पिछले साल नवंबर में नासा के अंतरिक्ष यान लूसी का सामना डिंकीनेश नाम के एक छोटे से उल्कापिंड से हुआ था. वैज्ञानिकों को इस उल्कापिंड के इतिहास और भूगोल के बारे में दिलचस्प जानकारियां मिली हैं.
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अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अंतरिक्ष यान लूसी ने उल्कापिंड डिंकीनेश और उसके छोटे से चंद्रमा सेलम के बारे में बहुत दिलचस्प और हैरतअंगेज जानकारियां जुटाई हैं. डिंकीनेश और सेलम हमारे सौरमंडल के सबसे छोटे उल्कापिंड हैं.
डिंकीनेश और सेलम सौरमंडल की प्रमुख उल्कापिंड पट्टी में मंगल और बृहस्पति के बीच स्थित हैं. लूसी ने इन दोनों को बहुत करीब से देखा और उनके ढांचे व अन्य गुणों का निरीक्षण किया. वैज्ञानिकों ने बताया कि एक उल्कापिंड के रूप में डिंकीनेश और सेलम का इतिहास बहुत जटिल रहा है.
बृहस्पति की पूंछ
उल्कापिंड सौरमंडल के शुरुआती समय के बचे हुए अंश हैं जिनके भीतर इस बात के संकेत छिपे हुए हैं कि 4.5 अरब साल पहले पृथ्वी और अन्य ग्रहों का निर्माण कैसे हुआ होगा. डिंकीनेश और सेलम के बारे में एक शोधपत्र नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
नासा का नया सुपरसोनिक विमान एक्स-59
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने पहली बार अपने नए सुपरसोनिक विमान एक्स-59 को सार्वजनिक किया है. देखिए, क्यों इतना खास है यह विमान.
यह है नासा का नया सुपरसोनिक विमान, जिसे एक्स-59 नाम दिया गया है. यह पहली बार आम लोगों को दिखाया गया है. 30 मीटर लंबे इस विमान के पंखों की चौड़ाई है 10 मीटर.
एक्स-59 एक जेट विमान है जिसे नासा के क्वेस्ट (Quiet SuperSonic Technology) मिशन के तहत विकसित किया गया है. इसी साल इस विमान की टेस्ट फ्लाइट की जाएगी. यह 16,000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ेगा और इसकी स्पीड होगी 1,500 किलोमीटर प्रतिघंटा.
तस्वीर: NASA/ZUMAPRESS.com/picture alliance
कार के दरवाजे जितनी आवाज
सुपरसोनिक विमान में आवाज सिर्फ इतनी होती है जितनी कार के दरवाजे को जोर से बंद करने पर हो सकती है. इस विमान को लॉकहीड मार्टिन कंपनी ने विकसित किया है जिसके लिए उसे 25 करोड़ डॉलर मिले हैं.
तस्वीर: NASA/ZUMAPRESS.com/picture alliance
सुपरसोनिक तकनीक
सुपरसोनिक स्पीड पर विमान के इर्द-गिर्द हवा की रफ्तार ध्वनि की रफ्तार से भी ज्यादा होती है. अगर कोई विमान ध्वनि की रफ्तार से ज्यादा तेजी से उड़ता है तो बहुत जोर के धमाके जैसी आवाज आती है जिसे सोनिक बूम कहते हैं.
तस्वीर: Boom Supersonic/AP/picture alliance
कहां जाती है आवाज
जब सुपरसोनिक रफ्तार से विमान उड़ता है तो यह आवाज हर दिशा में नहीं आती बल्कि कोन जैसी आकृति वाले विमान के पिछले हिस्से में सुनाई देती है. अमेरिका ने अपने वायु क्षेत्र में सुपरसोनिक विमानों के उड़ने पर पाबंदी लगा रखी है.
तस्वीर: picture alliance/dpa
20 साल पहले उड़ी थी सुपरसोनिक फ्लाइट
पिछली बार कोई सुपरसोनिक यात्री विमान करीब 20 साल पहले पेरिस, लंदन और न्यूयॉर्क के बीच उड़ा था. लेकिन साल 2000 में पेरिस में उस विमान में हादसा हुआ जिसमें 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई. उसके बाद 2003 में उस विमान की उड़ान बंद कर दी गई.
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नासा ने 2021 में लूसी को अंतरिक्ष में भेजा था. 12 साल लंबे अभियान पर गए इस यान का लक्ष्य बृहस्पति के ट्रोजन उल्कापिडों का अध्ययन करना है. ट्रोजन उल्कापिंड आसमानी चट्टानों के दो जत्थे हैं जो बृहस्पति के पीछे एक पूंछ की तरह घूमते हैं.
डिंकीनेश का व्यास लगभग 720 मीटर है जबकि सेलम के दो बराबर हिस्से हैं जो आपस में जुड़े हुए हैं. एक लगभग 230 मीटर चौड़ा है जबकि दूसरा 210 मीटर. सेलम हर 53 घंटे में डिंकीनेश का एक चक्कर पूरा कर लेता है, जिसकी लंबाई करीब 3.1 किलोमीटर होती है.
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कैसे बना सेलम
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा लगता है कि डिंकीनेश के घूमने के दौरान उसका एक टुकड़ा टूट गया होगा. उसके आकार के एक चौथाई के बराबर इस टुकड़े के कई हिस्से तो आसपास बिखर गए होंगे. उन्हीं हिस्सों में से कुछ ने जुड़कर सेलम बना दिया. एक टुकड़ा डिंकीनेश पर भी गिरा और वहां उसने एक बड़ा गड्ढा बना दिया.
सेलम को वैज्ञानिक कॉन्टैक्ट-बाइनरी चंद्रमा कहते हैं. शोधकर्ताओं में से एक, कॉलराडो स्थित साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट की ग्रह-विज्ञानी कैथरीन क्रेक्टे कहती हैं, "कॉन्टैक्ट-बाइनरी उस पिंड को कहा जाता है, जिसमें दो अलग-अलग हिस्से एक दूसरे के साथ जुड़े होते हैं. यह जुड़ाव नाजुक होता है लेकिन उसमें इतनी मजबूती होती है कि वे टूटें ना.”
मोमबत्ती की ऊर्जा से रॉकेट गया अंतरिक्ष में
एक जर्मन कंपनी ने पहली बार मोमबत्ती वाले मोम की ऊर्जा से रॉकेट को अंतरिक्ष में भेजने का परीक्षण किया है. यह रॉकेट छोटे व्यावसायिक उपग्रहों को अंतरिक्ष तक कम खर्चे में पहुंचाएगा.
तस्वीर: HyImpulse /dpa/picture alliance
परीक्षण उड़ान पर रवाना हुआ रॉकेट
7 मई, 2024 को सुबह 5 बजे (जीएमटी) दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया में कूनीब्बा के लॉन्च साइट से इसे परीक्षण उड़ान पर भेजा गया. इसका नाम एसआर75 रखा गया है.
तस्वीर: HyImpulse /dpa/picture alliance
एसआर75
परीक्षण में इस्तेमाल हुआ रॉकेट 12 मीटर लंबा और 2.5 टन वजनी है. यह करीब 250 किलो तक का वजन, पृथ्वी से 250 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जा सकता है. समुद्र तल से 100 किलोमीटर की ऊंचाई के बाद अंतरिक्ष की सीमा शुरू हो जाती है.
तस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance
मोमबत्ती के मोम की ऊर्जा
इस रॉकेट में ऊर्जा के लिए पैराफीन यानी मोमबत्ती के मोम और तरल ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया गया है. आमतौर पर रॉकेट में लिक्विड हाइड्रोजन और लिक्विड ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है. इस ईंधन को रॉकेट में इस्तेमाल के लिए -432 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जाता है.
तस्वीर: HyImpulse /dpa/picture alliance
हाईइंपल्स
रॉकेट बनाने वाले स्टार्टअप हाईइंपल्स में 65 लोग काम करते हैं. यह जर्मन अंतरिक्ष एजेंसी डीएलआर से ही निकला हुआ एक स्टार्टअप है. इसे पहले ही तकरीबन 10 करोड़ यूरो की कीमत का ऑर्डर मिल चुका है. यह ऑर्डर उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए है.
तस्वीर: Hiimpulse/dpa/picture alliance
उपग्रह भेजने का खर्च घटेगा
हाइड्रोजन की जगह पैराफीन का इस्तेमाल कर खर्च को घटाने की कोशिश है. पैराफीन से उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने का खर्च तकरीबन आधा हो जाएगा. अलग अलग रॉकेटों के हिसाब से फिलहाल सबसे सस्ती सेवा भारत की इसरो और इलॉन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स मुहैया कराते हैं.
तस्वीर: Hiimpulse/dpa/picture alliance
लोगों के पैसे से बना स्टार्टअप
स्टार्टअप के ज्यादातर प्रोजेक्ट निजी पैसे से शुरू हुए हैं हालांकि उसे कुछ सार्वजनिक संस्थाओं से भी पैसा मिला है. हाईइंपल्स को व्यावसायिक उपग्रहों की मांग बढ़ने की उम्मीद है. यह स्टार्टअप 2032 तक सालाना 70 करोड़ यूरोप का कारोबार करने की चाह रखता है.
तस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance
हाईइंपल्स का अगला प्रोजेक्ट
अगले साल के आखिर तक कंपनी ने एक बड़ा रॉकेट लॉन्च करने का लक्ष्य बनाया है. यह रॉकेट 600 किलो तक वजन वाले उपग्रह को भी अंतरिक्ष में ले कर जा सकेगा. जर्मनी के आर्थिक मामलों के मंत्री रॉबर्ट हाबेक ने हाल ही में हाईइंपल्स के वर्कशॉप का दौरा किया था.
तस्वीर: Marijan Murat/dpa/picture alliance
उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंचाने का बाजार
बीते दशकों में अंतरिक्ष में उपग्रह से लोगों तक को ले जाने का बाजार बड़ी तेजी से उभरा है. अमेरिका, रूस, यूरोप, भारत, चीन और दूसरे कई देश इस बाजार में हैं. 2000-2010 तक हर साल 70 से 110 उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए. 2011-2019 आते आते यह संख्या 129 से 586 तक चली गई. 2020 से अब तक हर साल एक हजार से ज्यादा उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे गए हैं.
तस्वीर: SpaceX/UPI Photo/Newscom/picture alliance
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क्रेक्टे कहती हैं कि यूं तो कॉन्टैक्ट-बाइनरी उल्कापिंड बहुत सारे हैं लेकिन सेलम पहला ऐसा उल्कापिंड देखा गया है जो एक अन्य उल्कापिंड के चक्कर लगाता है. सूर्य के चारों ओर डिंकीनेश के चक्कर की कुल दूरी पृथ्वी की कक्षा से करीब 2.2 गुणा ज्यादा है.
ग्रहों के राज
लूसी मिशन की सहायक जांच प्रबंधक सिमोन मार्ची भी इस अध्ययन का हिस्सा रही हैं. वह बताती हैं, "अपने जीवनकाल में उल्कापिंड टूटते रहते हैं जो बाद में आपस में जुड़कर छोटे-छोटे उपग्रहों में बदलते रहते हैं. सेलम का जटिल आकार इस बात का संकेत है कि टूटने और जुड़ने की यह प्रक्रिया कई बार हो सकती है.
ग्रह इन्हीं उल्कापिंडों से जुड़कर बने हैं. मार्ची बताती हैं, "पृथ्वी जैसे ग्रह असंख्य छोटे-छोटे पिंडों से बने हैं. डिंकीनेश और सेलम जैसे इन छोटे पिंडों को समझकर हम ग्रहों के निर्माण के शुरुआती दौर की बेहतर तस्वीर खींच सकते हैं.”