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नेपाल में बाढ़ के कहर से बचाती पूर्व चेतावनी प्रणाली

कैथरीन डेविसन
२ सितम्बर २०२२

नेपाल की बाढ़ग्रस्त कोसी नदी अगस्त के शुरू में उफनने लगी थी. तभी एक पूर्व चेतावनी प्रणाली सक्रिय हो उठी और आसपास के निवासियों को समय पर आगाह कर दिया गया. नतीजा- कोई मौत नहीं.

Nepal Kosi  Fluß Überschwemmungen
तस्वीर: Catherine Davison/DW

ध्रुव प्रसाद कोइराला बेलका नगरपालिका के भागलपुर गांव में उस जगह के पास रहते हैं जहां कोसी नदी अपने तटों को तोड़कर विकराल बन गई थी. एक सुबह उनके घर पर दस्तक हुई कि वे घर छोड़ कर निकल जाएं. 33 साल के ध्रुव प्रसाद स्थानीय आपदा कमेटी में स्वयंसेवी हैं. उन्होंने बताया, "हमें पता था कि बाढ़ आने वाली है. हमारे पास खुद को तैयार रखने का मौका था. नगरपालिका भी लोगों को सोशल मीडिया पर सतर्क कर रही थी. सेना ने भी लोगों के बीच जाकर ये संदेश दिया कि बाढ़ आने वाली है."

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ये सिस्टम कैसे काम करता है?

तबाही से कुछ दिनों पहले, सेना और स्थानीय पुलिस हाई अलर्ट पर थी. खतरे के निशानों पर नजर रखी जा रही थी, क्योंकि नदी के स्तर पर लगे सेंसरों और मौसम विभाग के स्टेशनों में पानी के उच्च बहाव की शिनाख्त कर ली गई थी. रीयल-टाइम डेटा सरकार के एक ऑनलाइन पोर्टल में डाला गया और रेडियो, एसएमसएस और सोशल मीडिया के जरिए स्थानीय बिरादरी में भी प्रसारित कर दिया गया.

बाढ़ से निपटने में मदद करने वाले एनजीओ वॉलंटियर कोर्प्स से अध्यक्ष दीपक छपागाइन कहते हैं, "उस दौरान 20,000 लोगों को निकाला गया था. वो तभी संभव हुआ क्योंकि बाढ़ आने से पहले निकलने के लिए काफी समय हमारे पास था. वरना तो बहुत सारे लोग मारे जाते."

समुदाय ने जिस ढंग से तत्परता दिखाई उससे पता चलता है कि पूर्व चेतावनी प्रणालियां ऐसी प्रचंड मौसमी विपदाओं के मौकों पर मौतें नहीं होने देतीं या उनकी संख्या को कम कर सकती हैं.

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खतरे में क्यों है नेपाल?

नेपाल की टोपोग्राफी और नदी प्रणालियों का नेटवर्क, उसे प्राकृतिक तबाहियों के लिहाज से संवेदनशील बनाते हैं. जलवायु परिवर्तन से ये हालात और उग्र होंगे.  इस साल की शुरुआत में प्रकाशित संयुक्त राष्ट्र के डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (यूएनडीआरआर) की रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर हर साल होने वाली तबाहियों की संख्या 2015 से 2030 तक 40 फीसदी बढ़ने का अनुमान लगाया गया है.

नेपाली एनजीओ प्रैक्टिकल एक्शन नेपाल के धरम उप्रेती के मुताबिक हिमालयी इलाकों में खराब योजना वाली विकास परियोजनाएं देश को खतरे में डाल रही हैं. वो कहते हैं, "हमारा बुनियादी ढांचा इस तरह से नहीं बना है कि वो बढ़ते जलवायु संकट के प्रभाव को, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को मद्देनजर रख सके."

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पूर्व चेतावनी प्रणालियों को सुदृढ़ करने की जरूरत

आपदा प्रबंधन प्रणालियों को विकसित करने के लिए नेपाल का हाइड्रोलॉजी और मौसम विभाग, गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर काम करता रहा है. इसमें के नदी स्तर की निगरानी के उपकरण, समुदाय आधारित प्रणाली, जहां ऊपरी क्षेत्र मे बसे स्वयंसेवी निचले क्षेत्र के लोगों को खतरनाक जलस्तर के बारे में आगाह करते हैं और जल-मौसमी स्टेशनों का व्यापक नेटवर्क शामिल है.

डाटा को आधिकारिक सरकारी ऑनलाइन पोर्टल में इकट्ठा किया जाता है. एसएमएस और रेडियो प्रसारणों के जरिए प्रभावित इलाकों में स्वचालित चेतावनियां भेजी जाती हैं.

एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए यूएनडीआरआर के प्रमुख मार्को टोस्काना-रिवाल्टा के मुताबिक डाटा संग्रहण महत्वपूर्ण है क्योंकि वो सुनिश्चित करता है कि जरूरतमंद लोगों तक सूचना पहुंचे- और ये समझे कि उचित तरीके से कैसे प्रतिक्रिया करना है. वो एक असरदार पूर्व चेतावनी प्रणाली का एक अनिवार्य घटक भी है.

वो कहते हैं, "ये सिर्फ तबाही की निगरानी के बारे में नहीं है बल्कि उन समुदायों तक भी पहुंचने की कोशिश है जिन्हें वास्तव में उन चेतावनियों के आधार पर हरकत में आना होता है." टोस्काना पूर्व चेतावनी प्रणालियों के निर्माण की अहमियत पर जोर देते हैं. स्थानीय ज्ञान और विशिष्ट सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक संदर्भों को भी ध्यान में रखे जाने की जरूरत का उल्लेख भी वो करते हैं.

"उन प्रणालियों का निर्माण उन लोगों के साथ और उन्हीं लोगों के लिए करने की जरूरत है जो उनका इस्तेमाल करेंगे."

खासतौर पर उनका कहना है, कि अचानक आने वाली तबाहियों से महिलाओं पर भी खासा असर पड़ता है. लिहाज़ा उन्हें भी निर्णय प्रक्रिया में और स्वयंसेवी कमेटियों में शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि वो समावेशी उपायों क लिए बहुत जरूरी है.

क्या सुधार की गुंजाइश है?

नेपाल में कोइराला जैसे समुदाय आधारित आपदा कमेटी वॉलन्टियर उसकी पूर्व चेतावनी प्रणालियों के अभिन्न हिस्सा हैं. वे उन लोगों तक सूचनाओं को पहुंचाते हैं जिनके पास मोबाइल फोन या सोशल मीडिया नहीं है या अपने घरों में ही रहते हैं. टोस्काना-रिवाल्टा ने इस ओर भी इशारा किया कि मौतों की संख्या कम करने के लिहाज से नेपाल ने पूर्व चेतावनी कवरेज को मजबूत बनाने की दिशा में लंबी छलांग लगाई है. फिर भी दूरस्थ पहाड़ी इलाकों में सुधारों की जरूरत है.

वो कहते हैं, "छोटी नदियों में बाढ़ आने की चेतावनी जारी करने या अचानक आनेवाली बाढ़ की स्थिति में चेतावनी के मामले में चुनौतियां बनी हुई हैं." उप्रेती कहते हैं कि अचानक आने वाली बाढ़ के अलावा भूस्खलन के लिए भी कोई पूर्व चेतावनी प्रणाली नहीं है. नाज़ुक पहाड़ों में मानसून के सीजन में भारी बारिश के समय भूस्खलन की घटनाएं अक्सर होती रहती हैं.

वो कहते हैं, "अगर पिछले 10 साल की कैजुअल्टी को देखें तो मामले घटे हैं लेकिन भूस्खलन से मौतों के मामले बढ़े हैं." पूर्व चेतावनी प्रणालियां जिंदगियां बचा सकती हैं और निवासियों को आपदा के लिए तैयार कर सकती हैं. लेकिन जान माल के लंबी अवधि के नुकसान की वे पूरी भरपाई या उस नुकसान को पूरी तरह से कम नहीं कर सकती हैं.

कोइराला कहते हैं, "जब बाढ़ आई थी तो हम अपने घर का सारा का सारा सामान निकाल भी नहीं पाए थे. अपनी जान बचाने की फिक्र थी बस." कोइराला के खेत बाढ़ में डूब गए थे, पांच लोगों के परिवार का पेट पालने वाली धान की फसल बर्बाद हो गई थी.

फिर भी वो अहसानमंद है कि पूर्व चेतावनी प्रणाली की बदौलत वो अपनी पत्नी और दो छोटे बच्चों के साथ समय पर सुरक्षित निकल पाए. वो कहते हैं, "हमें अंदाजा नही था कि आपदा इतनी भीषण होगी. अगर हमें कोई चेतावनी पहले से नहीं मिली होती तो हालात और ज्यादा बदतर हो जाते."

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