ऐसा हुआ तो नहीं रहेगी इंसुलिन के इंजेक्शन की जरूरत
४ अगस्त २०२२
ऑस्ट्रेलिया में वैज्ञानिकों ने एक तरीका खोजा है जिससे शरीर में ही इंसुलिन दोबारा बनने लगे. हालांकि शोध अभी शुरुआती दौर में है लेकिन डायबिटीज के पक्के इलाज की दिशा में अहम कदम बढ़ाया गया है.
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ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी में हुए अपने तरह के इस पहले अध्ययन में एक ऐसा रास्ता खोजा गया है जिसके जरिए ऐसी प्रक्रिया तैयार की जा सकती है कि पेंक्रियाटिक स्टेम कोशिकाओं में इंसुलिन अपने आप बनने लगे. अगर ऐसा हो पाता है तो टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज के इलाज में यह क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है.
इस शोध में शोधकर्ताओं ने टाइप 1 डायबिटीज के मरीज द्वारा दान की गईं पेंक्रियाज कोशिकाओं पर अध्ययन किया. उन्होंने अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा मंजूरशुदा एक दवा का इस्तेमाल किया, जो अभी डायबिटीज के इलाज में प्रयोग नहीं की जाती. शोधकर्ताओं ने इस दवा के जरिए पेंक्रियाज स्टेम कोशिकाओं को दोबारा सक्रिय करने और ‘इंसुलिन एक्सप्रेसिंग' बनाने में कामयाब रहे.
शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी इस दिशा में और शोध की जरूरत है लेकिन कामयाब होने पर इसका इलाज डायबिटीज को ठीक करने में हो सकता है. इस तरीके से टाइप 1 डायबिटीज के कारण नष्ट हो गईं कोशिकाओं की जगह नई कोशिकाएं ले लेंगी जो इंसुलिन का उत्पादन कर सकेंगी.
ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी में डायबिटीज विशेषज्ञ प्रोफेसर सैम अल-ओस्ता और डॉ. इशांत खुराना ने यह शोध किया है. पूरी तरह कामयाब होने पर यह शोध डायबिटीज के मरीजों की इंसुलिन का इंजेक्शन लेने की जरूरत को खत्म कर सकता है. सिर्फ ऑस्ट्रेलिया में ही हर रोज औसतन सात बच्चों में डायबिटीज का पता चलता है जिसके कारण उन्हें नियमित रूप से खून की जांच और इंसुलिन के इंजेक्शन पर निर्भर रहना पड़ता है, क्योंकि उनका पेंक्रियाज ठीक तरह से काम नहीं कर पाता और इंसुलिन नहीं बना पाता.
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खतरनाक हो चुकी है डायबिटीज
दुनियाभर में डायबिटीज के मामले 50 करोड़ को पार कर चुके हैं और यह रोग सबसे खतरनाक बीमारियों में शामिल है. इस रोग के लिए समुचित इलाज भी उपलब्ध नहीं है जो दुनियाभर के शोधकर्ताओं के सामने एक बड़ी चुनौती है. प्रोफेसर अल-ओस्ता ने एक बयान में कहा, "हम समझते हैं कि हमारा शोध बहुत खास है और नया इलाज खोजने की दिशा में एक अहम कदम है.”
नेचर पत्रिका में छपे इस शोध के मुताबिक पेंक्रियाज की मरी हुई कोशिकाओं की जगह नई कोशिकाओं को सक्रिय करने के लिए शोधकर्ताओं को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. आमतौर पर माना जाता है कि एक बार खराब हो जाने के बाद पेंक्रियाज को ठीक नहीं किया जा सकता. प्रोफेसर अल-ओस्ता बताते हैं कि जब तक किसी व्यक्ति में टाइप वन डायबिटीज (टी1डी) का पता चलता है, तब तक इंसुलिन बनाने वाले उसकी बहुत सारी पेंक्रियाज बीटा कोशिकाएं नष्य हो चुकी होती हैं.
पहचानें डायबिटीज के शुरुआती संकेत
डायबिटीज बहुत ही चुपचाप आने वाली बीमारी है. लेकिन अगर आप अपने शरीर और व्यवहार पर ध्यान देंगे तो आप इससे बचाव कर सकते हैं.
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दो किस्म का डायबिटीज
डायबिटीज दो प्रकार हैं, टाइप-1 और टाइप-2. टाइप-1 आनुवांशिक होता है, यह बच्चों और युवाओं में देखने को मिलता है. लेकिन इसके मामले बहुत ही कम होते हैं. टाइप-2 डायबिटीज ज्यादा जीवनशैली से जुड़ा है और दुनिया भर में तेजी से फैल रहा है.
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टाइप-1
इसमें शरीर इंसुलिन नहीं बनाता है. इंसुलिन खाने से मिलने वाले ग्लूकोज को तोड़ता है और ऊर्जा के रूप से कोशिकाओं तक पहुंचाता है. लेकिन टाइप-1 डायबिटीज के पीड़ितों को बचपन से इंसुलिन लेना पड़ता है.
टाइप-2
यह चुपचाप आता है. बढ़ती उम्र और बेहद आरामदायक जीवनशैली के चलते इंसान को यह बीमारी लगती है. इसमें शरीर शुगर को ऊर्जा में बदलने की रफ्तार धीमी या बंद कर देता है. और एक बार यह लगी तो फिर इससे पार पाना आसान नहीं होता. आगे देखिये टाइप-2 डायबिटीज के शुरूआती संकेत.
तेज प्यास लगना
टाइप-2 डायबिटीज का अहम शुरुआती लक्षण है, बार बार तेज प्यास लगना. मुंह में सूखापन रहना. ज्यादा भूख लगना और ज्यादा पानी न पीने के बावजूद बार बार पेशाब लगना.
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शारीरिक तकलीफ
शुरुआती संकेत मिलने पर अगर कोई न संभले तो ज्यादा मुश्किल होने लगती है. डायबिटीज के चलते सिर में दर्द रहना, नजर में धुंधलापन सा आना और बेवजह थकने जैसी समस्यायें सामने आती हैं.
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नींद न आना
शुगर का असर नींद पर भी पड़ता है. डायबिटीज के रोगियों को बहुत गहरी नींद नहीं आती है. उनके हाथ या पैरों में झनझनाहट सी रहती है.
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सेक्स में परेशानी
डायबिटीज के 30 फीसदी रोगियों को सेक्स में परेशानी भी होने लगी है. इसके पीड़ित महिला और पुरुष को आर्गेज्म में परेशानी होने लगती है.
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गंभीर संकेत
कुछ मामलों के टाइप-2 डायबिटीज के शुरुआती लक्षण बिल्कुल नजर नहीं आते. उनमें दूसरे किस्म के लक्षण नजर आते हैं, जैसे फुंसी, फोड़े या कटे का घाव बहुत देर से भरना. खुजली होना, मूत्र नलिका में इंफेक्शन होना और जननांगों के पास जांघों में खुजली होना. पिंडलियों में दर्द भी रहता है.
किसे ज्यादा खतरा
मोटे और खासकर मोटी कमर वाले लोगों को, आलसियों को, सुस्त जीवनशैली के साथ सिगरेट पीने वालों को, बहुत ज्यादा लाल मीट व मीठा खाने वालों डायबिटीज का खतरा सबसे ज्यादा होता है.
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उम्र और टाइप-2 डाबिटीज का रिश्ता
आम तौर पर 45 साल के बाद इसका पता चलता है. लेकिन भारत समेत कई देशों में बदलती जीवनशैली के साथ 25-30 साल के युवाओं को डायबिटीज की शिकायत होने लगी है. लेकिन कड़ी शारीरिक मेहनत करने वाले और संयमित ढंग से खाना खाने वाले बुजुर्गों में कोई डायबिटीज नहीं दिखता.
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बैक्टीरिया की भी भूमिका
ताजा शोध में पता चला है कि बड़ी आंत में रहने वाले बैक्टीरिया भी टाइप-2 डायबिटीज में भूमिका निभाते हैं. आंत में हजारों किस्म के बैक्टीरिया होते हैं, इनमें ब्लाउटिया, सेरेराटिया और एकेरमानसिया भी शामिल हैं. लेकिन डायबिटीज के रोगियों में इनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है. वैज्ञानिकों को शक है कि इनकी बहुत ज्यादा संख्या के चलते मेटाबॉलिज्म प्रभावित होने लगता है
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शक होने पर क्या करें
खुद टोटके करने के बजाए डॉक्टर से परामर्श करें और नियमित अंतराल में शुगर टेस्ट कराएं. डायबिटीज से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है, कसरत या शारीरिक मेहनत. अगर आपका शरीर थकेगा तो शुगर लेवल नीचे गिरेगा और नींद भी अच्छी आएगी.
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खुद के लिए 30 मिनट
हर दिन 30 मिनट कसरत कर लें, यह डायबिटीज से आपको बचाएगी. डायबिटीज हो भी गया तो कसरत उसे काबू में रखेगी. संतुलित आहार भी बहुत जरूरी है.
कैसी हो खुराक
खून में शुगर की मात्रा खाने पर निर्भर करती है. डायबिटीज के रोगियों को या डायबिटीज का शक होने पर कभी पेट भरकर न खाएं. तीन घंटे के अंतराल पर कुछ हल्का खाएं. प्याज, भिंडी, पत्ता गोभी, खीरा, टमाटर, दही, दाल, पपीता और हरी सब्जियां बेहद लाभदायक होती हैं.
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मिक्स खाना
वैज्ञानिकों के मुताबिक अलग अलग आहार में भिन्न भिन्न किस्म के बैक्टीरिया होते हैं. इसीलिए बेहतर है कि फल, अनाज, सब्जी, बीज और रेशेदार फलियों से संतुलित डायट बनाई जाए. इससे आंतों में अलग अलग बैक्टीरियों का अनुपात सही बना रहेगा.
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मीठा भी साथ रहे
डायबिटीज ऐसी बीमारी है जो बहुत ज्यादा परहेज करने पर भी मारती है. शुगर लेवल अगर बहुत नीचे गिर जाए तो रोगी को चक्कर आ सकता. लिहाजा डायबिटीज से लड़ने के दौरान हमेशा कुछ मीठा अपने पास रखें. जब लगे कि शुगर लेवल बहुत गिर रहा है तो हल्का सा मीठा खा लें.
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प्रोफेसर अल-ओस्ता बताते हैं, "इस अध्ययन से पता चला है कि डायबिटीज ग्रस्त पेंक्रियाज इंसुलिन बनाने के अयोग्य नहीं हो जाता.” वह कहते हैं कि मरीजों को रोज इंसुलिन का इंजेक्शन लेने पर निर्भर होना पड़ता है, जो इंसुलिन उनके पेंक्रियाज में बन सकती थी. अल-ओस्ता कहते हैं, "इसका एकमात्र प्रभावी विकल्प पेंक्रियाटिक आइलेट ट्रांसप्लांट है. इससे डायबिटीज के मरीजों की सेहत के लिए नतीजे तो बेहतर मिले हैं लेकिन ट्रांसप्लांट किसी द्वारा दान पर निर्भर करता है, इसलिए इसका ज्यादा प्रयोग नहीं हो पा रहा है.”
शोध में शामिल रहे एक अन्य विशेषज्ञ डॉ. अल-हसानी कहते हैं कि दुनिया की आबादी लगातार बूढ़ी हो रही है और टाइप 2 डायबिटीज को लेकर चुनौतियां बढ़ रही हैं जो मोटापे में वृद्धि से भी जुड़ा है, और इसलिए डायबिटीज के इलाज की जरूरत बहुत ज्यादा है.
डॉ. अल-हसानी कहते हैं, "मरीजों तक इसे पहुंचाने से पहले कई तरह के मसलों के हल की जरूरत है. इन कोशिकाओं को परिभाषित करने के लिए और ज्यादा काम करने की जरूरत है. मुझे लगता है कि इलाज अभी काफी दूर है. लेकिन यह एक पक्के इलाज की दिशा में अहम कदम हो सकता है.”
गुर्दों की सेहत के लिए जरूरी 8 बातें
हमारे शरीर में गुर्दे या किडनी ना केवल खून साफ करने का काम करते हैं बल्कि पानी का सही स्तर बनाए रखने और हार्मोन साबित करने में भी अहम भूमिका निभाते हैं. इसे स्वस्थ बनाए रखने के लिए ध्यान रखें इन आठ बातों का.
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एक्टिव रहें
जब आप रोजमर्रा के जीवन में सक्रिय रहते हैं तो ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है और आप डायबिटीज जैसी बीमारियों की चपेट में आने से भी बचे रहते हैं. करीब 30 फीसदी मामलों में किडनी के फेल होने का कारण डायबिटीज पाया गया है.
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ब्लड शुगर का स्तर
खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाने से डायबिटीज जैसी बीमारियों का खतरा तो बढ़ता ही है, इससे किडनी की आंतरिक नलिकाएं भी नष्ट हो सकती हैं. इन नलिकाओं को नुकसान पहुंचने से वह रक्त को ठीक से फिल्टर नहीं कर पातीं.
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ब्लड प्रेशर ना बढ़ाएं
उच्च रक्तचाप किडनी के फेल होने का दूसरा सबसे आम कारण है. हाई ब्लड प्रेशर से भी रक्त नलिकाओं की दीवार को नुकसान पहुंचता है. स्वस्थ गुर्दों के लिए रक्तचाप भी 140/90 एमएमएचजी से ज्यादा नहीं होना चाहिए.
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स्वस्थ आहार
खानपान के महत्व को कैसे नजर अंदाज किया जा सकता है. फल, सब्जियां और फाइबर वाली चीजें खाने से वजन के साथ किडनी की सेहत भी अच्छी रहती है. खाने में नमक की मात्रा को भी कम से कम रखने की कोशिश करनी चाहिए.
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तरल चीजें बहुत काम की
शरीर से नुकसानदायक चीजें बाहर निकालने के लिए किडनी को तरल माध्यम की जरूरत होती है. दिन में कम से कम डेढ़ से दो लीटर पानी पीना जरूरी है और शारीरिक रूप से ज्यादा सक्रिय रहने वालों को इससे भी ज्यादा पानी पीना चाहिए. वहीं जो लोग डायलिसिस करवाते हों उन्हें कम पानी की जरूरत होती है.
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सिगरेट से तौबा
रक्त वाहिकाओं को नष्ट करने में धूम्रपान का बड़ा हाथ होता है. इसके कारण खून ठीक से फिल्टर नहीं हो पाता. सिगरेट छोड़ देने से और भी कई तरह के फायदे हैं जिनके बारे में हम अक्सर पढ़ते रहते हैं.
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पेनकिलर दवाईयों पर लगाम
अगर लंबे समय तक दर्दरोधी दवाईयां ली जाएं तो इससे भी किडनी पर बुरा असर पड़ता है. अगर किसी के गुर्दे पहले से ही थोड़े कमजोर हों, तो उन्हें पेनकिलर दवाओं से काफी खतरा हो सकता है. इन दवाओं को डॉक्टर से सलाह के बाद ही लंबे समय तक खाएं.
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गुर्दों की सालाना जांच
हर साल कम से कम एक बार अपनी किडनी की सेहत पर ध्यान दें. खास तौर पर 60 साल से बड़ी उम्र के लोगों में या मोटापे, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और परिवार में किडनी फेल होने की वंशानुगत बीमारी होने पर नियमित जांच जरूरी है. किडनी फेल के आरंभिक लक्षणों को साधारण से ब्लड टेस्ट या यूरीन टेस्ट में पकड़ा जा सकता है और सफल इलाज हो सकता है.