एनसीआरबी के डेटा के मुताबिक साल 2021 में भारत में आत्महत्या करने वाले लोगों में सबसे अधिक दिहाड़ी मजदूर, स्वरोजगार से जुड़े और बेरोजगार लोग शामिल थे.
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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक साल 2021 में आत्महत्या से मरने वाले कुल 1,18,970 पुरुषों में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 37,751 थी, जो खुदकुशी करने वाले लोगों में सबसे अधिक है. इसके बाद 18,803 स्वरोजगार से जुड़े लोग और 11,724 बेरोजगार खुदकुशी करने वालों में थे.
रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2021 के दौरान देश में कुल 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की. इनमें सबसे ज्यादा पुरुष (1,18,970) और महिलाएं (45,026) थीं.
साल 2020 में भी आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूर, स्वरोजगार और बेरोजगार थे, ताजा रिपोर्ट भी लगभग यही तस्वीर पेश करती है. साल 2020 में कुल 1,53,052 लोगों ने खुदकुशी की थी.
इस रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या के मामलों में साल 2021 में 2020 की तुलना में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि आत्महत्या करने वाले दिहाड़ी मजदूरों की संख्या एक चौथाई को पार कर गई है.
कोविड महामारी से पहले 2019 में भारत में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की थी. इनमें दिहाड़ी मजदूरों की संख्या 32,563 यानी 3.4 प्रतिशत थी.
एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कृषि क्षेत्र से संबद्ध 10,881 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 5,318 किसान और 5,563 खेत मजदूर थे. 5,318 किसान में से 5107 पुरुष और 211 महिलाएं थीं. वहीं 5,563 खेत मजदूरों में से 5,121 पुरुष और 442 महिलाएं थीं. ऐसे में अगर उन्हें भी दिहाड़ी मजदूरों में शामिल कर लिया जाए तो आत्महत्याओं का औसत और भी ज्यादा बढ़ जाएगा.
विशेषज्ञों का कहना है कि हाल के दिनों में और खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में अमीर और गरीब के बीच की खाई काफी बढ़ी है. गरीब पहले से ज्यादा गरीब हो गया है जबकि अमीरों की संपत्ति कई गुना बढ़ गई.
विभिन्न आधिकारिक और गैर-आधिकारिक रिपोर्टों के मुताबिक पिछले दो वर्षों के दौरान भारत में अधिकांश परिवारों की आय में काफी कमी आई है और वे गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं.
दिल्ली की जेएनयू में सामाजिक विज्ञान पढ़ाने वाली प्रोफेसर अनामित्रा रॉय चौधरी ने कहा, "आर्थिक मंदी के परिणामस्वरूप नौकरियां कम हो रही हैं जबकि श्रमिकों की संख्या बढ़ रही है. इससे दिहाड़ी मजदूरों के लिए श्रम बाजार पर भारी बोझ पड़ा है. बाजार में सभी श्रमिकों को रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध नहीं हैं. दिहाड़ी मजदूरों को कठोर कदम उठाने को मजबूर किया जा रहा है."
गुलामी के भवर में आज भी फंसे हैं भारत के कई लोग
भारत और अफ्रीका जैसे देशों को आजादी सालों पहले मिल गई, लेकिन फिर भी कई लोग आज भी अलग-अलग रूपों में गुलामों वाली जिंदगी जी रहे हैं.
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भारत में दुर्दशा
80 लाख की संख्या के साथ भारत में सबसे ज्यादा आधुनिक गुलाम रहते हैं. इसके बाद 38.6 लाख के साथ चीन इस मामले में दूसरे स्थान पर आता है. पाकिस्तान में 31.9 लाख, उत्तर कोरिया में 26.4 लाख और नाइजीरिया में 13.9 लाख लोग आज भी गुलाम हैं.
मुनाफे के लिए लोगों से हर तरह का काम कराया जा रहा है. उन्हें देह व्यापार, बंधुआ मजदूरी और अपराधों की दुनिया में धकेला जा रहा है. कहीं उनसे भीख मंगवाई जा रही है, तो कहीं घरों में उनका शोषण हो रहा है. जबरन शादी और अंगों के व्यापार में भी उन्हें मुनाफे का जरिया बनाया जा रहा है.
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कुल कितने गुलाम
दुनिया में कम से 4.03 करोड़ लोग गुलामों की तरह रह रहे हैं. इसमें से दो करोड़ से खेतों, फैक्ट्रियों और फिशिंग बोट्स पर काम लिया जा रहा है. 1.54 करोड़ को शादी के लिए मजबूर किया जाता है जबकि पचास लाख लोग देह व्यापार में धकेले गए हैं.
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यूएन का लक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इंसानों की तस्करी तेजी से बढ़ते हुए अपराध उद्योग की जगह ले रही है. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक बंधुआ मजदूरी और जबरी विवाह को खत्म करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन यह काम बहुत ही चुनौतीपूर्ण है.
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इंसानी तस्करी विरोधी दिवस
कहां पर कितने लोगों से गुलामों की तरह काम लिया जा रहा है, इस पर कहीं विश्वसनीय आंकड़े नहीं मिलते. लेकिन कुछ आंकड़े और तथ्य इतना जरूर बता सकते हैं कि समस्या कितनी गंभीर है. इसी की तरफ ध्यान दिलाने के लिए यूरोपीय संघ 18 अक्टूबर को इंसानी तस्करी विरोधी दिवस मनाता है.
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महिलाएं और लड़कियां निशाना
आधुनिक गुलामों में हर दस लोगों में सात महिलाएं और लड़कियां हैं जबकि इनमें एक चौथाई बच्चे शामिल हैं. वैश्विक स्तर पर देखें तो हर 185 लोगों में से एक गुलाम है. आबादी के हिसाब से उत्तर कोरिया में सबसे ज्यादा आधुनिक गुलाम रहते हैं.
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कहां क्या स्थिति
उत्तर कोरिया में 10 प्रतिशत आबादी को गुलाम बनाकर रखा गया है. इसके बाद इरिट्रिया में 9.3 प्रतिशत, बुरुंडी में चार प्रतिशत, सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक में 2.2 प्रतिशत और अफगानिस्तान में 2.2 प्रतिशत लोग गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं.
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तो किसे अपराध कहेंगे?
2019 की शुरुआत तक 47 देशों में इंसानी तस्करी को अपराध घोषित नहीं किया गया था. 96 देशों में बंधुआ मजदूरी अपराध नहीं थी जबकि 133 देशों में जबरन शादी को रोकने वाला कोई कानून नहीं था.
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विकसित देश भी पीछे नहीं
अनुमान है कि इंसानी तस्करी से हर साल कम से कम 150 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया जा रहा है. विकासशील ही नहीं, विकसित देशों में भी आधुनिक गुलाम मौजूद हैं. ब्रिटेन में 1.36 लाख और अमेरिका में चार लाख लोगों से गुलामों की तरह काम लिया जा रहा है. (स्रोत: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, वॉक फ्री फाउंडेशन)