नाटो के सम्मेलन में छायी चीन और रूस की बढ़ती नजदीकी
५ अप्रैल २०२३नाटो के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में 4 अप्रैल 2023 को बड़े उत्साह से फिनलैंड को 31वां सदस्यबनाया गया. अमेरिका की अगुवाई वाले सैन्य संगठन ने कहा कि अब रूस के साथ उसके बॉर्डर की लंबाई दोगुनी हो चुकी है. लेकिन सम्मेलन के दूसरे दिन उत्साह की जगह चुनौतियों ने ले ली. बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में नाटो के हेडक्वार्टर में संगठन के महासचिव येंस स्टॉल्टेनबर्ग ने स्पष्ट रूप से चीन और सैन्य खर्च को फोकस में रखा.
नाटो के इस सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड के अधिकारी भी शामिल हुए. सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के हालिया मॉस्को दौरे का जिक्र भी हुआ. नाटो महासचिव के मुताबिक सदस्य देशों ने "चीन की रूस के साथ बढ़ती नजदीकी के साथ बढ़ती रणनैतिक प्रतिद्वंद्विता" पर भी चर्चा की.
जी7 और नाटो पर क्यों बिफर गया है चीन?
स्टॉल्टेनबर्ग ने कहा, "यूरोप में जो भी हो रहा है वह इंडो-पैसिफिक और एशिया के लिए मायने रखता है. और जो एशिया में हो रहा है वह यूरोप के लिए मायने रखता है." नाटो प्रमुख के मुताबिक यूक्रेन के युद्ध ने विश्व पर असर नतीजों को भी दिखा दिया है.
फिर छाया दो प्रतिशत का मुद्दा
नाटो महासिचव ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सभी सदस्य देश अपनी जीडीपी का दो फीसदी हिस्सा सुरक्षा में खर्च करेंगे. उन्होंने इस रकम को न्यूनतम बताया. उन्होंने कहा कि "टकराव और खतरों से भरी दुनिया" में नाटो देशों की सुरक्षा को हल्के में नहीं लिया जा सकता है.
नाटो के सम्मेलनों में अक्सर इस बात का जिक्र आता है कि सदस्य देश पर्याप्त पैसा खर्च नहीं कर रहे हैं. फिलहाल नाटो में सेना पर सबसे ज्यादा खर्च अमेरिका करता है. नाटो की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में सिर्फ सात सदस्यों ने ही अपनी जीडीपी का दो फीसदी पैसा नाटो में निवेश किया. 2021 में ऐसा करने वाले देशों की संख्या आठ और 2020 में 11 थी.
जर्मनी की परेशानी
नाटो में जीडीपी का दो फीसदी निवेश यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी को परेशान करता रहा है. ब्रसेल्स में एक बार फिर जर्मनी की यह चिंता जाहिर हुई. सम्मेलन में भाग ले रही जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने कहा, "यह भी बहुत जरूरी है कि हम सिर्फ प्रतिशत के बारे में ही बातचीत न करें, बल्कि लक्ष्यों को हासिल करने की क्षमता पर भी बात करें."
अमेरिका-जर्मन संबंधों का टेस्ट बना यूक्रेन युद्ध
बेयरबॉक के मुताबिक इस वक्त आर्थिक मुसीबतें सामने हैं. यूक्रेन युद्ध और रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों का असर जर्मनी समेत यूरोप के कई देशों पर पड़ रहा है. जर्मनी दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अपने रक्षा बजट में ऐतिहासिक बढ़ोतरी का एलान कर चुका है. लेकिन इकोनॉमी की रफ्तार सुस्त पड़ने की वजह से कई वायदों को पूरा करना आसान नहीं दिख रहा है.
जर्मनी के उलट नाटो के अन्य सदस्य देश सुरक्षा में और ज्यादा निवेश की मांग कर रहे हैं. एस्टोनिया के विदेश मंत्री उरमास राइनसालू ने सदस्य देशों से नाटो में जीडीपी का 2.5 फीसदी निवेश करने की मांग की. एस्टोनिया ने 2024 में रक्षा पर तीन फीसदी खर्च का लक्ष्य रखा है.
ओएसजे/एए (डीपीए)