नेपाल के पहाड़ों की एक तिहाई बर्फ खत्म: संयुक्त राष्ट्र
३१ अक्टूबर २०२३
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से नेपाल के पहाड़ों की करीब एक तिहाई बर्फ खत्म हो चुकी है. हिमालय के पहाड़ों में वैश्विक औसत से ज्यादा तापमान बढ़ा है.
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यूएन महासचिव गुटेरेश ने कहा है कि यह बर्फ करीब 30 सालों में खत्म हुई. सोमवार को माउंट एवरेस्ट के पास एक इलाके सोलुखुंबु के दौरे के बाद उन्होंने एक वीडियो संदेश के जरिए कहा कि नेपाल के ग्लेशियर पिछले दशक में उससे पहले के दशक के मुकाबले 65 प्रतिशत ज्यादा तेजी से पिघले.
उन्होंने आगे कहा, "मैं आज यहां आया हूं ताकि दुनिया की छत से चिल्ला कर कह सकूं: यह पागलपन बंद कीजिए." "जीवाश्म ईंधन युग" के अंत की मांग करते हुए उन्होंने चेतावनी भी दी कि ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों और तालाबों में उफान आ जाएगा, पूरे के पूरे समुदाय बह जाएंगे हुए और समुद्रों के जलस्तर में भी रिकॉर्ड बढ़ोतरी होगी.
खतरे में ग्लेशियर
गुटेरेश नेपाल की चार दिवसीय यात्रा पर हैं. उन्होंने देशों से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को भी 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की अपील की ताकि "जलवायु उथल पुथल के सबसे बुरे हालात" से बचा जा सके.
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जलवायु वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले 100 सालों में धरती के तापमान में औसत 0.74 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है, लेकिन हिमालय के इलाकों में वैश्विक औसत से ज्यादा तेजी से तापमान बढ़ा है.
जून, 2023 में छपी एक रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने कहा था कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इस शताब्दी के अंत तक हिंदू कुश-हिमालय इलाके के ग्लेशियरों का फैलाव 75 प्रतिशत कम हो सकता है.
इससे इस इलाके में रहने वाले 24 करोड़ लोगों के लिए खतरनाक बाढ़ आ सकती है और उनके लिए पानी की कमी भी हो सकती है. एवरेस्ट से लौटने वाले पर्वतारोहियों का कहना है कि पहाड़ और सूखा और स्लेटी होता जा रहा है.
सीके/एए (रॉयटर्स)
सैलानियों की भीड़ के साथ बढ़ रहा है हिमालय में खतरा
अमेरिकी पर्वतारोही हिलेरी नेल्सन की मौत ने इस ओर ध्यान खींचा है कि हिमालय पर चढ़ाई गुजरे सालों में खतरनाक होती गई है. गाइड और एक्सपर्ट जलवायु परिवर्तन के साथ ही ज्यादा लोगों के यहां जाने को भी इसकी वजह बताते हैं.
अमेरिकी पर्वतारोही हिलेरी नेल्सन की मौत ने इस ओर ध्यान खींचा है कि हिमालय पर चढ़ाई गुजरे सालों में खतरनाक होती गई है. गाइड और एक्सपर्ट जलवायु परिवर्तन के साथ ही ज्यादा लोगों के यहां जाने को भी इसकी वजह बताते हैं.
तस्वीर: Zoonar/picture alliance
हिलेरी नेल्सन की मौत
49 साल की नेल्सन मनासलू की 8,163 मीटर ऊंची चोटी के पास ही थीं कि फिसल गईं और उनकी जान चली गई. दुनिया की आठवीं सबसे ऊंची चोटी पर वो अपने पार्टनर के साथ स्की करते हुए नीचे आना चाहती थीं.
तस्वीर: Niranjan Shrestha/dpa/picture alliance
हिमालय की चोटियों के लिये मशहूर नेपाल
हिमालय की मशहूर चोटियों का घर नेपाल में है. 1950 से 2021 के बीच यहां कुल 1,042 लोगों की मौत हुई जिनमें से 405 तो इसी सदी में मरे. हिमालय की ज्यादातर चोटियों पर चढ़ाई का रास्ता नेपाल से हो कर जाता है. नेपाल के गाइड और पिट्ठुओं ने तो पर्वतों की चोटियों पर चढ़ाई के रिकॉर्ड बनाये हैं.
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जानलेवा हिमस्खलन
हिमालय के डाटाबेस के मुताबिक इनमें से एक तिहाई मौतों के पीछे हिमस्खलन जिम्मेदार था और एक तिहाई पर्वतारोही फिसल कर गिरने से मारे गये. इसके अलावा बहुत से लोगों की मौत माउंटेन सिकनेस और इसी तरह के दूसरी परेशानियों से हुई.
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सबसे खतरनाक रास्ते
8,091 मीटर ऊंचा अन्नपूर्णा मासिफ इनमें सबसे ज्यादा खतरनाक है. 1950 से अब तक 365 चढ़ाइयों में कुल 72 लोगों की मौत हुई है यानी हर पांच सफल अभियान के लिये एक आदमी ने जान गंवाई मौत. धौलागिरी और कंचनजंघा दोनों में मौत की दर 10 फीसदी है.
खड़ी ढाल वाले दर्रों और हिमस्खलनों ने पाकिस्तान के के2 को भी कुख्यात बना दिया है. 1947 से अब तक कम से कम 70 लोगों की मौत हुई है. सबसे ज्यादा मौत एवरेस्ट पर होती है लेकिन पर्वतारोहियों की ज्यादा संख्या के कारण मौत की दर 2.84 फीसदी है. 1950 से 2021 के बीच एवरेस्ट में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है.
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पिघलते ग्लेशियर
2019 की एक स्टडी में चेतावनी दी गई कि हिमालय के ग्लेशियर पिछली सदी की तुलना में दोगुनी तेजी से पिघल रहे हैं. इस साल एक स्टडी से पता ने चला कि एवरेस्ट की चोटी के पास मौजूद बर्फ 2000 साल पुरानी हैं. यानि ग्लेशियर को बनने में जितना समय लगा था उससे 80 गुना ज्यादा तेजी से यह पिघल रहा है.
तस्वीर: RTS
जलवायु परिवर्तन और मौत
जलवायु परिवर्तन और लोगों की मौत के संबंध के बारे में विस्तृत अध्ययन नहीं हुआ है लेकिन पर्वतारोहियों का कहना है कि हिम दरारें चौड़ी हो रही हैं, पहले जहां बर्फ होती थी वहां पानी बह रहा है और ग्लेशियरों के पिघलने से बनने वाली झीलों की संख्या बढ़ रही है. इन सबके कारण खतरा बढ़ रहा है.
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हिमस्खलनों का बढ़ता खतरा
ग्लेशियर अप्रत्याशित हो गये हैं जिससे हिमस्खलनों का खतरा बढ़ सकता है. 2014 में भारी संख्या में बर्फ और चट्टानों के सरकने से 16 नेपाली गाइडों की मौत हो गई. यह हादसा खुंभु आइसफॉल में हुआ और हिमालय में अब तक हुए सबसे बड़े हादसों में एक है.
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बढ़ती भीड़ भी जिम्मेदार
विशेषज्ञों का कहना है कि मौत के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है कम अनुभवी और कम तैयारी के साथ यहां आ रहे पर्वतारोही सैलानी. रोमांच की चाहत में हर साल सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोग नेपाल, पाकिस्तान और तिब्बत पहुंच रहे हैं. बढ़ती संख्या ने कंपनियों के बीच प्रतियोगिता बढ़ा दी है और इस चक्कर में सुरक्षा से समझौता हो रहा है.
तस्वीर: RTS
एवरेस्ट में ट्रैफिक जाम
नेपाल ने इस साल मनासलू की चोटी के लिए 404 और पाकिस्तान ने के2 के लिये 200 परमिट दिये ये दोनों संख्या सामान्य से दोगुनी हैं. 2019 में तो एवरेस्ट में ऐसी भीड़ पहुंची कि ट्रैफिक जाम लग गया और लोग जमाने वाली सर्दी में फंस गये. ऑक्सीजन का लेवल घटने से कई लोग रास्ते में ही बीमार हो गये. हर साल 11 में से कम से कम चार मौतों के लिये भीड़ जिम्मेदार होती है.
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बचाव के उपाय
बहुत सी टूर कंपनियां ड्रोन का इस्तेमाल कर जोखिम का अंदाजा लगाती हैं, वो पर्वतारोहियों के वाइटल डाटा पर रियल टाइम में नजर रखती हैं और बहुत से पर्वतारोही तो जीपीएस ट्रैकर भी पहनते हैं. यात्रा का इंतजाम करने वालों ने ज्यादा ऑक्सीजन की व्यवस्था रखनी शुरू की है और मौसम समाचार की स्थिति पहले से काफी बेहतर हुई है. हालांकि इन सबके बावजूद खतरा बढ़ रहा है.