नफताली बेनेट ने बेन्यामिन नेतन्याहू के 12 साल के शासन को समाप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया, उन्होंने ऐलान किया है कि वे विरोधियों के साथ एक गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश करेंगे.
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धुर दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी पार्टी के नेताओं ने रविवार को पुष्टि की कि वे इस्राएल में एक गठबंधन सरकार बनाने की कोशिश में जुटे हैं. अगर यह गठबंधन सफल होता है तो वह 2009 के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नेतन्याहू और उनकी लिकुड पार्टी को अपदस्थ कर पाएगा. दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नफताली बेनेट ने टीवी पर प्रसारित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वह विपक्ष के प्रमुख याइर लैपिड के साथ गठबंधन सरकार बनाएंगे. लैपिड की पार्टी का नाम येश एतिड पार्टी है. बेनेट ने कहा, "यह मेरा इरादा है कि मैं अपने दोस्त याइर लैपिड के साथ एक राष्ट्रीय एकता सरकार बनाने की पूरी कोशिश करूं. भगवान की इच्छा से हम इस देश को बचा सकें और इसे रास्ते पर लौटा सकें." नेतन्याहू के पूर्व सहयोगी रहे बेनेट ने कहा कि उन्होंने दो वर्षों में इस्राएल को पांचवें चुनाव में जाने से रोकने के लिए यह फैसला लिया है. हालांकि बेनेट नेतन्याहू की राष्ट्रवादी विचारधारा को साझा करते हैं. उन्होंने कहा कि कट्टर दक्षिणपंथियों के लिए संसद में बहुमत पाने का कोई संभव तरीका नहीं था.
नेतन्याहू ने क्या कहा?
नेतन्याहू ने कहा है कि नफताली बेनेट ने देश के दक्षिणपंथियों को धोखा दिया है. उन्होंने बेनेट पर "सदी की धोखाधड़ी" का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, "इस तरह की सरकार इस्राएल की सुरक्षा के साथ-साथ देश के भविष्य के लिए भी खतरा है." येरुशलम स्थित पत्रकार सामी सोकोल ने डीडब्ल्यू से कहा कि गठबंधन सरकार के लिए नेतन्याहू का संभावित आह्वान एक अतिशयोक्ति से ज्यादा कुछ नहीं है. उनके मुताबिक, "नेतन्याहू इस घटनाक्रम को लेकर इतने उत्साहित हैं कि ऐसा लगता है कि उन्होंने ऐसा बयान देकर अपना आपा खो दिया है."
अगर बेनेट और लैपिड गठबंधन सरकार बनाने में विफल रहते हैं और नए चुनाव होते हैं, तो नेतन्याहू को लाभ होने की अधिक संभावना है. लेकिन अगर दोनों नेता सरकार बनाने के लिए सहमत होते हैं, तो दोनों नेता आम सहमति के फार्मूले के अनुसार दो साल तक प्रधान मंत्री के रूप में काम करेंगे.
मार्च के चुनाव में, येश एतिड पार्टी 17 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही, जबकि नेतन्याहू की लिकुड पार्टी ने 30 सीटों पर जीत हासिल की. 57 वर्षीय पूर्व पत्रकार लैपिड ने वित्त मंत्री के रूप में भी काम किया, लेकिन नेतन्याहू के साथ तनावपूर्ण संबंधों के कारण गठबंधन सरकार गिर गई.
एए/वीके (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
अरब-इस्राएल युद्ध के वो छह दिन
1967 में केवल छह दिन के लिए चली अरब-इस्राएल के बीच की जंग में इस्राएल ने जीत हासिल की. इस जीत ने दुनिया में इस्राएल को एक ताकतवर देश के तौर पर स्थापित कर दिया. आइए जानते हैं इस जंग से जुड़ी कुछ अहम बातें.
अरब-इस्राएल युद्ध 5 जून 1967 को शुरू हुआ. सवेरे सवेरे इस्राएली विमानों ने काहिरा के नजदीक और स्वेज के रेगिस्तान में स्थित मिस्र के हवाई सैन्य अड्डों पर बम बरसाये. चंद घंटों के भीतर मिस्र के लगभग सभी विमान धराशायी हो चुके थे. वायुक्षेत्र पर नियंत्रण कर इस्राएल ने लगभग पहले दिन ही इस लड़ाई को जीत लिया था.
तस्वीर: Imago/Keystone
कैसे छिड़ा युद्ध
स्थानीय समय के अनुसार तेल अवीव से सवेरे 7.24 बजे खबर आयी कि मिस्र के विमानों और टैंकों ने इस्राएल पर हमला कर दिया है. इस्राएल के दक्षिणी हिस्से में भारी लड़ाई की रिपोर्टें मिलने लगीं. लेकिन आज बहुत से इतिहासकार मानते हैं कि लड़ाई की शुरुआत इस्राएली वायुसेना की वजह से हुई, जिसके विमान मिस्र के वायुक्षेत्र में घुस गये.
तस्वीर: Government Press Office/REUTERS
युद्ध की घोषणा
मिस्र में 8.12 बजे सरकारी रेडियो से घोषणा हुई, “इस्राएली सेना ने आज सवेरे हम पर हमला कर दिया है. उन्होंने काहिरा पर हमला किया और फिर हमारे विमान दुश्मन के विमानों के पीछे गये.” काहिरा में कई धमाके हुए और शहर सायरनों की आवाजों से गूंज उठा. काहिरा का एयरपोर्ट बंद कर दिया गया और देश में इमरजेंसी लग गयी.
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अरब देश कूदे
सीरियाई रेडियो से भी यह खबर चली और 10 बजे सीरिया ने कहा कि उसके विमानों ने इस्राएली ठिकानों पर बम गिराये हैं. जॉर्डन ने भी मार्शल लॉ लगा दिया और इस्राएल के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने से पहले अपनी सेना को मिस्र की कमांड में देने का फैसला किया. इराक, कुवैत, सूडान, अल्जीरिया, यमन और फिर सऊदी अरब भी मिस्र के साथ खड़े दिखे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Guillaud
सड़क पर लड़ाई
येरुशलेम में इस्राएली और जॉर्डेनियन इलाकों में सड़कों पर लड़ाइयां छिड़ गयीं और ये युद्ध जल्दी ही जॉर्डन और सीरिया से लगने वाली इस्राएली सीमाओं तक पहुंच गया. इस्राएल-जॉर्डन के मोर्चे से भारी लड़ाई की खबर मिली. सीरियाई विमानों ने तटीय शहर हैफा को निशाना बनाया जबकि इस्राएलियों ने कई हमलों के जरिये दमिश्क के एयरपोर्ट को निशाना बनाया.
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दुनिया फिक्रमंद
मिस्र और इस्राएल, दोनों को इस लड़ाई में अपनी अपनी जीत का भरोसा था. अरब देशों में गजब का उत्साह था. लेकिन विश्व नेता परेशान थे. पोप पॉल छठे ने कहा कि येरुशलेम को मुक्त शहर घोषित किया जाए. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपात बैठक हुई. अमेरिकी राष्ट्रपति लिडंन बी जॉनसन ने सभी पक्षों से लड़ाई तुरंत रोकने को कहा.
तस्वीर: picture alliance / dpa
घमासान
इस्राएली सैनिकों ने गजा के सरहदी शहर खान यूनिस और वहां मौजूद सभी मिस्री और फलस्तीनी बलों पर कब्जा कर लिया. एक एएफपी रिपोर्ट में खबर दी कि इस तरह इस्राएल ने अपनी पश्चिमी सरहद को सुरक्षित कर लिया. उसकी सेनाएं दक्षिणी हिस्से में मिस्र की सेना के साथ लोहा ले रही थी.
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मारे गिराए विमान
आधी रात को इस्राएल ने कहा कि उसने मिस्र की वायुसेना को तबाह कर दिया है. लड़ाई के पहले ही दिन 400 लड़ाकू विमान मारे गिराये गये. इनमें मिस्र के 300 विमान जबकि सीरिया के 50 विमान शामिल थे. इस तरह लड़ाई के पहले ही दिन इस्राएल ने अपनी पकड़ मजबूत बना ली.
रात को इस्राएली संसद नेसेट की बैठक हुई और इस्राएली प्रधानमंत्री लेविस एशकोल ने बताया कि सारी लड़ाई मिस्र में और सिनाई प्रायद्वीप में चल रही है. उन्होंने बताया कि मिस्र, जॉर्डन और सीरिया की सेनाओं को गंभीर नुकसान पहुंचाया गया है.
खत्म हुई लड़ाई
11 जून को युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर हुए और लड़ाई खत्म हुई. लेकिन इस जीत से इस्राएल ने दुनिया को हैरान कर दिया. इससे जहां इस्राएली लोगों का मनोबल बढ़ा, वहीं अंतरराष्ट्रीय जगत में उनकी प्रतिष्ठान में भी इजाफा हुआ. छह दिन में इस्राएल की ओर से गए सैनिकों की संख्या जहां एक हजार से कम थी वहीं अरब देशों के लगभग 20 हजार सैनिक मारे गए.
तस्वीर: Picture-alliance/AP/Keystone/Israel Army
इस्राएल का दबदबा
लड़ाई के दौरान इस्राएल ने मिस्र से गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और पूर्वी येरुशलेम और सीरिया से गोलन हाइट की पहाड़ियों को छीन लिया था. अब सिनाई प्रायद्वीप मिस्र का हिस्सा है जबकि वेस्ट बैंक और गजा पट्टी फलस्तीनी इलाके हैं, जहां फलस्तीनी राष्ट्र बनाने की मांग बराबर उठ रही है. (रिपोर्ट: एएफपी/एके)
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