नेपाल की देसी इलेक्ट्रिक बाइक की वायु प्रदूषण पर चोट
१९ अगस्त २०२१
पेट्रोल से इलेक्ट्रिक की दौड़ में जल्दी प्रवेश करने वाले नेपाल की सड़कों पर दसियों हजार इलेक्ट्रिक कारें, बसें और रिक्शा दौड़ रहे हैं लेकिन कुछ ही मोटरसाइकिलें हैं.
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अपनी आकर्षक ई-मोटरबाइकों के लॉन्च के साथ स्टार्टअप यात्री मोटरसाइकिल्स का मानना है कि यह नेपालियों को इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर खींच सकती है, कंपनी का मानना है कि इलेक्ट्रिक मोटरसाइकिलें देश की जहरीली हवा को साफ कर सकती हैं, पैसे बचा सकती हैं और पेट्रोल आयात कम कर सकती हैं. साथ ही देश अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद हासिल कर सकता है.
यात्री मोटरसाइकिल्स के संस्थापक आशिम पांडे के मुताबिक, "हमें इलेक्ट्रिक गाड़ियों की ओर जाना होगा."
दुनिया भर में निर्माता सस्ते, कम उत्सर्जन वाले वाहनों को विकसित करने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं. बढ़ती संख्या में देश ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए नई जीवाश्म ईंधन से चलने वाली कारों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की योजना की घोषणा कर रहे हैं.
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इलेक्ट्रिक वाहनों की कमी
नेपाल ने जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते के तहत कहा की थी कि 2020 तक इसके 20 प्रतिशत वाहन इलेक्ट्रिक होंगे, लेकिन क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर वेबसाइट के मुताबिक वर्तमान में एक फीसदी ही ऐसे वाहन हैं.
देखा जाए तो नेपाल विश्व स्तर पर कार्बन का एक छोटा उत्सर्जक देश है, जिसका 40 फीसदी हिस्सा जंगलों से घिरा है. नेपाल की अधिकांश बिजली हाइड्रोपावर से पैदा होती है. लेकिन देश में उत्सर्जन बढ़ रहा है. इसके कारण हैं पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों का आयात और जीवाश्म ईंधन की खपत.
सरकार ने ई-वाहनों पर आयात कर कम और सीमा शुल्क घटाकर देश में इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं निर्धारित की हैं. देश में अधिक से अधिक चार्जिंग स्टेशनों की भी स्थापना की जा रही है.
नेपाल के इलेक्ट्रिक वाहन संघ के मुताबिक देश में वर्तमान में लगभग 700 इलेक्ट्रिक कारें, 5,000 इलेक्ट्रिक स्कूटर, और 40,000 इलेक्ट्रिक रिक्शा हैं.
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
इन शहरों से सीखिए ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ना
इलेक्ट्रिक बसें चलाने से लेकर प्रदूषण को सोखने वाले अर्बन गार्डनों तक, दुनिया भर के शहर जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए काफी कुछ कर रहे हैं. जानिए ऐसे सात शहर जो इस मामले में दुनिया के लिए मिसाल हो सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/H. Kielwasser
मेडेलिन, कोलंबिया
लातिन अमेरिकी देश कोलंबिया का दूसरा सबसे बड़ा शहर मेडेलिन 2016 से 30 ग्रीन कोरिडोर बनाने में जुटा है. इसके लिए शहर भर में नौ हजार पेड़ लगाए गए हैं जिन पर 1.6 करोड़ डॉलर खर्च हुए. प्रदूषक तत्वों को सोखने के अलावा इन पेड़ों ने शहर के औसत तापमान को दो डिग्री सेल्सियस कम किया है. इससे शहर में जैवविविधता भी बढ़ी है और वन्यजीवों को बसेरे मिल रहे हैं.
तस्वीर: DW/D. O'Donnell
अकरा, घाना
पश्चिमी अफ्रीकी देश घाना की राजधानी अकरा का प्रशासन वर्ष 2016 से अनौपचारिक तौर पर कचरा उठाने वाले 600 लोगों के साथ काम कर रहा है. ये लोग पहले कचरा जमा करते थे और उसे जला देते थे, जिससे प्रदूषण होता था. अब पहले से ज्यादा कचरा जमा हो रहा है, उसे रिसाइकिल किया जा रहा है और सुरक्षित तरीके से ठिकाने लगाया जा रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Thompson
कोलकाता, भारत
कोलकाता 2030 तक ऐसी पांच हजार बसें खरीदने की योजना बना रहा है जो बिजली से चलेंगी. गंगा में बिजली से चलाने वाली नौकाएं लाने की भी तैयारी हो रही है. अभी तक ऐसी 80 बसें खरीदी जा चुकी हैं और अगले साल ऐसी 100 बसें और खरीदी जानी हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar
लंदन, ब्रिटेन
लंदन ने 2019 में दुनिया का सबसे पहला अल्ट्रा लो एमिशन जोन बनाया. इसके तहत सिटी सेंटर में आने वाले सभी वाहनों को सख्त उत्सर्जन मानकों को पूरा करना होगा, वरना भारी जुर्माना देना होगा. चंद महीनों में ही प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों की संख्या घटकर एक तिहाई रह गई. लोग पैदल, साइकिल या फिर सार्वजनिक परिवहन से चलने लगे.
सैन फ्रांसिस्को के क्लीनपावरएसएफ कार्यक्रम के तहत लोगों को उचित दामों पर अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बनने वाली बिजली मुहैया कराई गई. शहर प्रशासन को उम्मीद है कि वे 2025 तक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 40 प्रतिशत कटौती के अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे.
तस्वीर: Getty Images/J. Revillard
गुआंगजू, चीन
शहर प्रशासन ने 2.1 अरब डॉलर की रकम खर्च कर शहर की सभी 11,200 बसों को इलेक्ट्रिक बसों में तब्दील कर दिया और उनके लिए चार हजार चार्जिंग स्टेशन भी बनाए. इससे ना सिर्फ शहर में वायु प्रदूषण घटा है, बल्कि ध्वनि प्रदूषण भी कम हुआ है. यही नहीं, बसों को चलाने पर लागत भी कम हुई है.
तस्वीर: CC/Karl Fjellstorm, itdp-china
सियोल, दक्षिण कोरिया
दक्षिण कोरिया की राजधानी में दस लाख घरों की बालकनी और छत पर सोलर पैनल लगाने के लिए सब्सिडी दी गई है. स्कूल और पार्किंग सेंटर जैसी जगहों पर ऐसे पैनल लगाए जा रहे हैं. शहर को उम्मीद है कि वह 2022 तक एक गीगावॉट सोलर बिजली पैदा कर पाएगा. इतनी ही बिजली परमाणु रिएक्टर से वहां पैदा हो रही है.