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विवादजर्मनी

रूसी सेना के जमावड़े के जबाव में नाटो ने सेनाएं भेजी

२४ जनवरी २०२२

नाटो ने बड़ी संख्या में फौज, युद्धपोत और लड़ाकू विमान रूस के आस पास तैनात करने शुरू कर दिए हैं. असफल बातचीत के बाद रूस और अमेरिका करीब 30 साल बाद इतने बड़े सैन्य तनाव से गुजर रहे हैं.

बुल्गारिया में नाटो का नौसैनिक बेड़ा
तस्वीर: picture-alliance/NurPhoto/Impact Press Group/P. Petrov

यूक्रेन संकट से शुरू हुआ रूस और पश्चिमी देशों का विवाद और गंभीर होता जा रहा है. रूस ने एलान किया है कि वह अगले महीने आयरलैंड के पास समुद्र में सैन्य अभ्यास करेगा. आयरलैंड ने रूस को चेतावनी देते हुए कहा है कि ऐसे सैन्य अभ्यास का स्वागत नहीं किया जाएगा.

बातचीत और कूटनीति के सहारे तनाव कम करने कोशिशें नाकाम होने के बाद अब नाटो ने भी बड़ी संख्या में रूस के आस पास पूर्वी यूरोप में सैन्य तैनाती शुरू कर दी है. अमेरिका की अगुवाई वाले नाटो का कहना है कि युद्ध भड़काने वाली किसी भी कार्रवाई को रोकने के इरादे से यह किया जा रहा है.

नाटो का सदस्य देश, डेनमार्क अपने लड़ाकू नौसैनिक जहाज और एफ-16 फाइटर जेट लिथुएनिया भेज रहा है. स्पेन भी अपने वॉरशिप बाल्टिक सागर में भेज रहा है. यह संभावना भी है कि स्पेन अपने लड़ाकू विमान बुल्गारिया भेज सकता है. फ्रांस का कहना है कि वह भी अपनी सेना बुल्गारिया भेजने के लिए तैयार है. नीदरलैंड्स ने भी अपने फौज और नौसेना को स्टैंडबाइ में रखा है.

डेनमार्क ने लिथुएनिया भेजे F-16तस्वीर: Ssgt. Trevor T. Mcbride/U.S. Air/ZUMA Wire/imago images

नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग के मुताबिक, नाटो  "अपने सभी साझेदारों की सुरक्षा और उनके बचाव के लिए सारे जरूरी कदम उठाएगा.

नाटो के अहम सदस्य ब्रिटेन ने रूस को चेतावनी देते हुए कहा कि यूक्रेन में घुसने की कोशिश एक विध्वंसक कदम होगी. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने फौज को यूक्रेन भेजने से इनकार किया लेकिन उन्होंने यह जरूर कहा, यूक्रेन में घुसना रूस के लिए "दर्दनाक, हिंसक और खून खराबे वाला सौदा होगा." 

रूस ने कहा, ये तैनाती भड़काऊ

नाटो की तैनाती के बाद रूस की तरफ से भी कड़ी प्रतिक्रिया आई है. रूसी सरकार ने अमेरिका और नाटो पर तनाव भड़काने का आरोप लगाया है. रूसी राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता दिमित्री पेशकोव ने कहा कि मॉस्को समर्थक अलगाववादियों पर यूक्रेनी सेना के हमले का जोखिम बहुत ज्यादा है. रूस सरकार का कहना है कि यूक्रेनी सेना 2014 की तरह ही रूस समर्थक अलगाववादियों से लड़ने की योजना बना रही है. 2014 में इसी तर्क का हवाला देते हुए रूस ने क्रीमिया पर हमला कर उसे अपने नियंत्रण में ले लिया. मॉस्को कई बार कह चुका है कि अगर यूक्रेनी सेना ने रूस समर्थक अलगाववादियों पर कार्रवाई की तो अंजाम बुरा हो सकता है.

यूक्रेन सीमा के पास रूसी सेना का जमावड़ातस्वीर: Maxar Technologies/AFP

असमंजस में यूरोपीय संघ

नाटो की सैन्य तैनाती के एलान में यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों के लिए भी एक संदेश है. बैठक की अध्यक्षता कर रहे यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल का कहना है, ''हम यूक्रेन की स्थिति को लेकर एक अभूतपूर्व एकता का प्रदर्श कर रहे हैं.'' तनाव के इस दौर में यूरोपीय संघ ने यूक्रेन को 1.2 अरब यूरो की आर्थिक मदद भी दी है.

बोरेल से जब यह पूछा गया कि क्या यूरोपीय संघ के देश यूक्रेन स्थित अपने दूतावासों में तैनात कर्मचारियों के परिवारों को वापस बुलाएंगे? इसके जवाब में बोरेल ने कहा, "हम बिल्कुल उसी तरह का कदम नहीं उठाएंगे." अमेरिका और ब्रिटेन यूक्रेन से अपने दूतावासकर्मियों के परिवारों को वापस बुला चुके हैं.

नाटो के कई सदस्य देश अमेरिका को फॉलो करने के साफ संकेत दे रहे हैं. लेकिन यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश जर्मनी असमंजस में है. तमाम उतार चढ़ावों के बीच जर्मनी और रूस संबंध दोस्ताना हैं. एकीकरण से पहले पश्चिमी जर्मनी पश्चिमी देशों के साथ था तो पूर्वी जर्मनी सोवियत संघ के साथ. रूस के मौजूदा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खुद पूर्वी जर्मनी में सोवियत खुफिया एजेंसी केजीबी के एजेंट रह चुके हैं. जर्मनी रूसी गैस का बड़ा खरीदार भी है.

ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के विदेश मंत्रियों की बैठकतस्वीर: Virginia Mayo/AP Photo/picture alliance

जर्मनी पर दबाव क्यों

एक लाख से ज्यादा रूसी सैनिकों के यूक्रेन को तीन तरफ से घेरने के बाद जर्मनी दबाव में है. द्वितीय विश्वयुद्ध के तथ्य और उसके बाद जर्मनी का दो भागों में बंटना, बर्लिन के लिए इन स्मृतियों को भुलाना आसान नहीं है. जर्मन नेता जानते हैं कि अगर युद्ध भड़का तो जर्मनी भी उसकी आंच से नहीं बच सकेगा. जर्मनी में हाल ही सत्ता में आई नई सरकार के लिए भी यह परिस्थितियां इम्तिहान लेने वाली हैं. 16 साल तक देश की कमान संभालने वाली अंगेला मैर्केल के राजनीतिक संन्यास के बाद नए चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के लिए इन जटिलताओं को हल करना आसान नहीं है.

यूक्रेन संकट ने जर्मनी को साझेदार बनाम पड़ोसी की लड़ाई में ला खड़ा किया है. इसकी बानगी पिछले हफ्ते भी देखने को मिली जब जर्मनी के नौसेना प्रमुख वाइस एडमिरल काय आखिम शोनबाख को पुतिन संबंधी बयान के लिए इस्तीफा देना पड़ा. भारत यात्रा के दौरान शोनबाख ने कहा कि पुतिन "सिर्फ सम्मान चाहते हैं." नौसेना प्रमुख का यह बयान वायरल हो गया और रक्षा मंत्रालय ने फौरन उनका त्याग पत्र स्वीकार कर लिया.

काय आखिम शोनबाखतस्वीर: Alexander Preker/dpa/picture alliance

जर्मनी की नई विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक यूक्रेन और मॉस्को का दौरा भी कर चुकी हैं. बढ़ते तनाव के बीच बेयरबॉक ने कहा है, "हमें हालात को और बुरा बनाने में हिस्सा नहीं लेना चाहिए. हमें पूरी तरह यूक्रेन की सरकार को समर्थन देने की जरूरत है और इन सबके ऊपर देश में स्थिरता बनाए रखने की जरूरत है."

नाटो फौजों की तैनाती के बीच यूक्रेन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ओलेग निकोलेंको ने अमेरिकी कदमों को जल्दबाजी बताया है. निकोलेंको ने कहा, रूस यूक्रेन को अस्थिर करने के लिए यूक्रेनी जनता और विदेशियों के भीतर भय का माहौल बनाना चाहता है. गंभीर होते तनाव के बीच फ्रांस की सरकार ने अपने नागरिकों से कहा है कि अगर जरूरी न हो तो वे यूक्रेन जाने से बचें.

ओएसजे/आरपी (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)

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