1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अरुणाचल प्रदेश: चीनी गांवों के मुकाबले भारत की भी तैयारी तेज

प्रभाकर मणि तिवारी
१९ फ़रवरी २०२४

अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास चीन ने गतिविधियां बढ़ा दी हैं. भारत भी सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचा विकसित करने पर काफी ध्यान दे रहा है. विकास परियोजनाओं में बड़ा निवेश किया जा रहा है.

अप्रैल 2023 की इस तस्वीर में चीन से सटी सीमा के पास भारत का एक बॉर्डर पोस्ट नजर आ रहा है.
सेटेलाइट से मिली हालिया तस्वीरों से पता चला है कि चीन ने अपनी तरफ के सीमावर्ती इलाकों में बनाए गए गांवों में लोगों और पूर्व सैनिकों को बसाना शुरू कर दिया है. तस्वीर: Arun Sankar/AFP/Getty Images

चीन भारत के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानते हुए इस पर अपना दावा करता रहा है. हालिया वर्षों में उसने सीमावर्ती इलाकों में अपनी गतिविधियां काफी बढ़ा दी हैं. चीन की बढ़ती सक्रियता से चिंतित भारत सरकार ने भी अब बड़े पैमाने पर इससे निपटने की कवायद शुरू कर दी है. इसके तहत सीमा से सटे इलाकों में बसे दुर्गम गांवों तक सड़कों का जाल बिछाना, मॉडल गांव विकसित करना और इलाके में बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाएं शुरू करना शामिल है. 

केंद्र सरकार के मुताबिक, इन परियोजनाओं का एक मकसद इलाके में पर्यटन के जरिए रोजगार के नए अवसर पैदा करना भी है, ताकि स्थानीय युवक चीनी सेना के झांसे में न पड़ें. इसके साथ ही, कनेक्टिविटी बेहतर होना सामरिक दृष्टि से काफी अहम है. इससे जरूरत पड़ने पर सेना और सैन्य साजो-सामान बहुत कम समय में मोर्चे तक पहुंचाए जा सकते हैं.

नई परियोजनाओं को हरी झंडी

चीन की ओर से सीमावर्ती इलाकों में नए गांव बसाने की खबरें तो कुछ साल पहले ही आई थीं. अब सेटेलाइट से मिली हालिया तस्वीरों से पता चला है कि चीन ने उन वीरान पड़े गांवों में लोगों और पूर्व सैनिकों को बसाना शुरू कर दिया है. इन खबरों के मद्देनजर सरकार ने उच्च-स्तरीय बैठकों में परिस्थिति की समीक्षा के बाद इलाके में जारी आधारभूत परियोजनाओं का काम तेज करने का फैसला किया है.

सितंबर 2023 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सीमावर्ती इलाकों के लिए 2,900 करोड़ लागत की 90 परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाई थी. अक्टूबर में वह राज्य के सीमावर्ती इलाकों के दौरे पर भी गए थे. तवांग और उससे जुड़े सीमावर्ती इलाकों को पूरे साल देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने के लिए 700 करोड़ की लागत से करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई पर बने सेला पास का काम पूरा हो गया है.

यह परियोजना असम की राजधानी गुवाहाटी को तवांग से जोड़ेगी और पूरे साल खुली रहेगी. सेना के एक अधिकारी बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जल्द ही इसका औपचारिक उद्घाटन करेंगे. इससे सैनिकों और सैन्य साजो-सामान को सीमावर्ती इलाको में भेजने में काफी सहूलियत हो जाएगी. सेला सुरंग की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके भीतर से गुजरने की स्थिति में चीन वहां यातायात और आवाजाही की निगरानी नहीं कर सकेगा.

सीमावर्ती इलाकों में सभी मौसमों में खुली रहने वाली सड़कों की मौजूदगी और बेहतर कनेक्टिविटी सामरिक दृष्टि से भी काफी अहम है. इससे जरूरत पड़ने पर सेना और सैन्य साजो-सामान बहुत कम समय में मोर्चे तक पहुंचाए जा सकते हैं.तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

आधारभूत ढांचे की बेहतरी पर ध्यान

एक सरकारी अधिकारी आंकड़ों के हवाले बताते हैं कि केंद्र सरकार इलाके में आधारभूत सुविधाओं के विकास के प्रति बेहद गंभीर है. सितंबर 2023 में लगभग 2,900 करोड़ की परियोजनाओं के उद्घाटन से पहले साल 2022 में भी 2,900 करोड़ लागत की 103 परियोजनाओं का उद्घाटन किया गया था.

एक अन्य अहम परियोजना के तहत, ब्रह्मपुत्र नदी के नीचे लगभग 15 किलोमीटर लंबी जुड़वां सुरंगों का निर्माण किया जाना है. इससे असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच यात्रा में लगने वाला समय काफी कम हो जाएगा. सरकार ने सीमावर्ती इलाकों में कनेक्टिविटी बेहतर बनाने के लिए 40 हजार करोड़ की लागत वाली 2,000 किलोमीटर लंबे फ्रंटियर हाई-वे के निर्माण की भी योजना बनाई है.

यह सड़क अरुणाचल में मागो से शुरू होकर राज्य के सीमावर्ती इलाकों से गुजरते हुए म्यांमार सीमा से सटे विजयनगर तक जाएगी. सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के एक अधिकारी बताते हैं कि यह भारत की अब तक की सबसे बड़ी और कठिन सड़क परियोजना है. यह मैकमोहन लाइन को कवर करते हुए नियंत्रण रेखा से करीब 25 किलोमीटर भीतर बनेगी.

केंद्र ने तवांग और उससे सटे सीमावर्ती इलाकों तक मोबाइल कनेक्टिविटी मुहैया करा दी है. इससे आम लोग भी तेज गति वाले इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं. तवांग में 800 मेगावाट क्षमता वाली तवांग-2 पनबिजली परियोजना के निर्माण की भी योजना है. नेशनल हाइड्रो पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) के सूत्रों ने बताया कि साल 2026 में इसका काम शुरू होगा और 2030 तक यहां व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो जाएगा.

भारतीय रेल भी देश के उत्तरपूर्वी इलाकों में सामरिक दृष्टि से बेहम अहम रेलवे नेटवर्क बना रही है. तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

सीमावर्ती गांवों के विकास की विस्तृत योजना

अरुणाचल प्रदेश के सरकारी अधिकारियों का दावा है कि चीन, तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के साथ लगी भारतीय सीमा पर 628 गांव बसाने की तैयारी कर रहा है. वह बीते पांच साल से इस काम में जुटा है. इन गांवों में ऐसे भवन बनाए गए हैं, जिनका इस्तेमाल आम लोगों के अलावा सेना भी कर सकती है. यही वजह है कि केंद्र सरकार इस मामले को गंभीरता से ले रही है.

चीन ने साल 2021 में पारित एक कानून के तहत सीमा सुरक्षा को मजबूत करने के मकसद से इन गावों में लोगों को बसाने का फैसला किया था. वह कानून भले 1 जनवरी 2022 को लागू हुआ, लेकिन सीमा पर निर्माण की गतिविधियां उससे पहले ही शुरू हो गई थीं. इसकी काट के लिए भारत सरकार ने भी साल 2022 में 'वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम' शुरू किया. इसके तहत सीमावर्ती गांवों को विकसित कर वहां कनेक्टिविटी मजबूत करने और पर्यटन के लिहाज से उन्हें बढ़ावा देने का फैसला किया गया.

सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, इस कार्यक्रम के तहत पहले चरण में सीमा पर बसे 663 गांवों को विकसित किया जाएगा. ये गांव लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में फैले हैं. अरुणाचल में पहले चरण के अंतर्गत तवांग इलाके के जेमिथांग, टाकसिंग, चायांग ताजो, टूटिंग, काहो, मेशाई और किबिथू गांवों को चुना गया है. राज्य के अंजाव जिले के तीन गांवों- काहो, किबिथू और मेशाई तक अब बिजली, पानी और सड़कों के साथ मोबाइल फोन और इंटरनेट भी पहुंच गया है.

अरुणाचल प्रदेश में चीन के इरादों पर भारत चौकस

04:38

This browser does not support the video element.

स्थानीय लोग क्या बताते हैं

काहो को भारत का पहला गांव कहा जाता है. यहां के एक निवासी के. सेरिंग मेयोर कहते हैं, "बीते कुछ महीनों में गांव की तस्वीर बदल गई है. हम लोग बेहद खुश हैं. चीनी गतिविधियों से निपटने के लिए गांव के लोग इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) और स्थानीय प्रशासन को पूरा सहयोग दे रहे हैं. वे कहते हैं कि अरुणाचल प्रदेश कभी चीन का हिस्सा नहीं बन सकता है. हम भारतीय हैं और यह राज्य भारत का अभिन्न हिस्सा है." मेयोर बताते हैं कि सड़कें बन जाने के कारण पहले यहां से जिस इलाके में जाने के लिए तीन दिन तक पैदल चलना पड़ता था, अब उस यात्रा में महज तीन घंटे लगते हैं.

तवांग में पर्यटन के कारोबार से जुड़े टी.के.शेरिंग बताते हैं कि अब खासकर रोड और मोबाइल संपर्क के मामले में इलाके की तस्वीर पूरी तरह बदल गई है. कई दुर्गम सीमावर्ती इलाकों में मोबाइल टावर लगाए जा चुके हैं और कई इलाकों में इस पर काम चल रहा है. इसी तरह दुर्गम गांवों को सड़क से जोड़ने का काम भी तेजी से आगे बढ़ रहा है.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें