एवरेस्ट, 2 लाशें, 1 कैमरा: क्या सुलझेगी एक सदी पुरानी पहेली
११ अक्टूबर २०२४ठीक एक सदी पहले की बात है. साल 1924, जून का महीना. दुनिया की सबसे ऊंची चोटी 'माउंट एवरेस्ट' पर सबसे पहले पांव धरने की ब्रिटिश महत्वाकांक्षा का बोझ उठाए एक एक्सपीडिशन टीम मिशन पर थी. इस टीम को समुद्र तल से 29,032 फीट ऊपर माउंट एवरेस्ट पर पहुंचना था.
बाकी हिमालय से ज्यादा तेजी से क्यों बढ़ रहा है एवरेस्ट
पहले के दो नाकाम अभियानों के बाद यह पर्वतारोहियों का तीसरा दल था. नौ लोगों के इस दल में थे जॉर्ज मेलोरी (टीम लीडर), एडवर्ड नॉर्टन, नोएल ओडेल, जॉन मैकडॉनल्ड, एडवर्ड ओ. शेबेअर, जेफरी ब्रूस, टी. हॉवर्ड सॉमरवेल, बेंटले बीथम और एंड्रू 'सैंडी' इरविन.
8 जून 1924 की उस दोपहर को क्या हुआ था?
एवरेस्ट चोटी के रास्ते में एक तंग घाटी है, ग्रेट (नॉर्टन) कूलुआ. यह एवरेस्ट के नॉर्थ फेस की ओर है. 8 जून 1924 को दोपहर बाद एक्सपीडिशन टीम के दो सदस्य, मैलरी और इरविन, इसे पार कर चुके थे कि जब मौसम अचानक से खिल गया. बादल छंट गए और पहाड़ के ऊपर का हिस्सा साफ दिखने लगा.
यहां तक कि नॉर्थईस्ट रिज के 'थ्री स्टेप्स' की पहली सीढ़ी भी नजर आ रही थी. ये जगह लगभग 28,097 फीट की ऊंचाई पर है. फिर कुछ ही मिनटों में मौसम एकदम से बदला और घने बादल लौट आए.
टीम के सदस्य नोएल ओडेल इस वक्त मैलरी और इरविन से करीब 1,000 फीट नीचे थे. वो एक चक्करदार रास्ते से कैंप छह से होते हुए ऊपर चढ़ने की कोशिश कर रहे थे. वहां एक खड़ी चढ़ाई वाली चट्टान थी, जिसपर चढ़े ओडेल ने मौसम को एकाएक फिर साफ होते देखा.
अब ओडेल को चोटी तक का पूरा रास्ता नजर आ रहा था. वह फर्स्ट और सेकेंड स्टेप दोनों को देख पा रहे थे... और फिर ओडेल ने जो देखा, वो लम्हा ना केवल उन्हें उम्रभर याद रहने वाला था, बल्कि एवरेस्ट के इतिहास में सबसे बड़ा रहस्य भी बनने वाला था. इस लम्हे पर अनगिनत किताबें, असंख्य बहसें होने वाली थीं.
क्या देखा था ओडेल ने?
96 साल की भरपूर उम्र में फरवरी 1987 को ओडेल दुनिया से विदा हुए. अपनी तमाम जिंदगी वह 8 जून 1924 को दिन के तीसरे पहर में दिमाग में खिंची वही तस्वीर दोहराते रहे कि उन्होंने 28,250 फीट की ऊंचाई पर 'सेकेंड स्टेप' के ऊपर दो गतिशील आकृतियां देखी थीं.
ओडेल को इस बात में रत्तीभर भी शंका नहीं थी कि उन्होंने दो पर्वतारोहियों को उस ऊंचाई पर आगे बढ़ते हुए देखा था! ओडेल के शब्दों में, वो दोनों फुर्ती से चलते नजर आए थे.
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अगर ऐसा था, तो वो दोनों पर्वतारोही मैलरी और इरविन के सिवाय कोई और नहीं हो सकते थे. वही दोनों थे, जो टीम के बाकी लोगों से आगे थे. ओडेल की देखी इस झलक के तकरीबन पांच मिनट बाद ही बादलों ने वापसी की. फिर उस दिन तीसरा पहर खत्म होने से पहले ओडेल को एवरेस्ट नजर नहीं आया.
और, जब आया तो वहां मेलरी और इरविन का नामो-निशान नहीं था! मेलरी और इरविन फिर कभी किसी को नजर नहीं आए. वो एवरेस्ट के मुसाफिरों के उस क्लब का हिस्सा बन गए, जिनकी जिंदगी पहाड़ पर ही खत्म हो गई.
एक कैमरा, जिससे बंधी है उम्मीद
मेलरी और इरविन की मौत तो हुई, लेकिन कब और किस पड़ाव पर? क्या वो कभी एवरेस्ट पर चढ़ पाए? अगर ओडेल ने उन्हें सेकेंड स्टेप पर देखा, तो वो चोटी से बहुत दूर नहीं थे.
क्या 29 मई 1953 को एडमंड हिलरी और तेंजिंग नॉर्गे की पहली बार एवरेस्ट फतह करने की उपलब्धि से भी तीन दशक पहले मेलरी और इरविन, या केवल मेलरी, या केवल इरविन ने एवरेस्ट की चोटी पर पांव धरा था?
क्या वो दोनों, या उनमें से एक वापस उतरते हुए गिरकर मर गए? लेकिन उनके जूते तो आधुनिक पर्वतारोहियों जैसे थे नहीं, तो क्या हिमालय की उस कठिन ऊंचाई पर उन जूतों के साथ वो ऊपर चढ़ पाए होंगे?
यकीन कीजिए, ये सारे अगर-मगर बहुत कम हैं. पिछली एक सदी से यह हाइपोथिसिस माउंटेनियरिंग कम्युनिटी की सबसे गर्म बहसों में से एक बनी हुई है. तो क्या यह रहस्य सुलझाने का कोई तरीका नहीं? उम्मीद लगाने वालों ने सारी आशा एक कैमरे से बांधी हुई है: कोडेक वेस्ट पॉकेट कैमरा.
यह कैमरा एक्सपीडिशन टीम के एक सदस्य सॉमरवेल ने मिशन के दौरान मैलरी को दिया था. अगर वो चोटी पर पहुंचे होंगे, तो यकीनन उन्होंने कैमरे में तस्वीर खींची होगी और कैमरा जैकेट की पॉकेट में रखा होगा.
उसकी वो फिल्म, जो कभी डिवेलप नहीं हुई, शायद अब भी बची हो. कोडेक कंपनी ने कहा था कि दशकों तक बर्फ में जमी होने के बावजूद वो कोशिश करेंगे, तस्वीर रीकवर करने की. शायद कामयाबी मिल भी जाए.
लाश मिली, कैमरा नहीं मिला
मैलरी और इरविन के शवों की तलाश, और उस कोडेक कैमरे की खोज में दशकों से लोग हलकान होते आ रहे हैं. 1933 में एवरेस्ट गई एक्सपीडिशन टीम को एक छोटी कामयाबी हाथ लगी, जब उन्हें इरविन की एक बर्फ वाली कुल्हाड़ी मिली.
फिर लंबा सन्नाटा रहा और दशकों की मेहनत के बाद 1999 में गए एक एक्सपीडिशन ने करीब 27,000 फीट की ऊंचाई पर मेलरी का शव खोज निकाला.
शव का सिर जमीन की ओर औंधा पड़ा मिला. एक पैर और शायद एक हाथ भी टूटा हुआ था, यानी गिरने से उनकी मौत हुई. बर्फ ने मेलरी का शव बहुत सहेजकर रखा था. जेब में रखी चिट्ठी भी सलामत थी.
बहुत कुछ मिला, बस वो कोडेक कैमरा ही नहीं मिला. फिर उम्मीद जगी कि वो कैमरा इरविन के पास रहा होगा. इरविन का शव खोजने कई लोग एवरेस्ट गए. कई विशेष अभियान चलाए गए.
एक सदी बाद भी पहेली का अहम हिस्सा गायब
आखिरकार अब ठीक एक सदी बाद इरविन का अवशेष मिल गया है. नैशनल जिओग्रैफिक ने बताया है कि उनकी एक टीम को नॉर्थ फेस के नीचे एक शव का अवशेष मिला और उन्हें यकीन है कि यह इरविन ही हैं.
बर्फ की आधी पिघली परत से बाहर झांकता एक जूता और उसमें घुसे पांव के अवशेष पर चढ़ा एक मोजा भी मिला, जिसपर एम्ब्रॉइडी से लिखा है: ए. सी. इरविन.
नैशनल जियोग्राफिक की इस टीम ने सितंबर में यह खोज की है. नैशनल जियोग्राफिक की रिपोर्ट में टीम के सदस्य जिमी चिन इस बहुप्रतीक्षित खोज का लम्हा यूं बताते हैं, "मैंने मोजा उठाया और वहां एक लाल चिप्पी दिखी, जिसपर सिला हुआ था: ए. सी. इरविन!"
इतिहास बदल सकता है माउंट एवरेस्ट में खोया एक कैमरा
टीम को उम्मीद है कि शायद इस ऐतिहासिक खोज से यह जानने में मदद मिले कि 1924 की जून में उस दिन एवरेस्ट पर क्या हुआ था. फिलहाल पहेली का एक अहम पीस गायब है, वो कोडेक कैमरा. हालांकि, खोजी टीम को यकीन है कि कैमरा भी आसपास ही कहीं होगा.
इतने सालों तक खोजने के लिए इतना अथाह इलाका था. कम-से-कम अब खोज का दायरा तो काफी छोटा हो गया है. चिन और उनकी टीम ने वो लोकेशन नहीं बताई है, जहां उन्हें इरविन के अवशेष मिले. इस डर में कि फिर "ट्रॉफी हंटरों" की बाढ़ आ जाएगी. आखिरकार, इतने बड़े रहस्य को सुलझाने का चाव आकर्षक भी तो बहुत है!