अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन के लिए एक बड़े एयर डिफेंस पैकेज की घोषणा की है. वॉशिंगटन में नाटो शिखर सम्मेलन में यह एलान हुआ.
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32-राष्ट्रों के सैन्य गठबंधन नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) के नेता तीन दिनों के समारोह में रूस के खिलाफ दृढ़ता दिखाने के लिए एकजुट हुए. यह शिखर सम्मेलन नाटो की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर अमेरिकी राजधानी में आयोजित हुआ. लेकिन बाइडेन की शासन क्षमता को लेकर उठते सवाल इस बैठक पर हावी रहे.
81 वर्षीय राष्ट्रपति बाइडेन का अपने प्रतिद्वन्द्वी डॉनल्ड ट्रंप के साथ हुई पहली बहस में निराशाजनक प्रदर्शन रहा था. उसके बाद उन पर दौड़ से हट जाने का दबाव बढ़ रहा है.
अमेरिका की दृढ़ता पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयास में, बाइडेन ने शिखर सम्मेलन की शुरुआत वॉशिंगटन द्वारा यूक्रेन को एक अतिरिक्त पैट्रिएट एयर डिफेंस सिस्टम देने की घोषणा से की.
बाइडेन ने यह एलान उसी कमरे में किया जहां 1949 में नाटो की संस्थापक संधि पर हस्ताक्षर हुए थे. इस समारोह में उन्होंने कहा, "युद्ध यूक्रेन के एक स्वतंत्र देश बने रहने के साथ समाप्त होगा. रूस सफल नहीं होगा. यह यूरोप, ट्रांस-अटलांटिक समुदाय, और, मैं जोड़ सकता हूं, दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है."
कई एयर डिफेंस सिस्टम मिलेंगे
जर्मनी और रोमानिया पहले ही यूक्रेन को दो नई पैट्रिएट प्रणालियों का वादा कर चुके हैं. इसके अलावा नीदरलैंड्स ने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर एक और ऐसा ही सिस्टम देने का वादा यूक्रेन से कर रखा है.
नाटो के 75 साल: कोल्ड वॉर से यूक्रेन वॉर तक
नाटो 75 साल का हुआ. तनाव और असुरक्षा से भरे शीत युद्ध के लंबे दशकों से लेकर यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप में सुरक्षा की बदलती तस्वीर तक, देखिए नाटो का सफर.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
12 संस्थापक देश
4 अप्रैल 1949 को 12 देशों ने मिलकर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) का गठन किया. ये संस्थापक देश थे: अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल.
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वॉशिंगटन में दस्तखत हुए
इन 12 देशों के विदेश मंत्रियों ने वॉशिंगटन के डिपार्टमेंटल ऑडिटोरियम में समझौते पर दस्तखत किए. इसे वॉशिंगटन ट्रीटी के नाम से भी जाना जाता है. हस्ताक्षर समारोह के पांच महीनों के भीतर सदस्य देशों की संसद ने समझौते पर कानूनी मुहर लगा दी. इस तरह ये देश संधि में कानूनी और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ दाखिल हुए.
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आर्टिकल पांच और साझा सुरक्षा
समवेत सुरक्षा और एक-दूसरे के लिए खड़ा होना, नाटो के मूलभूत सिद्दांतों में है. ट्रीटी का आर्टिकल पांच साझा सुरक्षा की गारंटी देता है. इसके मुताबिक, सदस्य देश सहमति देते हैं कि यूरोप या उत्तरी अमेरिका में एक या एक से ज्यादा सदस्य देशों पर हथियारबंद हमले की स्थिति में इसे पूरे ब्लॉक पर हमला माना जाएगा.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
एक पर हमला, सब पर हमला
हमले की स्थिति में हर सदस्य संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 51 में दर्ज निजी या सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उस सदस्य देश की मदद करेगा, जिसपर हमला हुआ है. सभी सदस्य नॉर्थ अटलांटिक इलाके की सुरक्षा बरकरार रखने और हनन की स्थिति में इसे वापस कायम करने के लिए जरूरत पड़ने पर सशस्त्र सेना और हथियारों का भी इस्तेमाल करेंगे.
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9/11 के बाद आर्टिकल पांच का इस्तेमाल
आर्टिकल पांच यह भी कहता है कि जो जवाबी कदम उठाए जाएंगे, उनकी सूचना तुरंत सुरक्षा परिषद को दी जाएगी. जब परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा वापस कायम करने की दिशा में जरूरी कदम उठा लेगा, उसके बाद नाटो की ओर से की जा रही कार्रवाई रोक दी जाएगी. अब तक नाटो ने आर्टिकल पांच का इस्तेमाल केवल 9/11 के आतंकी हमले के बाद किया है.
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नाटो में विस्तार
नाटो में समय-समय पर विस्तार होता रहा है. अब तक विस्तार के 10 चरण रहे हैं. पहली बार 1952 में समूह का विस्तार हुआ, जब ग्रीस और तुर्की ब्लॉक में शामिल हुए. फिर 6 मई 1955 को जर्मनी (तत्कालीन फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी, या वेस्ट जर्मनी) नाटो का 15वां सदस्य बना. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पूर्वी यूरोप के कई देश नाटो में आए. ये दो चरणों में हुआ.
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शीतयुद्ध के बाद का विस्तार
साल 1999 में हुए पोस्ट-कोल्ड वॉर के पहले विस्तार में चेकिया, हंगरी और पोलैंड सदस्य बने. फिर मार्च 2004 में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया को नाटो की सदस्यता मिली. नाटो के सबसे नए सदस्य हैं फिनलैंड (अप्रैल 2023) और स्वीडन (मार्च 2024). इस तरह नाटो में अब 32 सदस्य हैं.
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बालकन्स पर रूस के साथ तनाव
2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया, 2017 में मॉन्टेनीग्रो और 2020 में नॉर्थ मैसिडोनिया नाटो के सदस्य बने. ये बालकन देश हैं. बाल्कन्स का इलाका लंबे समय से रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव की वजह रहा है. पश्चिम की ओर से यूरोपीय संघ और नाटो यहां विस्तार करना चाहते हैं, वहीं रूस भी अपने इस पूर्व प्रभावक्षेत्र में सहयोगी तलाश रहा है.
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रूस का नाटो पर विस्तारवाद का आरोप
ऐसे में रूस लंबे समय से बालकन्स में नाटो के विस्तार का विरोध करता रहा है. वह इसे नाटो की विस्तारवादी नीति बताता है और अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है. 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद मॉस्को का नाटो से विरोध और गहराता गया. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद तनाव अपने चरम पर पहुंच गया.
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यूक्रेन में जारी युद्ध का गहरा असर
यूक्रेन युद्ध ने यूरोप में सुरक्षा की भावना को गहराई तक हिला दिया है. यूक्रेन को मदद चाहिए, ना केवल फंड बल्कि सैन्य साजो-सामान भी. ऐसे में अभी नाटो के आगे सबसे बड़ी चुनौती यह है कि युद्ध के बीच कीव को किस तरह मदद मुहैया कराई जाए.
नाटो सीधे तौर पर युद्ध का हिस्सा नहीं बन सकता, लेकिन यूक्रेन में रूस को बढ़त पूरी क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अकल्पनीय चुनौती होगी. ऐसे में नाटो देशों के बीच यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता के प्रारूप, स्वभाव और आकार पर बातचीत जारी है. रूस के साथ समीकरण नाटो की सबसे बड़ी चुनौतियों में है.
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बाइडेन ने कहा कि ये वायु रक्षा प्रणालियां "यूक्रेनी शहरों, नागरिकों और सैनिकों की रक्षा करने में मदद करेंगी." अन्य नेताओं के साथ एक संयुक्त बयान में उन्होंने कहा कि नाटो सदस्य आने वाले महीनों में दर्जनों और छोटे रेंज सिस्टम भेजने की योजना बना रहे हैं.
यूक्रेन पिछले कई महीनों से सात अतिरिक्त पैट्रिएट प्रणालियों की मांग कर रहा था ताकि रूसी हमलों से सुरक्षा की जा सके.
सोमवार को यूक्रेन की राजधानी किएव में बच्चों के अस्पताल पर हुए हमले ने रूस की मिसाइलों के प्रति यूक्रेन की असुरक्षा को बेरहमी से उजागर किया. यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की के मुताबिक उस दिन देशभर में हमलों में 43 लोग मारे गए.
नाटो प्रमुख जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने गठबंधन के देशों से किएव के लिए समर्थन बनाए रखने का आग्रह किया. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर रूस जीतता है, तो यह नाटो के लिए "सबसे बड़ा खतरा" होगा.
स्टोल्टेनबर्ग ने कहा, "इस युद्ध का परिणाम आने वाले दशकों तक वैश्विक सुरक्षा को आकार देगा. स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए खड़ा होने का समय अभी है. जगह है यूक्रेन."
बाइडेन की क्षमता पर सवाल
जब नाटो नेता एकता और ताकत प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहे थे, उस वक्त गठबंधन के सबसे शक्तिशाली नेता के राजनीतिक भविष्य पर संदेह उठ रहे थे. बाइडेन को अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर से ही दबाव का सामना करना पड़ रहा है कि वह दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए दौड़ से हट जाएं. ट्रंप के साथ हुई बहस के बाद बाइडेन की मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं.
रूस में पांचवीं बार पुतिन
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पांचवीं बार राष्ट्रपति पद की शपथ ले ली है. जोसेफ स्टालिन के बाद वो सबसे लंबे समय तक देश का नेतृत्व करने वाले सोवियत या रूसी नेता हैं.
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सबसे लंबे समय तक रूस का नेतृत्व
2000 से शुरू हुआ यह सफर अगले छह साल के लिए एक बार फिर पक्का हो गया है. इस कार्यकाल को पूरा कर वह 29 साल तक देश का नेतृत्व करने वाले जोसेफ स्टालिन से आगे निकल जाएंगे. मुमकिन है कि छह साल बाद रूस की जनता उन्हें एक बार और मौका दे कर ऐसा रिकॉर्ड बनवा दे जिसे तोड़ने का सपना देखना भी मुश्किल लगे.
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पांच बार राष्ट्रपति दो बार प्रधानमंत्री
व्लादिमीर पुतिन पहली बार 1999 में प्रधानमंत्री बने. 2000 में वह राष्ट्रपति बन गए और 2008 तक इस पद पर रहे. तब राष्ट्रपति के लिए लगातार दो कार्यकाल का ही नियम था, जो 4 साल का होता था. 2008 में दमित्री मेदवेदेव राष्ट्रपति और पुतिन प्रधानमंत्री बन गए. 2012 में उन्होंने फिर राष्ट्रपति की कुर्सी संभाली. पहले संशोधन में कार्यकाल 6 साल का हुआ और दूसरे संशोधन में दो बार की सीमा खत्म हुई.
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पांच अमेरिकी राष्ट्रपति
व्लादिमीर पुतिन ने रूस का नेतृत्व करते हुए अमेरिका के पांच राष्ट्रपतियों का सामना किया है. पहली बार जब देश की कमान उनकी मुट्ठी में आई तब बिल क्लिंटन अमेरिका के राष्ट्रपति थे. उसके बाद जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा के दो कार्यकाल और ट्रंप और बाइडेन के एक एक कार्यकाल में रूस उनके हाथ में ही रहा. हालांकि संबंधों की दशा और दिशा इस पूरे दौर में खराब ही होती गई है.
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चीन के तीन राष्ट्रपति
पुतिन के कार्यकाल में चीन ने तीन राष्ट्रपति देख लिए और मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अगर कानून में बदलाव नहीं किया होता तो इसमें एक नाम और जुड़ जाता. जियांग जेमिन के साथ शुरू हुआ यह सफर हू जिंताओ से होता हुआ शी जिनपिंग तक आ पहुंचा है. इस पूरे सफर में चीन-रूस की दोस्ती और गहरी हुई है.
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जर्मनी के तीन चांसलर
अंगेला मैर्केल का 16 साल लंबा कार्यकाल होने के बावजूद पुतिन ने जर्मनी के तीन चांसलरों के साथ काम किया है. जब वह पहली बार देश के राष्ट्रपति बने तब गेरहार्ड श्रोएडर जर्मनी के चांसलर थे. उसके बाद अंगेला मैर्केल ने कमान संभाली और फिर ओलाफ शॉल्त्स ने. श्रोएडर और मैर्केल के जमाने में जो रिश्ता परवान चढ़ा था वह शॉल्त्स के दौर में बिखर गया है.
भारत के साथ रूस की दोस्ती पुरानी है. पुतिन के राष्ट्रपति बनते वक्त भारत की कमान अटल बिहारी वाजपेयी के हाथ में थी, उसके बाद मनमोहन सिंह आए और फिर नरेंद्र मोदी. इस पूरे दौर में दोनों देशों का रिश्ता मजबूत ही हुआ है. प्रतिबंधों की अनदेखी करके भी दोनों देश एक दूसरे का साथ निभा रहे हैं.
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ब्रिटेन के सात प्रधानमंत्री
व्लादिमीर पुतिन ने ब्रिटेन के सात प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है. टोनी ब्लेयर के साथ शुरू हुआ सफर अब ऋषि सुनक तक आ पहुंचा है. सिर्फ इतना ही नहीं ब्रिटेन के शाही परिवार का नेतृत्व भी उनके राष्ट्रपति रहते बदल चुका है. ब्रिटेन यूरोपीय साझीदारों के साथ ही रूस के साथ अपने रिश्तों का निभाता है.
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उत्तर कोरिया के दो नेता
माना जाता है कि उत्तर कोरिया को रूस से काफी मदद मिलती है. गिने चुने मौकों पर जब उत्तर कोरियाई नेता आधिकारिक दौरे पर देश के बाहर गए तो उनकी मंजिल रूस ही था. वहां बीते कई दशकों से देश का नेता आजीवन इस पद पर रहता है. पुतिन को वहां भी दो नेताओं यानी किम जोंग उन और उनके पिता के किम जोंग इल के साथ काम करने का मौका मिला. दोनों देशों की दोस्ती और मजबूत हुई.
रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी के अधिकारी रहे पुतिन ने चेचेन विद्रोहियों को ताकत के दम पर नियंत्रित करके रूसी जनता को अपनी शक्ति का अहसास दिलाया. दूसरी तरफ यूरोप और दूसरे कई देशों के साथ तेल और गैस का कारोबार करके देश को आर्थिक मुश्किलों से बाहर निकाला. इसने उनके लिए राजनीति में कई बड़ी सफलताओं का रास्ता बना दिया.
तस्वीर: ALEXEY DRUZHININ/AFP via Getty Images
प्रतिबंधों पर भारी दोस्ती
सोवियत संघ के विघटन के साथ रूस के सामने जहां विशाल आर्थिक चुनौतियां थी वहीं अंतरराष्ट्रीय पटल पर सिमटती भूमिका उसे हतोत्साहित कर रही थी. ऐसे समय में पुतिन ने रूस की कमान संभाली और उसे एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय राजनीति का बड़ा खिलाड़ी बना दिया. सीरिया से लेकर, ईरान, तुर्की, उत्तर कोरिया, चीन और भारत समेत तमाम देशों के साथ रूस की गहरी दोस्ती है, जो प्रतिबंधों के दौर में भी उसका साथ दे रहे हैं.
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यूरोप में नाटो के सदस्य नवंबर में होने वाले अमेरिकी चुनाव को व्हाइट हाउस में ट्रंप की संभावित वापसी की आशंका से देख रहे हैं. चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने नाटो के अस्तित्व के सिद्धांत को खत्म करने की धमकी दी है, जो दूसरे विश्व युद्ध के बाद से गठबंधन की नींव रहा है.
अपने ‘ट्रुथ सोशल‘ नेटवर्क पर एक पोस्ट में, ट्रंप ने जोर देकर कहा कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान यूरोपीय देशों को अपने रक्षा खर्च को बढ़ाने के लिए मजबूर करके "नाटो को फिर से सक्षम" बनाया था.
उन्होंने दावा किया, "अगर मैं राष्ट्रपति नहीं होता, तो अब तक शायद नाटो नहीं होता." उन्होंने कहा कि अब वह चाहते हैं कि वॉशिंगटन के यूरोपीय सहयोगी यूक्रेन की मदद के लिए और अधिक प्रयास करें और अमेरिका पर बोझ को कम करें.
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यूक्रेन और रूस की प्रतिक्रिया
जेलेंस्की ने किएव के समर्थकों को एयर डिफेंस प्रणाली के लिए धन्यवाद दिया और अमेरिका व अन्य देशों से रूस को हराने में और अधिक मदद करने का आग्रह किया.
एक थिंक टैंक को संबोधित करते हुए जेलेंस्की ने कहा, "पूरी दुनिया नवंबर में अमेरिकी चुनाव के परिणाम की ओर देख रही है और सच कहें तो, पुतिन नवंबर का इंतजार कर रहे हैं."
उधर रूस ने नाटो सम्मेलन के बारे में कहा कि वह शिखर सम्मेलन को "बहुत ध्यान से" देख रहा है और वार्ता में बयानबाजी और लिए गए निर्णयों को कागज पर उतारने पर ध्यान दे रहा है.
अधिक हथियारों का वादा यूक्रेनी नेता के लिए सबसे बड़ी जीत साबित होगा क्योंकि उनके सैनिक जमीन बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. रूस के साथ युद्ध में नाटो को खींचने के बारे में चिंतित अमेरिका और जर्मनी ने यूक्रेन को अपने गठबंधन में शामिल होने का स्पष्ट निमंत्रण देने की किसी भी बात को बंद कर दिया है.
कुछ राजनयिकों का कहना है कि यूक्रेन का आने वाले समय में नाटो की सदस्यता का मार्ग शिखर सम्मेलन की घोषणा में स्पष्ट किया जा सकता है. इस संयुक्त घोषणा में नाटो के सदस्य यह भी वचन देंगे कि वे रूस के आक्रमण के बाद से यूक्रेन का समर्थन उसी शिद्दत से करते रहेंगे. इसके लिए सालाना लगभग 40 अरब यूरो का खर्च संभव है, जो आने वाले एक साल या उससे भी ज्यादा तक जारी रह सकता है.
चीन पर भी ध्यान
हालांकि नाटो रूस को अपना मुख्य खतरा मानता है, लेकिन यह चीन से पैदा हो रहीं चुनौतियों पर भी पहले से ज्यादा ध्यान दे रहा है. पश्चिमी नेता बीजिंग पर मॉस्को के युद्ध को जारी रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का आरोप लगाते रहे हैं.
रूस के खिलाफ ड्रोन है यूक्रेन का बड़ा हथियार
02:50
ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया के नेता नाटो गठबंधन के साथ संबंध मजबूत करने के लिए वॉशिंगटन पहुंचे हैं.
चीन के विदेश मंत्रालय ने नाटो से बीजिंग पर "हमला और हमले" करने का आरोप लगाया और कहा कि गठबंधन एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाने के बहाने की तलाश कर रहा है.