भारत की न्याय व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने वाले तीन नए बिल कानून बनने की राह पर हैं. जानिए किस तरह के बदलाव लाएंगे ये कानून.
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भारतीय न्याय संहिता, 2023 (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता, 2023 (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 बुधवार को लोकसभा से पारित कर दिए गए. राज्यसभा से भी पारित हो जाने के बाद तीनों विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करने के बाद तीनों कानून बन जाएंगे.
माना जा रहा है कि इन तीनों विधेयकों से भारत की न्याय व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव आ जाएंगे. लागू होने के बाद ये तीनों विधेयक भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की जगह ले लेंगे.
विपक्ष का विरोध
विधेयकों को लाते समय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि इनका उद्देश्य अंग्रेजों द्वारा लाए गए कानून को स्वदेशी रूप देना है. उन्होंने कहा, "मोदी जी के नेतृत्व में पहली बार कानून संविधान की आत्मा के अनुसार बनाए जा रहे हैं. मुझे गर्व है कि मैंने 150 सालों बाद इन तीनों कानून को बदला है."
इन तीनों विधेयकों को सरकार सबसे पहले अगस्त में मॉनसून सत्र के दौरान ले कर आई थी, जिसके बाद उन्हें संसद की एक स्थायी समिति को भेज दिया गया था. बीजेपी सांसद ब्रिज लाल की अध्यक्षता में इस समिति ने सितंबर और अक्टूबर में छह दिनों में नौ बैठकें की और अपनी रिपोर्ट पेश की.
रिपोर्ट में मोटे तौर पर तीनों विधेयकों का स्वागत किया गया और सिर्फ कुछ बदलाव प्रस्तावित किए गए. समिति में विपक्ष के नेताओं ने समय की कमी और सलाह लेने के लिए चुने गए विशेषज्ञों को लेकर विरोध भी जताया था.
लेकिन अंत में सरकार ने तीनों विधेयकों को वापस ले लिया और कुछ बदलावों के साथ नए विधेयकों को लोकसभामें पेश किया. 20 दिसंबर को तीनों नए विधेयकों को बिना किसी विशेष चर्चा के लोकसभा से पारित करा लिया गया. उस समय भारी संख्या में निलंबित विपक्ष के सांसद सदन में मौजूद नहीं थे.
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क्या बदल जाएगा
बीएनएस में लाए गए बदलावों में एक महत्वपूर्ण बदलाव है भीड़ द्वारा पीट-पीट कर मार दिए जाने (मॉब लिंचिंग) और नफरती अपराध (हेट क्राइम) को अलग-अलग अपराध बना दिया गया है. जाति, भाषा या निजी विश्वास के आधार पर पांच या उससे ज्यादा लोगों के समूह द्वारा हत्या को अलग से अपराध बना दिया गया है.
गर्भपात पर गोली देने पर जेल की सजा
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अपराध की सजा आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड तक है. इसके अलावा राजद्रोह के अपराध को हटा दिया गया है, हालांकि एक नया प्रावधान लाया गया जो जानकारों के मुताबिक राजद्रोह से मिलता-जुलता है. धारा 152 में दिए गए इस प्रावधान के तहत "भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले" कृत्यों को अपराध बना दिया गया है.
बीएनएसएस में कुछ नई चीजें लाई गई हैं, जैसे क्षमा याचिकाओं के लिए समयरेखा, गवाहों की सुरक्षा के लिए एक योजना, इलेक्ट्रॉनिक साधनों से बयान दर्ज करने और सबूत इकट्ठा करने की इजाजत आदि.
जिन अपराधों के लिए सात साल से ज्यादा सजा मिल सकती है उनके लिए फॉरेंसिक जांच को अनिवार्य बना दिया गया है. पुलिस के लिए चार्जशीट दायर करने के 90 दिनों के अंदर जांच पूरी करना अनिवार्य बना दिया गया है.
इच्छामृत्यु को वैध बनाने वाला दुनिया का पहला देश
ठीक 20 साल पहले एक अप्रैल 2002 को नीदरलैंड्स ने इच्छामृत्यु को कानूनी वैधता दी. ऐसा करने वाला नीदरलैंड्स दुनिया का पहला देश था. आज भी कई देश ऐसे हैं जहां इच्छामृत्यु गैरकानूनी माना जाता है.
तस्वीर: Ute Grabowsky/photothek/picture alliance
नीदरलैंड्स
दुनिया के जिन मुठ्ठी भर देशों में इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता मिली है उनमें नीदरलैंड्स का नाम प्रमुखता से आता है. कानूनी मान्यता देने वाला विश्व के सभी देशों में नीदरलैंड्स पहला था. यहां सन 2002 से ही इसे वैधता मिली.
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बेल्जियम
नीदरलैंड्स के अलावा बेल्जियम दूसरा ऐसा देश है जहां गंभीर मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को भी बहुत कड़ी शर्तों के साथ अपनी जान देने की कानूनी अनुमति है. हालांकि शर्तों का ठीक से पालन ना करने पर मरने में मदद करने वाले को एक से तीन साल की जेल हो सकती है.
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ऑस्ट्रेलिया
विक्टोरिया यहां का पहला राज्य है जहां जून 2019 में इच्छामृत्यु का कानून लागू हुआ है. यह सिर्फ उन लोगों पर लागू है जो जानलेवा बीमारी से पीड़ित हैं और उनका दिमाग ठीक काम कर रहा हो. साथ ही जिनके जीवन के अब सिर्फ छह महीने बाकी हों. उम्मीद है कि इसके बाद क्वीन्सलैंड और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया राज्यों में भी ऐसे कानून पास किए जा सकते हैं.
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कोलंबिया
2015 में यूथेनेसिया को मान्यता देने वाला कोलंबिया विश्व का चौथा देश बना. हालांकि कोलंबिया की संवैधानिक अदालत ने 1997 में ही इसके पक्ष में फैसला सुनाया था लेकिन डॉक्टर ऐसा करना नहीं चाहते थे. कारण था देश का एक और कानून जिसमें दया-मृत्यु के लिए छह महीने से तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान था.
तस्वीर: Helmut Fohringer/APA/picture alliance
स्विट्जरलैंड
अब तक कई देश इसे कानूनी मान्यता दे चुके हैं लेकिन स्विट्जरलैंड इकलौता देश है जहां जाकर कोई विदेशी भी कानूनी रूप से यूथेनेसिया कर सकता है. अगर मरीज चाहता हो तो मेडिकल मदद देकर किसी के प्राण लेना यहां अपराध नहीं है. तस्वीर में हैं यूथेनेसिया के मशहूर समर्थक वैज्ञानिक डेविड गुडबॉल.
तस्वीर: Alessandro della Bella/dpa/picture-alliance
लक्जमबर्ग
सन 2008 में यूथेनेसिया और मेडिकल मदद से जान देने को यहां भी वैधता मिली. गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए यह एक कानूनी विकल्प बन गया. इसके लिए मरीज को बार बार मांग करनी होती है और कम से कम दो डॉक्टर और एक मेडिकल पैनल से इसके पक्ष में दी गई सलाह लिखित रूप से जमा करानी होती है.
तस्वीर: Jm Niester/dpa/picture-alliance
जर्मनी
सन 2017 में जर्मनी में एक यादगार कदम उठाते हुए कोर्ट ने गंभीर रूप से बीमार मरीजों को दवा लेकर इच्छामृत्यु की इजाजत दे दी. मार्च 2017 से एक साल के भीतर इस तरह की मौत चाहने वालों के करीब 108 मरीजों ने आवेदन जमा किया. जिनमें से कइयों ने यूथेनेसिया ड्रग लेकर जान दे भी दी है.
तस्वीर: photothek/picture alliance
अमेरिका
कुछ अमेरिकी राज्यों जैसे ऑरेगन प्रांत में 1997 से इच्छामृत्यु वैध है. बाद में कैलिफोर्निया में भी इसे मान्यता मिल गई. खुदकुशी के इच्छुक व्यक्ति को डॉक्टर दवा देते हैं, जिसे कॉकटेल कहा जाता है. इसे लेते ही मरीज सो जाता है और आधे घंटे के भीतर उसकी मौत हो जाती है.
तस्वीर: Russell Contreras/AP Photo/picture alliance
कनाडा
कनाडा के क्यूबेक प्रांत ने जून 2014 में एक ऐसा कानून अपनाया जो गंभीर रूप से बीमार मरीजों को डॉक्टर की मदद से अपने प्राण त्यागने का अधिकार देता है. यह देश का पहला ऐसा प्रांत बना, जहां प्रभावी ढंग से आत्महत्या में मदद को वैध बनाया गया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Jensen
भारत
भारत के सर्वोच्च न्यायलय ने 2018 में "पैसिव यूथेनेसिया" के पक्ष में फैसला सुनाया. इसमें धीरे धीरे मरीज को लाइफ सपोर्ट से हटाया जाता है. कोर्ट ने कहा कि कुछ शर्तों के साथ हर व्यक्ति को गरिमामय मौत पाने का अधिकार है लेकिन इसके लिए व्यक्ति को स्वस्थ शारीरिक और मानसिक स्थिति में यह वसीयत करनी होगी.