अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अंतरिक्ष में एक यान भेजा है जो उल्कापिंड 'साइक' की जांच-पड़ताल करेगा. क्या है साइक अभियान?
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साइक दरअसल आत्माओं की ग्रीक देवी का नाम है. ग्रीक कथाओं के मुताबिक साइक का जन्म एक इंसान के रूप में हुआ था. बाद में उसने प्यार के देवता इरोज से विवाह कर लिया. लेकिन इटली के खगोलविद एनीबेल डे गासपारीस ने 1852 में जब एक उल्कापिंड को देखा, तो उसे साइक नाम क्यों दिया, यह एक रहस्य ही है.
जब साइक को खोजा गया तो यह सिर्फ 16वां ज्ञात उल्कापिंड था. आज वैज्ञानिक सैकड़ों उल्कापिंडों के बारे में जानते हैं जिनमें मंगल और बृहस्पति के बीच लाखों चट्टानों और पिंडों की एक पूरी पट्टी शामिल है. इस पट्टी में पृथ्वी से बड़े उल्कापिंड तक शामिल हैं.
लौट आया अंतरिक्ष में फंसा यात्री
एक साल से ज्यादा वक्त बिताने वाले नासा एस्ट्रोनॉट फ्रैंक रूबियो पृथ्वी पर लौट आये हैं. तकनीकी खराबी के कारण वह आईएसएस पर फंस गये थे.
तस्वीर: Dmitri Lovetsky/POOL AP/dpa
लौट आये फ्रैंक रूबियो
नासा एस्ट्रोनॉट फ्रैंक रूबिया पृथ्वी पर लौट आये हैं. बीते बुधवार वह अपने दो और सहयोगियों के साथ कजाखस्तान में उतरे. सोयूज एमएस-3 कैप्सुल में उनके साथ रूसी अंतरिक्ष यात्री सर्गेई प्रोकोपयेव और दिमित्री पेटेलियन भी थे.
तस्वीर: Frank Rubio/NASA/ZUMAPRESS/picture alliance
371 दिन अंतरिक्ष में
रुबियो ने अंतरिक्ष में 371 दिन बिताये. हालांकि वह सिर्फ छह महीने के लिए गये थे लेकिन उन्हें जिस यान से लौटना था, उसमें खराबी आ गयी और वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर फंस गये.
तस्वीर: AFP
अमेरिकी रिकॉर्ड
रूबियो अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा समय तक रहने वाले अमेरिकी बन गये हैं. पिछले हफ्ते आईएसएस से ही दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि यह एक अविश्वसनीय चुनौती थी और बहुत कठिन थी.
तस्वीर: Dmitri Lovetsky/ASSOCIATED PRESS/picture alliance
अंतरिक्ष में रहने का रिकॉर्ड
अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा वक्त बिताने का रिकॉर्ड रूसी यात्री वालेरी पोल्यकोव के नाम है, जिन्होंने 473 दिन बिताये थे. वह 1990 के दशक में अंतरिक्ष में रहे थे.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
धरती के 6,000 चक्कर
रूबियो ने पृथ्वी की कक्षा के लगभग 6,000 चक्कर लगाये और 15.70 करोड़ किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा की. नासा के मुताबिक यह धरती से चांद की 328 यात्राओं के बराबर है.
तस्वीर: Dmitri Lovetsky/POOL AP/dpa
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लेकिन साइक की जगह आज भी खास है. उसका व्यास करीब 226 किलोमीटर है. आलू के आकार का यह उल्कापिंड सबसे बड़ा एम-टाइप उल्कापिंड है, जो मुख्यता लोहे और निकल से बना है. पृथ्वी का अंदरूनी भाग भी इन्हीं धातुओं से बना है.
क्या है साइक अभियान?
नासा ने साइक पर जो यान भेजा है, उसे 3.6 अरब किलोमीटर की यात्रा करनी होगी. इस अभियान में छह साल लगेंगे और इससे मिली सूचनाओं के आधार पर वैज्ञानिक पृथ्वी के उस हिस्से के बारे में और समझ पैदा कर पाएंगे जिस तक पहुंच नहीं है.
एम-टाइप उल्कापिंड दरअसल उन उल्कापिंडों को कहते हैं जो सौरमंडल के शुरुआती दिनों में नष्ट हो गये ग्रहों के टुकड़े हैं. भारी तत्व जैसे कि धातुएं इन उल्कापिंडों के केंद्रीय हिस्सों में धंस गये थे जबकि हल्के तत्व बाहरी परतों में तैरते रहे.
बाद में अन्य पिंडों से टक्कर होने पर ये बाहरी परतें अलग हो गयी और तत्व अलग होकर छितर गये. इस तरह धातुओं से भरपूर केंद्रीय हिस्से बचे रह गये.
पहली बार उल्कापिंड की धूल लेकर लौटा रेक्स
सात साल की यात्रा के बाद नासा का अंतरिक्ष यान उल्कापिंडों के नमूनों का सबसे बड़ा जखीरा लेकर धरती पर लौट आया.
तस्वीर: Rick Bowmer/AP/dpa/picture alliance
सात साल बाद लौटा रेक्स
सात साल तक चले एक अभियान का 24 सितंबर 2023 को सफल पटाक्षेप हुआ जब नासा का अंतरिक्ष यान उल्कापिंडों के नमूनों का सबसे बड़ा जखीरा लेकर धरती पर लौट आया. 24 सितंबर को अमेरिका के यूटा राज्य के रेगिस्तान में यह यान सुरक्षित उतर गया.
तस्वीर: Keegan Barber/AFP
बेनू की धूल
रेक्स ने बेनू की सतह से 250 ग्राम धूल जमा की. नासा का कहना है कि यह थोड़ी सी धूल भी जानकारियों से भरपूर होगी. वे यह भी पता लगा सकेंगे कि किस तरह के उल्कापिंड भविष्य में पृथ्वी के लिए खतरनाक हो सकते हैं.
तस्वीर: Keegan Barber/AFP
बड़ी उम्मीदें
वैज्ञानिकों को बड़ी उम्मीदें हैं कि ये नमूने हमारे सौर मंडल की रचना-संरचना के बारे में समझ में नये अध्याय जोड़ेंगे. साथ ही इस सवाल के जवाब मिलने की भी उम्मीद है कि पृथ्वी का वातावरण कब और कैसे इंसान के रहने लायक बना.
तस्वीर: George Frey/AFP
भावुक पल
ऑसिरिस-रेक्स मिशन की मुख्य वैज्ञानिक दांते लॉरेटा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि जब वैज्ञानिकों को पता चला कि कैपसुल का मुख्य पैराशूट खुल चुका है तो बहुत से लोग भावुक हो गये. लॉरेटो ने कहा, “मेरी आंखों से सच में आंसू बहने लगे थे. यह वो पल था जब हमें यकीन हो गया था कि हम घर लौट आए हैं. मेरे लिए असली साइंस तो अभी शुरू हो रही है.”
तस्वीर: George Frey/AFP
6.21 अरब किलोमीटर की यात्रा
नासा ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा कि 6.21 अरब किलोमीटर की यह यात्रा अपनी तरह का पहला अभियान है. नासा प्रमुख बिल नेल्सन ने अभियान की जमकर तारीफ की और कहा कि उल्कापिंडों की धूल के नमूने “वैज्ञानिकों को हमारे सौर मंडल के शुरुआती दिनों के बारे में अभूतपूर्व जानकारी देंगे.”
तस्वीर: George Frey/AFP
बेनू की यात्रा
ऑसिरिस-रेक्स अभियान का अंतिम चरण बेहद जटिल था लेकिन अमेरिका के स्थानीय समय के मुताबिक सुबह 8.52 बजे यूटा के रेगिस्तान में सेना के ट्रेनिंग रेंज पर उसकी आरामदायक लैंडिंग हुई. इसे 2016 में भेजा गया था और वह बेनू उल्कापिंड पर उतरा था.
तस्वीर: NASA/Goddard/University of Arizona/Handout via REUTERS
भविष्य के लिए
अब इन नमूनों को ह्यूस्टन के जॉनसन स्पेस सेंटर को भेजा जाएगा. करीब एक चौथाई नमूनों का तो फौरन परीक्षण के लिए इस्तेमाल कर लिया जाएगा जबकि कुछ हिस्से को जापान और कनाडा भी भेजा जाएगा. एक हिस्से को भविष्य की पीढ़ियों के लिए संभाल कर रख दिया जाएगा.
तस्वीर: Rick Bowmer/AP/dpa/picture alliance
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ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में जियोफिजिक्स विभाग के प्रमुख प्रोफेसर हर्वोये कालचिच कहते हैं कि ये धातु-भरपूर पिंड ग्रहीय भूभागों के अध्ययन के लिए कुदरती प्रयोगशालाएं हैं.
द कन्वर्सेशन पत्रिका में एक लेख में प्रोफेसर कालचिच लिखते हैं, "हमारे धरती के केंद्रीय हिस्सों के अध्ययन के मौजूदा तरीके अप्रत्यक्ष ही हैं. कभी-कभार धरती पर गिरे उल्कापिंडों से हमें सौर मंडल के शुरुआती इतिहास की कुछ झलक मिल जाती हैं, जो हमारे अपने ग्रह का भी इतिहास है. लेकिन यह बहुत कम होता है."
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साइक अभियान से उम्मीदें
नासा का साइक अभियान धरती के केंद्र की यात्रा जैसा है, जिसके लिए अत्यधिक तापमान वाले द्रव से भरे पृथ्वी के भूगर्भ तक नहीं जाना होगा.
साइक अभियान का मकसद यह पता लगाना है कि साइक का गर्भ कभी उबलता हुआ रहा होगा या नहीं, जो बाद में ठंडा हो गया. यह भी संभव है कि साइक ऐसे पदार्थ से बना हो जो कभी द्रव अवस्था में नहीं रहा.
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नासा यह भी जानना चाहती है कि साइक का धरातल कितना पुराना है. इससे पता चलेगा कि इसकी बाहरी परतें कब टूटी होंगी.
अभियान साइक की रासायनिक संरचना का भी अध्ययन करेगा ताकि पता लगाया जा सके कि लोहे और निकल के अलावा ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, कार्बन, सिलिकन और सल्फर जैसे तत्व भी इस पर मौजूद हैं या नहीं. इन तत्वों की मौजूदगी या गैरमौजूदगी बता सकती है कि हमारे ग्रह का विकास कैसे हुआ.