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नाजियों की लूटी कलाकृतियां देने में देर क्यों कर रहा जर्मनी

सारा जूडिथ हॉफमान
८ दिसम्बर २०२३

हिटलर के शासन काल के दौरान लूटी या जब्त की गई कलाकृतियों को लौटाने के लिए 25 साल पहले ‘वाशिंगटन सिद्धांत’ बनाया गया था. हालांकि, अब तक कलाकृतियों को वापस करने को लेकर कोई बाध्यकारी कानून नहीं है.

पाब्लो पिकासो की "मैडम सोलेर” पेंटिंग
पाब्लो पिकासो की "मैडम सोलेर” पेंटिंग फिलहाल जर्मनी के म्यूनिख शहर में स्थित पिनाकोटेक डेय मोडेरने नामक म्यूजियम में प्रदर्शनी के लिए रखी गई है.तस्वीर: Felix Hörhager/dpa/picture alliance

पाब्लो पिकासो: यह एक ऐसा नाम है, जिसे कला जगत से जुड़ा कोई व्यक्ति शायद ही न जानता हो. कला जगत में ध्यान आकर्षित करने के लिए यह नाम ही काफी है. पिकासो की पेंटिंग अब इस बात का प्रतीक बन चुकी है कि नाजी काल में चुराई और लूटी गई कलाकृतियों के मामले में जर्मनी किस तरह का रवैया अपना रहा है.

पाब्लो पिकासो ने 1903 में "मैडम सोलेर” की पेंटिंग बनाई थी, जिसके चेहरे के भाव अस्पष्ट हैं. इस पेंटिंग ने पिकासो को एक चित्रकार के तौर पर स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी. फिलहाल, यह पेंटिंग जर्मनी के म्यूनिख शहर में स्थित पिनाकोटेक डेय मोडेरने नामक म्यूजियम में प्रदर्शनी के लिए रखी गई है.

बवेरियन राज्य चित्रकला संग्रह एक सरकारी विभाग है, जो म्यूनिख संग्रहालय की देखरेख करता है. इस विभाग के मुताबिक, यह पेंटिंग यहीं रहनी चाहिए. उसकी नजर में यह कोई लूटी गई कलाकृति नहीं है. हालांकि, इतिहासकार युलिउस एच. शुएप्स इस कलाकृति के असली मालिक के उत्तराधिकारी होने का दावा करते हैं. उन्होंने कहा कि यह पेंटिंग उनके परदादा जर्मन-यहूदी बैंकर और कलाकृति संग्रहकर्ता पॉल फॉन मेंडेलसोन-बार्थोल्डी की थी.

पॉट्सडैम विश्वविद्यालय में आधुनिक इतिहास के सेवानिवृत्त प्रोफेसर शुएप्स ने दुनियाभर के अभिलेखागारों में कई वर्षों तक शोध किया और इस मामले को लेकर एक किताब लिखी, "पिकासो की 'मैडम सोलेर' का मालिक कौन है?”

उनके हिसाब से, हकीकत यह है कि यह पेंटिंग 1935 में बिक्री के लिए लाई गई थी. ऐसा 1933 में हिटलर के सत्ता में आने के बाद यहूदियों को मताधिकार से वंचित करने और उन्हें सताए जाने की वजह से किया गया था. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "बवेरिया यह दावा करता है कि 1935 तक यहूदियों का किसी तरह उत्पीड़न नहीं किया गया था, यह ऐतिहासिक तौर पर गलत है.”

‘हम कुछ नहीं कर सकते'

यह एक ऐसा विवाद है, जिसका हल नाजी शासन काल के दौरान लूटी गई संपत्ति के मामलों के निपटारे के लिए बनाया गया सलाहकार आयोग कर सकता है. इस आयोग की स्थापना 20 साल पहले की गई थी, ताकि क्षतिपूर्ति से जुड़े विवादों के जटिल मामलों की सुनवाई की जा सके. हालांकि, इन मामलों की सुनवाई से जुड़ी सबसे बड़ी अड़चन यह है कि आयोग अपना काम तभी शुरू कर सकता है, जब दोनों पक्ष इस पर सहमत हों.

आयोग के अध्यक्ष हांस युएर्गन पापियर कहते हैं, "मैडम सोलेर के मामले में इस पेंटिंग के उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाला परिवार, इस मामले को आयोग के पास भेजने के लिए लगभग 10 वर्षों से लड़ रहा है. लेकिन बवेरिया राज्य ने साफ तौर पर इनकार कर दिया है. ऐसे में हम कुछ नहीं कर सकते.”

हांस युएर्गन पापियर, नाजी शासन काल के दौरान लूटी गई संपत्ति के मामलों के निपटारे के लिए बनाए गए सलाहकार आयोग के अध्यक्ष हैं. तस्वीर: Jürgen Heinrich/IMAGO

नियम में सुधार की मांग

इस साल सितंबर 2023 में सलाहकार आयोग की स्थापना को 20 वर्ष पूरे हो गए. इस मौके पर पापियर ने मौलिक सुधारों की मांग की है. इसका लक्ष्य है कि नाजी उत्पीड़न के पीड़ित, दूसरे पक्ष की असहमति के बावजूद सलाहकार आयोग को सिफारिशें करने का अनुरोध कर सकें. ताकि, उन्हें संग्रहालयों की सहमति मिलने का इंतजार न करना पड़े. साथ ही, आयोग की जो सिफारिशें हों उन्हें सभी पक्ष मानने के लिए बाध्य हों. 

उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में उनके पास कठोर कानून नहीं है. जब संग्रहालय पेंटिंग लौटाते हैं, तो यह उनकी इच्छा के आधार पर होता है और नैतिक रूप से प्रेरित होता है, लेकिन पीड़ितों के पास इन पेंटिंग को हासिल करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है.

जर्मनी ने 3 दिसंबर, 1998 को वाशिंगटन सिद्धांतों पर हस्ताक्षर किया था. इसके तहत 43 देशों ने ‘नाजी उत्पीड़न की वजह से जब्त की गई कलाकृतियों' की पहचान करने और उनके मालिकों या उत्तराधिकारियों के साथ ‘न्यायसंगत और उचित समाधान' तलाशने पर सहमति जताई थी. हालांकि शुएप्स के मुताबिक, जर्मनी इस सिद्धांत का पालन नहीं कर रहा है.

उन्होंने कहा, "जर्मनी अपराधियों का देश है. विशेष तौर पर इस देश में उत्तराधिकारी अक्सर अपने साथ किए जाने वाले व्यवहार से निराश होते हैं. अगर अंततः कुछ नहीं किया गया, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जर्मनी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा.”

उन्होंने इस तथ्य का हवाला दिया कि पॉल फॉन मेंडेलसोन-बार्थोल्डी के उत्तराधिकारी कई बार जर्मनी से बाहर स्थित संग्रहालयों के साथ विवादों को हल कर चुके हैं. इनमें न्यूयॉर्क स्थित म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट (एमओएमए) और गुगेनहाइम शामिल हैं.

आयोग, इटली के मास्टर बेर्नार्डो बेलोट्टो की दो पेंटिंग्स से जुड़े विवाद को हल करने में सफल रहा. तस्वीर: Andre Held/akg-images/picture alliance

कलाकृति वापस करने वाले कानून की मांग

सलाहकार आयोग की 20वीं वर्षगांठ समारोह में शामिल होने के लिए बर्लिन स्थित यहूदी संग्रहालय पहुंची जर्मन संस्कृति मंत्री क्लाउडिया रोथ ने वादा किया है कि इस कानून में सुधार होगा. उन्होंने कहा था कि अक्टूबर 2023 तक इस मामले में राज्यों के साथ बातचीत की जाएगी. आयोग में एकतरफा अपील भी हो सकेगी. दरअसल, जर्मनी की संघीय व्यवस्था के तहत इस मामले में राज्यों की मंजूरी जरूरी होती है.

वहीं, संघीय संवैधानिक न्यायालय के अध्यक्ष रह चुके पापियर कहते हैं कि काफी ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कलाकृतियों को वापस करने वाला कानून बनाने की मांग की. पापियर का मानना है कि अगर ऐसा कानून नहीं बनता है, तो एकतरफा अपील पर सुनवाई करना मुश्किल होगा.

नाजी काल में लूटी गई संपत्ति पर गठित सलाहकार आयोग ने अपने 20 वर्षों के कार्यकाल में महज 23 सिफारिशें की हैं. पापियर ने जोर देकर कहा, "यह बहुत कम है.” हालांकि, जिन मामलों में आयोग ने हस्तक्षेप किया था, वे अभूतपूर्व थे.

दो केनालेत्तो की वापसी

उदाहरण के लिए, आयोग इटली के मास्टर बेर्नार्डो बेलोट्टो की दो पेंटिंग्स से जुड़े विवाद को हल करने में सफल रहा. इन दोनों पेंटिंग्स को केनालेत्तो के नाम से जाना जाता है. यह विवाद 15 वर्षों तक चला. ये पेंटिंग्स, यहूदी डिपार्टमेंट स्टोर के रईस और प्रसिद्ध कला संरक्षक मैक्स एम्डन की थीं.

एम्डन परिवार के वकीलों ने तर्क दिया था कि नाजी काल के दौरान उन्हें हिटलर के निजी संग्रह के लिए काफी कम कीमत में इन पेंटिंग्स को बेचना पड़ा था. युद्ध के बाद अमेरिकी सैनिकों को यह पेंटिंग मिली, जो बाद में संघीय वित्त मंत्रालय के कला डिपो में पहुंच गई. कुछ समय के लिए इन्हें जर्मन राष्ट्रपति के आधिकारिक निवास में और बाद में ड्रेसडेन स्थित सैन्य इतिहास संग्रहालय में रखा गया.

आयोग को विश्वास हो गया कि पेंटिंग्स की बिक्री के समय एम्डन, स्विट्जरलैंड में सुरक्षित थे. हालांकि, यह साबित करना उत्तराधिकारियों पर निर्भर था कि एम्डन ने ‘उत्पीड़न की वजह से संपत्ति के नुकसान के कारण' केनालेत्तो को बेच दिया था.

यहूदी डिपार्टमेंट स्टोर के रईस और प्रसिद्ध कला संरक्षक मैक्स एम्डन को अपनी तस्वीरें, हिटलर के निजी कला संग्रह के लिए सस्ते में बेचनी पड़ी थीं. तस्वीर: Creative Commons-Lizenz

चिली में पले-बढ़े एम्डन की परपोती माएवा एम्डन उन नौकरशाही बाधाओं को याद करती हैं, जिन्हें उनके परिवार को पार करना पड़ा था. आखिरकार, आयोग ने दो केनालेत्तो वापस करने की सिफारिश की. वर्ष 2020 में सोथबी में उनकी नीलामी की गई. इसमें ‘ड्रेसडेन में जविंगर ग्रैबेन का व्यू' पेंटिंग 60 लाख यूरो में बिकी.

माएवा एम्डन कहती हैं, "वर्षों तक वकीलों की मदद लेने की वजह से इन पेंटिंग्स को बेचना जरूरी हो गया था.” अब वह अपने परदादा के पूर्व गृहनगर हैम्बर्ग स्थित कुन्सटाले में प्रदर्शनी के लिए केनालेत्तो उपलब्ध कराना चाहती हैं.

वह चाहती हैं कि मैक्स एम्डन ने हैम्बर्ग और जर्मनी के लिए जो किया है, उसे मान्यता मिले. ऐसे कई यहूदी परिवार हैं, जिनकी स्मृतियां खत्म हो गई हैं क्योंकि उनकी हत्या कर दी गई थी.

कलाकृतियों को लौटाया जा सकता है, लोगों को नहीं

साल 2017 में कार्ल श्मिट-रॉटलफ की वाटरकलर पेंटिंग ‘मार्श लैंडस्केप विद रेड विंडमिल' को भी आयोग की सिफारिश पर रेनॉल्ड्स परिवार को वापस कर दिया गया. यह पेंटिंग यहूदी कारोबारी और कला संग्रहकर्ता मैक्स रुडेनबर्ग की थी. 87 वर्षीय वर्नोन रेनॉल्ड्स, रुडेनबर्ग के पोते हैं.

उन्होंने कहा, "पेंटिंग क्या हैं?” वह कलाकृतियों को वापस लौटाने की जगह लोगों को हुए नुकसान के बारे में बात करना चाहते हैं. वह कहते हैं, "कलाकृतियां वापस की जा सकती हैं, लोग नहीं. मैंने अपने पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची, सभी को हमेशा के लिए खो दिया.”

1935 में बर्लिन में पैदा हुए वर्नोन रेनॉल्ड्स अपनी मां के साथ जीवित रहे. इसकी एक वजह उनके दादा का कला संग्रह भी था. रुडेनबर्ग और उनकी पत्नी ने अपने परिवार को देश से बाहर निकालने के लिए उन सभी चीजों को बेच दिया था, जिन्हें वे बेच सकते थे.

वर्नोन के भाई और बहन किंडरट्रांसपोर्ट्स की मदद से इंग्लैंड पहुंचे थे. उनकी मां भी नाजियों के कब्जे वाले इलाके से वर्नोन के साथ भागने में सफल रही. उस समय वर्नोन की उम्र तीन साल थी. हालांकि, उनके दादा-दादी मैक्स और ग्रेटा रुडेनबर्ग जर्मनी में ही रहे और थेरेजियनस्टड में उनकी हत्या कर दी गई. वर्नोन रेनॉल्ड्स के पिता की मौत आउशवित्स में हुई.

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