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समाजभारत

बेरोजगार प्रवासी मजदूरों का सहारा बनते ऑनलाइन पोर्टल

प्रभाकर मणि तिवारी
२५ अगस्त २०२०

कुशल और पढ़े लिखे लोगों के पास नौकरी तलाशने के लिए कई जॉब पोर्टल हैं लेकिन अब अर्द्धकुशल और गरीब प्रवासी मजदूरों के लिए भी ऐसे पोर्टल आ गए हैं. महामारी के दौरान काम गंवाने वालों को इससे फिर काम पाने में मदद मिल रही है.

Indien Wanderarbeiter verlassen Neu Delhi wegen der Corona Pandemie
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

भारत के तमाम महानगरों और दूसरे शहरों में शुरू हुए ऐसे जॉब पोर्टलों से प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार का परिदृश्य बदल रहा है. अनपढ़ मजदूरों को ऐसे पोर्टलों पर अपना ब्यौरा डालने में सहायता की जाती है. नौकरी जाने की वजह से लाखों की तादाद में गांव लौटे लोग अब इनकी सहायता से घर बैठे नई नौकरियां लेकर एक बार फिर शहरों की ओर लौट रहे हैं.

नए पोर्टल

ऊंची डिग्री वाले और प्रशिक्षित लोगों को लिंक्डइन समेत कई पोर्टलों के जरिए नौकरियां मिलती रही हैं. लेकिन कम पढ़े-लिखे, किसी खास हुनर में माहिर और अर्धकुशल प्रवासी मजदूरों के लिए अब तक ऐसा कोई जरिया नहीं था. लेकिन आपदा में अवसर की कहावत को चरितार्थ करते हुए अब देश में उनके लिए भी कई ऐसे पोर्टल शुरू हुए हैं जिनके जरिए लंबे लॉकडाउन के दौरान नौकरी गंवाने वाले लोग एक बार फिर अपने हुनर के मुताबिक नौकरियां हासिल कर अपनी जिंदगी को दोबारा पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे हैं.

नदिया जिले के समीर कुमार दास ऐसे ही लोगों में से हैं. समीर दो साल से गुजरात की एक फैक्टरी में काम करते थे. लेकिन लॉकडाउन शुरू होते ही उनकी जिंदगी बदल गई. फैक्टरी बंद होने के साथ नौकरी भी चली गई. ऐसे में वह गांव और आसपास के दूसरे लोगों के साथ मजबूरन गांव लौट आए. लेकिन भारी तादाद में लोगों की वापसी की वजह से गांव में भी कोई काम नहीं था. नतीजतन खेतों में काम कर किसी तरह दो जून की रोटी जुटाना उनकी मजबूरी बन गई थी.

समीर बताते हैं, "इस महीने के पहले सप्ताह के दौरान गांव के मुखिया ने 'काम वापसी' नामक एक पोर्टल के बारे में जानकारी दी. उसकी मदद से ही मुझे और दो अन्य युवकों को घर से कुछ दूर ही काम मिल गया है. पैसे कुछ कम जरूर हैं. लेकिन घर पर रहने की वजह से रहने-खाने का खर्च भी कम है.” उन्हें लगता है कि धीरे-धीरे ही सही, इन पोर्टलों की मदद से रोजगार का परिदृश्य अब बदल रहा है और अब काम के लिए किसी से चिरौरी नहीं करनी पड़ेगी.

बढ़ता पंजीकरण

इन पोर्टलों के लांच होने के बाद से लगातार इन पर पंजीकरण तेजी से बढ़ रहा है. कोरोना और लॉकडाउन की वजह से लाखों की तादाद में बेरोजगार होने वाले लोग इनकी ओर आकर्षित हो रहे हैं. गांवों तक पहुंचते स्मार्टफोनों और इंटरनेट ने इनकी राह काफी हद तक आसान कर दी है. ऐसे ही एक पोर्टल 'अपना' के संस्थापक निर्मित पारिख बताते हैं, "हमारा मकसद उन लोगों की सहायता करना है जिनके पास कौशल तो है, लेकिन बायोडाटा नहीं. इस एप पर पंजीकरण कराने वालों का एक वर्चुअल विजिटिंग कार्ड बना कर डाल दिया जाता है. इसके जरिए लोग सीधे नियोक्ता के साथ संपर्क कर सकते हैं.” पारिख का दावा है कि लांच होने के बाद अब तक करीब 15 लाख लोग पंजीकरण करा चुके हैं. इस पोर्टल के जरिए मुख्य रूप से दिल्ली, मुंबई, पुणे और बंगलूरू में काम मुहैया कराया जाता है.

एक अन्य पोर्टल 'जॉबसागर' फिलहाल मझौले और छोटे शहरो में लोगों को घर से सौ किमी के दायरे में रोजगार मुहैया कराने पर जोर दे रहा है. बीते लगभग डेढ़ महीने के दौरान 10 हजार लोगों ने पोर्टल पर पंजीकरण किया है. लॉकडाउन के दौरान मुंबई के प्रवासी मजदूरों को घर लौटने में मदद कर सुर्खियां बटोरने वाले अभिनेता सोनू सूद अब ऐसे प्रवासियों को नौकरी दिला कर उनको वापस बुलाने के अभियान में जुटे हैं. उन्होंने बीती जुलाई में 'प्रवासी रोजगार' नामक एक पोर्टल लांच किया था. सूद का दावा है कि इसके जरिए कई बड़ी कंपनियां नौकरियों के लिए इंटरव्यू ले रही हैं. इसके जरिए अब तक तीन हजार से ज्यादा लोगों को देश के विभिन्न शहरों में नौकरियां मिली हैं.

जानी-मानी विज्ञापन एजेंसी लिंटास ने भी 'काम वापसी' नामक एक पोर्टल लांच किया है. इसके जरिए लोग निर्माण समेत कई क्षेत्रों में नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं. इन तमाम विज्ञापन एजेंसियों में पंजीकरण की प्रक्रिया काफी आसान है. अगर कोई उम्मीदवार खुद पंजीकरण में असमर्थ है तो पोर्टल के कर्मचारी उससे उसके कौशल और पढ़ाई-लिखाई के बारे में जानकारियां हासिल कर उसकी प्रोफाइल या विजिटिंग कार्ड बना देते हैं.

प्रवासियों को रोजगार दिलाने की इस नई पहल का समाजशास्त्रियों व अर्थशास्त्रियों ने स्वागत किया है. विशेषज्ञों का कहना है कि इन पोर्टलों ने नाउम्मीदी के लंबे दौर में उम्मीद की नई किरण पैदा की है. इससे लोगों में यह भावना मजबूत होगी कि देर-सबेर उनको दोबारा नौकरी मिल सकती है. अर्थशास्त्र के प्रोफेसर विमल गुहा कहते हैं, "इस महामारी और बेरोजगारी के दौर में ऐसे पोर्टलों के जरिए नौकरी दिलाने की पहल सराहनीय है. इससे नौकरी मिलने में सहायता मिलेगी और साथ ही अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ेगा. मिसाल के तौर पर अगर किसी गांव के दस युवकों को भी नौकरी मिलती है तो इसका सकारात्मक असर पूरे गांव पर होगा.” समाजशास्त्री सोमेश्वर कुमार नाथ कहते हैं, "यह एक बेहतरीन पहल है. आपदा में अवसर को चरितार्थ करते हुए शुरू किए गए ऐसे पोर्टलों का समाज और देश पर दूरगामी असर होगा. इससे सामाजिक संकट तो कम होगा ही, कई परिवार टूटने-बिखरने से भी बच जाएंगे.”

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