नाटो के विदेश मंत्री लगातार दूसरे दिन यूक्रेन को मदद पहुंचाने के रास्तों पर बातचीत कर रहे हैं. असल में ये नेता नाटो की 75वीं सालगिरह मनाने के लिए जुटे थे.
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बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में नाटो का मुख्यालय है. यहीं नाटो के तमाम नेता यूक्रेन युद्ध पर बातचीत कर रहे हैं. 4 अप्रैल को यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने नाटो सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों को संबोधित किया. नाटो की 75वीं सालगिरह पर शुभकामनाएं देते हुए कुलेबा ने कहा, "मैं पार्टी में खलल नहीं डालना चाहता हूं, लेकिन मेरा आज का मुख्य संदेश पैट्रियॉट्स हैं."
अमेरिका में बनी पैट्रियॉट मिसाइलें जमीन से हवा में मार करती हैं. कुलेबा के मुताबिक, इनकी मदद से उनका देश रूसी बैलिस्टिक मिसाइलों के हमले से खुद का बचाव कर सकेगा. यूक्रेनी विदेश मंत्री ने कहा, "यूक्रेनियों की जिंदगी बचाना, यूक्रेन की अर्थव्यवस्था बचाना, यूक्रेन के शहरों को बचाना, यूक्रेन में यह पैट्रियॉट्स और अन्य एयर डिफेंस सिस्टमों की उपलब्धता पर निर्भर है. हम पैट्रियॉट्स की बात इसलिए कर रहे हैं कि यह अकेला ऐसा सिस्टम है, जो बैलिस्टिक मिसाइलों को इंटरसेप्ट कर सकता है."
यूक्रेन अपने पश्चिमी साझेदारों से लगातार आधुनिक और उन्नत हथियारों की मांग कर रहा है. कीव के मुताबिक, इन हथियारों के जरिए वह रूसी हमले का मुकाबला कर सकता है. पश्चिमी देशों को डर है कि आधुनिक हथियार कहीं मॉस्को को उनके खिलाफ ही न भड़का दे. रूसी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बीच-बीच में परमाणु हमले की धमकी देते आ रहे हैं.
एक-दूसरे कि लिए जरूरी हो चुके हैं यूरोप और अमेरिका
नाटो के महासचिव येंस स्टोल्टेनबर्ग के मुताबिक, अमेरिका को अपनी रक्षा के लिए अपने यूरोपीय साझेदारों की जरूरत है और दोनों पक्षों का साझा हित इसी में है, "यूरोप को अपनी सुरक्षा के लिए उत्तरी अमेरिका की आवश्यकता है. ठीक इसी समय, उत्तरी अमेरिका को भी यूरोप की जरूरत है. यूरोपीय साझेदार विश्वस्तरीय सेना, विशाल इंटेलिजेंस नेटवर्क और अनोखी कूटनीतिक क्षमता मुहैया कराते हैं. यह अमेरिकी की शक्ति को कई गुना कर देता है."
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अमेरिका में इस साल के अंत में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. चुनावों में राष्ट्रपति जो बाइडेन और पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के बीच मुकाबला होना है. ट्रंप नाटो के कई यूरोपीय सदस्यों को लेकर नाराजगी जताते रहे हैं. स्टोल्टेनबर्ग को इसका अहसास है. ब्रसेल्स में उन्होंने कहा, "मुझे अकेले अमेरिका, अकेले यूरोप पर विश्वास नहीं है. मैं नाटो में अमेरिका और यूरोप के साथ पर भरोसा करता हूं क्योंकि हम मिलजुलकर ताकतवर और सुरक्षित हैं."
यूरोप की सुरक्षा की धुरी है नाटो: बेयरबॉक
जर्मनी की विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने नाटो को यूरोपीय सुरक्षा की धुरी करार दिया. जर्मनी के सरकारी प्रसारक रेडियो 'डॉयचलांडफुंक' से बातचीत में उन्होंने कहा कि रूस की आक्रामकता सिर्फ यूक्रेन के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे यूरोप की शांति के लिए खतरा है.
बेयरबॉक ने पूरी वचनबद्धता से यूक्रेन की मदद करने की अपील करते हुए कहा कि आजादी और लोकतंत्र की रक्षा करने का एकमात्र रास्ता यही है.
जर्मन विदेश मंत्री ने यूक्रेन को मदद देने के लिए नाटो सदस्यों के बीच समन्वय के प्रस्ताव का भी समर्थन किया. यह प्रपोजल नाटो महासचिव स्टोल्टेनबर्ग ने सामने रखा है.
नई चुनौतियों का सामना करता नाटो
डीडब्ल्यू की वरिष्ठ पत्रकार आलेक्जांड्रा फोन नामेन मानती हैं कि यूक्रेन युद्ध और चीन के बढ़ते अड़ियल रुख से नाटो को नई चुनौतियां मिल रही हैं. नामेन के मुताबिक, रूस का यह दावा कि उसने यूक्रेन पर हमला नाटो के गलत कदमों के चलते किया, गलत है. नाटो तो 2014 में क्रीमिया के गैरकानूनी कटाव से पहले तक रूस के साथ संवाद कर रहा था. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन बार-बार कहते हैं कि पूर्वी यूरोप में नाटो की विस्तारवादी नीतियों के कारण ही उन्हें यूक्रेन में घुसना पड़ा.
4 अप्रैल 1949 को वॉशिंगटन में नॉर्थ अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षरों के साथ शुरू हुए नाटो से आज 32 देश जुड़ चुके हैं. 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर जब नाटो के नेता बातचीत कर रहे थे, उसी बीच 4 अप्रैल को रूसी राष्ट्रपति कार्यालय का भी बयान आया. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेशकोव ने पत्रकारों से कहा कि नाटो के साथ "रिश्ते सीधे टकराव के स्तर तक नीचे गिर चुके हैं." फरवरी 2024 में पुतिन ने भी कहा कि रूस और नाटो के बीचे सीधे टकराव का मतलब होगा कि तीसरा विश्व युद्ध दूर नहीं है.
ओएसजे/एसएम (एएफपी, डीपीए, एपी)
नाटो के 75 साल: कोल्ड वॉर से यूक्रेन वॉर तक
नाटो 75 साल का हुआ. तनाव और असुरक्षा से भरे शीत युद्ध के लंबे दशकों से लेकर यूक्रेन युद्ध के बाद यूरोप में सुरक्षा की बदलती तस्वीर तक, देखिए नाटो का सफर.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
12 संस्थापक देश
4 अप्रैल 1949 को 12 देशों ने मिलकर नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (नाटो) का गठन किया. ये संस्थापक देश थे: अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे और पुर्तगाल.
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वॉशिंगटन में दस्तखत हुए
इन 12 देशों के विदेश मंत्रियों ने वॉशिंगटन के डिपार्टमेंटल ऑडिटोरियम में समझौते पर दस्तखत किए. इसे वॉशिंगटन ट्रीटी के नाम से भी जाना जाता है. हस्ताक्षर समारोह के पांच महीनों के भीतर सदस्य देशों की संसद ने समझौते पर कानूनी मुहर लगा दी. इस तरह ये देश संधि में कानूनी और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ दाखिल हुए.
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आर्टिकल पांच और साझा सुरक्षा
समवेत सुरक्षा और एक-दूसरे के लिए खड़ा होना, नाटो के मूलभूत सिद्दांतों में है. ट्रीटी का आर्टिकल पांच साझा सुरक्षा की गारंटी देता है. इसके मुताबिक, सदस्य देश सहमति देते हैं कि यूरोप या उत्तरी अमेरिका में एक या एक से ज्यादा सदस्य देशों पर हथियारबंद हमले की स्थिति में इसे पूरे ब्लॉक पर हमला माना जाएगा.
तस्वीर: Monika Skolimowska/dpa/picture alliance
एक पर हमला, सब पर हमला
हमले की स्थिति में हर सदस्य संयुक्त राष्ट्र चार्टर के आर्टिकल 51 में दर्ज निजी या सामूहिक आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए उस सदस्य देश की मदद करेगा, जिसपर हमला हुआ है. सभी सदस्य नॉर्थ अटलांटिक इलाके की सुरक्षा बरकरार रखने और हनन की स्थिति में इसे वापस कायम करने के लिए जरूरत पड़ने पर सशस्त्र सेना और हथियारों का भी इस्तेमाल करेंगे.
तस्वीर: MDR/BR/DW
9/11 के बाद आर्टिकल पांच का इस्तेमाल
आर्टिकल पांच यह भी कहता है कि जो जवाबी कदम उठाए जाएंगे, उनकी सूचना तुरंत सुरक्षा परिषद को दी जाएगी. जब परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा वापस कायम करने की दिशा में जरूरी कदम उठा लेगा, उसके बाद नाटो की ओर से की जा रही कार्रवाई रोक दी जाएगी. अब तक नाटो ने आर्टिकल पांच का इस्तेमाल केवल 9/11 के आतंकी हमले के बाद किया है.
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नाटो में विस्तार
नाटो में समय-समय पर विस्तार होता रहा है. अब तक विस्तार के 10 चरण रहे हैं. पहली बार 1952 में समूह का विस्तार हुआ, जब ग्रीस और तुर्की ब्लॉक में शामिल हुए. फिर 6 मई 1955 को जर्मनी (तत्कालीन फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी, या वेस्ट जर्मनी) नाटो का 15वां सदस्य बना. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पूर्वी यूरोप के कई देश नाटो में आए. ये दो चरणों में हुआ.
तस्वीर: Mike Nelson/dpa/picture alliance
शीतयुद्ध के बाद का विस्तार
साल 1999 में हुए पोस्ट-कोल्ड वॉर के पहले विस्तार में चेकिया, हंगरी और पोलैंड सदस्य बने. फिर मार्च 2004 में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवेनिया को नाटो की सदस्यता मिली. नाटो के सबसे नए सदस्य हैं फिनलैंड (अप्रैल 2023) और स्वीडन (मार्च 2024). इस तरह नाटो में अब 32 सदस्य हैं.
तस्वीर: Tom Samuelsson/Regeringskansliet/TT/IMAGO
बालकन्स पर रूस के साथ तनाव
2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया, 2017 में मॉन्टेनीग्रो और 2020 में नॉर्थ मैसिडोनिया नाटो के सदस्य बने. ये बालकन देश हैं. बाल्कन्स का इलाका लंबे समय से रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव की वजह रहा है. पश्चिम की ओर से यूरोपीय संघ और नाटो यहां विस्तार करना चाहते हैं, वहीं रूस भी अपने इस पूर्व प्रभावक्षेत्र में सहयोगी तलाश रहा है.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
रूस का नाटो पर विस्तारवाद का आरोप
ऐसे में रूस लंबे समय से बालकन्स में नाटो के विस्तार का विरोध करता रहा है. वह इसे नाटो की विस्तारवादी नीति बताता है और अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है. 2014 में क्रीमिया पर रूसी कब्जे के बाद मॉस्को का नाटो से विरोध और गहराता गया. फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद तनाव अपने चरम पर पहुंच गया.
तस्वीर: Maxim Shemetov/REUTERS
यूक्रेन में जारी युद्ध का गहरा असर
यूक्रेन युद्ध ने यूरोप में सुरक्षा की भावना को गहराई तक हिला दिया है. यूक्रेन को मदद चाहिए, ना केवल फंड बल्कि सैन्य साजो-सामान भी. ऐसे में अभी नाटो के आगे सबसे बड़ी चुनौती यह है कि युद्ध के बीच कीव को किस तरह मदद मुहैया कराई जाए.
नाटो सीधे तौर पर युद्ध का हिस्सा नहीं बन सकता, लेकिन यूक्रेन में रूस को बढ़त पूरी क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए अकल्पनीय चुनौती होगी. ऐसे में नाटो देशों के बीच यूक्रेन को दी जाने वाली सहायता के प्रारूप, स्वभाव और आकार पर बातचीत जारी है. रूस के साथ समीकरण नाटो की सबसे बड़ी चुनौतियों में है.
तस्वीर: Christopher Ruano/picture alliance/Planetpi/Planet Pix/ZUMA Press Wire