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कत्लेआम, जिसे स्वीकार करने में जर्मनी को सौ साल लग गए

३१ मई २०२१

अतीत के कुछ हिस्से ऐसे होते हैं जो बार बार हमारे वर्तमान के सामने आकर खड़े हो जाते हैं. ऐसा ही एक हिस्सा है नामीबिया में सौ साल पहले कम से कम 70 हजार लोगों का कत्लेआम, जिनके खून के छींटे जर्मनी के दामन पर हैं.

Namibia, Windhuk I Denkmal zur Erinnerung an den Völkermord von Herero und Nama
जर्मन औपनिवेशिक सैनिकों ने बगावत को बर्बरता से कुचला थातस्वीर: Jürgen Bätz/dpa/picture alliance

जर्मनी ने माना है कि उसने नामीबिया में उसके औपनिवेशिक शासन के दौरान जनसंहार हुआ था. इसके साथ ही जर्मनी ने नामीबिया को एक अरब यूरो देने का वादा किया जिसके जरिए जनसंहार पीड़ितों के वशंजों की मदद की जाएगी. नामीबिया ने इसका स्वागत करते हुए इसे "पहला कदम" बताया है. लेकिन कई सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि क्या वित्तीय मदद से वे जख्म भर सकते हैं जो एक सदी से भी ज्यादा समय से रिस रहे हैं.

नामीबिया अफ्रीकी महाद्वीप के दक्षिणी हिस्से में है जो 1884 से 1915 तक जर्मनी का गुलाम रहा. इस दौरान जर्मन अधिकारियों ने जो जुल्म वहां के लोगों पर ढाए, उनकी वजह से दशकों तक जर्मनी और नामीबिया के रिश्ते खराब रहे. नामीबिया में जर्मन शासन की बागडोर संभाल रहे अधिकारियों ने 1904 से 1908 के बीच स्थानीय हरेरो और नामा कबीलों के दसियों हजार लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इतिहासकार इसे बीसवीं सदी का पहला जनसंहार कहते हैं.

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रक्त रंजित इतिहास

जर्मन उपनिवेश के दौरान नामीबिया को जर्मन साउथ वेस्ट अफ्रीका कहा जाता था. जर्मनी का शासन खत्म होने के बाद उस पर 75 साल तक दक्षिण अफ्रीका का नियंत्रण रहा और 1990 में वह आखिरकार एक स्वतंत्र देश बना.

नामीबिया में जर्मन औपनिवेशिक शासन के दौरान तनाव की शुरुआत 1904 में हुई, जब स्थानीय हरेरो कबीले के लोगों को मवेशियों और जमीन से वंचित कर दिया गया. यही नहीं, उनकी स्त्रियों को भी चुराया गया. फिर उन्होंने औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ खड़े होने का फैसला किया. उनके लड़ाकों ने चंद दिनों के भीतर 123 जर्मन लोगों की जान ले ली. कुछ समय बाद नामा लोग भी इस बगावत में शामिल हो गए.

अक्टूबर 1904 में इस बगावत को कुचलने के लिए बर्लिन से जर्मन जनरल लोथार फॉन ट्रोथा को भेजा गया जिसने हरेरो लोगों के खिलाफ "समूल विनाश आदेश" पर हस्ताक्षर किए. उसने कहा, "जर्मन सीमाओं के भीतर जो भी हरेरो व्यक्ति है, चाहे उसके पास बंदूक हो या ना हो, मवेशी हो या नहीं हो, उसे गोली मार कर मौत के घाट उतारा जाएगा."

मरे हुए सैकड़ों लोगों के सिर काटकर उनकी खोपड़ियों को बर्लिन लाया गया थातस्वीर: Imago/epd

अत्याचार

अगस्त 1904 में वाटरबर्ग की लड़ाई में लगभग 80 हजार हरेरो बोत्सवाना की तरफ भाग खड़े हुए. इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. जर्मन सैनिकों ने कालाहारी रेगिस्तान के दूसरे छोर तक उनका पीछा किया. इनमें से सिर्फ 15 हजार लोग ही बच पाए थे.

माना जाता है कि 1904 से 1908 के बीच कम से कम 60 हजार हरेरो और 10 हजार नामा लोगों को कत्ल किया गया. औपनिवेशिक सैनिकों ने बड़े पैमाने पर लोगों को फांसी पर लटकाया, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को रेगिस्तान में धकेल दिया, जहां हजारों लोग प्यास से ही मर गए. नाजी जनसंहार से दशकों पहले नामीबिया में यातना शिविर बनाए गए, जहां लोगों को मौत के घाट उतारा गया.

सैकड़ों हरेरो और नामा लोगों की मौत के बाद उनके सिर काटे गए और उनकी खोपड़ियां बर्लिन में रिसर्चरों को दी गईं, जो काले लोगों पर गोरे लोगों की नस्लीय सर्वोच्चता साबित करने के लिए तथाकथित "प्रयोग" कर रहे थे. 1924 में जर्मनी के एक म्यूजियम में इनमें से कुछ हड्डियां एक अमेरिकी संग्रहकर्ता को भी बेची थीं जिसने बाद में उन्हें न्यूयॉर्क के नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम को दान कर दिया था. बीसवीं सदी की शुरुआत में नामीबिया की आबादी में हरेरो लोगों की हिस्सेदार 40 प्रतिशत थी. आज वे देश की आबादी में सात प्रतिशत से भी कम हैं.

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माफी

जर्मनी के इतिहास का यह ऐसा काला अध्याय है जिसके बारे में आम जर्मनों को ज्यादा जानकारी नहीं है. लेकिन अब जर्मन सरकार ने अपने इस अतीत को स्वीकारा है. बीते पांच साल से जर्मनी और नामीबिया के बीच 1884 से 1915 तक की घटनाओं को लेकर वार्ता चल रही थी.

पिछले दिनों जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास ने कहा, "हम अब आधिकारिक रूप से इन घटनाओं को आज के नजरिए से जनसंहार कहेंगे." उन्होंने कहा, "जर्मनी की ऐतिहासिक और नैतिक जिम्मेदारी की रोशनी में, हम इन अत्याचारों के लिए नामीबिया और पीड़ितों के वंशजों से माफी चाहते हैं."

नामीबिया के लिए आर्थिक मदद का ऐलान करते हुए जर्मन विदेश मंत्री ने कहा, "पीड़ितों को होने वाली असीम पीड़ा को देखते हुए" जर्मनी 1.1 अरब यूरो के वित्तीय कार्यक्रम के जरिए नामीबिया के "पुनर्निर्माण और विकास" में सहयोग करेगा. सूत्रों का कहना है कि यह राशि तीस वर्षों के दौरान दी जाएगी और इससे हरेरो और नामा लोगों के वशंजों को फायदा होगा. हालांकि मास ने कहा कि इस राशि से किसी तरह के "मुआवजे के लिए कानूनी आग्रह" का रास्ता नहीं खुलेगा.

समझौते पर आपत्तियां

नामीबिया के राष्ट्रपति हागे गाइनगोब के प्रवक्ता ने जर्मनी की तरफ से आधिकारिक तौर पर जनसंहार को स्वीकार किए जाने को "सही दिशा में पहला कदम बताया है." उन्होंने कहा, "यह दूसरे कदम का आधार बनेगा जो माफी है और उसके बाद आता है मुआवजा."

दोनों देशों के बीच हुए समझौते को अभी जर्मनी और नामीबिया की संसद से मंजूरी हासिल करनी होगी. लेकिन दोनों ही देशों के कुछ सामाजिक कार्यकर्ता इसमें प्रत्यक्ष तौर पर मुआवजे की बात शामिल ना होने की आलोचना कर रहे हैं.

जर्मनी में "बर्लिन पोस्टकोलोनियल" नाम की एक पहल का कहना है कि यह समझौता "नाकाम होगा" और इसका "उस कागज के बराबर भी मूल्य नहीं है जिस पर यह दर्ज है." इस समूह का कहना है कि दोनों देशों की वार्ता में हरेरो और नामा लोगों से पर्याप्त सलाह मशविरा नहीं किया गया. नामीबिया में कुछ हरेरो नेताओं ने भी समझौते पर अपनी आपत्ति जताई है. 

एके/एमजे (एएफपी)

नामीबिया का जनसंहार जर्मन इतिहास का एक काला अध्याय हैतस्वीर: picture-alliance/akg-images
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