नेपाल ने चीन से अपील की है कि नेपाली उत्पादों को चीनी बाजारों तक आसानी से और ज्यादा मात्रा में पहुंचने दिया जाए. इस समय नेपाल और चीन के बीच व्यापारिक रिश्ते भारी रूप से चीन के पक्ष में झुके हुए हैं.
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नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ने चीन से यह अपील की है. उन्होंने काठमांडू में एक कारोबार सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि "नेपाल का चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा और चीन से घोषणा और असली निवेश के बीच फर्क" कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनके लिए एक व्यावहारिक समाधान की जरूरत है.
सम्मेलन का आयोजन नेपाल के व्यापार संगठन (सीएनआई) और काठमांडू में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने वाले चीनी संगठन (सीसीपीआइटी) ने किया था. दहल ने यह भी कहा कि नेपाल ने अपने कई उत्पादों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए भी चीन से मदद मांगी है और साथ ही चीन में नेपाली सब्जियों, मांस उत्पादों, चाय और हर्बल उत्पादों समेत 512 नेपाली उत्पादों के लिए ड्यूटी फ्री पहुंच की भी मांग की है.
दहल ने कहा, "व्यापार विकास का इंजन है और भविष्य में हमारी समृद्धि अपने उत्पादन और व्यापार को बढ़ाने में ही निहित है." करीब तीन करोड़ की आबादी वाला नेपाल पारंपरिक रूप से आर्थिक समर्थन और व्यापार के लिए भारत की तरफ देखता आया है, लेकिन यातायात, व्यापार और ट्रांजिट समझौतों के जरिए चीन का नेपाल को रिझाना बढ़ रहा है. भारत में इसे लेकर बेचैनी भी है.
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लेकिन चीन के साथ नेपाल का व्यापार घाटा काफी बड़ा है. 2021 में चीन से नेपाल में आयात होने वाले सामान का मूल्य 2.38 अरब डॉलर था लेकिन 2022 में यह गिर कर 1.84 अरब डॉलर रह गया. वहीं चीन को नेपाल से निर्यात होने वाले सामान का मूल्य 2021 में 83.7 लाख डॉलर था जो 2022 में गिर कर 53.9 लाख डॉलर पर पहुंच गया. गिरावट के बावजूद आयात निर्यात से बहुत पीछे है.
चीन नेपाल के इंफ्रास्ट्रक्चर में चोटी के निवेशकों में से है. हालांकि व्यापार अधिकारियों ने बताया कि अभी भी नेपाल के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में जहां चीन की सिर्फ 14 प्रतिशत हिस्सेदारी है, वहीं भारत का हिस्सा करीब 66 प्रतिशत है. लेकिन 2016 में चीन ने नेपाल को दूसरे देशों के साथ व्यापार करने के लिए चीनी बंदरगाहों का इस्तेमाल करने की भी अनुमति दे दी थी.
चीन काठमांडू और तिब्बत को जोड़ने वाली एक रेल सेवा बनाने में भी नेपाल की मदद करने वाला है. अधिकारियों का कहना है कि चीन नेपाल समेत सबसे कम विकसित देशों से 8,030 को ड्यूटी फ्री और कोटा फ्री प्रवेश की पहले से इजाजत देता है.
सीके/एए (रॉयटर्स)
अपने बेटे के साथ स्कूल में पढ़ने वाली नेपाली मां
नेपाल में केवल 57 फीसदी महिलाएं ही लिख पढ़ सकती हैं. इनमें से एक हैं पार्वती सुनार जिनका स्कूल छूट गया था और 16 साल की उम्र में ही वह मां बन गई थीं. अब उन्होंने अपने बेटे के साथ फिर से स्कूल जाना शुरू कर दिया है.
तस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS
छोटा सा घर
27 साल की पार्वती सुनार दो कमरे के कच्चे मकान में अपने बेटों रेशम (11), अर्जुन (7) और सास के साथ रहती हैं. उनके पति दक्षिण भारत के चेन्नई शहर में मजदूरी करते हैं. पढ़ाई के लिहाज से इस घर में कोई सुविधा नहीं है लेकिन फिर भी उम्मीदों की एक दीया जल रहा है.
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ना नल ना शौचालय
सुनार के घर में ना शौचालय है ना ही पानी के लिए नल तो पूरा परिवार सुबह उठ कर घर के सामने लगे वाटर पंप पर नहाने धोने का काम करता है. बगल का खेत उनके शौचालय की जरूरत पूरी करता है.
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स्कूल चले हम
तैयार हो कर दाल-चावल खाकर सुनार अपने बड़े बेटे के साथ स्कूल के लिए निकल जाती हैं. स्कूल पहुंचने में 20 मिनट लगते हैं. रेशम को अपनी मां के साथ स्कूल जाने में कोई दिक्कत नहीं होती. 11 साल के रेशम ने कहा, "हम बात करते हुए स्कूल पहुंच जाते हैं और अपनी बातचीत से बहुत कुछ सीखते हैं."
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क्लास में सबसे बुजुर्ग
दक्षिण पश्चिमी नेपाल के पुनरबस गांव की स्कूल की सातवीं कक्षा में सुनार पढ़ रही हैं. 14 साल के बिजय ने कहा उनके साथ क्लास में बहुत मजा आता है. बिजय कहता है, "दीदी बहुत अच्छी हैं. मैं उनकी पढ़ाई में मदद करता हूं और वो भी मेरी मदद करती हैं."
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लड़कियों का स्कूल छूट जाता है
10वीं क्लास की छात्रा श्रुति कहती हैं, "वह बहुत अच्छा कर रही हैं, मुझे लगता है कि दूसरों को भी उनके रास्ते पर चल कर स्कूल जाना चाहिए." आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक नेपाल की 94.4 फीसदी लड़कियां प्राथमिक स्कूल में जाती हैं लेकिन आधी उसे छोड़ देती हैं. इसके पीछे किताब कॉपी की कमी और गरीबी कारण है. पार्वती स्कूल जारी रखना चाहती हैं.
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स्कूल के बाद कंप्यूटर
स्कूल के बाद सुनार और उनका बेटा ड्रेस बदल कर साइकिल पर एक साथ न्यू वर्ल्ड विजन कंप्यूटर इंस्टीट्यूट जाते हैं और कंप्यूटर सीखते हैं. भविष्य में यह पढ़ाई उन्हें दफ्तर की नौकरी दिलाने में मदद करेगी.
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एक नई शुरुआत
सुनार को किशोरावस्था में स्कूल छूट जाने का अफसोस है. उन्होंने भारत में घरेलू नौकरानी का काम छोड़ कर अपना पूरा समय पढ़ाई में लगाने का फैसला किया ताकि कंप्यूटर और बाकी चीजें अच्छे से सीख सकें. वो कहती हैं, "मुझे सीखने में मजा आता है और अपने बच्चे की उम्र के छात्रों के साथ स्कूल जाने पर गर्व है."
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पति की दूरी
सुनार के पति उनसे करीब 2000 किलोमीटर दूर चेन्नई में रह कर मजदूरी करते हैं. वह परिवार का खर्च उठाते हैं लेकिन परिवार के साथ रहने का समय नहीं मिलता. वीडियो कॉल ही उन्हें आपस में जोड़े रखता है. यह परिवार दलित समुदाय से है जिन्हें हिंदू जाति व्यवस्था में अछूत माना जाता है.
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पढ़ाई के बाद क्या
स्कूल की पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद पार्वती सुनार क्या करेंगी? सुनार को यह नहीं पता. फिलहाल तो वो बस अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करना चाहती हैं. हालांकि उन्हें यह उम्मीद जरूर है कि वह अकेली नहीं हैं और ग्रामीण नेपाल की दूसरी औरतें भी उनके उदाहरण से सीखेंगी.