भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में पहले चरण के मतदान की पूर्व संध्या पर दिए एक इंटरव्यू में भरोसा जताया कि राज्य की जनता फिर उन्हें स्वीकार करेगी.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीतस्वीर: Adnan Abidi/REUTERS
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मोदी ने कहा,'' बीजेपी गठबंधन ने यूपी में 2014 में जीता और फिर 2017 और 2019 में भी उसे जीत मिली. यूपी ने उस पुरानी थ्योरी को खारिज कर दिया जो कहती है कि यहां एक बार जीतने वाला अपनी सफलता की कहानी दूसरी बार नहीं दोहराता. मुझे उम्मीद है कि यूपी की जनता हमारा काम देख कर 2022 में भी हमें गले लगाएगी.”
एक घंटा दस मिनट चले इस इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने दोहराया कि भारतीय जनता पार्टी सबका साथ, सबका विकास में विश्वास करती है. उन्होंने कहा कि हम जोड़ने में विश्वास करते हैं, तोड़ने में नहीं. मोदी ने वंशवादी राजनीति और केंद्र-राज्य संबंधों पर भी बात की.
यूपी में समाजवादी पार्टी के नेतृत्व वाले विपक्षी दलों के गठबंधन को उन्होंने ‘दो लड़कों का खेल' बताते हुए खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ''दो लड़कों का यह खेल हम पहले भी देख चुके हैं. उनका अहंकार इतना बढ़ गया था कि उन्होंने ''गुजरात के दो गधे'' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया था. लेकिन यूपी ने उन्हें सबक सिखा दिया. दूसरी बार इन दो लड़कों के साथ ''बुआ जी'' भी मिल गईं. फिर भी वे नाकाम रहे.''
विपक्ष पर तीखी टिप्पणियां
कांग्रेस पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा, "'कांग्रेस की कार्यशैली और विचारधारा के आधार संप्रदायवाद, जातिवाद, भाषावाद, प्रांतवाद, भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार हैं. अगर यही इस देश की मुख्य धारा में रहेगा तो देश का कितना बड़ा नुकसान होगा. देश की आज जो हालत है उसमें सबसे जिम्मेदार कोई मुख्य धारा है तो वह कांग्रेस है. इस देश को जितने प्रधानमंत्री मिले उनमें अटल जी और मुझे छोड़कर सारे प्रधानमंत्री कांग्रेस स्कूल के ही थे.'”
पंजाब चुनाव पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी राज्य में सबसे विश्वसनीय पार्टी बनकर उभरी है. मोदी ने कहा, "'आज भाजपा पंजाब में सबसे विश्वसनीय पार्टी बनकर उभरी है. समाज जीवन के बहुत से वरिष्ठ लोग, राजनीति के बहुत बड़े महारथी भी अपने पुराने दल छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए हैं. हमने छोटे किसानों के लिए जो काम किया है, उसकी पंजाब में जबरदस्त पहुंच है.”
सीधा चुनाव लड़े बिना कौन कौन बना मुख्यमंत्री
भारत के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में पिछले 15 सालों से मुख्यमंत्री विधान सभा की जगह विधान परिषद के सदस्य रहे हैं. एक नजर बिना सीधा चुनाव लड़े सत्ता पाने वाले नेताओं पर.
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योगी आदित्यनाथ
बीजेपी नेता योगी आदित्यनाथ मार्च 2017 से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. 2017 में राज्य के चुनावों में जीत हासिल करने के बाद जब बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए चुना था उस समय वो गोरखपुर से लोक सभा के सदस्य थे. मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्हें लोक सभा से इस्तीफा देना पड़ा. लेकिन उसके बाद वो विधान सभा की किसी सीट से उपचुनाव लड़ने की जगह विधान परिषद के सदस्य बन गए.
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अखिलेश यादव
उनसे पहले समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव भी मार्च 2012 से मार्च 2017 के बीच जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब वे भी विधान परिषद के ही सदस्य थे. आदित्यनाथ की तरह अखिलेश भी मुख्यमंत्री बनने से पहले लोक सभा के सदस्य थे.
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मायावती
अखिलेश से पहले मई 2007 से मार्च 2012 तक प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती भी उस कार्यकाल में विधान परिषद की ही सदस्य थीं. बतौर मुख्यमंत्री यह उनका चौथा कार्यकाल था. इससे पहले के कार्यकालों में वो 2002 और 1997 में विधान सभा की सदस्य रहीं.
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नीतीश कुमार
नीतीश कुमार पिछले 17 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री हैं. बस बीच में मई 2014 से फरवरी 2015 के बीच नौ महीनों के लिए वो पद पर नहीं थे. अपने पूरे कार्यकाल में वो बिहार विधान परिषद के ही सदस्य रहे हैं.
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राबड़ी देवी
नीतीश कुमार के पहले राबड़ी देवी तीन बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं. तीन कार्यकालों में से दो बार वो विधान परिषद की सदस्य रहीं और एक बार विधान सभा की.
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लालू प्रसाद यादव
राबड़ी देवी से पहले उनके पति लालू प्रसाद यादव दो बार मुख्यमंत्री रहे. वो एक कार्यकाल में विधान परिषद के सदस्य रहे और एक में विधान सभा के.
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उद्धव ठाकरे
शिव सेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे नवंबर 2019 से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं और विधान परिषद के सदस्य हैं. उनसे पहले मुख्यमंत्री रहे बीजेपी देवेंद्र फडणवीस तो विधान सभा के सदस्य थे, लेकिन फडणवीस से पहले मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण विधान परिषद के सदस्य थे.
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कुछ ही राज्यों में होता है
इस सूची में इतने सारे दिग्गज नेताओं के नाम देख कर आप शायद सोच रहे हों कि यह चलन भारतीय राजनीति में आम हो गया है. हालांकि यह परिपाटी कुछ ही राज्यों तक सीमित है. भारत के 28 राज्यों में से सिर्फ छह में ही विधान सभा के अलावा विधान परिषद भी हैं. इनमें बिहार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के अलावा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक शामिल हैं.
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राष्ट्रीय स्तर पर
प्रधानमंत्री का राज्य सभा का सदस्य होना भी कुछ हद तक मुख्यमंत्री का विधान परिषद का सदस्य होने जैसा है. भारत में चार प्रधानमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान राज्य सभा के सदस्य रहे हैं. तीन बार प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी अपने पहले कार्यकाल के दौरान राज्य सभा की सदस्य थीं.
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एच डी देवगौड़ा
एच डी देवगौड़ा जब जून 1996 में प्रधानमंत्री चुने गए थे उस समय वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. सितंबर में उन्होंने राज्य सभा की सदस्यता ले ली थी. बाद में वो कई बार चुन कर लोक सभा के सदस्य भी बने, लेकिन प्रधानमंत्री के अपने छोटे कार्यकाल के दौरान वो राज्य सभा के ही सदस्य थे.
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आइके गुजराल
1990 के राजनीतिक उथल पुथल वाले दशक में देवगौड़ा की तरह आईके गुजराल भी एक छोटे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री चुने गए थे और उस दौरान वो राज्य सभा के सदस्य रहे. वो दो बार लोक सभा के भी सदस्य रहे.
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मनमोहन सिंह
राज्य सभा से प्रधानमंत्रियों के बीच सबसे लंबा कार्यकाल मनमोहन सिंह का है. वो मई 2004 से मई 2014 तक प्रधानमंत्री रहे और इस दौरान वो राज्य सभा के ही सदस्य रहे. वो कभी लोक सभा के सदस्य नहीं रहे. 1999 में उन्होंने सिर्फ एक बार लोक सभा का चुनाव जरूर लड़ा था लेकिन हार गए थे.
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नरेंद्र मोदी ने किसानों से जुड़े कानून वापस लेने के मुद्दे पर ज्यादा कुछ बोलने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि मामला सुप्रीम कोर्ट में है. उन्होंने कहा, "मैं किसानों का दिल जीतने के लिए आया हूं. और मैंने ऐसा भी किया है. मैं छोटे किसानों की पीड़ा को समझता हूं. मैंने कहा था कृषि कानून किसानों के लाभ के लिए लागू किए गए थे लेकिन राष्ट्रीय हित में उसे वापस लिया गया. बहरहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट के पास है. लिहाजा मैं इस पर ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा. हमें इस पर थोड़ा इंतजार करना होगा.”
इंटरव्यू ‘मास्टरस्ट्रोक'
नरेंद्र मोदी ने इंटरव्यू देने के लिए एक बार फिर समाचार एजेंसी एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश को चुना, जो ट्विटर पर अक्सर उनके और उनकी पार्टी के समर्थन में लिखती हैं. इस कारण कई विशेषज्ञों और पत्रकारों ने इस इंटरव्यू की मौलिकता और विश्वसनीयता पर सवाल भी उठाए हैं.
एशियन एज अखबार के पत्रकार संजय कॉ ने ट्विटर पर इस इंटरव्यू को मास्टरस्ट्रोक बताते हुए लिखा, "एएनआई की स्मिता प्रकाश को यह इंटरव्यू देकर मोदी ने जी ने बिना एक भी पैसा खर्चे हरेक टीवी चैनल पर प्राइम टाइम हथिया लिया, वो भी उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के महत्वपूर्ण पहले चरण से ठीक एक दिन पहले.”
भारतीय युवा कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव शेष नाराण ओझा ने कहा, "मेरे ख्याल से स्मिता प्रकाश को बेस्ट एक्टर इन सपोर्टिंग रोल के लिए ऑस्कर का नामांकन मिलना चाहिए क्योंकि उन्होंने शानदार ढंग से स्क्रिप्ट को निभाया.”