अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने हिंदुस्तान के उन मुसलमानों पर निशाना साधा है जो अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी का जश्न मना रहे हैं. उन्होंने हिंदुस्तानी इस्लाम को दुनिया में माने जाने वाले इस्लाम से अलग बताया है.
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15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही दुनियाभर से मुसलमानों ने अलग-अलग प्रतिक्रियाएं दीं. अधिकतर मुसलमानों ने तालिबान का विरोध ही किया. लेकिन कुछ लोगों ने तालिबान के समर्थन में बयान दिए और अफगानिस्तान में उसकी वापसी का स्वागत भी किया. भारत में भी कुछ मुसलमानों ने तालिबान के समर्थन में बयान दिया था. अब मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने ऐसे ही लोगों से बहुत सख्त सवाल किया है और एक वीडियो जारी कर उन्हें कड़ा संदेश दिया है.
नसीरुद्दीन ने अफगानिस्तान में तालिबानी राज लौटने पर खुशी मनाने वालों को अपने वीडियो में संदेश दिया. उन्होंने अपने वीडियो संदेश में कहा, "हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान का दोबारा हुकूमत पा लेना दुनिया भर के लिए फिक्र की बात है, इससे कम खतरनाक नहीं है कि हिंदुस्तानी मुसलमानों के कुछ तबकों का उन वहशियों की वापसी पर जश्न मनाना. आज हर हिंदुस्तानी मुसलमान को अपने आप से ये सवाल पूछना चाहिए कि उसे अपने मजहब में सुधार और आधुनिकता चाहिए या वो पिछली सदियों के वहशीपन के साथ रहना चाहते हैं."
नसीरुद्दीन के इस बयान का सोशल मीडिया पर लोग समर्थन कर रहे हैं और तालिबान को वहशी बता रहे हैं.
नसीरुद्दीन ने अपने वीडियो में "हिंदुस्तानी इस्लाम" और दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में माने जाने वाले इस्लाम का अंतर भी बताया. उन्होंने कहा, "मैं हिंदुस्तानी मुसलमान हूं और जैसा कि मिर्जा गालिब फरमा गए हैं, मेरा रिश्ता अल्लाह मियां से बेहद बेतकल्लुफ है. मुझे सियासी मजहब की कोई जरूरत नहीं है. हिंदुस्तानी इस्लाम हमेशा दुनिया भर के इस्लाम से अलग रहा है और खुदा वो वक्त न लाए कि वो इतना बदल जाए कि हम उसे पहचान भी न सकें."
अफगान औरतों के लिए 20 साल में क्या बदला
पिछले 20 साल अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा नहीं था. उसके शासन में औरतों की स्थिति बेहद खराब बताई जाती है. क्या बीते 20 साल में महिलाओं के लिए कुछ बदला है?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Hossaini
वाकई कुछ बदला क्या?
अफगानिस्तान में महिलाएं अब अलग-अलग भूमिकाएं निभाती नजर आती हैं. लेकिन वाकई उनके लिए पिछले 20 साल में कुछ बदला है या नहीं, आइए जानते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Hossaini
काम के अवसर
ब्रिटेन के नेशनल स्टैटिस्टिक्स एंड इन्फॉरमेशन अथॉरिटी के आंकड़ों के मुताबिक 2004 में 51,200 महिलाएं सरकारी दफ्तरों में काम कर रही थीं. 2018 में इनकी संख्या बढ़कर 87 हजार हो गई.
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पुरुषों से ज्यादा कर्मचारी
सरकारी दफ्तरों में काम करने में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा बढ़ी है. सरकारी कर्मचारी पुरुषों की संख्या जबकि 41 प्रतिशत बढ़ी, महिलाओं की संख्या में 69 प्रतिशत का इजाफा हुआ.
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राजनीति में महिलाएं
2018 के आम चुनाव में 417 महिला उम्मीदवार थीं, जो एक रिकॉर्ड है. तालिबान के नियंत्रण से पहले की संसद में 27 प्रतिशत महिला सांसद थीं, जो अंतरराष्ट्रीय औसत (25 फीसदी) से ज्यादा है.
तस्वीर: Stringer/REUTERS
न्यायपालिका में महिलाएं
2007 में अफगानिस्तान में 5 फीसदी महिला जज थीं जिनकी संख्या 2018 में बढ़कर 13 प्रतिशत हो गई.
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कॉलेजों में लड़कियां
अफगान सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2002 से 2019 के बीच सरकारी कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली लड़कियों की संख्या सात गुना बढ़ी. यह इजाफा लड़कों की संख्या से ज्यादा था.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Berry
शिक्षक महिलाएं
अफगानिस्तान में अब पहले से कहीं ज्यादा महिला शिक्षक हैं. 2018 में देश के कुल शिक्षकों का लगभग एक तिहाई महिलाएं थीं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Berry
स्कूलों में लड़कियां
ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट कहती है कि 2001 में 90 हजार बच्चे स्कूल जाते थे जो 2017 में बढ़कर 92 लाख हो गए. इनमें से 39 प्रतिशत लड़कियां थीं.
तस्वीर: Paula Bronstein/Getty Images
कानूनी हक
2009 में अफगानिस्तान में एलिमिनेशन ऑफ वायलेंस अगेंस्ट विमिन कानून पास किया गया जिसके तहत 22 गतिविधियों को अपराध की श्रेणी में डाला गया. इन गतिविधियों में महिलाओं को मारना, बलात्कार, जबरन शादी आदि शामिल हैं.
तस्वीर: REUTERS
पुलिस में महिलाएं
अमेरिका सरकार की लैंगिक समानता पर रिपोर्ट के मुताबिक 2005 में अफगानिस्तान में 180 महिला पुलिसकर्मी थीं जो 2019 में बढ़कर 3,560 हो गईं.
तस्वीर: DW/S. Tanha
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नसीरुद्दीन के इस वीडियो को लोगों ने सोशल मीडिया पर तेजी से शेयर किया और उनके इस बयान का स्वागत किया.
अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद भारत में कुछ मुस्लिम नेता और संगठन से जुड़े लोगों ने पक्ष में बयान दिया था.
बयान पर ऐतराज
नसीरुद्दीन के बयान पर कुछ लोगों ने ऐतराज जताया है और कहा है कि इस्लाम इस्लाम है. पत्रकार रिफत जावेद लिखते हैं, "भारतीय, पाकिस्तानी या तालिबानी इस्लाम नाम की कोई चीज नहीं है. इस्लाम क्षेत्र या उसके अनुयायियों के अनुसार नहीं बदलता है."
ट्विटर पर पत्रकार सबा नकवी सवाल करती हैं, "इतने सारे भारतीय मुसलमानों से क्यों तालिबान की निंदा करने के लिए कहा जा रहा है? क्या उन्होंने तालिबान को चुना, चुनाव किया या आमंत्रित किया? सिनेमा जगत के प्रतिभाशाली लोग इस पर बोलने के चक्कर में क्यों पड़ रहे हैं? यह एक जाल है."
नसीरुद्दीन के बयान के बाद सोशल मीडिया पर नई बहस छिड़ गई है. जहां एक तबका नसीरुद्दीन के बयान का समर्थन कर रहा है तो वहीं दूसरा उनके बयान का विरोध.
तालिबान पर खुशी किस बात की
तालिबान ने 1996 से 2001 से अफगानिस्ता पर राज किया था. उस दौरान देश में शरिया यानी इस्लामिक कानून लागू कर दिया गया था और महिलाओं के काम करने, लड़कियों के पढ़ने और बिना किसी पुरुष के अकेले घर से बाहर जाने जैसी पाबंदियां लगा दी गई थीं. तालिबान के दोबारा सत्ता में आने पर बहुत से लोगों को वैसे ही कानून दोबारा लागू होने का भय है.
तालिबान शासन के दौरान महिलाओं को शरीर और चेहरे को बुर्के से ढकने पड़ते थे. उन्हें शिक्षा से वंचित किया गया और काम नहीं करने दिया जाता था. महिलाएं बिना किसी पुरुष रिश्तेदार के घर से बाहर नहीं जा सकती थीं.
जो मुसलमान भारत में तालिबान की वापसी पर खुशी मना रहे हैं उन्हें देश में हर तरह की आजादी मिली हुई है, चाहे कपड़े पहनने की हो या फिर दाढ़ी नहीं रखने की. तालिबान अपने राज में उन मुसलमानों को भी सजा देता था जो दाढ़ी नहीं रखते थे और पारंपरिक परिधान सलवार कमीज नहीं पहनते थे.
तालिबान के राज में कैसा है अफगानिस्तान
अफगानिस्तान में तालिबान के आने के बाद जीवन सामान्य दिखने लगा है. देखिए, अब कैसा है अफगानिस्तान...
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
समर्थक खुश
तालिबान समर्थक खुश हैं. सड़कों पर हथियारबंद तालिबान के साथ वे फोटो खिंचवा रहे हैं.
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
हर जगह तालिबान
हथियारबंद तालिबान सड़कों पर गश्त लगाते घूमते हैं. उन्हें गली-बाजारों, चौक-चौराहों पर देखा जा सकता है.
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
आधुनिक हथियार
सैकड़ों की संख्या में ये युवा लड़ाके आधुनिक हथियारों से लैस हैं और हर जगह मौजूद हैं.
तस्वीर: West Asia News Agency/REUTERS
काम धंधे शुरू
आम जन जीवन धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा है. लोग अपने काम धंधे शुरू कर रहे हैं.
तस्वीर: HOSHANG HASHIMI/AFP/Getty Images
नारेबाजी नई बात
सब्जी भाजी खरीदना-बेचना यूं तो आम जीवन का हिस्सा है लेकिन सब्जीवाले का तालिबान और इस्लामिक अमीरात के समर्थन में नारे लगाना नई बात है.
तस्वीर: U.S. Air Force/Senior Airman Taylor Crul/REUTERS
खोस्त में जुलूस
31 अगस्त को खोस्त शहर में एक विशाल जुलूस निकाला गया जिसमें नाटो, अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के झंडों से ढंके ताबूत उठाए लोग नजर आए.
तस्वीर: ZHMAN TV via REUTERS
बैंकों के बाहर कतारें
बैंकों के बाहर लंबी कतारें हैं. बैंकों में नकदी की समस्या है. महंगाई बढ़ गई है और एक व्यक्ति 20 हजार अफगानी (करीब 17 हजार रुपये) ही निकाल सकता है.
तस्वीर: REUTERS
जन जीवन सामान्य
इस बीच शहर की गलियां सामान्य लगने लगी हैं. लोग आ रहे हैं, जा रहे हैं और सड़क किनारे नमाज अदा कर रहे हैं.