जर्मन सरकार पर समुद्री राहत अभियानों में बाधा डालने के आरोप
१ मार्च २०२३
जर्मन सरकार छोटे जहाजों पर ऊच्च सुरक्षा मानक लागून करना चाहती है. समंदर में रेस्क्यू करने वाले संगठनों का आरोप है कि इससे राहत कार्य में परेशानियां पैदा होंगी.
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जर्मनी के समुद्री राहत और बचाव संगठनों ने शिप सेफ्टी ऑर्डिनेंस में बदलाव का विरोध किया है. जर्मनी के सरकारी प्रसारक एआरडी की रिपोर्ट के मुताबिक संगठनों ने इसे सरकार के गठबंधन समझौते का उल्लंघन करार दिया है. जर्मनी के परिवहन मंत्रालय ने जो ड्राफ्ट बिल बनाया है, उसमें 24 मीटर लंबे जहाजों के लिए सुरक्षा संबंधी मानक बहुत ऊंचे रखे गए हैं.
रेस्क्यू संगठनों का कहना है कि नए सुरक्षा मानकों को लागू करना बहुत ही महंगा पड़ेगा. ऐसा न करने पर उन्हें अपना काम समेटना होगा, जिससे समंदर में राहत और बचाव के ऑपरेशनों में बाधा आएगी. मिशन लाइफलाइन, रेस्कशिप, सी-वॉच और सी-आई जैसे कई संगठनों ने एक साझा बयान जारी कर कहा है, "जर्मन झंडे के तहत काम कर रहे ज्यादातर सिविलियन सी रेक्स्यू जहाजों के लिए, इस नियम का मतलब यह है कि उन्हें या तो अपना काम सीमित करना पड़ेगा या फिर जीवन बचाने का काम बंद करना होगा."
"इन बदलावों को अमल में लाना गठबंधन समझौते का भी सीधा उल्लंघन है." संगठनों के मुताबिक जर्मन सरकार में शामिल तीन पार्टियों के गठबंधन समझौते में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि सिविलियन सी रेस्क्यू में बाधा नहीं डाली जाएगी.
आधुनिक सुरक्षा मानक चाहती है सरकार
जर्मन परिवहन मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने इन आरोपों के जवाब में कहा, "योजना भूमध्यसागर में प्राइवेट सी रेस्क्यू में दखल देने पर केंद्रित नहीं है. इसके उलट, यह उनके काम की सुरक्षा तय करने के लिए है. सरकार लगातार संगठनों के संपर्क में है और रेट्रोफिटिंग के लिए जरूरी समय दिया जाएगा."
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सरकार तय करना चाहती है कि गहरे सागर में राहत और बचाव का काम करने वाले छोटे जहाज आधुनिक सुरक्षा मानकों का पालन करें. इसके मुताबिक 24 मीटर या उससे अधिक लंबाई वाली नावों या जहाजों को भी अब बड़े कार्गो शिप (मालवाहक जहाज) जैसे सुरक्षा मानक मानने होंगे. अब तक 35 मीटर से छोटे जहाजों को सुरक्षा मानकों में कई तरह की रियायतें मिली हुई थी.
राहत संगठनों का कहना है कि 2015 में निजी जहाजों से भूमध्यसागर में राहत और बचाव का काम शुरू किया. तब से अब तक, पुराने सुरक्षा मानकों का पालन करने हुए इन जहाजों के रेस्क्यू मिशन में एक भी हादसा सामने नहीं आया है.
2015 में अफगानिस्तान, सीरिया और अफ्रीका के कई देशों से बड़ी संख्या में शरणार्थी यूरोप आने लगे. इस दौरान ज्यादातर शरणार्थी कामचलाऊ नावों के जरिए भूमध्यसागर पारकर यूरोपीय संघ की सीमा में दाखिल होने की कोशिश कर रहे. बीते नौ साल में भूमध्यसागर पार करने की कोशिशन में करीब 25,000 लोग डूबकर मारे जा चुके हैं.
इन हादसों को टालने के लिए कई निजी रेस्क्यू संगठन भूमध्यसागर में काम कर रहे हैं. यूरोपीय संघ के देशों के बीच इन निजी रेस्क्यू संगठनों को लेकर मतभेद भी हैं. यूरोपीय संघ के किसी भी देश या पूरे संघ का अपना कई रेस्क्यू मिशन नहीं है. निजी राहत संगठन अपने जहाजों और स्वंयसेवियों की मदद से ये रेस्क्यू ऑपरेशन चलाते हैं.
ओएसजे/सीके (डीपीए, एएफपी)
दुनिया भर से खतरों से भाग रहे शरणार्थियों की लाचारी
युद्ध, उत्पीड़न, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन के खतरे के परिणामस्वरूप, दुनिया भर में अनुमानित आठ करोड़ लोग सुरक्षा की तलाश में अपने देश से भागने को मजबूर हुए हैं. इस दौरान सबसे ज्यादा दर्द बच्चों को झेलना पड़ा है.
तस्वीर: Guardia Civil/AP Photo/picture alliance
समुद्र में डूबने से बचाया
बच्चा सिर्फ कुछ महीने का था जब एक स्पेनिश पुलिस गोताखोर ने उसे डूबने से बचा लिया. मई के महीने में हजारों लोगों ने यूरोप पहुंचने के लिए मोरक्को से भूमध्य सागर पार करने की कोशिश की थी. ये लोग स्पेन के छोटे से एन्क्लेव सेउता पहुंच गए थे. इस तस्वीर से सेउता में प्रवासी संकट की असली झलक देखने को मिलती है.
तस्वीर: Guardia Civil/AP Photo/picture alliance
कोई उम्मीद नहीं
भूमध्य सागर दुनिया के सबसे खतरनाक प्रवास मार्गों में से एक है. कई अफ्रीकी शरणार्थी समुद्र के रास्ते यूरोप पहुंचने में विफल रहने के बाद लीबिया में फंसे हुए हैं. त्रिपोली में कई ऐसे युवा हैं जो पल-पल अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्हें अक्सर कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है.
तस्वीर: MAHMUD TURKIA/AFP via Getty Images
सूटकेस में बंद जिंदगी
बांग्लादेश में कॉक्स बाजार शरणार्थी शिविर दुनिया के सबसे बड़े आश्रयों में से एक है. यहां म्यांमार से भागकर आए रोहिंग्या मुसलमानों की एक बड़ी संख्या रहती है. वहां के एनजीओ बाल शोषण, ड्रग्स, मानव तस्करी, साथ ही बाल श्रम और बाल विवाह जैसे मुद्दों पर चिंता जताते हैं.
तस्वीर: DANISH SIDDIQUI/REUTERS
ताजा संकट
इथियोपिया के टिग्रे प्रांत में गृह युद्ध ने एक और शरणार्थी संकट पैदा कर दिया है. टिग्रे की 90 फीसदी आबादी विदेशी मानवीय सहायता पर निर्भर है. करीब 16 लाख लोग सूडान भाग गए हैं. इनमें 7,20,000 बच्चे शामिल हैं. ये शरणार्थी अस्थायी शिविरों में फंसे हुए हैं और वे अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं.
तस्वीर: BAZ RATNER/REUTERS
शरणार्थियों को कहां जाना चाहिए?
तुर्की में फंसे सीरियाई और अफगान शरणार्थी अक्सर ग्रीक द्वीपों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. कई शरणार्थी ग्रीक द्वीप लेसबोस के मोरिया शरणार्थी शिविर में रहते थे. पिछले साल सितंबर में कैंप में आग लग गई थी. आग के बाद यह परिवार अब एथेंस आ गया है लेकिन अपने अगले गंतव्य के बारे में कुछ नहीं जानता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Y. Karahalis
एक कठिन जीवन
पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में 'अफगान बस्ती रिफ्यूजी कैंप' में रहने वाले अफगान बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं है. 1979 में अफगानिस्तान में सोवियत हस्तक्षेप के बाद से यह शिविर अस्तित्व में है. वहां रहने की व्यवस्था बेहद खराब है. शिविर में पीने का पानी और पर्याप्त आवास का अभाव है.
तस्वीर: Muhammed Semih Ugurlu/AA/picture alliance
सहायता संगठनों से महत्वपूर्ण समर्थन
वेनेजुएला के कई परिवार अपने देश में अपने भविष्य को धूमिल देखकर पड़ोसी देश कोलंबिया चले गए हैं. वहां वे एनजीओ रेड क्रॉस से चिकित्सा और खाद्य सहायता प्राप्त करते हैं. रेड क्रॉस ने सीमावर्ती शहर अरौक्विटा के एक स्कूल में एक अस्थायी शिविर बनाया है.
तस्वीर: Luisa Gonzalez/REUTERS
समाज में मिलने की कोशिश
कई शरणार्थी जर्मनी में अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की उम्मीद करते हैं. कार्ल्सरूहे में लर्नफ्रुंडे हाउस में शरणार्थी बच्चों को जर्मन स्कूल प्रणाली में प्रवेश के लिए तैयार किया जाता है. हालांकि कोविड महामारी के दौरान वे नए समाज में एकीकृत होने में मिलनी वाली मदद के इस अहम तत्व से चूक गए.