हिंदुओं की भावनाओं को आहत कर रहे थे. लेकिन पिछले महीने राज्य के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि ये कदम भेदभावकारी नहीं थे बल्कि सड़कों से भीड़-भाड़ हटाने और खाने को लेकर स्वच्छता को बढ़ाने देने के मकसद से उठाए गए.
पटेल ने मीडिया से कहा, "लोगो जो भी खाना चाहें, खा सकते हैं लेकिन ठेलों पर बेचा जा रहा खाना हानिकारक नहीं होना चाहिए और रेहड़ियों से ट्रैफिक बाधित नहीं होना चाहिए.”
पूरे देश की स्थिति
मानवाधिकार कार्यकर्ता इन कदमों को पूरे देश के माहौल से जोड़कर देखते हैं जबकि मुसलमानों के साथ कई निर्मम घटनाएं हो चुकी हैं. कई बार लोगों को घरों में घुसकर या राह चलते पीट-पीटकर मार डाला गया. और ऐसे भी आरोप हैं कि हिंदुत्वादी संगठनों की गतिविधियां त्योहारों के नाम पर बहुत ज्यादा आक्रामक हो गई हैं.
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी ऐंड सेक्यलरिजम की उप निदेशक नेहा दाभाड़े कहती हैं, "ऐसी घटनाएं दिखाती हैं कि जब बात हिंदुओं की होती है तो धार्मिक भावनाओं के दिखावे में किसी तरह का संयम नहीं बरता जाता. सार्वजनिक जगहों पर सबका बराबर हक होना चाहिए और वह इस तरह होना चाहिए कि बाकियों को असुविधा ना हो. लेकिन एक प्रतिद्वन्द्विता लगातार बढ़ रही है जिसका स्वभाव सांप्रदायिक है. और एक ऐसी भावना का प्रसार हो रहा है कि मुसलमानों को सार्वजनिक जगहों पर नहीं होना चाहिए.”
हर धर्म में है सिर ढकने की परंपरा
हर धर्म में है सिर ढंकने की परंपरा
दुनिया में अनेक धर्म हैं. इन धर्मों के अनुयायी अपने विश्वास और धार्मिक आस्था को व्यक्त करने के लिए सिर को कई तरह से ढंकते हैं. जानिए कैसे-कैसे ढंका जाता है सिर.
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto
दस्तार
भारत के पंजाब क्षेत्र में सिक्ख परिवारों में दस्तार पहनने का चलन है. यह पगड़ी के अंतर्गत आता है. भारत के पंजाब क्षेत्र में 15वीं शताब्दी से दस्तार पहनना शुरू हुआ. इसे सिक्ख पुरुष पहनते हैं, खासकर नारंगी रंग लोगों को बहुत भाता है. सिक्ख अपने सिर के बालों को नहीं कटवाते. और रोजाना अपने बाल झाड़ कर इसमें बांध लेते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/D. Dyck
टागलमस्ट
कुछ नकाब तो कुछ पगड़ी की तरह नजर आने वाला "टागलमस्ट" एक तरह का कॉटन स्कार्फ है. 15 मीटर लंबे इस टागलमस्ट को पश्चिमी अफ्रीका में पुरुष पहनते हैं. यह सिर से होते हुए चेहरे पर नाक तक के हिस्से को ढाक देता है. रेगिस्तान में धूल के थपेड़ों से बचने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. सिर पर पहने जाने वाले इस कपड़े को केवल वयस्क पुरुष ही पहनते हैं. नीले रंग का टागलमस्ट चलन में रहता है.
पश्चिमी देशों में हिजाब के मसले पर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है. सवाल है कि हिजाब को धर्म से जोड़ा जाए या इसे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार का हिस्सा माना जाए. सिर ढकने के लिए काफी महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं. तस्वीर में नजर आ रही तुर्की की महिला ने हिजाब पहना हुआ है. वहीं अरब मुल्कों में इसे अलग ढंग से पहना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Schiffmann
चादर
अर्धगोलाकार आकार की यह चादर सामने से खुली होता है. इसमें बांह के लिए जगह और बटन जैसी कोई चीज नहीं होती. यह ऊपर से नीचे तक सब जगह से बंद रहती है और सिर्फ महिला का चेहरा दिखता है. फारसी में इसे टेंट कहते हैं. यह महिलाओं के रोजाना के कपड़ों का हिस्सा है. इसे ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत, सीरिया आदि देशों में महिलाएं पहनती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M.Kappeler
माइटर
रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी की औपचारिक ड्रेस का हिस्सा होती है माइटर. 11 शताब्दी के दौरान, दोनों सिरे से उठा हुआ माइटर काफी लंबा होता था. इसके दोनों छोर एक रिबन के जरिए जुड़े होते थे और बीच का हिस्सा ऊंचा न होकर एकदम सपाट होता था. दोनों उठे हुए हिस्से बाइबिल के पुराने और नए टेस्टामेंट का संकेत देते हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/P. Seeger
नन का पर्दा
अपने धार्मिक पहनावे को पूरा करने के लिए नन अमूमन सिर पर एक विशिष्ट पर्दे का इस्तेमाल करती हैं, जिसे हेविट कहा जाता है. ये हेविट अमूमन सफेद होते हैं लेकिन कुछ नन कालें भी पहनती हैं. ये हेबिट अलग-अलग साइज और आकार के मिल जाते हैं. कुछ बड़े होते हैं और नन का सिर ढक लेते हैं वहीं कुछ का इस्तेमाल पिन के साथ भी किया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/U. Baumgarten
हैट्स और बोनट्स (टोपी)
ईसाई धर्म के तहत आने वाला आमिश समूह बेहद ही रुढ़िवादी और परंपरावादी माना जाता है.इनकी जड़े स्विट्जरलैंड और जर्मनी के दक्षिणी हिस्से से जुड़ी मानी जाती है. कहा जाता है कि धार्मिक अत्याचार से बचने के लिए 18वीं शताब्दी के शुरुआती काल में आमिश समूह अमेरिका चला गया. इस समुदाय की महिलाएं सिर पर जो टोपी पहनती हैं जो बोनट्स कहा जाता है. और, पुरुषों की टोपी हैट्स कही जाती है.
तस्वीर: DW/S. Sanderson
बिरेट
13वीं शताब्दी के दौरान नीदरलैंड्स, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस में रोमन कैथोलिक पादरी बिरेट को सिर पर धारण करते थे. इस के चार कोने होते हैं. लेकिन कई देशों में सिर्फ तीन कोनों वाला बिरेट इस्तेमाल में लाया जाता था. 19 शताब्दी तक बिरेट को इग्लैंड और अन्य इलाकों में महिला बैरिस्टरों के पहनने लायक समझा जाने लगा.
तस्वीर: Picture-alliance/akg-images
शट्राइमल
वेलवेट की बनी इस टोपी को यहूदी समाज के लोग पहनते थे. इसे शट्राइमल कहा जाता है. शादीशुदा पुरुष छुट्टी के दिन या त्योहारों पर इस तरह की टोपी को पहनते हैं. आकार में बढ़ी यह शट्राइमल आम लोगों की आंखों से बच नहीं पाती. दक्षिणपू्र्वी यूरोप में रहने वाले हेसिडिक समुदाय ने इस परंपरा को शुरू किया था. लेकिन होलोकॉस्ट के बाद यूरोप की यह परंपरा खत्म हो गई. (क्लाउस क्रैमेर/एए)
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto
यारमुल्के या किप्पा
यूरोप में रहने वाले यहूदी समुदाय ने 17वीं और 18वीं शताब्दी में यारमुल्के या किप्पा पहनना शुरू किया. टोपी की तरह दिखने वाला यह किप्पा जल्द ही इनका धार्मिक प्रतीक बन गया. यहूदियों से सिर ढकने की उम्मीद की जाती थी लेकिन कपड़े को लेकर कोई अनिवार्यता नहीं थी. यहूदी धार्मिक कानूनों (हलाखा) के तहत पुरुषों और लड़कों के लिए प्रार्थना के वक्त और धार्मिक स्थलों में सिर ढकना अनिवार्य था.
तस्वीर: picture alliance/dpa/W. Rothermel
शाइटल
अति रुढ़िवादी माना जाने वाला हेसिडिक यहूदी समुदाय विवाहित महिलाओं के लिए कड़े नियम बनाता है. न्यूयॉर्क में रह रहे इस समुदाय की महिलाओं के लिए बाल मुंडवा कर विग पहनना अनिवार्य है. जिस विग को ये महिलाएं पहनती हैं उसे शाइटल कहा जाता है. साल 2004 में शाइटल पर एक विवाद भी हुआ था. ऐसा कहा गया था जिन बालों का शाइटल बनाने में इस्तेमाल किया जाता है उसे एक हिंदू मंदिर से खरीदा गया था.
तस्वीर: picture-alliance/Photoshot/Y. Dongxun
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गुड़गांव में कुछ हिंदुओं ने अपने घर और दुकानें मुसलमानों को नमाज के लिए उपलब्ध करवा दिए. सिखों ने गुरुद्वारे में नमाज अदा करने की इजाजत दे दी. खान कहते हैं, "ये बातें हमें उम्मीद बंधाती हैं. खुले में नमाज किसी के लिए पेरशानी या चिंता की बात नहीं होनी चाहिए. ये जगह सबके लिए हैं फिर चाहे वह प्रार्थना हो या क्रिकेट. और इन्हें ऐसे ही रहना चाहिए."