अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का मार्स रोवर परसिवरेंस 18 फरवरी को लाल ग्रह पर उतरने वाला है. पहली बार नासा का हेलीकॉप्टर इस ग्रह की कई चुनौतियों का सामना भी करेगा.
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पिछले साल नासा ने अपने रोवर के साथ छोटा इंजीन्यूटी हेलीकॉप्टर मंगल ग्रह के लिए भेजा था. इस हेलीकॉप्टर के सामने कई चुनौतियां होंगी जिससे उसे पार पाना होगा. सबसे बड़ी चुनौती वहां का दुर्लभ वातावरण जो कि जो पृथ्वी के घनत्व का सिर्फ एक प्रतिशत है. हालांकि इसे हेलीकॉप्टर कहा जा सकता है लेकिन दिखने में यह मिनी ड्रोन की तरह है. जिसका वजन सिर्फ 1.8 किलोग्राम है, इसके ब्लेड पांच गुणा अधिक तेज रफ्तार से घूमते हैं. इंजीन्यूटी के चार पैर हैं, बक्सानुमा बॉडी है और चार कार्बन फाइबर ब्लेड्स दो विपरीत दिशाओं में घूमते रोटरों में लगे हैं.
इंजीन्यूटी में दो कैमरे, कंप्यूटर और नेविगेशन सेंसर्स लगे हैं. इसमें अपनी बैटरी को रिचार्ज करने के लिए सौर सेल लगे हैं, ताकि मंगल की ठंडी रातों में यह अपने आपको गर्म रख सके, अधिकतर ऊर्जा का इस्तेमाल रात को इसे गर्म रखने के लिए होगा जहां तापमान माइनस 90 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है.
परसिवरेंस रोवर के साथ यह हेलीकॉप्टर जा रहा है. रोवर हेलीकॉप्टर को मंगल की सतह पर गिराएगा और फिर आगे बढ़ जाएगा. मिशन के पहले कुछ महीनों में क्रमिक कठिनाइ की पांच उड़ानों की योजना बनाई गई है. इंजीन्यूटी 10-15 फीट की ऊंचाई पर उड़ेगा और शुरूआती बिंदु से लेकर वापसी तक 160 फीट की दूरी तय करेगा. हर उड़ान डेढ़ मिनट की अवधि की होगी. इंजीन्यूटी को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह खुद से ही उड़ान भर सके क्योंकि उसे धरती से कंट्रोल कर पाना नामुमिकन है.
रोवर और हेलीकॉप्टर मंगल ग्रह के मौसम का अध्ययन करेंगे. इससे पहले संयुक्त अरब अमीरात की स्पेस एजेंसी ने 12 को अपने मिशन होप को मंगल की कक्षा में सफलता के साथ पहुंचा दिया था.
एए/सीके (एएफपी)
कैसा है नासा का मार्स रोवर - परसिवरेंस
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का यह पांचवा मार्स रोवर उसका आज तक का सबसे बड़ा और भारी अभियान है. फरवरी 2021 में यह मंगल पर उतरने वाला है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
एटलस V रॉकेट की सवारी
नासा के इंजीनियरों ने जुलाई 2020 की शुरुआत में ही मार्स रोवर को एटलस V रॉकेट पर लोड कर दिया. ‘परसिवरेंस’ अमेरिका के फ्लोरिडा से 30 जुलाई को छोड़ा जाना है
तस्वीर: NASA
करीब से ऐसे दिखता है
नासा का यह पांचवा रोवर मंगल पर पहले से काम कर रहे ‘क्यूरियोसिटी’ रोवर की मदद करेगा. इसका वजन क्यूरियोसिटी से करीब एक टन ज्यादा है और इसकी लंबाई 3 मीटर (10 फीट) है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
रोवर में क्या क्या है
कई रिसर्च उपकरण और सेंसर के अलावा इसकी भुजाओं पर 23 कैमरे और दूसरे कई टूल लगे हैं. इन्हीं की मदद से मंगल पर हर तरह के सैंपल इकट्ठे किए जाएंगे. मंगल की चट्टानों से ऑक्सीजन निकालने की संभावना तलाशना मिशन का एक अहम लक्ष्य है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
मंगल पर हेलिकॉप्टर
पहली बार किसी ग्रह पर भेजे जाने वाले ऐसे अभियान में रोवर के साथ साथ एक हेलीकॉप्टर भी भेजा जा रहा है. मंगल पर गुरुत्व बल धरती का करीब एक तिहाई होता है और ऐसे में हेलिकॉप्टर की उड़ान से कई नई जानकारियां हासिल करने का लक्ष्य है.
तस्वीर: NASA/Cory Huston
तीन पीढ़ियां एक साथ
सबसे छोटा है सोजोर्नर, जो केवल 10.6 किलोग्राम भारी था. फिर 185 किलो वजन वाला ऑपर्चुनिटी और 900 किलो भारी क्यूरियोसिटी रोवर. छोटे की स्पीड एक सेंटीमीटर प्रति सेकंड तो वहीं बड़े रोवरों की स्पीड भी चार से पांच सेंटीमीटर प्रति सेकंड ही होती है.
तस्वीर: NASA/JPL-Caltech
भविष्य के रास्ते खोलने वाले मिशन
सोजोर्नर से मिली सीख के कारण 2004 में उसी के मॉडल पर स्पिरिट और ऑपर्चुनिटी रोबोट भेजे गए. स्पिरिट ने छह साल तक काम किया और ऑपर्चुनिटी से तो 13 फरवरी, 2019 को जाकर संपर्क टूटा.
तस्वीर: picture alliance/dpa
लाल ग्रह की दुनिया
मंगल की सतह की यह तस्वीर क्यूरियोसिटी ने अपने कैमरे में कैद की थी. वह अब भी काम कर रहा है और अगले पांच साल या उससे भी लंबे समय तक सक्रिय रह सकता है. फिलहाल मंगल ग्रह पर केवल रोबोटों ने ही कदम रखा है लेकिन भविष्य असीम संभावनाओं से भरा है.