विकासशील देशों में महंगाई से लड़ने का हथियार बना क्रिप्टो
४ अप्रैल २०२२
क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने वाले लोगों की संख्या साल 2021 में तेजी से बढ़ी है. बढ़े लोगों में से ज्यादातर उन देशों से हैं, जहां या तो महंगाई दर ज्यादा है या फिर वहां की मुद्रा में डॉलर के मुकाबले तेज गिरावट देखी गई है.
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अमेरिका, लैटिन अमेरिका और एशिया प्रशांत इलाकों में जितने भी लोगों ने अब तक क्रिप्टोकरेंसी में निवेश किया है, उनमें से करीब आधे पिछले साल ही इससे पहली बार जुड़े. यानी साल 2021 में क्रिप्टोकरेंसी तेजी से लोकप्रिय हुई. यह जानकारी मिली है, अमेरिकी क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज जेमिनी के नए सर्वे में.
सर्वे नवंबर, 2021 से फरवरी, 2022 के बीच किया गया. इसमें करीब 20 देशों के 30 हजार लोग शामिल थे. सर्वे स्पष्ट करता है कि 2021 क्रिप्टोकरेंसी के लिए एक जोरदार साल रहा. रिपोर्ट में क्रिप्टो में इस बंपर निवेश की वजह ज्यादातर देशों में बढ़ती महंगाई दर को बताया गया है. दरअसल महंगाई दर के बढ़ने और मुद्रा में गिरावट के बीच क्रिप्टो निवेश का लोकप्रिय जरिया बनने लगा क्योंकि लोग ऐसे निवेश के मौके चाहते थे, जहां महंगाई दर से ज्यादा का रिटर्न मिल सके.
ब्राजील और इंडोनेशिया रहे लीडर
जेमिनी की रिपोर्ट के मुताबिक ब्राजील और इंडोनेशिया इस क्रिप्टोमेनिया के उस्ताद रहे. इन दोनों ही देशों में जितने लोगों से सर्वे के दौरान बात हुई, उनमें से 41 फीसदी ने क्रिप्टो में निवेश कर रखा था. जबकि अमेरिका में ऐसा कहने वालों की संख्या 20 फीसदी और ब्रिटेन में सिर्फ 18 फीसदी थी.
जेमिनी की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल क्रिप्टो में निवेश करने वाले लोगों में से करीब 80 फीसदी ने कहा कि उन्होंने डिजिटल मुद्रा में लंबे समय की निवेश संभावनाओं के चलते निवेश किया है.
बिटकॉइन कैसे काम करता है और यह किस काम आता है
हाल में बिटकॉइन के मूल्य में काफी उतार चढ़ाव देखे गए हैं, जिसकी वजह से निवेशकों को संदेह हो गया है कि इसमें अपना पैसा डालें या नहीं. डीडब्ल्यू कोई सलाह नहीं देता लेकिन आइए आपको बताते हैं कि आखिर बिटकॉइन काम कैसे करता है.
डिजिटल मुद्रा
बिटकॉइन एक डिजिटल मुद्रा है क्योंकि यह सिर्फ वर्चुअल रूप में ही उपलब्ध है. यानी इसका कोई नोट या कोई सिक्का नहीं है. यह एन्क्रिप्ट किए हुए एक ऐसे नेटवर्क के अंदर होती है जो व्यावसायिक बैंकों या केंद्रीय बैंकों से स्वतंत्र होता है. इससे बिटकॉइन को पूरी दुनिया में एक जैसे स्तर पर एक्सचेंज किया जा सकता है. एन्क्रिप्शन की मदद से इसका इस्तेमाल करने वालों की पहचान और गतिविधियों को गुप्त रखा जाता है.
तस्वीर: STRF/STAR MAX/IPx/picture alliance
एक रहस्यमयी संस्थापक
बिटकॉइन को पहली बार 2008 में सातोशी नाकामोतो नाम के व्यक्ति ने सार्वजनिक रूप से जाहिर किया था. यह आज तक किसी को नहीं मालूम कि यह एक व्यक्ति का नाम है या कई व्यक्तियों के एक समूह का. 2009 में एक ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर के रूप में जारी किए जाने के बाद यह मुद्रा लागू हो गई.
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कैसे मिलता है बिटकॉइन
इसे हासिल करने के कई तरीके हैं. पहला, आप इसे कॉइनबेस या बिटफाइनेंस जैसे ऑनलाइन एक्सचेंजों से डॉलर, यूरो इत्यादि जैसी मुद्राओं में खरीद सकते हैं. दूसरा, आप इसे अपने उत्पाद या अपनी सेवा के बदले भुगतान के रूप में पा सकते हैं. तीसरा, आप खुद अपना बिटकॉइन बना भी सकते हैं. इस प्रक्रिया को माइनिंग कहा जाता है.
डिजिटल बटुए की जरूरत
बिटकॉइन खरीदने से पहले आपको अपने कंप्यूटर में वॉलेट सॉफ्टवेयर इंस्टॉल करना पड़ता है. इस वॉलेट में एक 'पब्लिक' चाभी होती है जो आपका पता होता है और एक निजी चाभी भी होती है जिसकी मदद से वॉलेट का मालिक क्रिप्टो मुद्रा को भेज सकता है या पा सकता है. स्मार्टफोन, यूएसबी स्टिक या किसी भी दूसरे डिजिटल हार्डवेयर का इस्तेमाल वॉलेट के रूप में किया जा सकता है.
अब बिटकॉइन से कुछ खरीदा जाए
आइए जानते हैं भुगतान के लिए बिटकॉइन का इस्तेमाल कैसे किया जाता है. मान लीजिए मिस्टर एक्स मिस वाई से एक टोपी खरीदना चाहते हैं. इसके लिए सबसे पहले मिस वाई को मिस्टर एक्स को अपना पब्लिक वॉलेट पता भेजना होगा, जो एक तरह से उनके बिटकॉइन बैंक खाते की तरह है.
ब्लॉकचेन
मिस वाई से उनके पब्लिक वॉलेट का पता पा लेने के बाद, मिस्टर एक्स को अपनी निजी चाभी से इस लेनदेन को पूरा करना होगा. इससे यह साबित हो जाता कि इस डिजिटल मुद्रा को भेजने वाले वही हैं. यह लेनदेन बिटकॉइन से रोजाना होने वाले हजारों लेनदेनों की तरह बिटकॉइन ब्लॉकचेन में जमा हो जाता है.
डिजिटल युग के खनिक
अब मिस्टर एक्स द्बारा किए हुए लेनदेन की जानकारी ब्लॉकचेन नेटवर्क में शामिल सभी लोगों को पहुंच जाती है. इन लोगों को नोड कहा जाता है. मूल रूप से ये निजी कम्प्यूटर होते हैं, जिन्हें 'माइनर' या खनिक भी कहा जाता है. ये इस लेनदेन की वैधता को सत्यापित करते हैं. इसके बाद बिटकॉइन मिस वाई के पब्लिक पते पर चला जाता है, जहां से वो अपनी निजी चाभी का इस्तेमाल कर इसे हासिल कर सकती हैं.
बिटकॉइन मशीन रूम
सैद्धांतिक तौर पर ब्लॉकचेन नेटवर्क में कोई भी खनिक बन सकता है. लेकिन अधिकतर यह प्रक्रिया बड़े कंप्यूटर फार्मों में की जाती है जहां इसका हिसाब रखने के लिए आवश्यक शक्ति हो. इस प्रक्रिया में लेनदेन को सुरक्षित रखने के लिए नए लेनदेनों को तारीख के हिसाब से जोड़ कर एक कतार में रखा जाता है.
एक विशाल सार्वजनिक बही-खाता
हर लेनदेन को एक विशाल सार्वजनिक बही-खाते में शामिल कर लिया जाता है. इसी को ब्लॉकचेन कहा जाता है क्योंकि इसमें सभी लेनदेन एक ब्लॉक की तरह जमा कर लिए जाते हैं. जैसे जैसे सिस्टम में नए ब्लॉक आते हैं, सभी इस्तेमाल करने वालों को इसकी जानकारी पहुंच जाती है. इसके बावजूद, किसने किसको कितने बिटकॉइन भेजे हैं, यह जानकारी गोपनीय रहती है. एक बार कोई लेनदेन सत्यापित हो जाए, तो फिर कोई भी उसे पलट नहीं सकता है.
बिटकॉइनों का विवादास्पद खनन
खनिक जब नए लेनदेन को प्रोसेस करते हैं तो इस प्रक्रिया में वे विशेष डिक्रिप्शन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर नए बिटकॉइन बनाते हैं. डिक्रिप्ट होते ही श्रृंखला में एक नया ब्लॉक जुड़ जाता है और उसके बाद खनिक को इसके लिए बिटकॉइन मिलते हैं. पूरे बिटकॉइन नेटवर्क में चीन सबसे बड़ा खनिक है. वहां कोयले से मिलने वाली सस्ती बिजली की वजह से वो अमेरिका, रूस, ईरान और मलेशिया के अपने प्रतिद्वंदी खनिकों से आगे रहता है.
बिजली की जबरदस्त खपत
क्रिप्टो माइनिंग और प्रोसेसिंग के लिए जो हिसाब रखने की शक्ति चाहिए, उसकी वजह से बिटकॉइन नेटवर्क ऊर्जा की काफी खपत करता है. यह प्रति घंटे लगभग 120 टेरावॉट ऊर्जा लेते है. कैंब्रिज विश्वविद्यालय के बिटकॉइन बिजली खपत सूचकांक के मुताबिक इस क्रिप्टो मुद्रा को इस नक्शे में नीले रंग में दिखाए गए हर देश से भी ज्यादा ऊर्जा चाहिए. - गुडरून हाउप्ट
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महंगाई से लड़ने का हथियार
डॉलर के मुकाबले जिन देशों की मुद्रा में तेज गिरावट आई है, वहां क्रिप्टो में निवेश की बात सोच रहे लोग अन्य देशों के मुकाबले पांच गुना ज्यादा हैं. लोग क्रिप्टो को महंगाई से लड़ने वाले हथियार के तौर पर देखते हैं. सर्वे में शामिल अमेरिका के सिर्फ 16 फीसदी लोगों और यूरोप के 15 फीसदी लोगों ने महंगाई से बचने के लिए क्रिप्टो में निवेश की बात कही. वहीं भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में ऐसा कहने वाले लोग 64 फीसदी थे.
पिछले पांच सालों में भारतीय रुपये में डॉलर के मुकाबले 17.5 फीसदी की गिरावट आई है. जबकि साल 2011 से 2020 के बीच इंडोनेशियाई रुपिया की कीमत डॉलर के मुकाबले 50 फीसदी गिर गई है.
यूरोप में क्रिप्टो पर जोर नहीं
यूरोप से सर्वे में शामिल लोगों में से सिर्फ 17 फीसदी लोगों ने क्रिप्टो में पहले से निवेशित होने की बात कही और सिर्फ सात फीसदी ने कहा कि वे ऐसा करने की इच्छा रखते हैं.
कॉइनगीको के मुताबिक सबसे चर्चित क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन की कीमतें बीते नवंबर रिकॉर्ड 68 हजार डॉलर तक पहुंच गई थीं, जिससे क्रिप्टोकरेंसी का मूल्यांकन 3 ट्रिलियन डॉलर को पार कर गया था. लेकिन उसके बाद से 2022 में इसके दाम 34 हजार से 44 हजार डॉलर के बीच बने हुए हैं.
एडी/एए (रॉयटर्स)