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चीन के नए सीमा कानून ने बढ़ाई भारत में चिंता

प्रभाकर मणि तिवारी
२५ अक्टूबर २०२१

चीन का नया सीमा कानून देश की सीमा पर सुरक्षा बढ़ाने के मकसद से बनाया गया है. चीन अफगानिस्तान में तालिबान के शासन और कोविड-19 से चिंतित है तो एक साल से चल रहे सीमा विवाद ने भारत में चिंताएं बढ़ा दी हैं.

Grenzkonflikt China Indien
तस्वीर: Anupam Nath/AP/picture alliance

भारत के साथ बढ़ते सीमा विवाद के बीच चीन ने नया भूमि सीमा कानून पारित किया है. इस कानून का मकसद सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे और अन्य विकास कार्यों को प्रोत्साहित करते हुए देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा पर जोर देना है. चौतरफा दबाव बढ़ाने की रणनीति के तहत चीन ने जहां हाल में भूटान के साथ आपसी सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, वहीं पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश में उसकी बढ़ती सक्रियता भी सरकार की चिंता बढ़ा रही है. अब चीन के नए कानून ने देश के सीमावर्ती इलाकों में चिंता और बढ़ा दी है. यह कानून पहली जनवरी से प्रभावी होगा.

नया कानून

चीन अपने इस कानून को देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए अहिंसक बता रहा है. इसके तहत चीन के सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाएगी. इन इलाकों में आर्थिक, सामाजिक विकास के साथ बुनियादी ढांचे को भी विकसित किया जाएगा. इस कानून के तहत चीन सीमावर्ती इलाकों में अपनी दखल बढ़ाने के प्रयासों के तहत वहां आम लोगों को बसाने की तैयारी कर रहा है. वैसी स्थिति किसी भी दूसरे देश के लिए इन इलाकों में सैन्य कार्रवाई और मुश्किल हो जाएगी. चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) की स्थायी समिति के सदस्यों ने शनिवार को इस कानून को मंजूरी दे दी. सामरिक विशेषज्ञ इसका असर भारत-चीन सीमा विवाद पर पड़ने का अंदेशा जता रहे हैं.

भारत चीन सीमा पर तवांग शहर तस्वीर: DW

हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान शासन को चीन के समर्थन की बातें कही जा रही हैं, लेकिन चीन को आशंका है कि वहां से शरणार्थी और इस्लामी कट्टरपंथी चीन की सीमा में आ सकते हैं और वहां शिनजियांग इलाके में उइगुर विद्रोहियों के साथ संपर्क स्थापित कर सकते हैं.  नए कानून में कहा गया है कि चीन समानता, परस्पर विश्वास और मित्रतापूर्ण बातचीत के सिद्धांतों का पालन करते हुए पड़ोसी देशों के साथ जमीनी सीमा संबंधी मुद्दों से निपटेगा और लंबे अरसे से लंबित सीमा विवादों के समुचित समाधान के लिए बातचीत का सहारा लेगा.

सीमा विवाद

चीन बीते कुछ साल से सीमा पर अपने बुनियादी ढांचे को लगातार मजबूत करता रहा है. उसने हवाई, रेल और सड़क नेटवर्क का विस्तार करने के साथ ही तिब्बत में बुलेट ट्रेन भी चला दी है. यह ट्रेन अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती कस्बे निंग्ची तक जाती है. भारत और चीन के बीच सीमा विवाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर 3,488 किलोमीटर लंबे इलाके में है जबकि भूटान के साथ चीन का विवाद 400 किलोमीटर लंबी सीमा को लेकर है. हाल में उसने भूटान के साथ सीमा विवाद सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.

गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद चीन पर अक्सर पूर्वी और पूर्वोत्तर सीमा पर घुसपैठ करने के भी आरोप लगते रहे हैं. उसके जवानों के हाथों कई भारतीय नागरिकों के अपहरण के मामले में सामने आ चुके हैं.

भारत की तैयारियों में तेजी

चीन की गतिविधियों से निपटने के लिए भारत भी अरुणाचल प्रदेश में अपने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में जुटा है. इसमें हर मौसम में सीमावर्ती क्षेत्रों तक आवाजाही आसान बनाने वाली नई सुरंगों के अलावा नई सड़कों का निर्माण, पुल, हेलीकॉप्टर बेस बनाना और गोला-बारूद के लिए भूमिगत भंडारण वाले ठिकाने तैयार करना शामिल है.

पूर्वोत्तर में अपनी उपस्थिति बढ़ा रही है भारतीय सेनातस्वीर: MONEY SHARMA/AFP/Getty Images

चीन के साथ जारी गतिरोध के दौर में इन परियोजनाओं का काम तेज कर दिया गया है. हालांकि सेना के अधिकारी भी मानते हैं कि सीमावर्ती इलाकों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के मामले में चीन बेहतर स्थिति में है. बावजूद इसके अब भारत सरकार ने इस मामले में तेजी दिखाई है. इसके तहत सीमावर्ती इलाकों में तैनात सेना के जवानों की तादाद बढ़ाने के साथ ही बोफोर्स जैसी आधुनिक तोपें भी तैनात की गई हैं. इसके साथ ही 700 करोड़ रुपये की अतिमहत्वपूर्ण सेला सुरंग परियोजना को अगले साल प्रस्तावित समयसीमा से पहले जून में ही पूरा करने की योजना है. इससे तवांग और उससे सटे सीमावर्ती इलाकों में साल के बारह महीने यातायात सुनिश्चित हो जाएगा. फिलहाल सेला दर्रा सर्दियों में भारी बर्फबारी और खराब मौसम के कारण बंद हो जाता है.

इससे सैन्य उपकरणों को सीमावर्ती इलाकों में पहुंचाने में लगने वाला समय बचेगा. परंपरागत रूप से लद्दाख में 832 किलोमीटर लंबी एलएसी की निगरानी 14वीं कोर की एक डिवीजन करती है. लेकिन पूर्वी कमान में 1,346 किलोमीटर लंबी एलएसी की सुरक्षा की जिम्मेदारी इस क्षेत्र में दो कोर की छह डिवीजनों को सौंपी गई है.

भूटान से समझौता

पूर्वोत्तर भारत में भूटान के साथ कूटनीतिक रिश्ते बनाने की चीन कोशिशों से भी भारत में चिंता है. चीन-भूटान में दशकों पुराने सीमा विवाद पर हुए समझौते पर फिलहाल सरकार ने कोई टिप्पणी नहीं की है. लेकिन इससे सिक्किम और अरुणाचल से सटी तिब्बत की सीमा पर चिंता तो बढ़ ही गई है. दूसरी ओर, लद्दाख की स्थिति में भी कोई सुधार नहीं आया है. फिलहाल वहां भी सरकार की प्राथमिकता बुनियादी ढांचों को मजबूत करने और पूरे साल आवाजाही सुनिश्चित करना है.

दलाई लामा के तवांग दौरे पर भी नाराज था चीनतस्वीर: AP

सामरिक विशेषज्ञ जीबी चटर्जी कहते हैं, "भारत और चीन के बीच लंबा सीमा विवाद है. दोनों देशों के बीच एलएसी पर हुए समझौते को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. ऐसे में हमेशा चीन और भारत के बीच तनातनी का माहौल रहता है.” उनका कहना है कि लद्दाख सेक्टर में कई बार दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आ चुके हैं और सीमा पर हिंसक झड़प भी हो चुकी है. उधर, पूर्वी और पूर्वोत्तर सीमा पर भी अक्सर झड़प होती रहती हैं. ऐसे में चीन की तरफ से पारित किया गया नया कानून सीमा विवाद पर जारी गतिरोध को और जटिल बना सकता है.

दलाई लामा का चयन

चीन के साथ जारी तनातनी के बीच ही अरुणाचल प्रदेश में स्थित तवांग मठ के प्रमुख ग्यांग बुंग रिंपोचे ने कहा है कि अगले दलाई लामा का चयन करने की प्रक्रिया में चीन को शामिल होने का कोई अधिकार नहीं है. चीन की सरकार धर्म में विश्वास नहीं करती है और अगले दलाई लामा का चयन तिब्बती लोगों के लिए पूरी तरह से एक आध्यात्मिक मामला है. चीन पिछले कुछ सालों से अरुणाचल पर भी दावा कर रहा है. 

तिब्बत की सीमा से सटे तवांग स्थित करीब साढ़े तीन सौ साल पुराने मठ के प्रमुख का कहना है कि चीन की विस्तारवाद की नीति का मुकाबला करना जरूरी है और भारत को अपने पड़ोसी देश के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर लगातार कड़ी निगरानी रखनी चाहिए. उन्होंने भारत जैसे देशों से तिब्बत की संस्कृति और धरोहर की रक्षा के लिए आगे आने की भी अपील की है.

ये भी देखिए: 2017 में दलाई लामा का अरुणाचल दौरा

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