भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर की नेपाल यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पनबिजली पर एक नई संधि पर हस्ताक्षर किए हैं. संधि को दोनों देशों के रिश्तों की यात्रा में एक मील का पत्थर माना जा रहा है.
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संधि के तहत नेपाल अगले 10 सालों में भारत को 10,000 मेगावाट पनबिजली देगा. नेपाल के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अमृत बहादुर राय ने इस "लंबी-अवधि की ऊर्जा व्यापार" संधि पर हस्ताक्षर किए जाने की पुष्टि की.
संधि के बार में और ज्यादा जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन नेपाल के स्वतंत्र ऊर्जा उत्पादकों के संघ के अध्यक्ष गणेश कार्की ने बताया कि संधि "ऐतिहासिक" है. उन्होंने कहा, "अब सरकार को इस स्तर पर उत्पादन को समर्थन देने के लिए कानून और अनुकूल माहौल बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए."
जानकारों को उम्मीद है कि संधि की वजह से नेपाल के पनबिजली क्षेत्र में और निवेश आएगा. दक्षिण एशिया में बिजली व्यापार पर एक अध्ययन के सह-लेखक सागर प्रसाई ने बताया, "हो सकता है संधि की बारीकियों पर अभी बातचीत होनी हो...लेकिन एक आंकड़े के चिन्हित होने से निवेश बैंकों को ज्यादा स्वीकार्य होगा."
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पनबिजली में तरक्की
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के मुताबिक साल 2000 में पांच में चार से भी ज्यादा नेपाली लोगों के पास बिजली नहीं थी, लेकिन उसके बाद से कई बांधों के बनाए जाने की वजह से देश की तीन करोड़ आबादी में लगभग सब के पास बिजली की सप्लाई पहुंच गई है.
इस समय देश में 150 से ज्यादा बिजली परियोजनाएं चल रही हैं, जिनकी बदौलत देश की इंस्टॉल्ड कैपेसिटी 2,600 मेगावाट से ज्यादा हो गई है. 200 से ज्यादा अतिरिक्त परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं.
पानी के मामले में नेपाल एक धनी देश है. उसके पास पहाड़ी नदियों की एक ऐसी प्रणाली है जो उसे ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में एक पावरहाउस बना सकती है. कुछ अध्ययनों में अनुमान लगाया गया है कि देश की संभावित क्षमता 72,000 मेगावाट की है - यानी मौजूदा इंस्टॉल्ड कैपेसिटी से 25 गुना ज्यादा.
भारत को नेपाल 2021 के आखिरी महीनों से ही छोटे स्तर पर बिजली निर्यात कर रहा है. भारत और नेपाल के दूसरे शक्तिशाली पड़ोसी देश चीन के बीच लंबे समय से नेपाल के पनबिजली क्षेत्र में प्रभुत्व और निवेश के मौकों को लेकर प्रतिस्पर्धा रही है.
पर्यावरण भी जरूरी
अभी तक भारत नेपाल का पसंदीदा साझेदार रहा है, जिसके पीछे एक कारण यह भी है कि भारत ने जोर देकर कहा है कि वह ऐसी परियोजनाओं से ऊर्जा नहीं लेगा जिनमें किसी तीसरे देश का पैसा लगा हो.
पनबिजली से जिंदगियां रोशन करता युवा
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भारत बिजली बनाने के लिए भारी रूप से कोयले पर निर्भर है, लेकिन उसने 2060 तक नेट शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का वचन दिया है. कुछ विशेषज्ञों ने नेपाल की पनबिजली की क्षमता बढ़ाने की और तेजी से बढ़ते कदमों की आलोचना भी की है.
उनका कहना है कि कभी कभी निर्माण के दौरान पर्यावरणीय अनुपालन के कदमों की अनदेखी हो जाती है. पिछले साल केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक प्रस्ताव का ड्राफ्ट सामने आया था जिसमें संरक्षित प्राकृतिक अभयारण्यों में बांध बनाने की प्रक्रिया को आसान करने का प्रस्ताव दिया गया था.
लेकिन इस प्रस्ताव को लेकर पर्यावरणविदों ने चेतावनी जाहिर की थी. देश में बाढ़ और भूस्खलन भी आम हैं जिनकी वजह से पनबिजली परियोजनाओं को जोखिम का सामना करना पड़ता है. जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़ और भूस्खलन दोनों ही बार बार आ रहे हैं और उनकी तीव्रता भी बढ़ती जा रही है.
जयशंकर नेपाल की दो दिवसीय यात्रा पर हैं. यह उनकी 2024 की पहली विदेश यात्रा है. इस दौरान वो नेपाल के नेताओं और कई जाने माने राजनेताओं से मिले. उन्होंने 1987 में स्थापित हुए इंडिया-नेपाल जॉइंट कमीशन की सह-अध्यक्षता भी की.
सीके/वीके (एएफपी)
पानी और बिजली पर बांध की राजनीति
दुनिया भर में विशाल बांध आर्थिक विकास को तेजी देते हैं, इसके साथ ही ये शान और ताकत का भी प्रतीक हैं. हालांकि एक बड़ा सवाल यह है कि धारा के निचले हिस्से में रहने वालों का क्या होता है?
तस्वीर: Minasse Wondimu Hailu/AA/picture alliance
नील नदी पर इथियोपिया का मेगा डैम
145 मीटर ऊंचा, 5 गीगावाट का ग्रेंड इथियोपियन रेनेसां डैम (जीईआरडी) देश में बिजली उत्पादन को दोगुना कर देगा. सितंबर 2023 में नील नदी पर बने इस विशाल बिजली संयंत्र के आखिरी चौथे भंडार को पानी से भरने का काम पूरा हो गया. इस पर मिस्र की ओर से एक बार फिर विरोध के स्वर बुलंद हुए जो पहले से ही इसके खिलाफ आवाज उठा रहा है. इस परियोजना पर 3.7 अरब यूरो का खर्च आया है.
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नील नदी पर निर्भर जीवन
मिस्र और सूडान को जीईआरडी के नतीजों का डर है. बांध के साथ इथियोपिया का नील नदी के पानी पर नियंत्रण हो जाएगा जिसकी इन देशों को नील डेल्टा के खेतों की सिंचाई के लिए जरूरत है. बिजली संयंत्रों के लिए पानी बहते रहना चाहिए लेकिन पड़ोसी देश इथियोपिया के इन दावों से आश्वस्त नहीं है कि वह बांध का पानी अपने खेतों में इसेतमाल नहीं करेगा. खासतौर से जब जलवायु परिवर्तन की वजह से पानी की कमी हो रही है.
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मेकॉन्ग के विशाल बांध
1990 के दशक से ही चीन मेकॉन्ग नदी पर 11 विशालकाय बांध बना रहा है. इसने चीन को दुनिया में सबसे बड़ा पनबिजली उत्पादक देश का दर्जा दिलाया है. कोयले के बाद चीन के लिए यह दूसरा सबसे बड़ा बिजली पैदा करने का जरिया है. हालांकि लाओस, थाईलैंड, वियतनाम और कंबोडिया भी मेकॉन्ग नदी पर निर्भर हैं. इन विशाल बांधों के निर्माण ने नीचे की ओर बहती धारा में पानी की कमी की है.
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कंबोडिया में सूखा
नीचे की ओर मेकॉन्ग डेल्टा को चीन के बांधों की वजह से पानी के बहाव और समय में परिवर्तन का नुकसान झेलना पड़ा है. एक तरफ जहां सूखे की घटनाएं बढ़ रही हैं वहीं मछलियों की मात्रा भी प्रभावित हुई है. थाईलैंड और कंबोडिया के किसान और मछुआरे खासतौर से इसकी वजह से काफी परेशान हैं. ये सब तब है जबकि सैटेलाइट से मिले आंकड़े दिखा रहे हैं कि चीन वाले हिस्से में बारिश और बर्फ के पिघलने से ज्यादा पानी पहुंचा है.
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दुनिया भर में चीन के पनबिजली संयंत्र
चीन दुनिया भर में सैकड़ों पनबिजली संयंत्रों में निवेश कर रहा है. इसमें लाओस से लेकर पुर्तगाल, कजाखस्तान, अर्जेंटीना और पूरे अफ्रीका तक के देश शामिल हैं. इनमें गिनी का सौपिती बांध भी है. पहले इस तरह की परियोजनाएं ज्यादातर वर्ल्ड बैंक के निवेश से बनती थीं. इधर चीन ने इन पर निवेश में खूब पैसा बहाया है. इसके लिए उन देशों के साथ समझौता भी नहीं किया जाता जो किसी नदी के पानी में साझीदार हैं.
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बांध के कारण विस्थापन
गिनी के सौपिती बांध के लिए पैसा चीन के इंटरनेशनल वॉटर एंड इलेक्ट्रिक कॉर्पोरेशन ने दिया है. इससे देश को 450 मेगावाट बिजली मिलेगी. गिनी में बिजली की स प्लाई के भरोसेमंद स्रोत बहुत कम हैं. हालांकि इसके लिए एक विशाल जलभंडार की जरूरत होगी और जो 253 वर्ग किलोमीटर जमीन को डुबोया जाएगा. समाजसेवी संस्था ह्यूमनराइट्स वॉच के मुताबिक इसके नतीजे में 100 गांवों के 16,000 लोग विस्थापित हो जाएंगे.
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सीमाओं का जुड़ना
ब्राजील और पराग्वे के बीच पराना नदी पर बन रहे इटाईपु बांध की वजह से जंगल का एक विशाल हिस्सा और दुनिया के शानदार झरने डूब गए. इसकी वजह से 65,000 लोग विस्थापित हुए. इस बांध की वजह से इन दोनों देशों के बीच तनाव भी पैदा हो गया. इन दोनों देशों ने इस संयुक्त पनबिजली परियोजना पर 1973 में काम करने के लिए समझौता किया था. पानी का बड़ा हिस्सा ब्राजील में जा रहा है इस वजह से बांध विवादों में घिर गया है.
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कोलोराडो का बांध
मेक्सिको अमेरिका की सीमा भले ही प्रवासियों और ट्रंप की बनाई दीवार की तस्वीरों से दुनिया भर में जाना जाता हो लेकिन उत्तर की ओर बढ़ते लोगों के साथ ही यहां चिंता कोलोरोडा नदी को उल्टी दिशा में बहाने को लेकर भी है. मेक्सिको तक पहुंचते पहुंचते यह नदी अमेरिका के साथ राज्यों और कई बांधों से होकर गुजरती है जो इसका पानी अमेरिकी फसलों की सिंचाई में इस्तेमाल करते हैं.
तस्वीर: Elliot Spagat/AP/picture alliance
मेक्सिकाली वैली को पानी
दोनों देश मोरेलोस बांध के संयुक्त इस्तेमाल पर बात कर रहे हैं ताकि मेक्सिकाली वैली को पानी मिल सके. इसके लिए एक "पल्स" सिस्टम इस्तेमाल किया जा रहा है जो प्राकृतिक बहाव की तरह ही पानी को कोलोराडो डेल्टा की तरफ ले जाएगा. पानी की राजनीति के विशेषज्ञ स्कॉट मूल का कहना है, "यह अमेरिका और मेक्सिको के साथ ही अलग अलग पर्यावरण गुट, किसान, सिंचाई वाले इलाके और इकोलॉजिकल मैनेजमेंट के बीच सहयोग को दिखाता है."