पेलोसी: ताइवान को अलग-थलग करने की इजाजत नहीं देगा अमेरिका
५ अगस्त २०२२
नैंसी पेलोसी अपने एशियाई दौरे के अंतिम चरण में टोक्यो पहुंचीं. ताइवान की अपनी विवादास्पद यात्रा के बाद, पेलोसी ने कहा कि अमेरिका इस क्षेत्र में "यथास्थिति में कोई बदलाव" नहीं चाहता है.
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पेलोसी ने शुक्रवार को अपने एशिया दौरे के अंतिम चरण में जापान की राजधानी टोक्यो पहुंचने के बाद संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि अमेरिका चीन को इजाजत नहीं देगा कि वह ताइवान को अलग-थलग करे. पेलोसी ताइवान की एक विवादास्पद यात्रा के बाद टोक्यो पहुंची, जिससे बीजिंग नाराज हो गया है.
पेलोसी ने कहा, "वे ताइवान को किसी स्थान पर जाने या अन्य स्थानों पर जाने से रोकने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन वे हमें वहां जाने से रोकने की कोशिश करके ताइवान को अलग-थलग नहीं कर सकते."
यूएस हाउस स्पीकर ने कहा, "हमने उच्च स्तरीय दौरे किए हैं, हमारे सीनेटर वहां गए हैं, यात्राएं जारी हैं और हम उन्हें ताइवान को अलग-थलग करने की अनुमति नहीं देंगे."
पेलोसी ने कहा कि सिंगापुर, मलेशिया, ताइवान, दक्षिण कोरिया और जापान की उनकी यात्रा से "किसी भी तरह से यथास्थिति को बदलने का इरादा नहीं है."
उन आरोपों के जवाब में कि उनकी यात्रा से मालूम चलता है कि अमेरिका ताइवान की स्वतंत्रता का समर्थन करता है, तो पेलोसी ने कहा, "हम शुरू से ही कह रहे हैं कि मौजूदा स्थिति में हमारा एशिया या ताइवान में जो प्रतिनिधित्व है, यह किसी भी बदलाव के लिए नहीं है."
उन्होंने कहा, "यह ताइवान संबंध अधिनियम, अमेरिकी चीन नीति का हिस्सा है. यह उन सभी कानूनों और संधियों के तहत है जिन पर हमारा संबंध आधारित है. यह यात्रा ताइवान स्ट्रेट में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए है."
जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने कहा कि चीन की कार्रवाइयों का हमारे क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शांति और स्थिरता पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. फुमियो किशिदा ने ताइवान के आसपास सैन्य अभ्यास के दौरान चीन द्वारा मिसाइलों के परीक्षण की निंदा की, उन्हें कहा "यह एक गंभीर मुद्दा है जो राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकों की सुरक्षा को प्रभावित करता है" नैंसी पेलोसी से मुलाकात के बाद पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, ''इस बार चीन की हरकतों का हमारे क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शांति और स्थिरता पर गंभीर असर पड़ रहा है.''
चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि नैंसी पेलोसी की यात्रा ने ताइवान स्ट्रेट की स्थिरता को नुकसान पहुंचाया है.
एए/सीके (एपी, एएफपी)
कैसे शुरू हुआ ताइवान और चीन के बीच झगड़ा
1969 में साम्यवादी चीन को चीन के रूप में मान्यता मिली. तब से ताइवान को चीन अपनी विद्रोही प्रांत मानता है. एक नजर डालते हैं दोनों देशों के उलझे इतिहास पर.
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जापान से मुक्ति के बाद रक्तपात
1945 में दूसरे विश्वयुद्ध के खत्म होने के साथ ही जापानी सेना चीन से हट गई. चीन की सत्ता के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के नेता माओ त्सेतुंग और राष्ट्रवादी नेता चियांग काई-शेक के बीच मतभेद हुए. गृहयुद्ध शुरू हो गया. राष्ट्रवादियों को हारकर पास के द्वीप ताइवान में जाना पड़ा. चियांग ने नारा दिया, हम ताइवान को "आजाद" कर रहे हैं और मुख्य भूमि चीन को भी "आजाद" कराएंगे.
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चीन की मजबूरी
1949 में ताइवान के स्थापना के एलान के बाद भी चीन और ताइवान का संघर्ष जारी रहा. चीन ने ताइवान को चेतावनी दी कि वह "साम्राज्यवादी अमेरिका" से दूर रहे. चीनी नौसेना उस वक्त इतनी ताकतवर नहीं थी कि समंदर पार कर ताइवान पहुंच सके. लेकिन ताइवान और चीन के बीच गोली बारी लगी रहती थी.
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यूएन में ताइपे की जगह बीजिंग
1971 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने चीन के आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में सिर्फ पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को चुना. इसके साथ ही रिपब्लिक ऑफ चाइना कहे जाने वाले ताइवान को यूएन से विदा होना पड़ा. ताइवान के तत्कालीन विदेश मंत्री और यूएन दूत के चेहरे पर इसकी निराशा साफ झलकी.
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नई ताइवान नीति
एक जनवरी 1979 को चीन ने ताइवान को पांचवा और आखिरी पत्र भेजा. उस पत्र में चीन के सुधारवादी शासक डेंग शिआयोपिंग ने सैन्य गतिविधियां बंद करने और आपसी बातचीत को बढ़ावा देने व शांतिपूर्ण एकीकरण की पेशकश की.
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"वन चाइना पॉलिसी"
एक जनवरी 1979 के दिन एक बड़ा बदलाव हुआ. उस दिन अमेरिका और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के बीच आपसी कूटनीतिक रिश्ते शुरू हुए. जिमी कार्टर के नेतृत्व में अमेरिका ने स्वीकार किया कि बीजिंग में ही चीन की वैधानिक सरकार है. ताइवान में मौजूद अमेरिकी दूतावास को कल्चरल इंस्टीट्यूट में तब्दील कर दिया गया.
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"एक चीन, दो सिस्टम"
अमेरिकी राष्ट्रपति कार्टर के साथ बातचीत में डेंग शिआयोपिंग ने "एक देश, दो सिस्टम" का सिद्धांत पेश किया. इसके तहत एकीकरण के दौरान ताइवान के सोशल सिस्टम की रक्षा का वादा किया गया. लेकिन ताइवान के तत्कालीन राष्ट्रपति चियांग चिंग-कुओ ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. 1987 में ताइवानी राष्ट्रपति ने एक नया सिद्धांत पेश किया, जिसमें कहा गया, "बेहतर सिस्टम के लिए एक चीन."
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स्वतंत्रता के लिए आंदोलन
1986 में ताइवान में पहले विपक्षी पार्टी, डेमोक्रैटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) की स्थापना हुई. 1991 के चुनावों में इस पार्टी ने ताइवान की आजादी को अपने संविधान का हिस्सा बनाया. पार्टी संविधान के मुताबिक, ताइवान संप्रभु है और पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का हिस्सा नहीं है.
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एक चीन का पेंच
1992 में हॉन्ग कॉन्ग में बीजिंग और ताइपे के प्रतिनिधियों की अनऔपचारिक बैठक हुई. दोनों पक्ष आपसी संबंध बहाल करने और एक चीन पर सहमत हुए. इसे 1992 की सहमति भी कहा जाता है. लेकिन "एक चीन" कैसा हो, इसे लेकर दोनों पक्षों के मतभेद साफ दिखे.
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डीपीपी का सत्ता में आना
सन 2000 में पहली बार विपक्षी पार्टी डीपीपी के नेता चेन शुई-बियान ने राष्ट्रपति चुनाव जीता. मुख्य चीन से कोई संबंध न रखने वाले इस ताइवान नेता ने "एक देश दोनों तरफ" का नारा दिया. कहा कि ताइवान का चीन से कोई लेना देना नहीं है. चीन इससे भड़क उठा.
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"एक चीन के कई अर्थ"
चुनाव में हार के बाद ताइवान की केमटी पार्टी ने अपने संविधान में "1992 की सहमति" के शब्द बदले. पार्टी कहने लगी, "एक चीन, कई अर्थ." अब 1992 के समझौते को ताइवान में आधिकारिक नहीं माना जाता है.
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पहली आधिकारिक मुलाकात
चीन 1992 की सहमति को ताइवान से रिश्तों का आधार मानता है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 2005 में पहली बार ताइवान की केएमटी पार्टी और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेताओं की मुलाकात हुई. चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ (दाएं) और लियान झान ने 1992 की सहमति और एक चीन नीति पर विश्वास जताया.
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"दिशा सही है"
ताइवान में 2008 के चुनावों में मा यिंग-जेऊ के नेतृत्व में केएमटी की जीत हुई. 2009 में डॉयचे वेले को दिए एक इंटरव्यू में मा ने कहा कि ताइवान जलडमरूमध्य" शांति और सुरक्षित इलाका" बना रहना चाहिए. उन्होंने कहा, "हम इस लक्ष्य के काफी करीब हैं. मूलभूत रूप से हमारी दिशा सही है."
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मा और शी की मुलाकात
नवंबर 2015 में ताइवानी नेता मा और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई. दोनों के कोट पर किसी तरह का राष्ट्रीय प्रतीक नहीं लगा था. आधिकारिक रूप से इसे "ताइवान जलडमरूमध्य के अगल बगल के नेताओं की बातचीत" कहा गया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में मा ने "दो चीन" या "एक चीन और एक ताइवान" का जिक्र नहीं किया.
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आजादी की सुगबुगाहट
2016 में डीपीपी ने चुनाव जीता और तसाई इंग-वेन ताइवान की राष्ट्रपति बनीं. उनके सत्ता में आने के बाद आजादी का आंदोलन रफ्तार पकड़ रहा है. तसाई 1992 की सहमति के अस्तित्व को खारिज करती हैं. तसाई के मुताबिक, "ताइवान के राजनीतिक और सामाजिक विकास में दखल देने चीनी की कोशिश" उनके देश के लिए सबसे बड़ी बाधा है. (रिपोर्ट: फान वांग/ओएसजे)