1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजनेपाल

आगे क्या करना चाहते हैं नेपाल के प्रदर्शनकारी जेन-जी

आदिल भट
२९ सितम्बर २०२५

एक युवा नेपाली ने डीडब्ल्यू से कहा कि जेन-जी की लड़ाई तो "अभी बस शुरू हुई है." इस शख्स ने हालिया प्रदर्शनों में अपने भाई को खो दिया.

नेपाल की राजधानी काठमांडू में सड़क किनारे लगे एक पोस्टर पर मारे गए प्रदर्शनकारियों की तस्वीर देखते मौसम कुलुंग
काठमांडू में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान मारे गए लोगों में मौसम कुलुंग के बड़े भाई प्रवीण भी शामिल थेतस्वीर: Richard Kujur

मौसम कुलुंग और प्रवीण कुलुंग, ये दोनों भाई नेपाल के एक दूर दराज गांव में पले-बढ़े. खुद को और अपने परिवार को एक बेहतर जीवन देना उनका सपना था.

मौसम और प्रवीण के माता-पिता किसान हैं. उनकी परवरिश काफी गरीबी में हुई थी. गांव में भी नौकरी के खास अवसर नहीं थे. कई पीढ़ियों से गांव के लोग काम की तलाश में बाहर जाने को मजबूर थे.

शुरुआती दिनों में न तो उनके गांव में कोई ढंग का स्कूल था और न ही कोई भरोसेमंद सार्वजनिक ढांचा. दोनों भाइयों को पढ़ाई के लिए अपना घर छोड़कर राजधानी काठमांडू जाना पड़ा.

नेपाल के जेन जी विद्रोह का भारत, चीन और अमेरिका पर क्या असर होगा

यहीं काठमांडू में डीडब्ल्यू की मुलाकात मौसम कुलुंग से हुई. किराये के अपने कमरे की धीमी रोशनी में बैठे मौसम ने बताया कि नेपाल के नेता युवाओं के प्रति पूरी तरह लापरवाह रहे हैं. उन्होंने कहा, "इस देश के नेताओं ने युवाओं को धोखा दिया और कभी हमारे भविष्य की परवाह नहीं की है."

नेपाल के एक दूर-दराजे के इलाके में यह वही घर है, जहां मौसम कुलुंग और प्रवीण कुलुंग बड़े हुएतस्वीर: Mausum Kulung

मौसम के मुताबिक, हाल में हुए सरकार-विरोधी प्रदर्शनों के दौरान धोखे की इस भावना का उबाल ही खुलकर सामने आया.

मौसम और प्रवीण, दोनों भाइयों ने इन प्रदर्शनों में हिस्सा लेने का फैसला किया. सोशल मीडिया पर वायरल होने वाले उन पोस्ट्स ने माहौल को और भड़काया, जिनमें नेपाल के अमीर वर्ग के बच्चे, या "नेपो किड्स" आलीशान जीवन जीते नजर आ रहे थे. मौसम बताते हैं, "उन वीडियो ने हमारे भीतर कुछ बदल दिया. ये आंख खुलने का एक पल था. हम उस व्यवस्था से गुस्सा थे, जिसने दशकों से असमानता को बढ़ावा दिया है."

"उसने मेरी गोद में दम तोड़ दिया"

नेपाल के हजारों युवाओं में एक-जैसा गुस्सा था. करीब आधी आबादी 30 साल से कम उम्र की है. वे बताते हैं कि दशकों से जारी भ्रष्टाचार और राजनीतिक ठहराव के प्रति अपने गुस्से की अनदेखी करना अब मुश्किल हो रहा था.

4 सितंबर को सरकार ने सभी बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पाबंदी लगा दी, यह दावा करते हुए कि कंपनियां खुद को सही तरीके से रजिस्टर करवाने में नाकाम रहीं. इस फैसले के बाद युवाओं की निराशा राजधानी काठमांडू की सड़कों पर फूट पड़ी. मौसम और प्रवीण, दोनों भाई भी बदलाव की मांग कर रहे इस आंदोलन में शामिल हो गए.

'यहां कुछ भी नहीं': बेरोजगार नेपाली युवा विदेश जाने को हो रहे मजबूर

शांतिपूर्ण नारेबाजी और तख्तियां दिखाने के साथ शुरू हुआ विरोध, तब हिंसा और अराजकता में बदल गया, जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाईं. इस गोलीबारी में कुल 19 लोग मारे गए. मृतकों में प्रवीण कुलुंग भी शामिल थे.

भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान मारे गए लोगों का शव लेकर जा रही एक रैली. यह तस्वीर काठमांडू की हैतस्वीर: Navesh Chitrakar/REUTERS

प्रवीण ने अपने छोटे भाई मौसम की गोद में अपनी आखिरी सांस ली. मौसम बताते हैं, "उसने मेरी गोद में दम तोड़ दिया. मैं उसे नहीं बचा सका."

उनका यह दुख अब संकल्प का रूप ले चुका है. मौसम कहते हैं, "हमारी जंग अभी खत्म नहीं हुई है. यह तो बस शुरुआत है. हम इन भ्रष्ट राजनीतिक दलों को फिर से सत्ता पर कब्जा नहीं करने देंगे."

करीब तीन करोड़ की आबादी वाला हिमालयी देश नेपाल राजनीतिक उथल-पुथल से अपरिचित नहीं है. 2008 में 239 साल पुरानी राजशाही के अंत और 10 साल तक लगातार चले गृहयुद्ध के बाद, अब तक यहां दर्जन भर से भी ज्यादा सरकारें बदल चुकी हैं.

प्रदर्शन में "घुसपैठियों" का हाथ?

नेपाल के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, देश में हिंसक झड़पों में कम-से-कम 72 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए. इस दौरान भीड़ ने संसद, सुप्रीम कोर्ट, राजनीतिक दफ्तरों, आलीशान होटलों, मीडिया हाउसों और हजारों इमारतों को आग लगा दी. इनमें मंत्रियों, नेताओं और व्यापारियों के घर भी शामिल थे.

हालांकि, प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे छात्र समूहों का कहना है कि यह हिंसा बाहरी लोगों ने की थी. जेन-जी प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले कमल सुवेदी ने बताया कि उनकी जिम्मेदारी अलग-अलग छात्र संगठनों को जोड़कर भ्रष्ट नेतृत्व को हटाने के लिए एकजुट करना था.

सुवेदी ने डीडब्ल्यू से कहा, "प्रदर्शन के दिन जो तोड़फोड़ हुई, वह हमने नहीं की थी. वे लोग बस हमारे आंदोलन को बदनाम करना चाहते थे." उन्होंने आगे कहा, "वे अधिकतर उम्रदराज लोग थे, जो भीड़ में जबरन घुस आए थे." सुवेदी ने उन लोगों को "घुसपैठिया" बताया.

काठमांडू की सड़कों पर अधिकतर लोगों के मन में यही भावना है. उनका मानना है कि उनका आंदोलन हाईजैक कर लिया गया था, जिस कारण हालात बेकाबू हो गए.

काठमांडू में हुए प्रदर्शनों के दौरान बड़े स्तर पर आगजनी भी हुईतस्वीर: Arun Sankar/AFP/Getty Images

नेपाल में राजनीतिक शून्यता

जनता के गुस्से से उपजे प्रदर्शनों ने प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की अंतरिम प्रधानमंत्री बनीं. कार्की ने जेन-जी आंदोलनों का समर्थन करते हुए विश्वास दिलाया कि वह "भ्रष्टाचार का अंत करेंगी."

नेपाल में भ्रष्टाचार से लड़ेगी अंतरिम सरकार

लंबी बातचीत और अनिश्चितता के बाद कार्की ने शपथ ली. हालांकि, नए चुनाव मार्च 2026 में होंगे. अंतरिम सरकार पर सहमति बनाते समय, कुछ राजनीतिक दलों ने नेपाल की राजशाही बहाल करने की भी मांग की. दशकों की अशांति और राजनीतिक उथल-पुथल के बाद नेपाल की 239 साल पुरानी राजशाही 2008 में खत्म हुई थी.

प्रदर्शनकारी नेता कमल सुवेदी, जो खुद उस समय सेना प्रमुख से बातचीत कर रहे थे, ने बताया कि राजतंत्र समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) के कई लोग भी वार्ता में आए और सेना से राजा को वापस लाने की मांग की. सुवेदी ने बताया, "हमने सेना को यह स्पष्ट कर दिया कि हमें राजा की वापसी नहीं चाहिए."

नेपाल में "आग और आंदोलन" के बाद आगे क्या

वहीं, आरपीपी के प्रवक्ता ज्ञानेंद्र शाही ने डीडब्ल्यू से कहा कि पार्टी राजा को "सत्ता और एकता का प्रतीक" मानती है, जो दुनिया में "अधिक सम्मानित" रहेगा.

हालांकि, काठमांडू के 'हिमालयन टाइम्स' के पूर्व संपादक प्रकाश रीमल का कहना है कि नेपाल की राजनीति में राजतंत्र समर्थक सोच केवल "बहुत छोटा हिस्सा" है. उनके अनुसार, नेपाल उस दौर से "काफी आगे निकल चुका है;" जब राजतंत्रवादी दलों के पास सत्ता में आने का मौका होता था.

जेन-जी प्रदर्शनों को करीब से देख रहे रीमल ने बताया कि युवाओं की यह लड़ाई "असल में उस राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ है, जो उन्हें पूरी तरह से भ्रष्ट दिखती है."

भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे नेपाल के जेन-जी

काठमांडू की गलियों में भी यही जज्बा नजर आता है. मौसम और सुवेदी जैसे युवाओं का कहना है कि उनकी लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है क्योंकि यह विरोध केवल पुराने राजनीतिक ढांचे के खिलाफ नहीं था, बल्कि एक नए नेपाल के निर्माण के लिए है.

मार्च में होने वाले चुनावों से पहले राजनीतिक रूप से सक्रिय युवा एक नई राजनीतिक पार्टी बनाने पर विचार कर रहे हैं, ऐसी पार्टी जिसमें युवाओं की भूमिका सबसे अहम होगी. सुवेदी बताते हैं, "हमें पुराने भ्रष्ट नेता और पार्टियां नहीं चाहिए. हमें लोकतंत्र की नई शुरुआत और नए नेतृत्व की जरूरत है."

इन विरोधों में अपने भाई को खोने वाले मौसम के लिए यह आंदोलन अब और भी जरूरी हो गया है. वह कहते हैं, "मैं उसके बलिदान को बेकार नहीं जाने दूंगा. नेपाल का एक नया भविष्य गढ़ने के लिए हम तैयार हैं."

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें